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NASA के स्पेस स्टेशन में जाएंगे भारतीय, क्या है आर्टेमिस एकॉर्ड्स जिन पर PM मोदी ने साइन किए?

NASA और ISRO साथ आएंगे. स्पेस सेक्टर में क्रांति आने वाली है.

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नासा और इसरो के बीच स्पेस मिशनों को लेकर बड़ी डील हुई है. (फोटो सोर्स- PTI और आजतक)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने अमेरिकी दौरे में राष्ट्रपति जो बाइडन से एक बड़ी डील की. गुरुवार, 22 जून को हुई पीएम मोदी ने आर्टेमिस एकॉर्ड्स पर साइन किए. स्पेस मिशन से जुड़े इस समझौते पर दस्तखत करने वाला भारत 26वां देश बन गया है. समझौते के तहत अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA और भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO अगले साल एक जॉइंट स्पेस मिशन के लिए सहमत हुए हैं.

आर्टेमिस एकॉर्ड्स क्या है? अमेरिका और उसकी स्पेस एजेंसी दुनिया के कई देशों को समझौते के तहत एक साथ लाकर क्या करना चाहते हैं? इस समझौते पर साइन करने से भारत को क्या फायदा होगा? एक साथ आने के बाद NASA और ISRO किस मिशन पर काम करना शुरू कर रहे हैं? चीन और रूस इस समझौते का विरोध क्यों कर रहे हैं? इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे.

आर्टेमिस एकॉर्ड्स क्या है?

NASA की एक पहल है, इसका नाम है- आर्टेमिस प्रोग्राम. इसी प्रोग्राम के लिए साल 2020 में कुछ एकॉर्ड्स, माने समझौते या सहमतियां तय की गईं हैं. इन्हें आर्टेमिस एकॉर्ड्स नाम दिया गया है. एक लाइन में कहें तो तीन साल पहले बनाया गया आर्टेमिस एकॉर्ड्स असल में कुछ सिद्धांतों, नियमों और गाइडलाइंस का एक सेट है. इनका उद्देश्य है- पहले चांद और फिर आगे चलकर मंगल ग्रह से जुड़े मिशनों को सुरक्षित और सफल बनाना. स्पेस डॉट कॉम की एक खबर के मुताबिक, आर्टेमिस समझौते बाध्यकारी नहीं हैं. लेकिन इनके जरिए NASA साल 1967 में हुई यूनाइटेड नेशंस की आउटर स्पेस ट्रीटी (बाहरी अंतरिक्ष संधि) के महत्व की पुष्टि करना चाहता है.

NASA के मुताबिक,

इन समझौतों के तहत बने नियमों से स्पेस से जुड़े मिशन सुरक्षित होंगे, मिशनों की अनिश्चितता कम करने की कोशिश होगी और इंसानों के लिए अंतरिक्ष के फायदेमंद इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा.

NASA ने ये भी कहा है कि आर्टेमिस प्रोग्राम के मिशन के तहत 2024 में पहली महिला और पहला पर्सन ऑफ़ कलर यानी पहले अश्वेत व्यक्ति को चंद्रमा पर भेजा जाएगा. इसके लिए NASA स्पेस मिशन से जुड़े व्यापारिक संस्थानों और दुनिया के कई सारे देशों को साझेदार बनाएगा. इस प्रोग्राम के तहत चांद पर जो भी एस्ट्रोनॉट जाएगा वो वहां लंबे वक़्त तक रुकेगा. NASA का ये भी कहना है कि इसके बाद पहली बार मंगल ग्रह की सतह पर भी इंसान को भेजा जाएगा.

आर्टेमिस एकॉर्ड्स के सिद्धांत

आर्टेमिस एकॉर्ड्स के तहत कुछ ख़ास सिद्धांत बनाए गए हैं. जैसे-

शांतिपूर्ण उद्देश्य

आर्टेमिस प्रोग्राम के तहत सभी देश स्पेस से जुड़ी हुई कोई भी गतिविधि, ख़ास तौर पर शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए और अंतरराष्ट्रीय कानूनों को मानते हुए करेंगे.

पारदर्शिता

समझौतों पर साइन करने वाले देश स्पेस से जुड़ी अपनी पॉलिसीज़ और योजनाओं को लेकर पारदर्शी रहेंगे. समझौते के तहत उन्हें अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और जनता से जानकारियां साझा करनी चाहिए.

साझा मिशन

NASA कहता है कि देशों को ये मानना चाहिए कि अंतरिक्ष के मिशन से जुड़े सभी उपकरण, मशीनें, तकनीक जैसे फ्यूल स्टोरेज, डिलीवरी सिस्टम, लैंडिंग स्ट्रक्चर, कम्युनिकेशन सिस्टम, पावर सिस्टम एक साथ मिलकर काम करेंगे तो मिशन सफल होंगे और नई खोजें होंगी.

आपातकालीन मदद

समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले देश, स्पेस में किसी दिक्कत में फंसे एस्ट्रोनॉट्स को मदद देने के लिए प्रतिबद्ध होंगे.

स्पेस ऑब्जेक्ट्स का रजिस्ट्रेशन

समझौते पर साइन करने वाले देश आपस में ये तय कर सकते हैं कि रजिस्ट्रेशन कन्वेंशन के मुताबिक, कौन सा देश स्पेस की किसी चीज को रजिस्टर करेगा.

विरासत का संरक्षण

समझौते के तहत सदस्य देशों से स्पेस की हर चीज, हर एक्टिविटी और लैंडिंग साइट्स, स्पेसशिप वगैरह को संरक्षित करने के लिए कहा गया है.

स्पेस रिसोर्स

सदस्य देशों को ये मानना होगा कि स्पेस के संसाधनों (जैसे कि चंद्रमा, मंगल वगैरह की सतह से) की निकासी और उनका इस्तेमाल आउटर स्पेस ट्रीटी के अनुसार होगा. इस संधि के अनुसार, कोई देश अंतरिक्ष से लाई गई चीजों के मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता.

अंतरिक्ष से जुड़े विवाद का निपटारा

समझौते में ये भी कहा गया है कि चांद के किसी मिशन पर जाने वाले देशों को दूसरे देशों की नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों से बचने के लिए एक सेफ्टी ज़ोन बनाना चाहिए.

हालांकि आर्टेमिस समझौते को लेकर कुछ चिंताएं भी हैं. न्यूज़ एजेंसी PTI के मुताबिक,

"स्पेस में खोजबीन के मिशनों से अमीर देशों को सबसे ज्यादा फायदा होगा. और आर्टेमिस समझौते में ये तय करने वाले नियम नहीं हैं कि अंतरिक्ष के संसाधनों तक किसकी पहुंच है और किन परिस्थितियों में है. इसका मतलब है कि आर्टेमिस समझौता 'पहले आओ और पहले पाओ' के आधार पर स्पेस के रिसोर्स का इस्तेमाल करने को बढ़ावा देता है."

इसका परिणाम ये बताया जाता है कि जिन देशों के पास स्पेस में जाने के लिए पैसा और तकनीक है उन्हें सबसे ज्यादा फायदा होगा. कम विकसित या विकासशील देशों को अंतरिक्ष के संसाधनों के इस्तेमाल का फायदा नहीं होगा.

आर्टेमिस समझौते को लेकर चीन और रूस का नजरिया नकारात्मक है. अमेरिका से हर तरह की होड़ में लगे इन दोनों देशों के लिए ये स्वाभाविक भी है. प्रोफ़ेसर गुओयू वांग बीजिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी की अकादमी ऑफ़ एयर, स्पेस पॉलिसी एंड लॉ के डीन हैं. उन्होंने द स्पेस रिव्यू के लिए साल 2020 में लिखे अपने आर्टिकल में कहा है कि आर्टेमिस प्रोग्राम से चांद पर जाने की एक नई रेस शुरू हो सकती है.

उन्होंने लिखा,

“आर्टेमिस समझौता स्पेस के संसाधनों के व्यावसायिक इस्तेमाल को बढ़ावा देता है. इससे देशों और कंपनियों के बीच चंद्रमा और दूसरे ग्रहों, खगोलीय पिंडों के संसाधनों का दोहन शुरू होगा. स्पेस के संसाधनों के लिए देशों के बीच प्रतियोगिता का दौर शुरू होना तय है.”

रूस भी स्पेस के संसाधनों के इस्तेमाल को लेकर अमेरिका के खिलाफ आपत्ति जता चुका है. रूसी स्पेस एजेंसी Roscosmos के डायरेक्टर ने इस प्रोग्राम को लेकर अमेरिका पर टिप्पणी करते हुए कहा था,

“हमले का सिद्धांत एक ही है, चाहे चांद हो या इराक.”

भारत का क्या फायदा?

भारत और अमेरिका पहले भी चांद से जुड़े अभियानों में एक-दूसरे का सहयोग करते रहे हैं. लेकिन ये सहयोग अभी तक केवल जानकारी साझा करने तक सीमित था. लेकिन इस समझौते पर दस्तखत करने के बाद NASA और ISRO चंद्रमा के मिशनों के लिए एक-दूसरे से तकनीक और संसाधन भी साझा करेंगे. 

ये समझौता ऐसे वक़्त हुआ है जब ISRO कुछ ही महीनों में चंद्रयान-3 अभियान लॉन्च करने वाला है. आर्टेमिस समझौते में भारत के शामिल होने के साथ ही ISRO और NASA इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर भारतीय एस्ट्रोनॉट्स भेजने पर सहमत हुए हैं. हालांकि अभी इसमें वक़्त लगेगा. भारत को गगनयान अभियान में भी अमेरिका का सहयोग मिल सकता है. 

एक पेच ये है कि भारत को अपने स्पेस मिशनों में हमेशा रूस का सहयोग मिलता रहा है. अब देखना होगा कि NASA और ISRO के हाथ मिलाने के बाद क्या हमारे स्पेस मिशनों को लेकर रूस के नजरिये और सहयोग में बदलाव आएगा.

वीडियो: मास्टरक्लास: NASA और ISRO जो सैटेलाइट लॉन्च करते हैं, वो पृथ्वी से कितनी दूर चली जाती हैं?