हवाई जहाज की यात्रा, हजारों फ़ीट की ऊंचाई. इतनी ऊंचाई कि कुछ हियां उआं हो गया तो सांस लेने के लाले पड़ जाएं. इसलिए लगाए जाते हैं ऑक्सीजन मास्क. लेकिन इंसान फिर इंसान है. आज कहानी एक ऐसे प्लेन हादसे की, जब इंसानी लालच के चक्कर में जीवन देने वाली ऑक्सीजन ही मौत का कारण बन गई. प्लेन क्रैश हुआ और ऐसी जगह जहां भयानक दलदल था. 115 लोग मारे गए. इससे भी बड़ा दुर्भाग्य ये था कि मारे गाए लोगों के प्रियजनों को उनके शव तक न मिले. जिस दलदल में प्लेन गिरा, वो भरा था, हजारों मगरमच्छों और सांपों से. (ValuJet Flight 592)
110 लोग बैठे थे प्लेन में और एक की भी लाश न मिली!
रनवे महज कुछ किलोमीटर दूर था.
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ये बात है साल 1996 की. अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के मायामी एयरपोर्ट से दोपहर दो बजे एक फ्लाइट टेक ऑफ करती है. फ्लाइट का नंबर -592 और मॉडल-मैकडोनलडगलस DC-9. 80 से 135 यात्री क्षमता और दो इंजन वाला ये विमान 27 साल से उड़ान भर रहा था. इसे चलाने वाली कंपनी का नाम था, वैलुजेट. (Plane Crash)

महज तीन साल पहले शुरू हुई ये कम्पनी जल्द ही काफी फेमस हो गई थी और अच्छा मुनाफा कमा रही थी. कारण- सस्ता किराया. हालांकि सस्ते किराए कि अपनी वजहें थी. मिसाल देखिए, उसी रोज़ जब ये प्लेन जब एक दूसरी उड़ान पर था, बीच में ही उसका फ्लाइट अड्रेस सिस्टम, यानी वो सिस्टम जिसके जरिए फ्लाइट में घोषणा की जाती है, ख़राब हो गया. फ्लाइट अटेंडेंट को घोषणा के लिए मेगाफोन इस्तेमाल करना पड़ा.
खस्ता हाल प्लेन की उड़ान
2 दिन से इस प्लेन का ऑटोपायलट ख़राब था और टेक ऑफ से ठीक पहले इलेक्ट्रिकल सिस्टम में फाल्ट के चलते उड़ान में देरी हुई थी. एक साल पहले वैलुजेट के एक प्लेन में टेक ऑफ के वक्त आग लग गयी थी. कुल मिलाकर कंपनी फायदे के चक्कर में सुरक्षा से समझौता कर रही थी. लेकिन अमेरिका वाले भी कम चिंदी नहीं थे. इसलिए हमेशा की तरह उस रोज़ भी फ्लाइट पूरी भरी हुई थी. यात्रियों और क्रू को मिलाकर कुल 110 लोग उसमें सवार थे. कैंडी क्यूबेक प्लेन की पायलट थीं और फर्स्ट ऑफिसर का नाम था, रिचर्ड हेज़न. दोनों पर्याप्त अनुभवी थे. और उन्हें वैलुजेट के खस्ता हाल विमान उड़ाने की आदत हो चुकी थी. 2 बजकर 3 मिनट पर टेक ऑफ हुआ और अगले 10 मिनट तक फ्लाइट आराम से उड़ान भरती रही.
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2 बजकर 13 मिनट पर पायलट क्यूबेक को एक जोर की आवाज आई. उन्होंने फर्स्ट ऑफिसर रेजन की तरफ देखा. रेजन के चेहरे पर आशंका की रेखाएं थीं. लेकिन दोनों को कोई अंदाज़ा नहीं था कि आवाज आई कहां से. इससे पहले कोई कुछ समझ पाता, अचानक तमाम वार्निंग लाइटें जलने लगीं. ˚क्यूबेक चिल्लायीं - हम सब कुछ खो रहे हैं. हमें तुरंत मायामी लौटना होगा. दोनों बुरी तरह घबराए थे, पीछे कैबिन में तस्वीर भयानक. कार्गो होल्ड में आग गई थी और धुंआ पूरे प्लेन में भर रहा था. लोग ‘आग आग’ चिल्लाते हुए भगदड़ मचा रहे थे. एक फ्लाइट अटेंडेंट ने इंटरफोन के जरिए पायलट को इत्तिला करने की कोशिश की.
”हमें ऑक्सीजन चाहिए, लोग सांस नहीं ले पा रहे”
अटेंडेंट ने इंटरफोन पर ये शब्द बोले लेकिन दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला. अंत में उसने कॉकपिट का दरवाजा खोला ताकि पायलट को आग के बारे में बता सकें. हलांकि ऐसा करना नियमों के खिलाफ था, लेकिन उस समय उनके पास कोई चारा नहीं था. महज कुछ सेकेंडों तक दरवाज़ा खोलकर वो चिल्लाई ”सब तरह आग है”. ये कहकर उन्होंने कॉकपिट का दरवाज़ा बंद कर दिया.

पायलट ने तुरंत कंट्रोलर को बताया कि वो मायामी लौट रहे हैं. कंट्रोलर ने जवाब दिया-
‘हवाई अड्डे पर फायर ट्रक और एम्बुलेंस पहुंच रही हैं. आप रनवे पर लैंड करने की कोशिश करो'
इसके 15 सेंकेंड बाद कंट्रोलर को प्लेन से आवाज आना बंद हो गई. रडार के मुताबिक़ अगले देढ़ मिनट तक प्लेन हवा में उड़ता रहा. और फिर अचानक गायब हो गया. असल में आग के कारण प्लेन का कंट्रोल सिस्टम फेल हो गया था और अब वो 12 हजार फ़ीट प्रति मिनट की गति से नीचे गिर रहा था. करीब 900 फ़ीट की ऊंचाई पर लगा कोई चमत्कार हुआ. प्लेन हवा में सीधा हुआ. इस वक्त को रनवे की दिशा में था. लगा प्लेन लैंड कर जाएगा लेकिन फिर कुछ सेकेंड स्थिर रहने के बाद उसने नोक की सीध पर नीचे की ओर डाइव लगाई और जमीन से जा टकराया. प्लेन एयरपोर्ट से कुछ ही मील की दूरी पर क्रैश हुआ था. इसलिए तुरंत बचाव दल उसके पास पहुंचा. लेकिन वहां उन्हें प्लेन का कोई निशान नहीं दिखाई दिया. दिखाई देता भी तो कैसे, प्लेन जहां गिरा था, वो एक विशाल दलदल था.
जिस इलाके में प्लेन क्रैश हुआ था उसे एवरग्लेड्स कहा जाता है. फ्लोरिडा के दक्षिणी हिस्से में बसा एक विशाल भूभाग जो पानी में डूबा रहता है. बारिश में ये इलाका एक विशाल नदी में तब्दील हो जाता है. और गर्मियों में उतने ही विशाल दलदल में. इस दलदल में पाए जाते हैं, मगरमच्छ, घड़ियाल, और सांप, जिनके लिए फ्लोरिडा फेमस है. प्लेन ठीक इसी दलदल में जा गिरा था. और बचाव दल के लिए लोगों को बचाना दूर, यहां पहुंचना भी मुश्किल था. आगे क्या हुआ ये बताने से पहले एक चीज़ जानना ज़रूरी है.
प्लेन में आग लगी कैसे?
शुरुआत में हमने बताया था की इस केस में ऑक्सीजन लोगों की मौत का कारण बन गई थी. असल में ये ऑक्सीजन जनरेटर थे, जो उस रोज़ कार्गो कम्पार्टमेंट में रखे हुए थे. जैसा नाम से जाहिर है, ये जनरेटर, ऑक्सीजन पैदा करने के काम आते हैं. इनमें अंदर sodium chlorate नाम का केमिकल भरा रहता है, जिसे एक हल्के चार्ज से चिंगारी दी जाती है. इसके बाद रिएक्शन शुरू होता है, जिससे सोडियम क्लोरेट, सोडियम क्लोराइड और ऑक्सीजन में टूट जाता है. यही ऑक्सीजन एक नली के जरिए प्लेन में लगे ऑक्सीजन मास्क तक पहुंचती है. ये जनरेटर प्लेन की छत में एक कम्पार्टमेंट में लगे होते हैं. सवाल उठता है कि फिर इस प्लेन में इन्हें कार्गो में क्यों रखा गया. जबकि नियम के अनुसार कार्गो में एक लाइटर रखने की भी इजाजत नहीं होती.

दरअसल इस मामले कंपनी से एक भारी गलती हुई थी. ऑक्सीजन जनरेटरों को कागज़ और बबल रैप से भरे बक्से में रखा था, जिनमें ऊपर ऑक्सीजन कैनिस्टर लिखा हुआ था. साथ में दर्ज़ था कि ये केनिस्टर खाली हैं. जबकि असल में वो केमिकल से भरे हुए जनरेटर थे. जिनमें सेफ़्टी कैप भी नहीं लगी हुई थी. सारी लापरवाही पैसे बचाने के चक्कर में हुई थी. वैलुजेट कम्पनी ने मेंटेनेंस का काम एक दूसरी कंपनी को दे रखा था. उनको पैसा कम मिलता तो वो भी पूरी लीपापोती से काम चलाते. आम तौर पर इस लापरवाही का नतीजा, छोटे मोटे तकनीकी फ़ॉल्ट्स में नज़र आता, लेकिन उस रोज़ ये गलती 110 लोगों की मौत का कारण बन गई.
टेक ऑफ़ के चंद मिनट बाद ही किसी जनरेटर में छोटी सी चिंगारी से केमिकल रिएक्शन शुरू हुई. रिएक्शन के पैदा हुई गर्मी से कागज़ में आग लग गई. बगल में पुराने रबर के टायर रखे हुए थे. टायरों ने आग पकड़ी और धीरे-धीरे पूरे कार्गो में फ़ैल गई. आग से प्लेन का इलेक्ट्रिकल सिस्टम और बाकी कंट्रोल्स ख़राब हो गए. पायलट के हाथ से नियंत्रण चला गया. और वो सीधे जाकर मगरमच्छों से भरे दलदल में जा गिरा. बचाव दल जब मौक़े पर पहुंचा तो वहां प्लेन का नामों निशान तक नहीं था. वो दलदल में गहरे डूब चुका था. बड़ी मुश्किल से उसका फ़्लाइट ड़ेटा रिकॉर्डर ढूंढा गया.
110 लोगों का क्या हुआ?
हफ्तों की खोज के बाद बचाव दल के हाथ लगा, इंसानी जबड़े का एक हिस्सा, एक टूटा दांत और कुछ मांस के चीथड़े. जब एक बचाव कर्मचारियों को किसी छोटे बच्चे की हैट मिली, वो इतना निराश हो गया कि काम छोड़कर ही चला गया. विमान हादसे में मारे गए एक भी व्यक्ति की लाश न मिली. परिवार वालों के पास दफ़नाने और अंतिम क्रिया कर्म के लिए भी कुछ नहीं था. कुछ भी नहीं बचा था. सिवाए एक चीज के. इस हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा दिलवाना अभी बाकी था.
तहकीकात के बाद इस दुर्घटना का जिम्मेदार तीन संस्थाओं को ठहराया गया
1 - वैलुजेट कम्पनी
2 - सेबरटेक कम्पनी, जो विमान मेंटेंनेस के लिए जिम्मेदार थी
3- FAA, फ़ेडरल एविएशन एजेंसी, अमेरिका का नागरिक उड्डयन मंत्रालय.

वैलुजेट और सेबरटेक की लापरवाही तो साफ़ नजर आ रही थी. लेकिन FAA भी इस हादसे के लिए उतनी ही जिम्मेदार थी. 1988 में एक ऐसे ही एक हादसे के बाद जांच पैनल ने FAA को कुछ सुझाव दिए थे. जिनमें कार्गो में धुआं डिटेक्ट और आग बुझाने वाला सिस्टम लगाने की बात शामिल थी. FAA ने सुझावों को ये कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि इससे फ़्लाइट का खर्चा बड़ेगा और उसका बोझ कस्टमर पर पड़ेगा.
1997 में अदालत ने मेंटेनेंस कम्पनी के तीन लोगों को दोषी करार दिया. और कम्पनी पर 100 करोड़ रूपये का जुर्माना लगाया. वैलुजेट कंपनी के सभी प्लेन तुरंत ग्राउंड कर दिए गए. कंपनी को कुछ वक्त बाद दुबारा उड़ान की पर्मिशन मिल गई. लेकिन लोगों के बीच कम्पनी की छवि इतनी ख़राब हो चुकी थी कि लोगों ने उसे बॉयकॉट कर दिया. कंपनी घाटे में चली गई और बाद में वैलुजेट को एक दूसरी विमान कम्पनी ने ख़रीद लिया. ये केस इसलिए भी काफी चर्चा में रहा है क्योंकि इस केस में दोषी करार दिया गया एक मेकेनिक 27 सालों से फरार है. FBI ने उसके सिर पर 8 लाख रूपये का इनाम रखा हुआ है.
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