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किस्से पाकिस्तानी सेना और उनके 'मनबढ़' जनरलों के, जिन्होंने सिर्फ नफरत और आतंकवाद बोया

Ayub Khan से Asim Munir तक; 7 दशकों में Pakistani Army ने मिलिट्री एथिक्स को कई बार तार-तार किया है. कभी भ्रष्टाचार के केस मिले तो कभी अय्याशियों के किस्से, किसी जनरल ने बूचड़खाने से बदतर कत्लेआम करवाए तो किसी ने अपने बिजनेस खड़े किए.

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जनरल आसिम मुनीर, वर्तमान में पाक आर्मी चीफ हैं (PHOTO-India Today)

पाकिस्तानी फौज (Pakistani Army) बहुत अलग किस्म की फौज है. ये न सिर्फ राजनीति में दखल देती है बल्कि पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में भी फौज की पहुंच जड़ों तक जाती है. इसने कई दफा मिलिट्री तख्तापलट (Military Coup) करके जम्हूरियत को आईना दिखाया है या चुनौती दी है. अयूब खान से आसिम मुनीर तक; 7 दशकों में पाकिस्तान की सेना ने मिलिट्री एथिक्स को कई बार तार-तार किया है. कभी भ्रष्टाचार के केस मिले तो कभी अय्याशियों के किस्से, किसी जनरल ने बूचड़खाने से बदतर कत्लेआम करवाए तो किसी ने अपने बिजनेस खड़े किए. खासतौर से परवेज़ मुशर्रफ के बाद वाले तो अब ‘प्लॉट काटने वाले’ कहे जाते हैं. और इनके पहले के कुछ जनरलों के बारे में भी जानना भी कम दिलचस्प नहीं है.  

File:General Ayub Khan in 1959.jpg - Wikimedia Commons
जनरल अयूब खान (PHOTO-Wikimedia Commons)

जनरल अयूब खान 1951 में पहले पाकिस्तानी अफसर हुए जो सेना के सर्वोच्च ओहदे पर पहुंचे थे. 1958 में अयूब ने तख्तापलट करके सैन्य सत्ता स्थापित की. एक दशक से ज्यादा चले शासन में अयूब खान खुद राष्ट्रपति बने और मोहम्मद मूसा को अपनी जगह दी. खुद को ही फील्ड मार्शल की पदवी से भी नवाजा. इसके बाद याह्या खान जनरल बने. याह्या के किस्से इतने अनैतिक (अनैतिक) किस्म के रहे हैं, जिन्हें बयान करते समय भी फिल्टर लगाना पड़ता है.

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जनरल याह्या खान  (PHOTO-Wikimedia Commons)

दीवान बरिंद्रनाथ ने किताब ‘प्राइवेट लाइफ ऑफ याह्या खान’ में ऐसे कई किस्सों का जिक्र किया है. उन्हीं में से एक है ‘जनरल रानी’ का किस्सा. दो टूक जबान में अक्खड़ पंजाबी बोलने वाली बेगम अक्लीम अख्तर वैसे तो एक पुलिस अफसर की बीवी थीं. लेकिन रानी की याह्या खान के साथ पब्लिक इमेज ऐसी थी कि वो उनकी बेटर हाफ हो. यहां तक कि बेगम खुद तसदीक करती थीं

मैं याह्या से बहुत दोस्ताने रिश्ते में थी, मुझे एक आदमी के तौर पर उनकी कमियां मालूम थीं. उनके अपने करियर के सबसे अच्छे दौर में, उनसे मिलने आने वाली औरतों की स्क्रीनिंग का जिम्मा मेरे पास रहता था.

जनरल रानी, याह्या खान के आखिरी सालों में बिगड़े मिजाज के लिए पाकिस्तानी गायिका नूर-जहां समेत कुछ लोगों को दोष देती थीं. नूरजहां के किस्से भी अलग मशहूर थे. याह्या खान के इन दोनों के साथ ही रिश्ते कुछ अलग ही किस्म के रहे थे. दिसंबर 1971 में जब याह्या को नजरबंद किया गया, उसके कुछ दिन पहले जब भारत से पाकिस्तान जंग पर था, तब याह्या शराब के नशे में धुत रहते और भद्दे मजाक करते देखे जाते थे. जब पाकिस्तानी सेना ने समर्पण किया तो याह्या ने इतनी शराब पी रखी थी कि उनका भाषण रद्द करना पड़ा था.

इसके 15-16 दिन बाद, 1 जनवरी 1972, को लाहौर टेलीविजन ने याह्या से जुड़ी चार औरतों के फोटो पब्लिक कर दिये. जनरल रानी और नूरजहां के अलावा तराना और श्रीमती शमीम के हुसैन के किस्से भी कुछ इसी तरह से उभर कर आते है. याह्या के बाद जनरल गुल हसन छोटे से कार्यकाल के लिए गद्दीनशीं हुए. ठीक ठाक आदमी थे. लेकिन इनसे बाद पाकिस्तान के अगले जनरल बने टिक्का खान. टिक्का को बलूचिस्तान (butcher of balochistan) और पूर्वी बंगाल (butcher of bengal) में कसाई की संज्ञा दी जाती है. 

Tikka Khan - Wikipedia
जनरल टिक्का खान (PHOTO-Wikipedia)

अकेले पूर्वी पकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट को टिक्का ने ही लीड किया था. एक-एक रात में हजारों बांग्ला समर्थकों को मौत के घाट उतार दिया गया था. ऑस्ट्रेलियन-बांग्लादेशी एकैडमिक बीना डी’कोस्टा के लिखे के मुताबिक पाकिस्तानी रजाकारों और अल-बद्र के सैनिकों ने करीब 3 लाख लोगों की हत्या की. करीब 2 लाख बलात्कार के मामले उस दौर की घिनौनी तस्वीर बयां करते है. बांग्लादेश के बनने के बाद सरकारी आंकड़ें बताते है कि करीब 25 हजार फोर्स्ड प्रेगनेंसी के मामले इस युद्ध के दरमियान दर्ज हुए थे.

इसके बाद जिया उल हक पाकिस्तानी सेना के मुखिया बने. जिया को इस कुर्सी तक लाने में जुल्फिकार अली भुट्टो का अहम किरदार था लेकिन जिया उल हक ने भुट्टो का ही तख्तापलट करके सेना के हाथ में देश की कमान फिर से सौंप दी. इन्हीं के दौर में ‘गैंग ऑफ फोर’ माने चार जनरलों का गुट था. ‘संगठित अपराध एवं भ्रष्टाचार रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट’ के रिपोर्ट के हवाले से पता चलता है कि ये लोग स्विस बैंक के मिलियन डॉलर के खातेदार थे. इसमें जिया उल हक और उनके तीन डिप्टी - रहिमउद्दीन खान, अख्तर अब्दुल रहमान खान और ज़ाहिद अली अकबर - शामिल थे. ये पैसा अफगानी जिहाद और परमाणु प्रोग्राम से जुड़ा हुआ बताया जाता है.

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जनरल ज़िया उल हक (PHOTO-Wikipedia)

जिया उल हक ने ही पाकिस्तानी नियम कायदों को इस्लामीकृत किया. मुर्तजा रिजवी की किताब ‘मुशर्रफ - द इयर्स ऑफ पॉवर’ के हवाले से जिया उल हक के समय के सबसे कान्ट्रवर्शियल कानून हूदूद अध्यादेश 1779 की बात की गई है. इन पांच अध्यादेशों में भी जिया उल हक की तानाशाही में सबसे ज्यादा अमानवीय विधि थी ज़िना ऑर्डिनेंस.  इस कानून ने बलात्कार को व्यभिचार के समान पेश किया. पीड़ित महिला भी इसमें दोषी करार दी गई थी. 

अगर महिला अपनी बेगुनाही जाहिर करना चाहती हो तो उसे अपने साथ हुए दुराचार के चार चश्मदीद मर्दों को पेश करके अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी. उसके ऊपर इसमें पेनिट्रेशन विट्निस का भी क्लॉज़ था. ऐसे में इंसाफ की गुहार लगाने की कल्पना भी कठिन हो चुकी थी. ये कानून 2006 के महिला सुरक्षा बिल के पारित होने तक इसका कहर हजारों पाकिस्तानी महिलाओं को झेलना पड़ा. 1988 में एक विमान दुर्घटना में जिया उल हक की मौत हो गई. करीब एक दशक के बीच मिर्जा असलम बेग, आसिफ नवाज़, अब्दुल वहीद काकार और जहांगीर करामत जनरल की गद्दी पर आए और गए. इसके बाद फिर एक जनरल हुआ जिसका चेहरा लगभग हर भारतीय को भी याद है.

12 अक्टूबर 1999 की बात है. पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल परवेज़ मुशर्रफ, एक खास फ्लाइट में थे. ये फ्लाइट थी पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस की PK 805. जो कोलंबो से कराची जा रही थी. लेकिन कराची पहुंचने पर फ्लाइट को लैंड करने की इजाजत नहीं मिली. वजह? उस वक्त के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने करगिल युद्ध में फजीहत के बाद मुशर्रफ को आर्मी चीफ के पद से हटा दिया था.

Mapping General Pervez Musharraf's legacy - The Hindu
जनरल परवेज़ मुशर्रफ (PHOTO-X)

मुशर्रफ इस फ्लाइट के कॉकपिट में बैठे थे. उन्होंने फौरन रेडियो पर कराची में अपनी आर्मी डिवीजन के कमांडर मेजर जनरल मलिक इफ्तिखार अली खान से संपर्क किया. मलिक ने वेरिफिकेशन के लिए परवेज़ से सवाल पूछा कि, ‘क्या आप मेरे कुत्तों के नाम बता सकते हैं?’ मुशर्रफ ने तुरंत जवाब दिया, ‘डॉट और बडी’, ये एक तरह का पासवर्ड था. इस जवाब के बाद मलिक की कमान में कराची एयरपोर्ट पर तैनात सैनिकों ने एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले लिया. 

तब जाकर फ्लाइट को लैंड करने की इजाजत मिली.  जैसे ही फ्लाइट PK 805 कराची में लैंड हुई, परवेज़ मुशर्रफ को तुरंत कोर हेडक्वार्टर्स ले जाया गया. देर रात मुशर्रफ देश को संबोधित करने टीवी पर आते हैं. सेना की वर्दी. आंखों पर रिम वाला उनका सिग्नेचर स्टाइल चश्मा. जनता से मुखातिब होकर मुशर्रफ कहते हैं कि अब नवाज़ उनके प्रधानमंत्री नहीं रहे.

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देश को संबोधित करते जनरल परवेज़ मुशर्रफ (PHOTO-AFP)

नवाज़ को जेल में डाल दिया गया. उनके ऊपर भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के केस शुरू किए जा रहे हैं. तख्तापलट के कुछ समय बाद ही परवेज़ मुशर्रफ दिल्ली आ गए, वो शहर जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया था. जगह थी दरियागंज में नहरवाली हवेली. मेहराब, जालीदार परदे और बड़ा आंगन वाली ये हवेली मुगल शैली में बनाई गई थी. इसमें औरतों के लिए अलग से एक हिस्सा था. परिवार अपनी इस मिल्कियत को छोड़कर पार्टिशन के दौरान पाकिस्तान चला गया था. यकीनन बचपन से परवेज़ को रईसी की आदत थी. जो मरते दम तक उनके साथ रही. करोड़ों की संपत्तियां, पर्टियां, और बेहिसाब पैसा.

तख्तापलट के बाद परवेज़ ने 8 बरसों तक पाकिस्तान पर शासन किया. और फिर शुरुआत हुई पतन की. क्या थी परवेज़ के पतन की वजहें-

2007 में  पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ़्तिकार मौहम्मद चौधरी से झगड़ा. असंवैधानिक तौर पर एमरजेंसी लगाने जैसी तमाम बातें. इसी साल बेनजीर भुट्टो की हत्या के बाद पाकिस्तान में सियासी उथल-पुथल मच गई. आम चुनाव होते हैं और इसी के साथ परवेज़ मुशर्रफ की सत्ता खत्म होती है. और फिर परवेज़ मुशर्रफ पर बेनजीर भुट्टो की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप भी था. ऐसे में परवेज़ पाकिस्तान छोड़कर भाग गए. इस दौरान वो लंदन और दुबई में रहे. आर्मी बैकग्राउंड और डिक्टेटर वाली छवि ने इंटरनेशनल लेवल पर लोगों का खूब ध्यान खींचा. 

In this file photo from March 10, 2007, Musharraf meets with Justice Iftikhar Chaudhry at the President’s Camp office in the annexe of the Army House in Rawalpindi. Musharraf virtually suspended then chief justice and appointed the available senior-most judge at the time, Justice Javed Iqbal. — Reuters
जस्टिस इफ्तिखार चौधरी के साथ मुशर्रफ (PHOTO-Reuters)

उस दौर में मुशर्रफ एक-एक भाषण के लिए 2 लाख डॉलर (लगभग 1.5 करोड़ रुपये) तक की फीस लेते थे.उनके पास लंदन, दुबई और कराची में महंगे घर, फार्महाउस और अपार्टमेंट थे. उनकी संपत्ति करोड़ों में थी. तंगी झेल रहे पाकिस्तानी उनकी इस शानदार जिंदगी से नाराज थे. लेकिन कोई उनके खिलाफ ज्यादा कुछ नहीं कर सका, क्योंकि सेना की ताकत उनके साथ थी. मुशर्रफ को भरोसा था कि पाकिस्तान में सेना का दबदबा इतना है कि कोई पूर्व आर्मी चीफ को सजा नहीं दे सकता. 

इसी आत्मविश्वास के साथ वो 2013 में पाकिस्तान लौटे, ताकि फिर से राजनीति शुरू करें और चुनाव लड़े लेकिन इस बार लोगों ने उन्हें उतना समर्थन नहीं दिया. उनके खिलाफ पुराने मामले फिर से खुल गए. उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया, और देश छोड़ने पर भी पाबंदी लगा दी गई. दिसंबर 2019 में, उन्हें देशद्रोह के लिए मौत की सजा सुनाई गई. हालांकि लाहौर हाई कोर्ट ने उनकी सजा को रद्द कर दिया. 5 फरवरी 2023 को दुबई में मुशर्रफ की मौत हो गई.

मुशर्रफ के बाद 2007 से अभी तक क्रमशः अशफाक़ परवेज़ कयानी, राहिल शरीफ, कमर जावेद बाजवा और हाल के जनरल आसिफ मुनीर को इतिहास के दायरे से बाहर ही रखना ठीक है. अभी इनके हिस्से का बोया हुआ काटा जाना बाकी है. 

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