सर्वाइवर गिल्ट. जो गायल चेंसी को न जीने देता है, न मरने. कारण ये कि जब 12 जनवरी, 2010 को एक हादसे ने क़रीब तीन लाख लोगों की जिंदगी ले ली तो गायल चेंसी खुशक़िस्मत रहा था.
ऐसा क्या हुआ था 12 जनवरी, 2010 को?
हैती. दुनिया का छठा सबसे गरीब देश. जहां पांच में से सिर्फ़ एक इंसान ग़रीबी रेखा से ऊपर है. मतलब इस देश की एक बड़ी आबादी के पास खोने को ज़्यादा कुछ है नहीं. लेकिन 12 जनवरी, 2010 इन लोगों के लिए किसी बुरे सपने जैसा था.
कैरेबियाई देश हैती. (गूगल मैप्स)
12 जनवरी, 2010 को शाम 4:53 बजे हैती की राजधानी पोर्ट-ऑ-प्रिंस से क़रीब 25 किलोमीटर दूर लेगने शहर के नीचे धरती अचानक से कांपने लगी. ये भूकंप था. रिक्टर स्केल पर 7 की तीव्रता का. भूकंप का कारण लेगने फॉल्ट को माना गया. मतलब हैती के लेगने शहर के 13 किलोमीटर नीचे नई चट्टानों के पुरानी चट्टानों के साथ टकराने के कारण ये भूकंप आई. भूकंप के झटकों ने पड़ोसी देश डॉमिनिकन रिपब्लिक और क्यूबा के साथ जमैका, वेनेज़ुएला और पोर्ट रिको जैसे देशों को भी हिलाकर रख दिया था. लेकिन सबसे ज़्यादा तबाही हुई थी उस इलाक़े के सबसे गरीब देश हैती में. उसकी राजधानी पोर्ट-ऑ-प्रिंस में.
शहर की ढेरों जानी मानी इमारतें, जैसे राष्ट्रपति भवन, नेशनल असेंबली बिल्डिंग, पोर्ट-ऑ-प्रिंस कैथेड्रल वग़ैरह, या तो पूरी तरह ध्वस्त हो गई थीं या फिर बुरी तरह क्षतिग्रस्त. ऑस्ट्रेलिया की एक न्यूज़ एज़ेंसी के अनुसार, भूकंप के बाद पूरी राजधानी में सिर्फ़ एक हॉस्पिटल खुला था. जिसमें अर्जेंटीना मूल के लोग कार्यरत थे.
रिक्टर स्केल पर 7 की तीव्रता का था यह भूकंप. (तस्वीर: एएफपी)
तीन लाख लोग मारे गए?
सरकारी आंकड़े बताते हैं कि भूकंप में क़रीब तीन लाख सोलह हज़ार लोग मारे गए. तीन लाख लोग हताहत हुए. 13 लाख लोग विस्थापित हुए. एक लाख के क़रीब घर जमींदोज और 1.88 लाख के क़रीब क्षतिग्रस्त हो गए. तटस्थ आंकड़ों के मुताबिक़ मृतकों की संख्या काफ़ी कम थी. 1 लाख से भी कम. लेकिन इस सब से अलग एक आंकड़ा और भी था. जो बताता था कि पोर्ट-ऑ-प्रिंस के क़ब्रिस्तानों में शवों को दफ़नाने के लिए जगह तक नहीं बची थी. फिर इन्हें सामूहिक कब्रों में दफ़नाया गया. ग्लोबल नेशनल के एक वरिष्ठ पत्रकार माइक ड्रोलेट, जिन्होंने इस हादसे को कवर किया था, ने 2020 में बताया-
हर जगह लाशें ही लाशें थीं. सड़कों पर लाशों का ढेर था. मलबे में लाशों को देखा जा सकता था. ये उन सभी जगहों और हादसों से अलग था, जिन्हें मैंने अतीत में या इस घटना के बाद कवर किया. मैंने अफ़ग़ानिस्तान की ग़रीबी देखी है. मैंने कटरीना वाले तूफ़ान के बाद के ज़रूरत मंद लोग देखे हैं. मैंने अमेरिका की स्कूल शूटिंग कवर की है. लेकिन ये दुनिया के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं. इनके पास कुछ भी नहीं था. और फिर उनसे ‘कुछ नहीं’ भी छिन गया था. पहले कम से कम उनके पास छत तो थी और उस घटना के बाद वो भी नहीं बची थी.
वरिष्ठ पत्रकार माइक ड्रोलेट.
कहा जाता है कि हैती की सरकार और वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री जीन मैक्स बेलेरिव ने आंकड़ों को जानबूझकर बढ़ा-चढ़ा कर बताया था. ताकि इस गरीब देश को दुनिया भर से सहायता मिल सके. आप इसे इमोशनल ब्लैकमेल करना कहें या लाशों के ऊपर राजनीति. लेकिन बात ये भी है कि तीसरी दुनिया में जीने के नियम अलग होते हैं. इन ग्यारह सालों के दौरान की गईं दुनिया भर की सारी स्टडीज़ बताती हैं कि अगर हैती इतना ग़रीब न होता तो इतने बुरे हालात न होते, इतने लोग न मरते.
हैती के तत्कालीन प्रधानमंत्री जीन मैक्स बेलेरिव. (तस्वीर: एएफपी)
होप फ़ॉर हैती नाऊ
23 जनवरी को MTV पर प्रसारित किया गया एक फंडरेज़िंग इवेंट था. इसकी मेज़बानी जॉर्ज क्लूनी ने की थी और इसमें मैडोना, शकीरा, U2 जैसे दसियों जानेमने कलाकारों ने हिस्सा लिया था. ये दुनिया में सबसे ज़्यादा देखा जाने वाला फंडरेज़िग़ इवेंट बन गया. इस अकेले इवेंट ने क़रीब 440 करोड़ रुपये जुटाए थे.
लेकिन ये तो हैती जाने वाली सहायता की सिर्फ़ एक बूंद मात्र थी. अफ़्रीकी, अमेरिकी, एशियाई देशों से लेकर दुनियाभर की कई संस्थाएं सामने आईं. लेकिन लॉजिस्टिक्स की दिक़्क़तों के कारण मदद देरी से और पूरी मात्रा में नहीं पहुंच सकी. एक स्टडी से पता चला कि कई फ़ाउंडेशंस की मदद (पैसे और बाकी सामान) का आधा भी ज़रूरतमंदो तक नहीं पहुंच पाया जो हैती के लिए जमा किया गया था. जो मदद पहुंच पा रही थी, उसे इन बचे हुए लोगों में बांटना मुश्किल था. लूट मची और इस कमज़ोर समाज का सबसे कमोज़र तबका, अपने भूखे पेट के साथ इस लूट को बस दूर से देख रहा था.
होप फ़ॉर हैती नाऊ इवेंट से क़रीब 440 करोड़ रुपये जुटाए गए थे.
ये भूकंप सबसे तीव्र बेशक था लेकिन अकेला नहीं था
इसके बाद हफ़्तों तक 50 से ज़्यादा आफ़्टरशॉक्स ने बच गए लोगों की नींद उड़ा दी थी.आफ़्टरशॉक्स के बाद हैती के समुद्री तट पर सुनामी भी आया जिसमें तीन लोगों की जान गई.
22 जनवरी को, संयुक्त राष्ट्र ने राहत अभियान का आपातकालीन चरण बंद कर दिया. 23 जनवरी को हैती की सरकार ने जीवित बचे लोगों की खोज को बंद करने की आधिकारिक घोषणा कर दी.
भूकंप तो चलिए दसियों-सैकड़ों साल में एक बात आता है लेकिन हैती चक्रवातों, बाढ़, भुखमरी और महामारी से हर साल टूट जाता है. इस भूकंप के कुछ महीनों बाद भी महामारी, कोलोरा ने हैती की स्थिति, नीम चढ़े करेले वाली कर दी. उसमें फिर हज़ारों लोग मारे गए. हैती सरकार ने इसके लिए UN को दोषी ठहराया था. बाद में 6 सालों बाद UN ने ख़ुद भी स्वीकारा था कि हैती में ये महमारी UN के उन पीसकीपर सदस्यों द्वारा आई थी जो भूकंप के बाद के बचाव अभियान का हिस्सा रहे थे.
UN ने स्वीकारा था कि हैती में ये महमारी UN के उन पीसकीपर सदस्यों द्वारा आई थी. (तस्वीर: एएफपी)
अब बात गायल चेंसी की बात
उनपर वापस लौटते हैं. अब उनकी उम्र क़रीब 23 साल है. हैती में आए भूकंप का ये सर्वाइवर मोंट्रेयल में रहते हैं. अपनी ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद ‘हैती कम्यूनिटी सेंटर’के राजनीतिक सदस्य है. वे वाकये को लेकर कनाडा की एक न्यूज़ एज़ेंसी को बताते हैं-
ये वो समाज था, जिसे मैं कनाडा के लिए छोड़ रहा था. मेरे लिए ये एक कड़वा सच था. क्यूंकि मैं अपने परिवार से अलग हो गया था. क्यूंकि मेरे पिता वहीं रुक गए थे. मैं स्थिति को अच्छे से समझता था, लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था. वहां रुकना बहुत मुश्किल था. लेकिन एक चीज़, जिससे मैं सबसे ज़्यादा ख़ुश और प्राउड फ़ील करता हूं, वो ये है कि मैंने हैती को यहां से मदद करने का रास्ता खोज निकाला है.
गायल चेंसी अब कनाडा में रहते हैं. (तस्वीर: फेसबुक)
उम्मीद है कि इस रास्ते में चलते हुए गायल का सर्वाइवर गिल्ट भी कम हुआ हो. क्या मौतें आपको और अधिक मानवीय बना देती हैं, या फिर कठोर कर देती हैं? ये किसी मनोविश्लेषक के लिए शोध के विषय हो सकता है. लेकिन हमने अनुभवों से, अतीत से और ‘तारीख़’ से इतना ज़रूर जाना है कि जब भी कोई हादसा, कोई घटना, कोई दुःख मानव सभ्यता को चारों ओर से कुहासे से घेर लेता है, तब भी सूरज चमक रहा होता है. अपनी पूरी रोशनी के साथ नहीं भी तो कम से कम बताने के लिए, कि हां, मैं अब भी हूं.