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प्लेन क्रैश में 20 लोगों की मौत, इकलौते बचे आदमी ने बताया, मगरमच्छ था!

जब प्लेन के अंदर बैग से निकली दो आंखें. कहानी उस प्लेन हादसे की जिसकी वजह बना एक मगरमच्छ!

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साल 2010 कांगो में हुए एक प्लेन क्रैश का कारण बना एक मगरमच्छ (तस्वीर- Wikimedia commons/Pixabay)

किसी रोज़ घर से छाता लाना भूल जाएं, तो उस दिन तो बारिश होगी ही होगी. सिक्का गिरेगा तो सोफे के उस कोने तक पहुंच जाएगा जहां पहुंचने के लिए फर्श पर साष्टांग होना पड़े. खोई हुई पेन तब तक नहीं मिलेगी, जब तक नई पेन न ख़रीद लो. आम जिंदगी के हमारे ये कटु अनुभव मर्फी लॉ के उदाहरण है. देने वाले का पूरा नाम- एड्वर्ड मर्फी. मर्फी भैया एक इंजीनियर थे. प्लेन ठीक करने वाले. उन्होंने ये नियम दिया था. - जो कुछ भी गलत हो सकता है, होकर रहेगा. (plane crash story)

मर्फी ये बात प्लेन की सुरक्षा को लेकर कह रहे थे. मतलब प्लेन में जितने सिस्टम लगे होते हैं. उनमें जो कुछ गलत हो सकता है, एक दिन होगा. मर्फी की बात जीवन का सिद्धांत बन गई. हालांकि प्लेन हादसों में भी देखा गया कि ऐसा होता है. कभी एक चुम्बक ने गड़बड़ कर दी. कभी एक स्क्रू के चक्कर में पूरा इंजन फेल हो गया. आज जिस प्लेन हादसे की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं, उसका कारण कुछ ऐसा था कि मर्फी ने भी कभी कल्पना नहीं की होगी. कहानी अफ्रीका के एक देश की है, जहां बहुत सारे मगरमच्छ पाए जाते हैं. (Congo plane crash 2010)

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फिलएयर का विमान  Let L-410 Turbolet, ऐसा ही एक विमान था जो दुर्घटनाग्रस्त हुआ था (तस्वीर- Wikimedia commons)

जहां प्लेन बस की तरह इस्तेमाल होते हैं 

ये कहानी है मध्य अफ्रीका के एक देश की. नाम - डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो या DRC. DRC के ठीक बगल में एक और देश है, रिपब्लिक ऑफ द कांगो. दोनों का नाम कांगो है, लेकिन देश अलग-अलग हैं. अपन बात कर रहे हैं DRC की. एरिया के हिसाब से DRC अफ़्रीकी महाद्वीप के सबसे बड़े देशों में से एक है. आबादी- 10 करोड़. सबसे बड़ा शहर और राजधानी - किंशासा. DRC भी अफ्रीका के ज्यादातर मुल्कों की तरह एक गरीब मुल्क है. देश में जंगल का एरिया काफ़ी है और अधिकतर लोग कस्बों या गांवों में बसे हैं. इन्हें आपस में जोड़ने वाला एक रोड नेटवर्क है. लेकिन अधिकतर सड़कें संकरी और कच्ची हैं. सफ़र करना मुश्किल है. हालांकि DRC के लोगों ने इसका एक बढ़िया जुगाड़ अपनाया है.

DRC में एक तगड़ा एयर लाइन नेटवर्क है. जो दशकों पुराना है लेकिन एक जगह से दूसरी जगह जाने का एक सुलभ और आसान तरीका उपलब्ध कराता है. देश की राजधानी में दो एयरपोर्ट हैं. इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नाम है जिली इंटरनेशनल एयरपोर्ट और डोमेस्टिक का नाम नडोलो एयरपोर्ट . दोनों एयरपोर्ट सुविधा संपन्न हैं. लेकिन बाकी इलाकों का हाल ऐसा नहीं है. बाक़ी हवाई अड्डों के नाम पर ज्यादातर एक छोटी सी बिल्डिंग, डाक खाने जितनी और हवाई पट्टी के नाम पर एक छोटा सा समतल मैदान. लेकिन पूरा सिस्टम ऐसा है कि काम चल जाता है. बाक़ायदा कहेंगे कि उड़ान भरता है. कांगो में प्लेन, बस के माफ़िक इस्तेमाल होते हैं. किंशासा से प्लेन पकड़ो. प्लेन उतरेगा किरी में. किरी में लोग चढ़ेंगे उतरेंगे. इसके बाद बोकोरो, सेमेंद्वा, बंदुदु होते हुए अंत में प्लेन वापस किंशासा आ जाएगा. हर अड्डे पर चढ़ने उतरने का सिलसिला बरकरार रहेगा. बिल्कुल वैसे जैसे बस में होता है.

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तो हुआ यूं कि साल 2010 में ऐसे ही एक बस/प्लेन ने किंशासा एयरपोर्ट से उड़ान भरी. अगस्त का महीना. नडोलो एयरपोर्ट से एक Let L-410 Turbolet विमान उड़ान भरता है. ये दो इंजन वाला छोटा सा विमान था जो आमतौर पर कार्गो ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. या स्काई डाइविंग के शौक़ीन इसका इस्तेमाल करते हैं. ये प्लेन एक काफी पुराने ज़ख़ीरे का हिस्सा था. जो DRC को अमेरिका से मिला था. इस विमान में अगर सीट फिट कर दें तो 18-20 लोग आराम से बैठ सकते थे. पीछे की तरफ़ बैगेज एरिया था, जहां लोग अपना सामान रख सकते थे.

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(तस्वीर- Google)

नडोलो से उड़ने वाला ये विमान फ़िलएयर नाम की कंपनी चलाती थी. जिसका ट्रैक रिकॉर्ड बताने के लिए ये जानना काफ़ी है कि 2015 तक यूरोप ने इस कम्पनी को ब्लैक लिस्ट किया हुआ था. यहां तक कि फ़िलएयर के किसी विमान को यूरोपियन एयरस्पेस में दाखिल होने की इजाज़त भी नहीं थी.

बैग से निकली दो आंखें 

फिलएयर का विमान जो अगस्त की उस सुबह उड़ा, उसे उड़ाने वाला शख्स खुद फिलएयर का मालिक था. डैनी फ़िलमेट. और इसके को-पायलट का नाम था विल्सन. विल्सन एक एक ब्रिटिश नागरिक था. उसकी उम्र 39 साल थी. और हाल में ही उसने अपनी केबिन क्रू की जॉब छोड़कर पायलट की नौकरी शुरू की थी. उस रोज़ नडोलो एयरपोर्ट से उड़ान भरते हुए प्लेन की अधिकतर सीटें खाली थीं. हालांकि अगला स्टॉप किरी था. जहां और लोग उसमें सवार होने वाले थे. किरी से विमान बोकोरो पहुंचा और फिर सेमेंद्वा. सेमेंद्वा से प्लेन का आखिरी लेग शुरू हो रहा था. प्लेन यहां से बंदुदु जाता और फिर वापस नडोलो. लेकिन हुआ ये कि बंदूदु में लैंडिंग से कुछ वक्त पहले, उड़ान में एक दिक्कत शुरू हो गई.

ये दिक्कत प्लेन की बॉडी या यात्रियों के साथ नहीं थी. दिक्कत पीछे कार्गो एरिया में थी. कार्गो में एक डफल बैग रखा हुआ था. जिसे संभवतः सेमेंद्वा से प्लेन में चढ़ाया गया था. जैसा पहले बताया प्लेन बस की तरह काम करते थे, लिहाज़ा सुरक्षा व्यवस्था भी बस के जैसी ही थी. चेकिंग के नाम पर एक मशीन थी. जो टूं-टूं तो करती थी, लेकिन क्या प्लेन में चढ़ाया गया, और क्या उतारा गया, पक्का नहीं कह सकते थे. इसी प्रकार चेक किए गए एक बैग में, बंदुदु में लैंड करने से कुछ वक्त पहले अचानक हरकत होने लगी. शुरुआत में किसी को कुछ पता ना चला. लेकिन फिर अचानक उस बैग का मुंह खुला और उसमें से निकली दो आंखें.

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इस दुर्घटना में प्लेन में सवार 18 यात्री मारे गए साथ ही पायलट और को-पायलट की भी मौत हो गई (तस्वीर- Radio Okapi)

आंखें कुछ और भी थीं, जो जमीन से प्लेन को देख रही थीं. बंदुदु में लोग प्लेन के उतरने का इंतज़ार कर रहे थे. लेकिन वो इंतज़ार करते ही रह गए. उनके देखते-देखते प्लेन नीचे की तरफ मुड़ा और गोता खाते हुए एक घर की छत से टकरा गया. प्लेन की बॉडी के परखच्चे उड़ गए, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उसमें आग नहीं लगी. इसलिए शुरुआत में अधिकारियों को लगा कि शायद फ्यूल खत्म होने से प्लेन क्रैश हुआ. इस हादसे में 18 यात्री मारे गए थे. और साथ ही पायलट और को-पायलट की भी मौत हो गई. को- पायलट ब्रिटिश नागरिक था. इसलिए इस मामले में ब्रिटिश अधिकारियों ने भी दिलचस्पी दिखाई. वो क्रैश का कारण जानना चाहते थे. कांगो के पास संसाधन कम थे. इसलिए उन्होंने जांच जल्द ही क्लोज़ करते हुए, हादसे का कारण, फ्यूल खत्म होने को ठहराया.

प्लेन के अंदर मगरमच्छ?

ब्रिटिश अधिकारी इससे संतुष्ट न थे. उन्होंने कांगो से प्लेन का ब्लैक बॉक्स मांगा. लेकिन बात टालमटोल में बीत गई. फिर ब्रिटेन ने अपना एक विशेषज्ञ नियुक्त किया. इनका नाम था टिमथी एटकिंसन. एटकिंसन ने लिमिटेड सबूतों के आधार पर थ्योरी दी कि प्लेन शायद स्टॉल कर गया था. आसान भाषा में कहें तो मुड़ने के दौरान एक एंगल से ज्यादा झुकने के कारण प्लेन का बैलेंस गड़बड़ा गया था. जिसके चलते वो क्रैश कर गया. कांगो के लोग इस चैप्टर को जल्द ही भूल गए. मामला खत्म हो जाता, लेकिन फिर कुछ वक्त बाद एक नई कहानी सामने आई.

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ज्यून नाम की एक पत्रिका ने एक खबर छापी. प्लेन हादसे में एक आदमी बच गया था. हालांकि उसे काफी चोट आई थी. हादसे के तुरंत बाद वो कुछ नहीं बता पाया, लेकिन फिर उसने अपनी कहानी बताई जो कुछ इस प्रकार थी.- उस रोज़ प्लेन के कार्गो में रखे बैग से जो दो आंखें बाहर आई थीं, वो थी एक मगरमच्छ की. प्लेन के फर्श पर रेंगता हुआ वो आगे बढ़ा. यात्रियों का डर के मारे हाल खराब. वो पीछे हटने की कोशिश कर रहे थे. और इसी कोशिश में सब केबिन के काफी नजदीक पहुंच गए. प्लेन का अधिकतर भार उसके सामने के हिस्से में पहुंच गया. इस हड़बड़ी में प्लेन का बैलेंस खराब हुआ और वो डोलता हुआ नीचे क्रैश कर गया. जिस आदमी ने ये कहानी सुनाई उसके अनुसार प्लेन हादसे में उसके अलावा एक और चीज ज़िंदा बच गयी थी. वो मगरमच्छ. जिसे एयरपोर्ट पर खड़े लोगों ने मार डाला था.

प्लेन के अंदर मगरमच्छ. कहानी फ़िल्मी थी. इसलिए अखबारों में खूब चली. हालांकि अधिकारियों ने कभी इस कहानी को स्वीकार नहीं किया. उनके अनुसार प्लेन हादसे का कारण तकनीकी दिक्क्त थी. उस रोज़ असल में क्या हुआ था, ये जानने के लिए ब्लैक बॉक्स की जरूरत थी. लेकिन ब्लैक बॉक्स कभी ठीक से चेक ही नहीं किया गया. मगरमच्छ वाली बात किंवदंती बन गई. सच क्या था, ये शायद कभी साफ़ नहीं हो पाएगा. लेकिन कुछ रिपोर्ट्स से ये ज़रूर पता चलता है कि कांगो के लोग अक्सर अपनी प्लेन नुमा बस में बकरी, मुर्गी जैसे जानवर लेकर सफ़र करते थे. ऐसे में कोई प्रकृति प्रेमी मगरमच्छ ही उठा लाया हो, इस बात में कुछ ख़ास अचरज नहीं.

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