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OnlyFans का सारा-तिया पांचा, जहां खुलेआम बिकते हैं 'वो वाले' वीडियो

OnlyFans पर वीडियो बनाने वालों की संख्या मीटर तोड़ रही है. Statista के मुताबिक 2023 में ओनलीफैंस पर करीब 40 लाख क्रिएटर्स थे.

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2023 में ओनलीफैंस पर 40 लाख क्रिएटर्स थे (फोटो-फ्रीपिक)

ईसा से 700 वर्ष पूर्व एक भाषा शुरू होने के प्रमाण मिलते हैं जिसे लैटिन के नाम से जाना गया. विद्वान मानते हैं कि इसी भाषा से कई यूरोपियन भाषाएं निकलीं. इसी प्राचीन भाषा का एक शब्द है फैनम, यानी जहां भगवान स्थापित हों, माने मंदिर. मंदिर जाते थे भगत लोग तो भगत कहलाने लगे फैनैटिक. यही कोई 2500 साल बाद इस शब्द को अंग्रेज़ी ने उधार लिया और फैनैटिक का अर्थ हुआ किसी का पक्का वाला भक्त. ऐसा कि जिसे मान ले उसके पीछे दीवाना हो जाए. भाषाविद मानते हैं कि इसी फैनैटिक से फैन शब्द का जन्म हुआ. जो अमिताभ के हुए तो कहने लगे कि मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं लेता. शाहरुख़ के हुए तो अपना दिल आस्तीन पर बांधकर मन्नत के सामने खड़े हो गए. वे कौन होते हैं जो ऐसे लोगों के लिए इतने इमोशनल हो जाते हैं, जिन्हें उन्होंने कभी असल जीवन में देखा तक नहीं होता. ओनली फैन्स, डियर क्यूटीज; ओनलीफैंस.

लेकिन जिस ओनलीफैंस की बात हम आज कर रहे हैं वो ओनली फैन्स ही नहीं हैं. वो उपभोक्ता हैं भोग के. वो उन करोड़ों लोगों में शुमार हैं जो अपनी पसंद का एडल्ट कॉन्टेंट देखने के लिए हर महीने अपने फोन बिल से भी महंगा सब्सक्रिप्शन ले रहे हैं. डॉलर्स में पेमेंट कर रहे हैं और उस दौर को मीलों पीछे छोड़ आए हैं, जब लोग ये याद कर घबरा जाया करते थे कि वे अपनी ब्राउज़िंग हिस्ट्री डिलीट करना भूल गए हैं. तो पेश-ए-नज़र है-

“जिंदगी के सफर में बहुत दूर तक,
जब कोई दोस्त आया न उसको नज़र,
उसने घबरा के तन्हाइयों से सबा,
ओनली फैन बनकर गुज़र कर लिया"

तो जनाब..ऐसा कॉन्टेंट, जो कुछ समय पहले तक सिर्फ ‘उन वाली’ वेबसाइट्स पर ही मिलता था. इसे बनाने के लिए पुलिस से बचना पड़ता था और देखने के लिए घरवालों से. जिसके लिए ‘गली गली में फिरते थे यूं बनकर बंजारे’..अब वो ‘स्टडी मटेरियल’...‘यस यू गॉट इट राइट’..वही स्टडी मटेरियल अब एक प्लेटफार्म पर खुले आम बन रहा है. बिक रहा है. प्लेटफॉर्म का नाम. ओनलीफैंन्स.

“बात सिर्फ एक रात की थी मगर
सब्सक्रिप्शन उसका महीने भर ले लिया”

ओनलीफैंस पर वीडियो बनाने वालों की संख्या मीटर तोड़ रही है. Statista के मुताबिक 2019 में ओनलीफैंस पर करीब 3 लाख क्रिएटर्स थे. चार साल बाद, यानी 2023 में ये संख्या बढ़कर 40 लाख के पार हो गई. अब कुछ सवाल दिमाग में आते हैं?

-ओनलीफैंस और बाकी एडल्ट वेबसाइट्स में कॉन्टेंट बनाने में क्या फर्क है?

-अमेरिका से लेकर भारत तक के लोग और ख़ासकर महिलाएं ओनलीफैंस के रास्ते को क्यों चुन रही हैं?

-क्या है इस प्रोफेशन के पक्ष और विपक्ष की दलीलें?

OnlyFans logo
ओनलीफैंस का लोगो (PHOTO- OnlyFans)
ओनलीफैंस का बैकग्राउंड

बात है 2016 की. एक भाईसाहब हैं. ब्रिटेन में रहते हैं. पेशे से टेक आंत्रेप्रेन्योर है. नाम Tim Stokely. इन टिम भाई ने ही ओनलीफैंस नाम का प्लेटफॉर्म बनाया. फिर 2018 में उन्होंने कंपनी के 75 परसेंट शेयर बेच दिए. किसको? शिकागो के बिज़नेसमैन लियोनिड रैडविन्सकी को. हालांकि, 2021 तक Tim ही ओनलीफैंस के CEO बने रहे. उसके बाद कमान दूसरों को सौंप दी.

क्या था इस नए प्लेटफॉर्म ओनलीफैंस में? कॉन्टेंट क्रिएटर्स मज़े से वीडियो अपलोड करते थे और उनके फैंस सब्सक्रिप्शन लेकर वीडियो देखते थे. शुरू में तो सभी तरह के कॉन्टेंट अपलोड होते थे. लेकिन फिर धीरे-धीरे ये बन गया एडल्ट कॉन्टेंट का हब. फिर क्या था. देखते-देखते सब्सक्राइबर्स की संख्या में बूम आने लगा और 2023 तक 19 करोड़ सब्सक्राइबर हो गए. ज़ाहिर है कि क्रिएटर और कंपनी, दोनों को बंपर फायदा हुआ.

कंपनी का फायदा कैसे हो रहा था? सब्सक्रिप्शन में कंपनी 20% का कट लेती है. माने 100 रुपये के सब्सक्रिप्शन में 80 रुपये मिले क्रिएटर को और 20 रुपये मिले कंपनी को. सबसे कमाल की बात तो ये है कि हर क्रिएटर का सब्सक्रिप्शन अलग-अलग होता है. Netflix की तरह नहीं, एक बार प्लेटफॉर्म का सब्सक्रिप्शन ले लिए तो महीने भर कोई भी पिक्चर देख लो. यहां आपको जिस क्रिएटर का ओनलीफैंस देखना है, उसका सब्सक्रिप्शन अलग से लेना होगा. और ये सब्सक्रिप्शन कितने रुपये का होगा, इसका फैसला खुद क्रिएटर करता है. कोई अपनी 300 रुपये में बेच सकता है और कोई 3000 में भी. बस आपके कॉन्टेंट के ख़रीदार होने चाहिए. कंपनी बस एक प्लेटफॉर्म है, जिसका काम है क्रिएटर और उनके फैंस को मिलाना और 20% कट लेना. ऐसा नहीं है कि ओनलीफैंस पर सिर्फ एडल्ट कॉन्टेंट ही मिलता है. इस पर फिटनेस और खाने जैसे कई और categories का कॉन्टेंट भी है. लेकिन ज्यादातर कॉन्टेंट एडल्ट है.

Onlyfans की चांदी

दुनिया में अलग-अलग प्लेटफॉर्म के हिट होने के अलग-अलग कारण रहे हैं. लेकिन ओनलीफैंस की तरक्की की सबसे बड़ी वजह बना कोविड-19 लॉकडाउन. लॉकडाउन में एक तरफ तो लोग घर में बंद थे, अकेलेपन का भी दौर था. एस्केपिज़म के तौर पर लोगों ने एडल्ट कॉन्टेंट को साथी बनाया. बाहर सब कुछ बंद था और घर में खुला था फोन. हर काम के लिए फोन पर नए-नए विकल्प तलाशे जा रहे थे. जैसे मीटिंग के लिए ज़ूम, सब्जी-राशन के लिए इंस्टेंट डिलिवरी ऐप्स और इसी कड़ी में सेक्शुअल डिज़ायर्स को पूरा करने के लिए, फैंटेसीज़ को एक्सप्लोर करने के लिए ओनलीफैंस, ManyVids और IsMyGirl जैसे प्लेटफॉर्म्स.

एक्सपर्ट ये भी मानते हैं कि ये ऐप्स इसलिए भी पॉपुलर हुईं क्योंकि कोविड काल में हर देश में सेक्स वर्कर्स का काम प्रभावित हुआ था. इसलिए उनमें से कुछ डिजिटल की ओर आए और इस तरह के ऐप्स पर कॉन्टेंट क्रिएट करना शुरू किया. क्रिएटर्स के बीच ये खासा पॉपुलर हुआ क्योंकि यहां एडल्ट इंडस्ट्री में काम करने वाली महिलाएं अपनी आपबीती सुनाती दिखीं. जिससे एडल्ट इंडस्ट्री के कई राज़ खुले. बड़े बच्चों के इस खेल का भीखू म्हात्रे बना ओनलीफैंस. इस ऐप ने क्रिएटर्स के लिए, या कि जिन्हें लोग परफॉर्मर्स भी कहते हैं- उनके लिए पॉर्न इंडस्ट्री को फाइनेंशियली रिवाइव करने में मदद की. कैसे? 3 बड़ी वजहें थीं.  

1. एक तो यहां पर कोई भी व्यक्ति क्रिएटर बन सकता था. माने यहां ट्रेडिशनल एडल्ट इंडस्ट्री की तरह कुछ सीमित लोग नहीं थे, जो कॉन्टेंट बनाते या उसकी सप्लाई करते. साथ ही पैसे का बड़ा शेयर (करीब 80%) क्रिएटर को मिलता था. एडल्ट कॉन्टेंट का डेमोक्रेटाइज़ेशन हो गया. इंडस्ट्री के  पैरेलर इंडिवजुअल क्रिएटर्स खड़े हो गए.

2. दूसरी वजह- ये प्लेटफॉर्म कॉन्टेंट पाइरेसी को रोकने के लिए सख़्त नियम लागू कर रहा था. जबकि इससे पहले पाइरेसी की वजह से फ्री पॉर्न का प्रचलन बढ़ा था और पाइरेसी की वजह से परफॉर्मर्स को कम पैसे मिलते थे.

3. तीसरी वजह- प्रमोशन का मौका. क्रिएटर्स के पास ख़ुद को डिजिटली प्रमोट करने का एक बड़ा रास्ता खुला. इंस्टाग्राम और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वो अपने ओनलीफैंस अकाउंट को प्रमोट करते थे और यूज़र्स को उधर डायवर्ट करते थे.
इसको उदाहरणों और आंकड़ों से समझते हैं.

ओनलीफैंस की दुनिया का हाल

कमाई का क्या हाल है, इसे कैटेगरी के हिसाब से समझते हैं. बिज़नेस इनसाइडर ने 10 सितंबर 2024 को एक आर्टिकल पब्लिश किया. इसमें उन्होंने तीन कॉन्टेंट क्रिएटर्स से बात की. पहले वो जिनके ओनलीफैंस पर 10 हज़ार से कम फैंस हैं. दूसरे वो जिनके 10 हज़ार से 1 लाख के बीच हैं. तीसरे वो जिनके 1 लाख से ज्यादा हैं.

Ryana Rose
Ryana Rose (PHOTO-X)

Bell Grace नाम की एक अंग्रेज महिला हैं. इनके 24 सौ के करीब सब्सक्राइबर्स हैं. Bell Grace ने ओनलीफैंस से एक साल में एक लाख डॉलर से ज्यादा की कमाई की. माने करीब 83 लाख रुपये. 10 हज़ार से 1 लाख फैंस वालों की तो और भी चांदी है. बिज़नेस इनसाइडर में 4 कॉन्टेंट क्रिएटर्स का जिक्र है. एम्बर स्वीटहार्ट, Steph Mi, Ryana Rose और लीन सू. इन सभी की सालाना आमदनी 4 करोड़ से लेकर 21 करोड़ रुपये के बीच थी मतलब ‘पैसा ही पैसा.’

Amber "Sweetheart" Johanssen
एम्बर स्वीटहार्ट (PHOTO-X)

1 लाख से ज्यादा फैंस वालों की ज़िंदगी एकदम राजसी हो चुकी है. एक महिला हैं ब्राइस एडम्स. 2023 तक इनके 7 लाख सब्सक्राइबर्स थे. वो साल भर में आराम से 41 करोड़ रुपये से भी ज्यादा कमाती हैं. आईपीएल के सबसे महंगे खिलाड़ियों से कई गुना ज़्यादा. दुनिया के टॉप थ्री ओनली फैन्स क्रिएटर्स कौन हैं. Many of many नाम की वेबसाइट के मुताबिक, अमेरिकन रैपर भैड भैबी सबसे ज़्यादा पैसे कमाने वाली क्रिएटर बनीं. साल 2023 में इनकी सालाना कमाई 280 करोड़ रुपये थी.

Belle Delphine's OnlyFans
Belle Delphine ओनलीफैंस अकाउंट (PHOTO-X)

दूसरे नंबर पर थी Belle Delphine. इन्होंने साल भर में 119 करोड़ रुपये कमाए. और तीसरे नंबर पर हैं Jameliz नाम की क्रिएटर. जो साल भर में 80 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाती हैं. वैसे तो ओनलीफैंस पर 70% क्रिएटर्स महिलाएं है. लेकिन पुरुष भी इस इंडस्ट्री में हैं और कुछ पुरुष भी अच्छी कमाई कर रहे हैं. सुपर क्रिएटर नाम की एक वेबसाइट है जिसपर Tyga नाम के एक कॉन्टेंट क्रिएटर हैं. ये हिप हॉप आर्टिस्ट भी हैं. इनकी सालाना कमाई 58 करोड़ रुपये है. हालांकि पुरुषों की कमाई महिलाओं से काफी कम है. ज़्यादातर पॉपुलर क्रिएटर्स के सब्सक्रिप्शन 700 रुपये से लेकर 3000 रुपये तक मिलते हैं. मिसाल के तौर पर, मिया खलीफा के ओनलीफैंस का मंथली सबस्क्रिप्शन करीब 900 रुपये में मिलता है. इतने में बहुत सारे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स मिल जाते हैं. भारत से भी पूनम पांडे, शर्लिन चोपड़ा जैसे नाम करोड़ों में कमा रहे हैं.

Tyga
Tyga ओनलीफैंस पर पुरुष क्रिएटर हैं (PHOTO-Social Rise)

हाई प्रोफाइल अकाउंट्स की बढ़ती संख्या से एक डर भी पैदा हुआ. कई डिबेट्स को जन्म मिला. जैसे: कुछ का मानना था कि इससे सेक्स वर्क को लाइक अदर प्रोफेशंस, एक कैज़ुअल लेबर के तौर पर स्वीकृति मिल रही है. कुछ लोगों का मानना था कि ओनलीफैंस ने एडल्ट इंडस्ट्री को डेमोक्रेटाइज़ कर दिया है और कुछ लोगों का मानना था कि इससे समाज के सामने एक नैतिक संकट खड़ा हो गया है और कमाई का ये तरीका ठीक नहीं है. इन डिबेट्स के साथ ओनलीफैंस पर संगीन आरोप भी लगे. आरोप सेक्स ट्रैफिकिंग और चाइल्ड पॉर्न से जुड़े थे. इन सभी को बारी-बारी विस्तार से समझते हैं.

सेक्स-वर्क में डेमोक्रेसी?

ब्रेंट्स BG और सैंडर्स T का साल 2010 में एक रिसर्च पेपर छपा. Mainstreaming the sex industry: Economic inclusion and Social ambivalence. इसमें उन्होंने लास वेगस और लीड्स में कॉमर्शियल सेक्स के विस्तार पर रिसर्च की. रिसर्च के दौरान उन्हें समझ आया कि कैसे कॉमर्शियल सेक्स रोज़मर्रा की ज़िंदगी और मुख्य आर्थिक सिस्टम का हिस्सा बन गया है. उनके हिसाब से इसकी दो बड़ी वजह थी.  

पहला, मार्केटिंग के तरीकों में होते बदलाव. जब सेक्स-रिलेटेड बिज़नेस अपनी ब्रांडिंग और मैनेजमेंट में किसी कॉरपोरेट की तरह दिखने लगते हैं. बिल्कुल वैसे जैसे कोई दूसरी कॉरपोरेट कंपनी काम करती है. इससे ये झलकता है कि सेक्स इंडस्ट्री के बिज़नेस पारंपरिक बिज़नेस की तरह ऑपरेट होने लग गए हैं. लेकिन आर्थिक मोर्चे पर अगर कोई चीज स्वीकार हो जाए तो इसका मतलब ये नहीं कि समाज ने भी उसे स्वीकार कर लिया है. इसलिए किसी भी बिजनेस का सक्सेस और एक्सेप्टेंस समाज की स्वीकृति से भी जुड़ा होता है. 

मिसाल के तौर पर नेटवर्क मार्केटिंग. ये बिजनेस भी बाकी सभी पारंपरिक बिजनेस की तरह ही चलता है. प्रॉपर ऑफिसेज होते हैं. लेकिन समाज इसे एक करियर ऑप्शन के तौर पर नहीं देखता है. तभी कई मीम्स में इसका उपहास किया जाता है. ब्रेंट्स और सैंडर्स का कहना है कि कॉमर्शियल सेक्स को स्वीकार करने का कारण बड़े पैमाने पर सामाजिक बदलाव है. सोशल मेनस्ट्रीमिंग, जिसमें कल्चरल चेंजेंस भी शामिल हैं, जहां समाज सेक्स को एक स्वीकार्य कॉमर्स के रूप में देखने लगता है. धीरे-धीरे ये धारणा बढ़ती है कि शरीर और सेक्सुअलिटी को भी कमोडिटी के रूप में स्वीकारा जा सकता है. इसके पीछे समाजशास्त्र का एक कंसेप्ट है, जिसे कहते हैं— नियोलिबरलिज़्म. आसान भाषा में कहें तो liberalism का नया रूप. जो फ्री मार्केट, आंत्रेप्रेन्योरशिप, और व्यक्तिवाद का समर्थन करता है. माने अब हर चीज़ एक पोटेंशियल बिज़नेस आइडिया है और व्यक्ति की सोच समाज से ऊपर है.

इससे लोगों में सेक्स से जुड़ी सोच बदली है. लेकिन एडल्ट इंडस्ट्री में सदियों से एक बड़ी समस्या रही है. इस इंडस्ट्री में हमेशा से बिचौलियों और वीडियो प्रोड्यूसर्स का बोल बाला रहा है. इसलिए खासकर महिलाएं शोषण का शिकार बनी हैं. मियां खलीफा ने जब इंडस्ट्री छोड़ी तो उन्होंने ये आरोप लगाया था कि उन्हें एक इंडस्ट्री में एक खिलौने की तरह ट्रीट किया गया. आरोप ये भी हैं इंडस्ट्री ने पॉर्न के ज़रिए अनरियलिस्टिक चीज़ों को प्रमोट किया है जिसने आपसी रिश्तों को प्रभावित किया है. लेकिन ओनलीफैंस जैसे प्लेटफॉर्म्स ने एजेंट्स और प्रोड्यूसर्स जैसे मिडलमैन की ज़रूरत को खत्म कर दिया है. अब दर्शक और क्रिएटर के बीच सीधे पैसे का लेन देन होने लगा. 

यूनिवर्सिटी ऑफ Oslo में एक रिसर्च पेपर पब्लिश हुआ, “Female empowerment through ओनलीफैंस”. इसके मुताबिक डिजिटल टेक्नोलॉजी ने सेक्स वर्क को ज़्यादा सुरक्षित बना दिया है, जिससे लोग अपने काम को अपने तरीके से चला सकते हैं. इसमें एक और दिलचस्प पहलू का जिक्र भी है. ओनलीफैंस जैसे प्लेटफॉर्म्स पर आने वाले कई लोग पहले कभी पारंपरिक सेक्स वर्क में शामिल नहीं रहे. ये लोग इस काम से इसलिए जुड़ पाए क्योंकि उनके पास बाकी तरीकों के अलावा ओनलीफैंस जैसा एक बेहतर रास्ता मौजूद था. एक सवाल ये है कि इस प्रोफेशन में ज्यादातर महिलाएं मिडिल क्लास से आती हैं. आखिर उनकी मोटिवेशन क्या है? क्यों मिडिल क्लास की महिलाएं इस रास्ते को चुन रही हैं.

मिडिल क्लास की महिलाओं ने चुना ओनलीफैंस

साल 2007 में अमेरिका में एक रिसर्च पेपर छपा, “Middle class in sex work”. इसमें अमेरिकी नज़रिए से मिडिल क्लास की महिलाओं के सेक्स वर्क में शामिल होने के कारणों का विश्लेषण किया गया. रिसर्च में इसके दो बड़े कारण मिले. पहला है आर्थिक मोर्चे पर हो रहे बदलाव. आर्थिक बदलावों के कारण gendered पे गैप बढ़ा है. मिडिल क्लास की महिलाएं, जो दूसरे सर्विस सेक्टर जॉब्स में कम वेतन पाती हैं, सेक्स वर्क की तरफ आकर्षित हो रही हैं क्योंकि इसमें तुलनात्मक रूप से वो बेहतर कमाई कर पाती हैं.

इसके अलावा ओनलीफैंस जैसे प्लेटफॉर्म्स में एक फायदा और भी है. यहां काम करने के घंटे फिक्स्ड नहीं हैं. जब मौका हो तब वीडियो बनाओ और अपलोड कर दो. मतलब बाकी जॉब्स के साथ तालमेल बिठाने का मौका भी मिल जाता है. इसलिए ये बहुत लोगों के लिए सेकेंड सोर्स ऑफ इनकम भी हो गया है. गिग इकॉनमी का एक उदाहरण. इन सभी कारणों के चलते ओनलीफैंस और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने सेक्स इंडस्ट्री को एक नई दिशा दी है, जहां न केवल इंडिपेंडेंस और सेफ्टी है. इसके साथ ही ऑनलाइन सेक्स वर्क ने पारंपरिक सेक्स इंडस्ट्री के कई मान्यताओं को चैलेंज किया है और इसे एक आधुनिक बिज़नेस मॉडल में बदल दिया है.

ये सभी वजहें अमेरिका के समाज से जुड़ी है. लेकिन जब दुनिया वैश्विक मंच पर गुथी हुई है. तब दुनिया भर में ये विचार फैलने में समय नहीं लगता. इसलिए भारत में भी कुछ महिलाएं और पुरुष इस रास्ते पर बढ़ रहे हैं. लेकिन अभी भी समाज में इस काम को कलंक की तरह देखा जाता है. इसके पीछे की वजह को आप यूरोप में पैदा हुए एक दार्शनिक के नजरिये से समझ सकते हैं. हीगल ने स्वायत्तता यानी autonomy की एक थ्योरी दी. इसके हिसाब से समाज में दो तरह के लोग होते हैं. एक लॉर्ड्स यानी मालिक और दूसरे बांड्समैन यानी वो लोग जो मालिकों के अधीन हैं. 

हीगल का मानना था कि अधीन बैठे लोगों को कितनी स्वायत्तता मिलेगी ये इस बात पर निर्भर करेगा कि मालिकों और बॉन्ड्समैन के बीच कितना वैचारिक टकराव हुआ है. टकराव के बाद समझौता होगा और समाज के नियमों कुछ बदलाव होगा, जैसे जातिवाद में आते बदलाव. इस सिद्धांत को अगर सेक्स वर्कर्स पर लगने वाले दबावों को समझने के लिए इस्तेमाल करें. तो आपको समझ आएगा कि कैसे समाज ने इसे कलंक बना दिया. और कैसे समाज में लगातार होती डिबेट्स ने इस कलंक को धीरे-धीरे धूमिल करना शुरू कर दिया है.

लेकिन ये बेहस इतनी सिंपल नहीं है. इस मामले में तो फेमिनिस्ट सोच रखने वालों में भी मतभेद हैं. एक पक्ष जहां इसे महिला की स्वतंत्रता के तौर पर देखता है वही दूसरा पक्ष इसे महिलाओं पर कमोडिटी की तरह देखता है. उनका कहना है अगर बाकि सेक्टर्स में महिलाओं को पर्याप्त मौके मिले और सैलरी में फर्क न हो तो उन्हें ऐसे रस्ते को नहीं चुनना पड़ेगा. और महिलाओं की डिग्निटी बरकरार रहेगी.

आरोपों का पिटारा 

इन सबके के अलावा ओनलीफैंस पर कुछ बेहद गंभीर आरोप भी लगे. जैसे सेक्स ट्रैफिकिंग और माइनर्स की वीडियोज़ चलाना. साल 2021 में BBC में एक आर्टिकल छपा. “The children selling explicit videos on ओनलीफैंस”. इसमें ब्रिटेन के एक केस का जिक्र है. असल में एक 14 साल की लड़की ने ओनलीफैंस पर अपनी ID बनाई. क्योंकि वो 18 साल से कम उम्र की थी. इस वजह से उसने ऐज वेरिफिकेशन के लिए अपनी दादी का पासपोर्ट इस्तेमाल किया. ये तो एक किस्सा है. 

इसके अलावा अमेरिका की एजेंसी ‘एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग इंटेलिजेंस इनिशिएटिव (ATII)’ ने भी ओनलीफैंस पर आरोप लगाए थे. एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग इंटेलिजेंस इनिशिएटिव इंसानी तस्करी के खिलाफ काम करती है. इसकी रिपोर्ट में ओनलीफैंस पर बच्चों और महिलाओं के साथ शारीरिक शोषण के आरोप लगे. ATII ने बताया कि सिर्फ 1.5 घंटे के अंदर, उनके रिसर्चर्स ने "ओनलीफैंस.com प्रोफाइल्स में पाया कि ऐसी लड़कियों की तस्वीरें दिखी जिनके शारीरिक ढांचे से जाहिर था कि वे 18 साल से कम उम्र की हैं. इसके अलावा क्रिएटर्स के चेहरे पर दर्द के एक्सप्रेशंस, और कई ऐसे साइन दिखे जो ये दर्शा रहे थे कि उनसे ये काम जबरदस्ती करवाया जा रहा है. ओनलीफैंस ने इन चीजों से पल्ला झाड़ लिया लेकिन आरोप तो लगातार लगते आए हैं.

कानून को ठग रहा

भारत में एडल्ट कॉन्टेंट के खिलाफ कई कानून हैं. जिससे इसके क्रिएशन, बिक्री और प्रदर्शन पर रोक लगाई जाती है. जैसे इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 और POCSO एक्ट. इसके अलावा भारतीय न्याय संहिता में धारा 75 और 95 भी जोड़ी गई है. लेकिन इसमें एक पेंच है, भारत में एडल्ट कॉन्टेंट को बनाने, रिलीज़, या शेयर करने पर रोक है. लेकिन देखने पर कोई सज़ा नहीं है, बशर्ते क्रिएटर्स बालिग हों.

ओनलीफैंस एक विदेशी प्लेटफॉर्म है. इस पर कॉन्टेंट देखना प्रतिबंधित नहीं है. इसलिए काफी हद तक ये बच जाते हैं. लेकिन IT एक्ट 2021 के मुताबिक सरकार ऐसे किसी भी प्लेटफॉर्म को बैन कर सकती है. अब तक क्यों नहीं हुआ, इस सवाल का जवाब तो सरकार ही दे सकती है. लेकिन कई इंडियंस भी इस पर वीडियोज़ बनाते हैं, ये क़ानूनी है या ग़ैरक़ानूनी, ये प्रशासन और न्यायपालिका को तय करना है. 

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