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जब पटना में बीचो बीच गिरा प्लेन, ढाई टन तेल ने पकड़ी आग और बरसी मौत!

Patna Plane Crash: प्लेन में 6 क्रू मेम्बर्स सहित 58 लोग सवार थे. इनमें से लगभग 46 ऐसे थे, जिन्हें Patna में उतरना था.

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प्लेन का डेस्टिनेशन दिल्ली था, जिसे बीच में पटना और लखनऊ में उतरना था. (फ़ाइल फ़ोटो - इंडिया टुडे)

बिहार की राजधानी पटना. इंस्पेक्टर रामबिलास राम अपने घर की छत पर खड़े थे. नज़र आसमान पर थी, इंतज़ार था एक प्लेन का. लम्बे समय बाद बेटी पल्लवी घर लौट रही थी. सुबह के साढ़े सात बजे रामबिलास को एक प्लेन जय प्रकाश नारायण एयरपोर्ट की तरफ आता दिखा. रामबिलास ये सोच ही रहे थे कि कुछ देर में बेटी घर में होगी, तभी उनकी आंखों की चमक आग के एक धधकते गोले में तब्दील हो गई. ये कहानी एक प्लेन क्रैश (Patna Plane Crash) से जुड़ी है, जब 58 लोगों को लेकर चल रहा विमान पटना के बीचो बीच आ गिरा.

17 जुलाई, 2000 की तारीख. कलकत्ता (अब कोलकाता) के नेताजी सुभाष चंद्र बोस एयरपोर्ट से एक बोईंग 737 प्लेन टेक ऑफ करता है. अलायंस एयर की फ्लाइट 7412. इसका डेस्टिनेशन था, दिल्ली. बीच में इसे पटना और लखनऊ में उतरना था. प्लेन के पायलट थे 31 वर्षीय कैप्टन अरविन्द सिंह बग्गा, जिनके पास 4085 घंटे उड़ान का अनुभव था. वहीं को पायलट थे 35 वर्षीय कैप्टन मंजीत सिंह सोहनपाल, जो 4361 घंटे उड़ान का अनुभव रखते थे.

प्लेन में 6 क्रू मेम्बर्स सहित 58 लोग सवार थे. इनमें से लगभग 46 ऐसे थे, जिन्हें पटना में उतरना था. प्लेन ने सुबह 6 बजकर 51 मिनट पर टेक ऑफ किया और 7 बजकर 12 मिनट पर पटना की सीमा में दाखिल हो गया. पटना के एयर ट्रैफिक कंट्रोल का प्लेन से संपर्क स्थापित हुआ और ATC ने प्लेन को रनवे नंबर 25 में उतरने की मंजूरी दे दी. प्लेन का अल्टीट्यूड इस समय साढ़े 7 हजार फ़ीट था. लैंडिंग के लिए प्लेन ने डिसेंट यानी नीचे की तरफ आना शुरू किया और 1700 फ़ीट की ऊंचाई पर पहुंच गया. घड़ी में कांटा था 7 बजकर 28 मिनट पर.

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पायलट ने ATC से एक 360 डिग्री ऑर्बिट की परमिशन मांगी.

अब तक सब कुछ सही चल रहा था. लेकिन तभी पायलट को अहसास हुआ कि प्लेन का अल्टीट्यूड ज्यादा है. उन्होंने ATC को संपर्क किया और उनसे एक 360 डिग्री ऑर्बिट की परमिशन मांगी. ये एक नार्मल प्रोसीजर था. प्लेन अगर ज्यादा ऊंचाई पर हो, तो प्लेन को एक राउंड चक्कर लगाकर नीचे लाया जाता है. उस रोज़ कैप्टन भी यही करना चाहते थे. प्लेन पटना के सेक्रेट्रिएट टावर के ठीक ऊपर था. पायलट ने प्लेन को घुमाने के लिए उसे बाएं मोड़ने की कोशिश की. लेकिन मुड़ने की बजाय प्लेन अचानक नीचे की ओर गिरने लगा और गिरता ही चला गया.

प्लेन गिरा, पानी ख़त्म

पटना के गर्दनी बाग़ इलाके में एक आम सुबह की शुरुआत हो रही थी. सोमवार का दिन. लोग काम पर जाने की तैयारी कर रहे थे. इंडिया टुडे में विजय जंग थापा और रोहिन सरन की रिपोर्ट के मुताबिक़, अमरेंद्र मिश्रा उस समय अपने बाथरूम में थे. वे बताते हैं, ‘तेज़ रौशनी हुई और अचानक हमारे घर की छत ढह गई.’ एयरपोर्ट पर लैंडिंग के लिए जा रही फ्लाइट 7412 गर्दनी बाग़ की एक सरकारी रिहायशी कॉलोनी में क्रैश कर गई थी. प्लेन पहले एक टेलीग्राफ पोल से टकराया, इसके बाद चार पीपल के पेड़ों को तोड़ते हुए सीधा कुछ मकानों से भिड़ा.

प्लेन में उस वक्त ढाई टन फ्यूल था. अचानक इस फ्यूल ने आग पकड़ी, जोर का धमाका हुआ और आग चारों तरफ फ़ैल गई. धुंए का गुबार देखकर अग्निशमन विभाग की गाड़ियां आईं, लेकिन उन्हें पहुंचने में पूरे 25 मिनट लग गए. आग बुझाने की कोशिशें शुरू हुईं. लेकिन सरकारी इंतज़ाम ऐसा कि चंद मिनटों में ही पूरा पानी ख़त्म हो गया. इस दुर्घटना में दो मकान पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे. लोग मलबे के नीचे दबे थे. बचाव दल काम में लगा था लेकिन बाहर मची अफरातफरी के चलते चीजें मुश्किल हो रही थीं.

दरअसल जैसे ही प्लेन क्रैश हुआ, तमाशा देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई. गर्दनी बाग़ की तंग गलियों के चलते वैसे ही दिक्कत हो रही थी. ऊपर से लोग एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड पर चढ़ गए. राहत और बचाव प्रक्रिया पूरी तरह ठप हो गई. अंत में जब मिलिट्री के कुछ जवान आए, तब जाकर लोगों की भीड़ को वहां से हटाया जा सका. बड़ी मुश्किल से बचाव प्रक्रिया पूरी हुई. घायलों को अस्पताल पहुंचाने के बाद अब बारी थी जांच की. अनुभवी पायलट, साफ़ मौसम, सब कुछ ठीक होने के बाद भी ऐसा क्या हुआ कि प्लेन क्रैश कर गया?

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ब्लैक बॉक्स

इस केस में सबसे पहले सवाल उठा प्लेन बनाने वाली कंपनी पर. क्योंकि बोईंग का 737-200 मॉडल का ये विमान 20 साल पुराना था और 6 महीने बाद ही सरकार इसे फेज़ आउट करने वाली थी. हालांकि, जांच कमेटी ने माना कि प्लेन पुराना होने के बावजूद उड़ने की हालत में था. इसके बाद बारी आई फ्लाइट रिकॉर्डर की, जिसे आम भाषा में ब्लैक बॉक्स कह दिया जाता है. फ्लाइट रिकॉर्डर में मौजूद डेटा के अनुसार, प्लेन की कमान कैप्टन बग्गा ने संभाल रखी थी. जबकि कैप्टन सोहनपाल रेडियो कम्युनिकेशन देख रहे थे. सुबह 7 बजकर 32 मिनट. प्लेन का एल्टीट्यूड- 1280 फ़ीट. एयरपोर्ट से दूरी- 2.2 किलोमीटर.

जबकि इतनी दूरी पर प्लेन को 600 फ़ीट पर होना चाहिए था. ऐसी स्थिति में स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के अनुसार पायलट को मिस्ड अप्रोच प्रोसीजर अपनाना चाहिए था. मिस्ड अप्रोच प्रोसीजर यानी लैंडिंग का वर्तमान रुट कैंसिल कर प्लेन को दोबारा ऊंचा ले जाना और लैंडिंग की दोबारा कोशिश करना. इसके बरक्स पायलट ने प्लेन को ज़िगज़ैग मोशन में उड़ाने की कोशिश शुरू कर दी. उन्होंने प्लेन को पहले बाएं मोड़ा, फिर दाएं. वो प्लेन की हाइट कम करने की कोशिश कर रहे थे. इस बीच इंजन आइडल था और स्पीड कम होती जा रही थी. इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए अंत में उन्होंने फैसला किया कि प्लेन को ऊपर उठाकर एक गोल चक्कर लगाएंगे और दोबारा लैंडिंग की कोशिश करेंगे.

इस कवायद में पायलट ने प्लेन का लैंडिंग गियर वापस खींचा, इंजन का थ्रस्ट बढ़ाया और प्लेन को ऊपर उठाने की कोशिश शुरू कर दी. लेकिन इस बीच उन्होंने ये बात मिस कर दी कि प्लेन का स्टिक शेकर सिस्टम भी एक्टिवेट हो चुका है. ये क्या होता है, ये जानने के लिए आपको एक और टर्म के बारे में जानना होगा- 'स्टाल'. जब कोई प्लेन उड़ान पर होता है, आम तौर पर दो प्रकार के प्रेशर उसे हवा में बनाए रखते हैं. पंखों के ऊपर हवा का प्रेशर कम होता है, जो पंखों को ऊपर की ओर उठाता है. जबकि पंखों के नीचे हवा का प्रेशर ज़्यादा होता है. ये प्रेशर पंखों को ऊपर की ओर धकेलता है. प्लेन जब हवा में सीधा रहता है, तो ये दोनों प्रेशर बराबर काम करते हैं और प्लेन का बैलेंस बनाए रखते हैं.

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जब प्लेन ऊपर की ओर चढ़ने की कोशिश करता है, ऐसे में प्लेन की नोक तिरछी हो जाती है. हवा जिस एंगल पर पंख से टकराती है, उसे एंगल ऑफ़ अटैक कहते हैं. जैसे-जैसे ये एंगल बढ़ता जाता है, पंख के ऊपरी तरफ़ बहने वाली हवा पंख से टकरा कर छितरा जाती है और एक स्मूथ एयर फ़्लो बरकरार नहीं रह पाता. अगर एंगल ऑफ़ अटैक एक क्रिटिकल वैल्यू से ऊपर पहुंच जाए, तो इसे प्लेन का स्टॉल होना कहते हैं. ऐसी हालत में इंजन चालू होने के बावजूद प्लेन नीचे गिरने लगता है. ऐसी स्थिति से बचने के लिए प्लेन में स्टिक शेकर सिस्टम लगाया जाता है. एक ऐसा डिवाइस जो स्टाल होने की स्थिति में प्लेन की स्टिक (गाड़ी का स्टीयरिंग) में कंपन पैदा करता है, ताकि पायलट को पता चल जाए कि प्लेन स्टॉल कर रहा है.

उस रोज़ भी फ्लाइट 7412 का स्टिक शेकर एक्टिवेट हुआ. लेकिन प्लेन को ऊपर उठाने की कोशिश में उनसे ग़लती हो गई. प्लेन के पंखों में फ्लैप लगे होते हैं. ये प्लेन को लिफ्ट देने में मदद करते हैं. उस रोज़ पायलट ने प्लेन की स्पीड बढ़ाने की कोशिश में उसके फ्लैप 40 से 15 डिग्री पहुंचा दिए. प्लेन का एंगल पहले से ही ज्यादा था. फ्लैप कम करने के चलते लिफ्ट भी कम हो गया. लिहाजा प्लेन आगे बढ़ने की बजाय नीचे गिरने लगा. और जाकर जमीन से टकरा गया. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, भरत रुंगटा फ्लाइट 7412 में चढ़ने वाले आख़िरी शख्स थे. पेशे से चार्टर अकाउंटेंट रुंगटा प्लेन की विंडो सीट पर बैठे थे. क्रैश होने से पहले आख़िरी 10 सेकेण्ड के बारे में उन्होंने इंडिया टुडे को बताया था,

अचानक जोर की आवाज हुई और मेरी नींद खुद गई. प्लेन झटके खा रहा था और अचानक हम जमीन से टकरा गए. 

क्रैश होने के बाद प्लेन के तीन टुकड़े हो गए थे. इसके चलते रूंगटा छिटककर दूर जा गिरे और किस्मत से उनकी जान बच गई. उनके अलावा दो और लोगों की जान बच गई थी. हालांकि, सबकी किस्मत ऐसी नहीं थी. प्लेन के अंदर बैठे 55 लोगों की मौत हो गई थी. हादसे की जद में पांच और जिंदगियां आई थीं. ये वो लोग थे जो प्लेन क्रैश के वक्त जमीन पर मौजूद थे.

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