"हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जो महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाए.”
एसिड अटैक पर कानून है, बड़ी-बड़ी बातें हैं, लेकिन आरोपियों को सजा क्यों नहीं मिलती?
कई एजेंसियों का कहना है कि भारत में एसिड अटैक के लगभग 60 फीसदी मामले दर्ज नहीं होते हैं.
आशा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के इस बयान की गूंज 15 अगस्त को सिर्फ लाल किले में मौजूद लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे भारत को सुनाई दे. लेकिन शायद ऐसा नहीं हुआ.
प्रधानमंत्री ने भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर महिला सशक्तिकरण की बात कही. वो ऐसा पहले भी कहते रहे हैं. इधर आंकड़े बताते हैं कि भारत में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले साल दर साल बढ़े हैं. 16 दिसंबर २०२२ को निर्भया रेप मामले को 10 साल हुए. ठीक दो दिन पहले, 14 दिसंबर को देश की राजधानी दिल्ली के द्वारका में एक 17 साल की लड़की पर एसिड फेंका गया. 12वीं कक्षा की छात्रा स्कूल जा रही थी. तभी बाइक सवार दो लोगों ने उसपर तेजाब फेंक दिया और इससे उसके शरीर का 8 प्रतिशत हिस्सा जल गया.
महिलाओं पर एसिड अटैक के मामले उनके खिलाफ हो रहे दूसरे अपराधों की तुलना में कम हैं. लेकिन इस तरह का हर हमला खुलेआम बिक रहे एसिड और महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही आपराधिक मानसिकता के खतरे की तरफ इशारा करता है. एसिड हमले की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाया. क्या है ये कानून? क्या एसिड अटैक की घटनाएं भारत में तब से घटी हैं? अभी भी एसिड हमले क्यों हो रहे हैं? सब विस्तार से समझते हैं.
एसिड अटैक के मामले चिंताजनकNCRB के अनुसार, पिछले पांच साल में देश में 1,362 एसिड हमले दर्ज किए गए. 2021 में, 176 एसिड हमले दर्ज हुए, साथ ही 73 "एसिड हमले के प्रयास" भी दर्ज किए गए. यूके के एक NGO एसिड सर्वाइवर इंटरनेशनल ट्रस्ट (ASTI) ने इंडिया टुडे को बताया कि बहुत सारे हमलों को रिपोर्ट नहीं किया जाता है. NGO की तरफ से बताया गया,
“रिसर्च कहता है कि ज़्यादातर हमले महिलाओं और लड़कियों पर होते हैं. हमले अक्सर सार्वजनिक स्थानों जैसे सड़कों, स्कूलों और कॉलेजों में होते हैं. अगर सारे एसिड हमलों को रिपोर्ट किया जाए तो शायद भारत में हमलों की संख्या एक वर्ष में 1000 से भी ज़्यादा हो सकती है,”
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कई एजेंसियों का कहना है कि भारत में एसिड अटैक के लगभग 60 फीसदी मामले रिपोर्ट नहीं होेते हैं.
सरकारी डेटा के मुताबिक, 2021 में 102 मामले दर्ज किए गए थे. 2020 में 105, 2019 में 150, 2018 में 131 और 2017 में 209 मामले दर्ज किए गए. पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश दो राज्य हैं, जहां कुल एसिड हमलों के लगभग 50 फीसदी मामले दर्ज हुए.
लेकिन हैरानी की बात ये है कि एसिड हमले करने वाले आरोपियों के कनविक्शन रेट घट गए हैं. कनविक्शन रेट को आसानी से समझा जाए, तो कितने आरोपियों को सज़ा दी गई. ये एक बड़ी खबर है कि 2017 में कनविक्शन रेट 35 फीसदी था, 2018 में 65.4 फीसदी, 2019 में 54 फीसदी, 2020 में 72 फीसदी लेकिन 2021 में महज 20 फीसदी.
वकील तहिनी भूषण मानना है कि ऊपरी सतह पर तो यह कानून सही लगता है. लेकिन इसको लागू करते वक़्त ज़रूरी प्रक्रियाओं का पालन ठीक से नहीं होता. इसलिए आरोपियों को सज़ा दिलवाना मुश्किल हो जाता है.
वो मानती हैं कि जिस तरह रेप के मामलों में क़ानून आरोपी को दोषी मानकर चलता है ठीक उसी तरह एसिड अटैक के मामलों में भी हमलावर को दोषी मानकर ही चलना चाहिए…जब तक आरोपी ये सिद्ध न कर दे कि अपराध उसने नही किया है.
2013 में कई बदलाव लाये गएदिसंबर 2012 में हुए निर्भया रेप केस के बाद कानूनी तौर पर कई चीजें बदल गईं. 2013 तक एसिड हमलों को अलग अपराधों के रूप में नहीं माना जाता था. लेकिन 2013 में लाए गए संशोधन के बाद एक अलग सेक्शन जोड़ा गया. सेक्शन 326 (A). इसके तहत एसिड हमले के दोषियों को कम से कम 10 साल कैद की सजा होगी और इसे जुर्माने के साथ आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है.
धारा 326 (B) नुकसान पहुंचाने के इरादे से एसिड फेंकने या फेंकने का प्रयास करने से संबंधित है. दोषी को कम से कम पांच साल के लिए जेल की सजा दी जाएगी. इसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है जुर्माने के साथ.
दरअसल, इस तरह के मामलों में ये बात कई बार सामने आई है कि पीड़िता को समय पर इलाज उपलब्ध नहीं कराया गया या पुलिस अफसर ने FIR दर्ज करने से मना कर दिया. नए कानून के मुताबिक, इन्हें भी 1-2 साल तक की सज़ा होगी.
एसिड के हमले एसिड से होते हैं. एक आम समझ बताती है कि अगर हमलावर को एसिड नहीं मिलेगा, तो हमले नहीं होंगे. एसिड हमले की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में एसिड की ओवर-द-काउंटर बिक्री पर बैन लगा दिया. ये मामला राज्यों के दायरे में लाया गया. गृह मंत्रालय ने इसपर राज्यों से मॉडल नियमों के आधार पर अपने नियम बनाने के लिए कहा.
नियम तो हैं, लेकिन…मॉडल नियमों के तहत, बिक्री करने वाले को एसिड की बिक्री को रिकॉर्ड करना होगा और डिटेल्स लिखनी होगी कि किसने एसिड खरीदा. उसका पता और खरीदने का कारण. कानून बनने और बैन लगाने के बावजूद एसिड हमले जारी जारी रहे. 2021 में गृह मंत्रालय ने फिर एक बार राज्यों को सतर्क किया, ताकि एसिड ब्रिकी का बैन का पालन किया जाए.
वकील ताहिनी भूषण ने लल्लनटॉप को बताया कि कानून ने एसिड हमलों की संख्या को कम करने में मदद नहीं की है. उन्होंने कहा, "एसिड खरीदना अभी भी काफी आसान है. और कन्विक्शन रेट बहुत कम है. इसके अलावा, समय लेने वाली मुकदमेबाजी ने पीड़ितों के लिए न्याय लेना मुश्किल कर दिया है.
हाल में दिल्ली हुए हमले की करवाई में पता चला कि हमलावर ने एसिड ऑनलाइन 600 रुपये में खरीदा था. जाहिर है कि इस बैन पर अमल नहीं किया गया. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट ने बताया गया है कि, एसिड की बिक्री पर नियम काफी हद तक आरोपियों को ट्रैक करने में मदद करते हैं, इन्हे रोकने में नहीं.
सिर्फ सरकारी आंकड़ों को देखें तो चीज़ें बेहतर हुई हैं. लेकिन प्रधानमंत्री का महिला सशक्तिकरण का मैसेज तभी मायने रखेगा, जब भारत में किसी भी महिला को ये डर ना रहे कि राह चलते उसके ऊपर एसिड फेंक दिया जाएगा.
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