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पवन हंस: केंद्र का हेलीकॉप्टर सर्विस प्रोवाइडर, जिसके रिकॉर्ड में 91 मौतें दर्ज हैं

केंद्र सरकार ने पवन हंस के विनिवेश को जनवरी 2017 में ही मंजूरी दे दी थी. कंपनी में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी है. सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी को बेचना चाहती है.

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पवन हंस के विनिवेश की कई बार हो चुकी है कोशिश (फाइल फोटो- पीटीआई)

सरकारी हेलीकॉप्टर ऑपरेटर कंपनी 'पवन हंस' बिकने को तैयार है. लंबे समय से चल रही विनिवेश की तैयारी अब अंतिम चरण में है. वित्तीय संकट से जूझ रही पवन हंस के विनिवेश के लिए सरकार ने 'एक्सप्रेशन ऑफ इंटेरेस्ट' (EOI) आमंत्रित किए थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार को विनिवेश के लिए JSW स्टील और जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड से बोलियां मिलीं. हालांकि JSW स्टील ने सोमवार, 26 अप्रैल को इससे इनकार किया कि वो पवन हंस को खरीदने की रेस में है. कंपनी ने मीडिया रिपोर्ट को भी आधारहीन बता दिया.

केंद्र सरकार ने साल 2022-23 में 65 हजार करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा है. इससे पहले 2021-22 के दौरान विनिवेश से 1.75 लाख करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन सरकार सिर्फ 78 हजार करोड़ रुपये ही जुटा पाई थी. ये तो नहीं पता कि पवन हंस को बेचे जाने का फैसला विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करने में कितना मददगार होगा, लेकिन जिस सरकारी कंपनी को इतनी बार बेचने की कोशिश हो चुकी है, उसकी कहानी भी समझनी जरूरी है.

ब्लूमबर्ग ने हाल में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बोली पर अंतिम मुहर के लिए कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में अधिकारियों का एक ग्रुप बैठक करने वाला है. इसकी अंतिम घोषणा एक मंत्रीस्तरीय पैनल करेगा. सरकार पिछले कई सालों से इस कंपनी को बेचने की कोशिश कर रही है. इससे पहले 2019 में भी पवन हंस के विनिवेश के लिए EOI मांगे गए थे, लेकिन किसी भी कंपनी ने इसे खरीदने में रुचि नहीं दिखाई थी. 2018 में जब सरकार ने हिस्सेदारी बेचने की कोशिश की थी, तो ONGC ने भी अपनी हिस्सेदारी बेचने का फैसला किया था. जिसके बाद सरकार अपने फैसले से पीछे हट गई थी.

क्या है पवन हंस की कहानी?

पवन हंस देश की एकमात्र सरकारी हेलीकॉप्टर सर्विस प्रोवाइडर है. ये सिविल एविएशन मिनिस्ट्री के तहत आती है. कंपनी के विनिवेश से सरकार को 300-350 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है. केंद्र सरकार ने पवन हंस के विनिवेश को जनवरी 2017 में ही मंजूरी दे दी थी. कंपनी में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसदी है. सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी को बेचना चाहती है. बाकी 49 फीसदी हिस्सेदारी ओएनजीसी के पास है. वो भी अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचना चाहती है.

पवन हंस की स्थापना अक्टूबर 1985 में हुई थी. कंपनी के बेड़े में फिलहाल 43 हेलीकॉप्टर हैं. इसकी शुरुआत के वक्त देश में भारतीय कंपनियों द्वारा हेलीकॉप्टर सर्विस बेहद सीमित थी. पवन हंस ने ओएनजीसी के कामों के लिए हेलीकॉप्टर सर्विस देने की शुरुआत की. इसमें तेल और गैस की खोज से जुड़ी गतिविधियां भी शामिल हैं. 6 अक्टूबर 1986 को पवन हंस ने ओएनजीसी के लिए पहला कमर्शियल ऑपरेशन शुरू किया था. इससे ओएनजीसी की जरूरतों के लिए विदेशी हेलीकॉप्टर पर निर्भरता को खत्म किया गया था.

इसके अलावा कंपनी नॉर्थ ईस्ट राज्यों के सरकारी कार्यों में भी हेलीकॉप्टर सेवाएं देती है. दुर्गम इलाकों में कनेक्टिविटी के लिए, खोज और बचाव कार्यों, आपदा प्रबंधन, वीआईपी सेवाओं में भी इसकी हेलीकॉप्टर सर्विस ली जाती है. साल 2006 से 2010 के बीच कंपनी ने डॉल्फिन N3, Mi-172, B-3 हेलीकॉप्टर्स को अपने बेड़े में शामिल किया था. इससे उस वक्त बेड़े में हेलीकॉप्टर की संख्या 50 हो गई थी.

घाटे में रही कंपनी

पवन हंस के पास 900 से ज्यादा कर्मचारी हैं. इनमें आधे से भी कम परमानेंट हैं. कंपनी को साल 2019-20 में 28 करोड़ रुपये का घाटा हुआ था. उससे पहले के वित्तीय वर्ष में घाटा 69 करोड़ रुपये का था. 31 मार्च 2020 तक पवन हंस का ऑथराइज्ड कैपिटल 560 करोड़ रुपये था, जबकि पेड-अप शेयर कैपिटल 557 करोड़ रुपये. किसी भी कंपनी के ऑथराइज्ड कैपिटल का मतलब वो अधिकतम मूल्य है, जितने के शेयर वो इश्यू कर सकती है. वहीं, पेडअप कैपिटल का मतलब है कि अभी कंपनी ने कितनी रकम के शेयर बेच रखे हैं यानी शेयर होल्डर्स के पास कितनी रकम के शेयर हैं.

पवन हंस के विनिवेश से पहले सरकार ने कंपनी को घाटे से उबारने की भी योजना बनाई थी. इसमें हेलीकॉप्टर की संख्या को बढ़ाना और सर्विस का विस्तार करना शामिल है. इसके अलावा कंपनी को 5 राज्यों में 31 हेलीपोर्ट डेवलप करने के लिए कंसल्टेंट भी बनाया गया है. हेलीकॉप्टर सर्विस के अलावा कंपनी अभी ट्रेनिंग और स्किल डेवलेपमेंट और बिजनेस डेवलपमेंट जैसे प्रोग्राम में भी शामिल है.

दुर्घटना का शिकार

साढ़े तीन दशक की अपनी सर्विस के दौरान हेलीकॉप्टर दुर्घटना के कारण भी पवन हंस बदनाम रही है. कंपनी अपनी वेबसाइट पर सुरक्षा को एक फ्लाइट ऑपरेशन का अहम हिस्सा बताती है. हालांकि सुरक्षा के दृष्टिकोण से इसका रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा है. इंजन की समस्या, ऑयल लीकेज, सेंसर की दिक्कतें शुरू से ही कंपनी के साथ जुड़ गई थीं.

जुलाई 1988 में पहली बार पवन हंस का हेलीकॉप्टर दुर्घटना का शिकार हुआ था. वैष्णो देवी में हुए उस हादसे में दो पायलट समेत 7 लोगों की मौत हुई थी. इसके बाद पवन हंस से जुड़ी अब तक कुल 20 हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं में 91 लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें 60 यात्रियों के अलावा 27 पायलट और 4 क्रू मेंबर शामिल हैं.

साल 2011 में पवन हंस की हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं में सबसे ज्यादा 31 लोगों की मौत हुई थी. इसमें अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दोरजी खांडू की दर्दनाक मौत भी शामिल है. 30 अप्रैल 2011 को दोरजी खांडू समेत 5 लोग इस दुर्घटना का शिकार हुए थे. इससे कुछ दिन पहले 19 अप्रैल को अरुणाचल प्रदेश में ही MI-172 हेलीकॉप्टर क्रैश में 19 लोगों की मौत हुई थी.

पवन हंस की हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं को लेकर डीजीसीए ने 2018 में एक रिपोर्ट जारी की थी. इसमें बताया गया था कि हेलीकॉप्टर दुर्घटनाओं के पीछे जरूरी मेंटनेंस का ना होना, सुरक्षा मानकों को फॉलो नहीं करना जैसे कारण शामिल हैं.

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