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Parliament Special Session: क्या मोदी सरकार लेगी J&K में आरक्षण पर बड़ा फैसला?

13 सितंबर को लोकसभा से जारी किए गए बुलेटिन में 4 बिलों का नाम लिखा था. अब कहा जा रहा है कि इनके अलावा 4 और बिलों पर चर्चा हो सकती है. यानी कुल आठ बिल होंगे.

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प्रधानमंत्री मोदी ने आज सदन को संबोधित किया है. (फोटो सोर्स- आजतक)

संसद का पांच दिन का विशेष सत्र (Parliament special session) सोमवार, 18 अगस्त से शुरू हो गया है. सरकार ने कहा है कि सदन की कार्यवाही 19 सितंबर से नए संसद भवन में शुरू होगी. ये भी बताया है कि नए संसद भवन में 8 बिलों पर चर्चा होगी.

इससे पहले 13 सितंबर को लोकसभा से जारी बुलेटिन में बताया गया था कि विशेष सत्र के पहले दिन संसद के 75 सालों की यात्रा, सदन की उपलब्धियों, अनुभवों, यादों और बैठकों से निकले सबक पर चर्चा होगी. इसके बाद 4 बिल लाए जाएंगे. अब कहा जा रहा है कि इन 4 के अलावा 4 और बिलों पर चर्चा हो सकती है. यानी कुल आठ बिल. किस बिल में क्या है, सिलसिलेवार समझते हैं.

अधिवक्ता (संशोधन) बिल

अधिवक्ता संशोधन बिल 1 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था. विधि एवं न्याय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुन राम मेघवाल ने पत्रकारों से कहा था कि अदालतों में ऐसे लोग होते हैं, जो जजों को, वकीलों और मुवक्किलों को प्रभावित करने का काम करते हैं. इनसे सावधान रहने की जरूरत है. कानूनी भाषा में ऐसे लोगों को टाउट्स कहा जाता है. माने दलाल. ये लोग वकीलों, जजों और मुवक्किलों के बीच काम करके अपने पैसे बनाते हैं. इस बिल के पास होने के बाद हाईकोर्ट जज से लेकर जिला मजिस्ट्रेट, कलेक्टर तक के अधिकारी ऐसे दलालों की लिस्ट बनाकर छाप सकते हैं. अगर किसी व्यक्ति पर दलाली का संदेह है, तो उसकी जांच का भी आदेश दे सकते हैं. आरोपी को अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा, साथ ही दोष साबित हो गया तो 3 साल की कैद, 500 रुपये का जुर्माना या दोनों भरना पड़ सकता है.

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प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरीयॉडिकल बिल

ये बिल 3 अगस्त को राज्यसभा में ध्वनिमत से पास हो गया था. बता दें कि इस दिन विपक्ष के सांसद सदन में मौजूद नहीं थे. इस बिल को संक्षेप में PRP बिल भी कहते हैं. पीरियॉडिकल या कोई पत्रिका या कोई अखबार निकालने के लिए इनका रजिस्ट्रेशन, प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के यहां करना जरूरी होता है. इस PRP बिल के पास होने के बाद ये प्रक्रिया आसान हो जाएगी. ये बिल साल 1867 में बने प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन कानून को रिप्लेस करने के लिए लाया गया है. पहले किसी पत्रिका का रजिस्ट्रेशन कैंसल करने या सस्पेंड करने का अधिकार जिलाधिकारी के पास होता था. बिल के पास होने के बाद प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के पास भी ये अधिकार हो जाएगा. प्रकाशकों को डीएम के सामने शपथ पत्र देने की कोई जरूरत नहीं होगी. पहले गलत जानकारी छापने पर 6 महीने की जेल हो सकती थी, नए बिल के पास होने के बाद बस बिना रजिस्ट्रेशन के पत्रिका-अखबार छापने पर जेल होगी. इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति को कोर्ट से किसी आतंकी गतिविधि या किसी गैरकानूनी काम के लिए सजा हुई है उसे पत्रिका-अखबार छापने का अधिकार नहीं होगा.

दी पोस्ट ऑफिस बिल

ये साल 1898 के इंडियन पोस्ट ऑफिस एक्ट को रिप्लेस करने की नीयत से लाया गया है. बिल के मुताबिक, अगर डाक अधिकारियों को शक होता है कि किसी पार्सल या किसी डाक में ड्यूटी नहीं अदा की गई है, या वो कानून द्वारा प्रतिबंधित है, तो अधिकारी उस पार्सल को कस्टम अधिकारी को भेज देगा. कस्टम अधिकारी उस पार्सल से कानून के मुताबिक निबटेगा. केंद्र सरकार अधिकारी की नियुक्ति करेगी. उस अधिकारी को अगर लगता है कि कोई पार्सल राष्ट्र की सुरक्षा के खिलाफ है, किसी दूसरे देश से संबंधों में चोट पहुंचा सकता है, या शांति में बाधा पहुंचा सकता है, तो वो अधिकारी उस पार्सल को रोक सकता है, खोलकर चेक कर सकता है और चाहे तो जब्त कर सकता है. बाद में ऐसे सामान को नष्ट भी किया जा सकेगा. अक्सर होता है कि हम लोगों के पार्सल खो जाते हैं या देर से आते हैं या डैमेज हो जाते हैं. मन करता है कि डाक अधिकारी के खिलाफ केस कर दें. लेकिन ऐसा कर नहीं पाएंगे क्योंकि नए कानून में ऐसा प्रावधान बनाया गया कि ऐसी स्थितियों में डाक अधिकारियों पर केस नहीं किया जा सकेगा.

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस) बिल, 2023

हम इसे छोटे में इलेक्शन कमिशनर बिल कहेंगे. इसे 10 अगस्त को राज्यसभा में पेश किया गया था. लेकिन 17 सितंबर को सरकार की बुलाई सर्वदलीय बैठक में जो सूची प्रसारित की गई, उसमें ये बिल शामिल नहीं था. विपक्षी दलों की आपत्ति के बाद संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बैठक में कहा कि सरकार ने अभी तक ये बिल लाने पर फैसला नहीं किया है.

अटकलें हैं कि इसके ज़रिए सरकार चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों और अधिकारों को प्रभावित कर सकती है. बिल पास हो गया तो नए तरीके से चुनाव आयुक्त नियुक्त होंगे. एक पैनल होगा. इसमें प्रधानमंत्री होंगे. एक केंद्रीय मंत्री होगा और विपक्ष के नेता होंगे. चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के पैनल में सुप्रीम कोर्ट के जज की जगह एक केंद्रीय मंत्री को जगह दी गई है. यानी दो व्यक्ति सरकार के, एक व्यक्ति विपक्ष का. इस बिल में मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों को बदलने का भी प्रस्ताव है. इसके ज़रिए उनका पद कैबिनेट सचिव के बराबर हो जाएगा. मौजूदा समय में उनका पद सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होता है. तो ये बिल पास हुआ, तो चुनाव आयुक्त प्रोटोकॉल में कुछ नीचे आ जाएंगे.

इससे अंतर क्या पड़ेगा? अंतर खास नहीं है. जज और कैबिनेट सचिव की सैलरी बराबर ही है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जजों को रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी लाभ मिलते हैं. इनमें ताउम्र ड्राइवर और घरेलू मदद के लिए कर्मचारी शामिल हैं. लेकिन यदि मौजूदा बदलाव लागू होते हैं तो वो ब्यूरोक्रेसी के नज़दीक हो जाएंगे.

संसद के पटल पर कुछ और बिल लाने की अटकलें भी लगाई जा रही हैं. हालांकि इन्हें लेकर कोई अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है.

महिला आरक्षण बिल

देश की संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित करने की बातें तो बहुत दिनों से हो रही हैं, लेकिन बिल है कि कानून बनता ही नहीं. 1996 में देवगौड़ा सरकार और 1998, 1999, 2002 और 2003 में NDA द्वारा इसे लोकसभा में लाया गया. हर बार पास होने में फेल हो गया. साल 2008 में जब UPA की सरकार थी, तो ये बिल राज्यसभा में पास भी हो गया था. लेकिन लोकसभा में इस पर बहस भी नहीं हो सकी और बिल लैप्स कर गया. भाजपा ने भी साल 2014 और 2019 के चुनावी घोषणापत्र में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही भी थी. 

मोदी सरकार ने महिलाओं को ध्यान में रखकर कई फैसले उठाए हैं. जैसे उज्जवला योजना, या हाल में सिलेंडर के दाम में हुई कटौती. क्या सरकार उन्हें विधायिका में आरक्षण भी दे देगी? सरकार ही बता सकती है.

रिपीलिंग एंड एमेंडिंग बिल

हिंदी में - निरसन और संशोधन विधेयक, 2022. ये जुलाई 2023 में लोकसभा से पास कर दिया गया था. इस बिल के तहत ऐसे 65 क़ानूनों को निरस्त करने का प्रावधान है जो अब प्रचलित नहीं हैं या दूसरे क़ानूनों के चलते गैर जरूरी हो गए हैं. इसके अलावा, ये बिल फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट, 2011 में हुई एक ड्राफ्टिंग की गलती को भी सुधारता है. इस बिल की पहली अनुसूची में 24 ऐसे क़ानून हैं जिन्हें निरस्त किया जाएगा. इनमें 16 संशोधन अधिनियम हैं जबकि 2 क़ानून साल 1947 से चले आ रहे हैं. वहीं दूसरी अनुसूची में कुछ विनियमन अधिनियम (अप्रोप्रिएशन बिल) हैं. इनमें से 18, अधिनियम रेलवे से जुड़े हैं. अप्रोप्रिएशन बिल के ज़रिए चुनी हुई सरकार को इस बात की अनुमति मिलती है कि वो सरकारी खज़ाने (कंसॉलिडेटेड फंड ऑफ इंडिया) से पैसा निकाले. लोकसभा की अनुमति के बाद ही पैसा मिलता है और आगे आवंटित किया जा सकता है.

मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ़ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजंस बिल

वरिष्ठ नागरिक कल्याण विधेयक, दिसंबर 2019 में लोकसभा में पेश किया गया था. माता-पिता और घर के बुजुर्गों के भरण-पोषण से जुड़ा एक क़ानून 2007 में बना था. इस बिल के जरिए उस कानून में कुछ बदलाव किए जाएंगे. ये क़ानून देश से बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होगा. बिल में हर जिले में बुजुर्गों की रक्षा के लिए एक नोडल अधिकारी और एक स्पेशल पुलिस सेल बनाए जाने का प्रावधान है. जो बुजुर्ग अकेले रहते हैं, उनकी लिस्ट बनाने की बात कही गई है. उनकी मदद के लिए 24 घंटे काम करने वाली एक हेल्पलाइन शुरू करने का प्रावधान है. बुजुर्गों के भरण-पोषण के लिए उनके बच्चों को अपनी हैसियत के मुताबिक राशि देनी होगी. अभी तक ये लिमिट 10 हजार रुपए थी.

आरक्षण से जुड़े बिल

कहा जा रहा है कि इस सत्र में संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जाति (SC) आदेश (संशोधन) अधिनियम और संविधान (जम्मू और कश्मीर) अनुसूचित जनजाति(ST) आदेश (संशोधन) अधिनियम पर भी चर्चा हो सकती है. इन दोनों को 26 जुलाई 2023 को लोकसभा में पेश किया गया था. इनके तहत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पहाड़ी, पद्दारी, कोली और गडा ब्राह्मण समुदाय को अनुसूचित जनजाति के तहत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. जम्मू-कश्मीर में गुज्जर-बकरवाल समुदाय के जनजातीय लोग इसका विरोध करते आ रहे हैं. 

इसी तरह, संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दस्तावेज (इसके पेज नंबर 18 को देख सकते हैं) के मुताबिक, बिल में जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जातियों की लिस्ट में वाल्मीकि समुदाय को चूरा, वाल्मीकि, भंगी और मेहतर जातियों का पर्यायवाची माने जाने (सूची में शामिल करने) का प्रावधान है.

वैसे कहा तो ये भी कहा जा रहा है कि संसद में वन नेशन-वन इलेक्शन पर भी बात हो सकती है. हालांकि अभी तक ये सिर्फ एक कयास है. विशेष सत्र में रोजाना जो भी होगा, हम आपको अपडेट करते रहेंगे.

नोट: जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जातियों से जुड़े बिल की भाषा भारत सरकार द्वारा जारी जानकारी के मुताबिक है.

वीडियो: संसद के विशेष सत्र में ये 4 बिल पेश करने वाली है मोदी सरकार, कांग्रेस बोली- कुछ बड़ा होगा