
अमनप्रीत सिंह गिल
बंटवारे का दर्द वो ही अच्छी तरह जानते हैं, जिन्होंने इस दर्द को खुद सहा. जिन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा हो. जिन्होंने अपनों को खोया हो. उन्हें ये दर्द आज भी सालता रहता है. देश का बंटवारा हुआ. दंगे हुए. क़त्ल हुए. इस बंटवारे पर तमाम लेखकों ने उपन्यास लिखे, कहानियां लिखीं. अगस्त का महीना है, इसी महीने में देश आज़ाद हुआ. आज़ाद हुआ मगर टुकड़े हो गए.
यहां आप पढ़िए पंजाब का बंटवारा. पंजाब का दर्द. इसको लिखा है अमनप्रीत सिंह गिल ने. अमनप्रीत दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाते हैं. वो ‘नॉन कांग्रेस इन पंजाब’ किताब लिख चुके हैं. पंजाब बंटवारे के 70 साल सीरीज़ में आप जानेंगे पंजाब को, जो 6 किस्तों में है. पढ़िए छठी क़िस्त.

बंटवारे के पीछे असल राजनीतिक कारण क्या थे, यह अभी तक क्लियर नहीं. अंग्रेजों की डिवाइड एंड क्विट, नेहरू और जिन्ना की सत्ता के लिए बेसब्री, दो कौमों का सिद्धांत और पता नहीं कौन-कौन से एक्सप्लेनेशन के ज़रिए इस ऐतिहासिक त्रासदी की वजह जानने की कोशिश करते हैं. माउंटबेटन ने सत्ता बदली की तारीख को पूरा एक साल पहले क्यों कर लिया, इसका अभी तक कोई जवाब नहीं. एक अलग देश की मांग 1940 में रखी जाए और 7 साल बाद यह एक हकीकत बन जाए, ऐसी बात भी राज्यों के इतिहास में कभी कम ही देखी गई है.
'विभाजन की असल कहानी' नरेंद्र सिंह सरीला ने लिखी है. जिसमें बताया गया है कि ब्रिटेन में तलाश की गई कुछ अत्यंत गोपनीय फाइलों के मुताबिक बंटवारे का असल प्लान चर्चिल ने 1945 में बना दिया था. वह महसूस करता था कि अविभाजित भारत को आजादी देने का मतलब है, दक्षिण एशिया को एक तशतरी में रखकर स्टेलिन के आगे परोस देना.

मोहम्मद अली जिन्ना
ब्रिटेन को ‘रूसी रीछ’ का डर महाराजा रंजीत सिंह के जमाने से चला आ रहा था. इसके पीछे की कहानी को ‘ग्रेट गेम’ के नाम से जाना जाता है. किपलिंग का मशहूर नावेल ‘किम’ इसी गेम की कहानी है. ब्रिटेन कराची के बंदरगाह पर रूसी प्रभाव को रोकना चाहता था, इसीलिए वह पाकिस्तान का निर्माण करके इसको ब्रिटिश अमरीकी नव-बस्ती बना देना चाहता था. विभाजन की तैयारियों में लगे माउंटबेटन, नेहरू-जिन्ना, मास्टर तारा सिंह आदि किपलिंग के ‘किम’ की तरह भाग-दौड़ कर रहे थे, खुद को नियति के रचयिता समझ रहे थे, पर इस फिल्म की स्क्रिप्ट तो चर्चिल दो साल पहले ही लिख चुका था.

पाकिस्तान बनाते समय इस सवाल से लीडरशिप बिल्कुल नवाकिफ़ थी कि मुसलिम राज्यों को इकट्ठा करके बनाया यह इलाका आने वाले दिनों में क्षेत्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से क्या भूमिका निभाएगा.
अगस्त 1947 मे जो पाकिस्तान बना, उसकी भौगोलिक रचना दुनिया के बाकी देशों से अलग थ. एक देश दो भागों में बंटा हुआ था. पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान दोनों एक दूसरे से 1,000 मील की दूरी पर थे. पूर्वी पाकिस्तान जो अब बांग्लादेश है.

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यह दूरी भौगोलिक ही नहीं, नस्ली, सांस्कृतिक, आर्थिक और भाषायी भी थी. पूर्वी पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान की आर्थिक बस्ती बन चुका था. पूर्वी पाकिस्तान में पटसन यानी जूट से कमायी विदेशी मुद्रा को पश्चिमी पाकिस्तान हड़प कर लेता था.
पाकिस्तान की आर्मी असल में पंजाब की आर्मी ही थी. पाकिस्तान बन तो गया लेकिन पश्चिम और पूर्व की दरार इसे दरमियान से कमज़ोर करती रही. इसीलिए 1971 की जंग के बाद पूर्वी पाकिस्तान एक आज़ाद देश बन गया. यानी बांग्लादेश. इस बंटवारे ने दो कौमों के सिद्धांत पर कुठाराघात किया और पाकिस्तानी कौम में इस बंटवारे ने भारत के लिए नफरत की जड़ को और भी गहरा कर दिया. पाकिस्तान को भौगोलिक राजनीति की दृष्टि से कुछ और रणनीतिक कमजोरियां भी विरासत में मिलीं.

ये तस्वीर 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी की लिए हुई लड़ाई के दौरान रिफ्यूजी की है. (Source : AP)
एक थी रणनीतिक गहराई की कमी. लाहौर से खैबर दर्रे तक जाते पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई केवल साढ़े पांच सौ किलोमीटर है. किसी हमले की सूरत में पाकिस्तान की पीठ हमेशा दीवार से लग जाने की संभावना रहती है. पाक अधिकृत कश्मीर को छोड़कर पाकिस्तान के पास कोई रणनीतिक चोटी भी नहीं है. ऐसा सूरत-ए-हाल में पाकिस्तान में सुरक्षा की स्थायी भावना कभी विकसित नहीं हो सकती. शीत युद्ध और रूस के अफगान हमले के बाद पाकिस्तान ने अमरीका के लिए एक ‘फ्रंट लाइन स्टेट’ बनने की जल्दबाजी की. इस सिलसिले में सऊदी धन और वहाबी इस्लाम पाकिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाने लगे. 9/11 के बाद भी पाकिस्तान अमरीका की आंतकवाद विरोधी जंग में स्प्रींग बोर्ड बना. आज पाकिस्तान दुनिया के सबसे ज्यादा आतंकवाद प्रभावित देशों में से एक है.

कारगिल विजय के बाद भारतीय सेना
विभाजन का भारत को सुरक्षा के लिहाज़ से यह फायदा हुआ कि यह उत्तर-पश्चिमी सरहदी प्रांत की ऐतिहासिक समस्या से मुक्त हो गया. भारत की पश्चिमी सीमा कश्मीर को छोड़कर सपाट मैदान है. शुरू-शुरू में ‘रेडक्लिफ लाइन’ की रक्षा करने की जिम्मेदारी पंजाब आर्मड पुलिस की रही और पंजाब सरकार देश की सीमा की रक्षा का खर्च उठाती रही. इस सीमा का पंजाब को यह नुकसान हुआ कि यहां स्मगलिंग की प्रवृत्ति का आगाज़ हुआ. सीमावर्ती जिले स्मगलिंग के लिए उसी तरह पहचाने जाने लगे जैसे गोवा टूरिज्म़ के लिए जाना जाता है. पहले सोना फिर हथियार और बाद में हैरोइन की स्मगलिंग ने पंजाब में जीवन के हर पहलू पर असर डाला. हिंद-पाक के विभाजन की विरासत बड़ी जटिल है और इसके प्रभाव चिर-स्थायी रहेंगे.
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