परशुराम बोले तो विष्णु के छठे अवतार. इनके और भी कई इंट्रो हैं. कंठी-माला वाले चौड़े होकर बताते हैं कि इन्होंने 21 बार धरती को क्षत्रियों से खाली कर दिया था. कुछ ये भी बताते हैं कि इनके फरसा फेंकने से केरल बना था. मम्मी-पापा की बात मानने के मामले में श्रवण कुमार को सबसे कड़ी टक्कर यही देते हैं, क्योंकि पापा के कहने पर इन्होंने अपनी मम्मी की गर्दन उतार ली थी.
परशुराम ने मां की हत्या क्यों की थी और क्षत्रियों को क्यों मारते थे, यहां जानो
परशुराम से जुड़े वो सारे मिथ, जो लोग आपको बिना किसी प्रूफ के बताते हैं.

तो आज हम आपको इनसे जुड़े पांच मिथ बताएंगे. और डिस्क्लेमर पहिले ही दिए दे रहे हैं, क्योंकि हिंदू धर्म में हर किरदार की 10-12 कहानियां होती हैं और हर कहानी के कम से कम 4-6 वर्जन तो होते ही हैं. तो किसी भी बात को आखिरी सत्य मत मान लेना. अब बाकी बांचो.
#1. परशुराम ने 21 बार धरती को क्षत्रियों से खाली कर दिया था
आजकल किसी से ये बात कह दो, तो वो छूटते ही पूछता है कि जब एक बार सारे खत्म ही कर दिए, तो दोबारा कहां से आ गए. इसका जवाब ये है कि हर बार कुछ क्षत्रिय अपनी पत्नियों या महिलाओं के पास जाकर छिप जाते थे. अब परशुराम वहां तो जाते नहीं थे, इसलिए छिपे हुए क्षत्रिय बच जाते थे. उनके अलावा परशुराम को रास्ते में जो भी मिलता था, उड़ा दिया जाता था.
क्षत्रियों के साथ परशुराम के इस सलूक की वजह भी है. इनके पापा ऋषि जमदग्नि को राजा हयहैय ने गाएं दान में दी थीं. राजा के बेटे कृतअर्जुन और कृतवीर्यअर्जुन गाएं वापस मांगने लगे. जमदग्नि ने जब गाएं लौटाने से मना कर दिया, तो राजाओं ने ताकत के बल पर गाएं छीन लीं. पापा की बेइज्जती से परशुराम का बीपी हाई हो गया और उन्होंने जाकर राजा का गला काड्डाला. फिर उन्हें लगा कि ये क्षत्रिय धरती पर रहने लायक ही नहीं हैं, तो 'अखिल विश्व क्षत्रिय हटाओ अभियान' शुरू कर दिया. उनके हिसाब से जब तक क्षत्रिय हैं, धरती ब्राह्मणों के रहने लायक नहीं है.
एक मान्यता ये भी कहती है कि उन्होंने सारे क्षत्रिय नहीं, बल्कि उनके पांच कुल खत्म किए थे. कुछ मान्यताओं के हिसाब से उन्होंने क्षत्रियों की पांच पीढ़ियों को मारा था, जिनसे खून की पांच झील बन गई थीं, जिन्हें बाद में कुरुक्षेत्र के युद्ध में भरा गया. ढेर सारी मान्यताएं यू नो.
#2. क्षत्रियों को मारना बंद भी तो किया था
हर आदमी ये बताता है कि परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों को मारा, लेकिन ये कोई नहीं बताता कि उन्होंने 22वीं बार ऐसा क्यों नहीं किया. वो इसलिए, क्योंकि राम से मिलने के बाद इन्हें लगा कि क्षत्रिय भी अच्छे इंसान हो सकते हैं. राम और ये, दोनों विष्णु के अवतार थे. इनकी और राम की पहली मीटिंग तब हुई थी, जब राम ने जनक का वो धनुष तोड़ दिया था, जो शिव ने जनक को दिया था. राम के गुरु विश्वामित्र उन्हें और लक्ष्मण को लेकर जनक के यहां गए थे, जहां सीता की शादी के लिए धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखी गई थी.
इस कवायद में राम ने धनुष तोड़ दिया, तो चारों दिशाओं में खूब जोर आवाज हुई. परशुराम समझ गए कि धनुष तोड़ा गया है, तो खौराए हुए पहुंच गए जनक के यहां. राम-लक्ष्मण को खड़े देखा. पहले तो गुस्साए, लेकिन थोड़ी बातचीत के बाद समझ गए कि राम खुद विष्णु के अवतार हैं. जब उन्हें पता चला कि भगवान खुद क्षत्रिय राजा के अवतार में धरती पर आ गए हैं, तो उन्हें लगा कि अब क्षत्रिय ऐसी कोई हरकत नहीं करेंगे, जैसी उनके पिता के साथ की गई थी और उन्होंने क्षत्रियों को मारना बंद कर दिया.
#3. क्या उनके फरसा फेंकने की वजह से केरल बना था
परशुराम पर कॉपीराइट भी खूब ठोंका जाता है. उनकी जयंती पर केंद्रीय मंत्री किरेण रिजिजू ने लोगों को 'परशुराम कुंड भूमि अरुणाचल प्रदेश से' जयंती की बधाई दी. ऐसे ही केरल में मान्यता है कि ये जगह परशुराम के फरसा फेंकने की वजह से बनी थी. कहानी ये है कि जब परशुराम ने क्षत्रियों को मारना बंद कर दिया, तो उन्होंने खून से सना अपना फरसा समुद्र में फेंक दिया. इससे समुद्र इतना डर गया कि वह फरसा गिरने वाली जगह से बहुत पीछे हट गया. समुद्र के पीछे हटने से जो जगह बनी, वो केरल बन गई. इसी मान्यता के आधार पर केरल में परशुराम की पूजा की जाती है.
लेकिन कुछ जगहों पर इस कहानी के उलट तर्क दिए गए हैं. केरल में ओणम पर परशुराम की पूजा होती है, लेकिन ये त्योहार मूलत: राजा बालि की याद में मनाया जाता है. मान्यता है कि विष्णु के वामन अवतार लेकर बालि से जमीन दान में मांगी थी. बालि के वादा करने पर उन्होंने शरीर बड़ा करके पहले कदम में बालि का पूरा राज्य ही मांग लिया. आखिर में बालि को अमर होने का वरदान दिया गया और धार्मिक मान्यता के मुताबित बालि हर साल ओणम के वक्त केरल आते हैं. इसीलिए लोग त्योहार मनाते हैं.
तो तर्क ये है कि वामन अवतार विष्णु का पांचवा अवतार है, जबकि परशुराम उनका छठा अवतार है. इससे ये साबित होता है कि बालि का राज्य पहले से था. अगर उनका राज्य पहले से था, तो जाहिर सी बात है कि केरल का अस्तित्व परशुराम से पहले भी रहा होगा. सत्संग में ये वाकया मतभेद की अवस्था में खत्म कर दिया जाता है.
#4. सात अमर लोगों में से एक हैं परशुराम
परशुराम के बारे में एक बड़ी इंट्रेस्टिंग चीज ये है कि उन्हें अमरता का वरदान था. उन्होंने रामायण और महाभारत, दोनों में एंट्री मारी थी और बड़ेब्बड़े काम किए थे. असल में हिंदू मान्यताओं के मुताबित टोटल सात लोगों को अमरता का वरदान/श्राप दिया गया है. ये रहे वो सात लोग:
हनुमान: राम के परम-भक्त, जिन्हें राम ने अमरता का वरदान दिया.
अश्वत्थामा: महाभारत के मुताबित उत्तरा अभिमन्यु के बच्चे की मां बनने वाली थीं, लेकिन पांडवों का वंश खत्म करने के लिए अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था. इसी वजह से अश्वत्थामा को दुनिया के आखिर तक भटकने का श्राप मिला था.
विभीषण: राम को रावण को मारने का तरीका बताने वाले विभीषण को भी अमरता का वरदान मिला.
बालि: वामन अवतार को अपना सब कुछ दान देने वाले राजा बालि को भी अमरता का वरदान मिला था.
व्यास: महाभारत लिखने वाले वेद व्यास को अमरता का वरदान मिला. वैसे वेद व्यास इंसान का नहीं, पद का नाम है. महाभारत 24वें वेद व्यास ने लिखी थी, जिनका असल नाम ऋषि कृष्ण द्वेपायन था.
इसके अलावा कौरवों और पांडवों की पढ़ाई-लिखाई कराने वाले कृपाचार्य को वरदान मिला था और अमरता का वरदान पाने वाले सातवें जन परशुराम हैं.
#5. जब अपनी मम्मी को मार डाला, फिर पापा से कहकर जिंदा करवा लिया
ये भी एक तगड़ी कहानी है, जो सबको शॉर्ट में पता होती है. यहां पूरी पढ़ लो. परशुराम के पापा जमदग्नि थे और मम्मी का नाम था रेणुका. एक बार जमदग्नि ने रेणुका को घाट पर से पूजा करने के लिए पानी लाने के लिए भेजा. रेणुका जिस घाट पर गईं, वहां यक्ष राक्षस जल-विहार कर रहा था. रेणुका उसे देखने में बिजी हो गईं. पानी लाने में हो गई देर. लौटीं, तो जमदग्नि भन्ना गए. पूछे कि इत्ती देर कहां लग गई. रेणुका ने कोई कारण नहीं बताया. कट्टी साध गईं.
अब जमदग्नि भी ठहरे परशुराम के पापा. हल्के आदमी तो थे नहीं. त्रिकालदृष्टि से देख लिया कि रेणुका कहां अटक गई थीं. जब पता चला कि वो राक्षस का जल-विहार देख रही थीं, तो अपने सभी लड़कों को लाइन में खड़ा करके आदेश दिया कि अपनी मम्मी का गला काट दो. बाकी लड़कों की तो हिम्मत नहीं पड़ी, लेकिन परशुराम ठहरे फादर-प्रेमी आदमी. उठाए फरसा और धर दिए गर्दन पर. गर्दन लुढ़क गई.
बेटे की भक्ति से खुश जमदग्नि बोल दिए, 'एवमस्तु'. मल्लब जो चाहो मांग लो. परशुराम इसी का इंतजार कर रहे थे. बोले देना ही चाहते हो, तो मम्मी वापस कर दो. जमदग्नि को फिर परशुराम की मम्मी को जिंदा करना पड़ा.
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