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इज़रायली सेटलर्स फ़िलिस्तीनियों के घर क्यों जला रहे हैं?

इज़रायल में अब दंगा क्यों हो गया?

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इज़रायल में अब दंगा क्यों हो गया?

एक बार फिर इज़रायल और फिलिस्तीन आमने सामने हैं. इज़रायली सेटलर्स अरब मुस्लिमों के घरों पर हमला कर रहे हैं. ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने अपनी रिपोर्ट में इस दंगे का एक हिस्सा बयां किया है. रिपोर्ट में ज़ातारा गांव के अल-अकताश की कहानी बताई गई है. ये गांव इज़रायल के कब्ज़े वाले वेस्ट बैंक में पड़ता है. इस गांव में बड़ी संख्या में फिलिस्तीनी नागरिक रहते हैं. अकताश कुछ दिन पहले ही तुर्किए में रेस्क्यू ऑपरेशन में हिस्सा लेकर लौटे थे. 26 फरवरी की शाम अचानक उनके गांव में सैकड़ों लोगों की भीड़ घुस आई. इस भीड़ के चेहरे पर हिंसा सवार थी. भीड़ में शामिल लोगों के पास कई तरह के हथियार भी थे. 

रिपोर्ट के मुताबिक, बड़ी संख्या में इज़रायली सैनिक उनके साथ-साथ चल रहे थे. इन लोगों ने गांव वालों के साथ मार-पीट की. घरों में आग लगाई. और, जो कुछ जहां मिला, उसको जलाने की कोशिश की. इसी दौरान किसी ने अकताश के पेट में गोली मार दी. वो लहुलुहान ज़मीन पर तड़पता रहा. इज़रायली आर्मी एम्बुलेंस के लिए रास्ता साफ़ नहीं करवा सकी. उसकी वहीं पर मौत हो गई. ये दंगा सिर्फ ज़ातारा तक ही सीमित नहीं है. हुवारा, बुरिन और असीरा अल-क़िबलिया जैसे गावों में भी हिंसा हो रही है. इसमें अब तक लगभग चार सौ फ़िलिस्तीनी घायल हो चुके हैं. हिंसा का जवाब हिंसा से दिया जा रहा है. 27 फ़रवरी को फ़िलिस्तीनी चरमपंथियों ने वेस्ट बैंक के जेरिख़ो में गोलीबारी की. इसमें एक इज़रायली-अमेरिकी की मौत हो गई. किसी ने इस हमले की ज़िम्मेदारी नहीं ली है.

अब सवाल ये उठता है कि, अभी ये दंगा भड़का क्यों?

दरअसल, 26 फ़रवरी की दोपहर को वेस्ट बैंक के हुवारा में आतंकी हमला हुआ. इसमें दो इज़रायली नागरिकों की जान चली गई. दोनों रिश्ते में भाई थे. हमलावर गोली मारकर फरार हो गया था. अब तक उसका पता नहीं चल पाया है. इज़रायली सेना अज्ञात की तलाश कर रही है. लेकिन भीड़ का आरोप है कि फिलिस्तीनी गांव के किसी व्यक्ति ने ही इन दोनों भाइयों की हत्या की थी.

फिर 26 फरवरी 2023 को 4 बजकर 8 मिनट पर पत्रकार योसी येहोशुआ ने एक पोस्टर ट्वीट किया. ये पोस्टर इज़रायली सेटलर्स ने रिलीज़ किया था. इसमें फ़िलिस्तीनी शहर हुवारा पर एक सामूहिक मार्च की बात लिखी हुई थी. ये मार्च दोनों भाइयों की हत्या का विरोध जताने के लिए किया जा रहा था. पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था,

‘हम जीतेंगे! हम बदला मांगते हैं! हम वापस लड़ेंगे!’

ये मार्च शाम 6 बजे होना था. प्रशासन को इस बात की जानकारी थी. लोग शाम को वक्त पर इकठ्ठा हुए. मार्च हुआ. लेकिन मार्च की आड़ में कई लोग पास के गावों में घुस गए और वहां दंगा करना शुरू कर दिया. घरों और दुकानों में आग लगाई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वहां मौजूद इज़रायली सैनिक इस हिंसा को रोक सकते थे. लेकिन उन्होंने चुप रहना बेहतर समझा.
गार्डियन अखबार की जेरुसलम संवादाता बेथन मैक्करेन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा,

‘वेस्ट बैंक में हिंसा की घटनाएं हर दिन होती हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में इसमें लगातार वृद्धि हुई है तकरीबन 7 लाख लोग इस इलाके में रहते हैं. इनमें से कई लोग इज़रायल को यहूदियों के लिए एक ऐतिहासिक ज़मीन के तौर पर वापस पाने का ख़्वाब देखते हैं. ये उनके लिए किसी धार्मिक आंदोलन की तरह है. गोलीबारी, चाकू से हमले, फसलों को जलाना, तोड़फोड़ और ज़मीन हड़प लेना, पशुओं की चोरी. ये सब बातें फिलिस्तीनियों के लिए आम हो गई हैं. इसके बाद उनके पास इलाका छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. कई मौकों पर इज़रायली सेना ऐसी हिंसा को रोकने में विफल रही है तो कई बार वो दंगाइयों के साथ दंगा करती पाई गई है.’

ये तो हुई दंगे की कहानी लेकिन इसके बाद नेतान्याहू सरकार की प्रतिक्रिया और हैरान करने वाली है. बेज़लिल डिफेंस मिनिस्ट्री में सिविलियन अफेयर्स का काम देखते हैं. औपचारिक रूप से इज़रायली सेटलर्स की ज़िम्मेदारी उनकी ही है. दंगे के बाद उन्होंने ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने ट्वीट में इस दंगे की निंदा तक नहीं की. बल्कि हमले में मारे गए दोनों भाइयों पर अपना दुख जताया. उन्होंने लिखा कि कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए. सरकार आतंक का सही जवाब देगी.

दंगे के बाद फिलिस्तीनियों के गांव में जली कारें (Reuters)

टाइम्स ऑफ़ इज़रायल की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ देर बाद उन्होंने एक ट्वीट लाइक किया जिसमें हुवारा गांव को मिटाने की बात कही गई थी.
एक और बेन ग्विर जो इज़रायल के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री हैं. उन्होंने इस मामले में अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. बेन ग्विर के पास वेस्ट बैंक समेत पूरे इजरायल की पुलिस का कंट्रोल है. इन दो मंत्रियों को वेस्ट बैंक में लॉ एंड आर्डर सही रखने की ज़िम्मेदारी मिली हुई थी. लेकिन इतने बड़े दंगे के बाद भी दोनों ने कोई एक्शन नहीं लिया.

इज़रायल में बेंजामिन नेतन्याहू की लीडरशिप में नई सरकार बनी है. इस सरकार के गठबंधन में कई कट्टर नेता भी शामिल हैं. पहले से ही ये अंदेशा जताया जा रहा था कि इस सरकार में फिलिस्तीन में हिंसा बढ़ेगी. नेतन्याहू पर दोतरफ़ा दबाव पड़ रहा है. एक तरफ़ इंटरनैशनल कम्युनिटी शांति बरतने की अपील कर रही है. दूसरी तरफ़ उनके गठबंधन के सहयोगी बवाल काटे हुए हैं. 27 फ़रवरी को इज़रायली संसद क्नेसेट की विशेष बैठक बुलाई गई. इसमें नेतन्याहू बोले,

‘तमाम गुस्से और आवेग के बावजूद, अराजकता के लिए कोई जगह नहीं है. हम इस तरह की गतिविधियों को सपोर्ट नहीं करेंगे. हम ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं करेंगे, जहां सब अपने हिसाब से काम कर रहे हैं. घरों पर हमला करना, आम नागरिकों को मारना-पीटना, कारों को जलाना, ये सब स्वीकार्य नहीं है. हमारे दुश्मन यही चाहते हैं.’

नेतन्याहू ने कहा कि उनकी सरकार आतंकियों को रोकने की पूरी कोशिश कर रही है. आतंकियों के लिए मौत की सज़ा के प्रावधान वाला बिल लाया जा रहा है. इन सबके बीच नेतन्याहू सरकार में शामिल दो पार्टियों ने क्नेसेट के सत्र का बहिष्कार किया. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता कर रही है. दोनों पार्टियों के पास कुल मिलाकर 13 सीटें हैं. इनके साथ के बिना सरकार बहुमत खो देगी. वैसे भी इज़रायल में पिछले चार बरस में पांच चुनाव हो चुके हैं. नेतन्याहू ने स्थिरता का वादा किया है. लेकिन उनके लिए अपने वादे पर खरे उतरना मुश्किल होता जा रहा है.

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