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ओलंपिक खेलों पर क्यों मंडरा रहे खतरे के बादल ?

इस बरस ओलंपिक गेम्स फ़्रांस की राजधानी पेरिस में हो रहे हैं. 26 जुलाई को उद्घाटन है. उससे पहले अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का असर दिखने लगा है. अक्टूबर 2023 से इज़रायल और हमास के बीच जंग चल रही है. फ़िलिस्तीनी समर्थक पेरिस ओलंपिक्स में इज़रायली टीम की भागीदारी का विरोध कर रहे हैं.

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पेरिस ओलंपिक की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं (फोटो- गेट्टी)

साल 1972. तब जर्मनी दो हिस्सों में बंटा था. ईस्ट जर्मनी सोवियत संघ के क़ब्ज़े में था. जबकि वेस्ट जर्मनी पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ़्रांस का नियंत्रण था. वहां पश्चिमी देशों वाली व्यवस्था फल-फूल रही थी. इसी क्रम में सितंबर के महीने में वेस्ट जर्मनी के शहर म्युनिख में ओलंपिक खेल शुरू हुए. पूरी दुनिया से खिलाड़ी पहुंचे. इसमें इज़रायल की टीम भी हिस्सा ले रही थी. उस दौर में इज़रायल और अरब देशों के बीच तनाव चरम पर था. उनके बीच युद्ध की आशंका समय के साथ बढ़ती जा रही थी. दूसरी तरफ़, फ़िलिस्तीनी चरमपंथी गुट इज़रायल और इज़रायली नागरिकों को निशाना बनाने पर आमादा रहते थे. ऐसा ही एक गुट था, ब्लैक सेप्टेम्बर. उसने ओलंपिक गेम्स के बीच इज़रायली टीम को बंधक बनाने की साज़िश रची. 05 सितंबर 1972 की रात आठ आतंकी म्युनिख के खेल गांव में घुस गए. उन्होंने हॉस्टल में घुसकर दो इज़रायली एथलीट्स की हत्या कर दी. नौ को बंधक बना लिया. फिर फ़िलिस्तीनी क़ैदियों को रिहा करने की मांग रखी. इज़रायल ने मांग मानने से इनकार कर दिया. वेस्ट जर्मनी ने एथलीट्स को छुड़ाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया. मगर वो बुरी तरह फ़ेल रहा. आतंकियों ने बंधक बनाए सभी एथलीट्स की हत्या कर दी. मुठभेड़ में ब्लैक सेप्टेम्बर के पांच आतंकी भी मारे गए. तीन अरेस्ट हुए. कुछ समय बाद उनके साथियों ने एक जर्मन एयरलाइन को हाइजैक कर लिया. उनकी रिहाई के बदले तीनों को छुड़ा लिया.

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 इज़रायल की प्रधानमंत्री गोल्डा माएर (फोटो-विकीपीडिया)

उस दौर में गोल्डा माएर इज़रायल की प्रधानमंत्री हुआ करतीं थी. उन्होंने प्रण किया कि इज़रायली एथलीट्स की हत्या के साज़िशकर्ताओं से बदला लिया जाएगा. इसकी ज़िम्मेदारी ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद को दी गई. फिर मोसाद ने ऑपरेशन रैथ ऑफ़ गॉड शुरू किया. मोसाद के एजेंट्स ने अगले बीस बरसों तक यूरोप के अलग-अलग शहरों में बदला पूरा किया. म्युनिख ओलंपिक की घटना ने खेलों में आतंकवाद का ऐसा वीभत्स उदाहरण सेट किया था, जिसकी कल्पना तक मुश्किल थी. म्युनिख ओलंपिक को 52 बरस बीत चुके हैं. इस बीच 12 ओलंपिक गेम्स का सफल आयोजन हो चुका है. मगर 1972 का साया अभी तक मंडरा रहा है.

इस बरस ओलंपिक गेम्स फ़्रांस की राजधानी पेरिस में हो रहे हैं. 26 जुलाई को उद्घाटन है. उससे पहले अंतरराष्ट्रीय घटनाओं का असर दिखने लगा है. अक्टूबर 2023 से इज़रायल और हमास के बीच जंग चल रही है. फ़िलिस्तीनी समर्थक पेरिस ओलंपिक्स में इज़रायली टीम की भागीदारी का विरोध कर रहे हैं. गेम्स से पहले एक धमकी वाला वीडियो भी जारी हुआ. जिसमें कथित तौर पर हमास गेम्स के आयोजकों से बदला लेने की चेतावनी दे रहा है. हमास ने वीडियो का खंडन किया है. कहा, हमको बदनाम किया जा रहा है. इस वीडियो से हमारा कोई लेना-देना नहीं है. भले ही हमास ने धमकी से हाथ पीछे खींच लिया हो, मगर ख़तरा बदस्तूर बरकरार है. इज़रायल ने घरेलू ख़ुफ़िया एजेंसी शिन बेत के एजेंट्स को अपने एथलीट्स की सुरक्षा में लगाया है. फ़्रांस सरकार ने 75 हज़ार से अधिक सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया है. इसके अलावा भी कई स्तरों पर निगरानी रखी जा रही है. 

मगर कहानी यहीं तक सीमित नहीं है. पेरिस ओलंपिक्स पर कई राजनीतिक विवादों के काले बादल भी छाए रहेंगे. मसलन, फ़्रांस की घरेलू राजनीति, हिजाब बैन, धुर-दक्षिणपंथी पार्टियों का उभार आदि.

तो, समझते हैं,
- पेरिस ओलंपिक में क्या ख़ास है?
- उद्घाटन से पहले किन विवादों में घिरा ओलंपिक?
- और, ओलंपिक के इतिहास में कौन से बड़े कांड हो चुके हैं?

सबसे पहले बेसिक क्लियर कर लेते हैं. पेरिस ओलंपिक्स की आधिकारिक शुरुआत 26 जुलाई को होगी. 11 अगस्त तक ये खेल चलेंगे. कुछ गेम्स औपचारिक उद्घाटन से पहले ही शुरू हो जाएंगे. जैसे, रग्बी और फुटबॉल 24 जुलाई, तीरंदाजी और हैंडबॉल की प्रतियोगिताएं 25 जुलाई से शुरू होंगी.
- पेरिस में 26 जुलाई की शाम साढ़े सात बजे उद्घाटन कार्यक्रम होना है. उस वक़्त भारत में रात के 11 बज रहे होंगे.
- इस साल 206 देशों के साढ़े दस हज़ार खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं.
- इस बार ओलंपिक्स में 32 खेलों को शामिल किया गया है. इनमें 329 गोल्ड मेडल दिए जाएंगे.

कहां होंगे ये खेल?

फ़्रांस में 35 अलग-अलग जगहों पर ये खेल आयोजित किए जाएंगे. ज़्यादातर गेम्स राजधानी पेरिस में होंगे. सर्फिंग प्रतियोगिता का आयोजन फ्रेंच पोलिनेशिया के ताहिती में होगा. इसकी दूरी फ़्रांस से 16 हज़ार किलोमीटर है. ताहिती, साउथ पैसिफ़िक ओशन में एक छोटा सा आइलैंड है. इसपर फ़्रांस का कब्ज़ा है.

इस बार क्या ख़ास है?

 फ़्रांस तीसरी बार ओलंपिक गेम्स की मेज़बानी कर रहा है. इससे पहले 1900 और 1924 में आयोजन किया था.इस बार माहौल काफ़ी अलग है. इसी महीने फ़्रांस में संसदीय चुनाव हुए. इसमें किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. रिज़ल्ट के तुरंत बाद फ़्रांस के प्रधानमंत्री गैब्रियल अटल ने इस्तीफ़ा दे दिया. वो मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मेक्रों की पार्टी से ही आते हैं. मैक्रों ने गैब्रियल का इस्तीफ़ा तो मंज़ूर कर लिया. मगर ओलंपिक गेम्स होने तक केयरटेकर सरकार चलाने के लिए कहा है. ओलंपिक से पहले कौन-कौन से विवाद चर्चा में हैं? एक-एक कर जानते हैं,
> 1. हिजाब बैन
फ़्रांस ने अपनी ओलंपिक टीम की महिला खिलाड़ियों के लिए हिजाब बैन कर दिया है. यानी, फ़्रांस की कोई महिला खिलाड़ी हिजाब पहनकर ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले पाएगी. हालांकि, दूसरे देशों की महिला खिलाड़ी हिजाब पहन सकतीं है. फ़्रांस के फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं. सितंबर 2023 में यूनाइटेड नेशंस (UN) ने भी आलोचना की थी. दरअसल, फ़्रांस ने इस बार के ओलंपिक को जेंडर इक्वल थीम दी है. इसलिए पूछा जा रहा है कि एक महिला की चॉइस को क्यों ताक पर रखा जा रहा है. फ़्रांस का तर्क है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं. इसलिए हमारी टीम में किसी भी धर्म का सिंबल नहीं होगा.

> 2. रूस और बेलारूस पर प्रतिबंध 
पेरिस ओलंपिक्स में रूस और बेलारूस की टीमें हिस्सा नहीं ले रहीं है. उनके ऊपर बैन लगा है. वजह, यूक्रेन पर रूस का हमला. इसमें बेलारूस ने रूस की मदद की थी. इसलिए, उसके ऊपर भी प्रतिबंध लगाया गया है. दोनों देशों के कुल 32 खिलाड़ियों को न्यूट्रल एथलीट्स के तौर पर भाग लेने की इजाज़त दी गई है. वे टेनिस, स्विमिंग साइकिलिंग और जिम्नास्टिक जैसी प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे. पूरे ओलंपिक्स के दौरान ना तो उनका राष्ट्रीय गान बजेगा और ना ही वे अपने देश का झंडा लहरा पाएंगे. 23 जुलाई को एक मानवाधिकार संगठन ने अपनी रिपोर्ट में एक सनसनीखेज दावा किया. बताया कि रू और बेलारूस के जिन एथलीट्स को ओलंपिक्स में हिस्सा लेने की इजाज़त मिली है, उनमें से 17 यूक्रेन पर हमले का समर्थन करते हैं.

>3. सीन नदी
पेरिस ओलंपिक का उद्घाटन सीन नदी से किया जा रहा है. वहां बड़ा इवेंट होगा. कई प्रतियोगिताएं भी आयोजित होनी हैं. ऐसे मेंपर्यावरणविदों ने अंदेशा जताया है कि इससे नदी में प्रदूषण हो सकता है. कुछ संगठनों ने यहां ओलंपिक आयोजित करवाने का विरोध भी किया है. ये तो हुआ सीन नदी से जुड़ा एक विवाद. एक और विवाद इस नदी से जुड़ा है. सीन नदी के आस-पास सुरक्षा चौकस की गई है. सुरक्षा कारणों से ही दर्शकों की संख्या घटा दी गई. फ़्री टिकट के लिए रजिस्ट्रेशन कंप्लसरी किया गया. इसी तैयारी में नदी के आस-पास फ़ुटपाथ पर दुकान लगाने वालों को हटाया गया. उन्होंने दुकान हटाने का विरोध किया. बाद में सरकार को फ़ैसला वापस लेना पड़ा.

> 4. आतंकी हमले का ख़तरा
आतंकी संगठन मेसेजिंग के इरादे से बड़े इवेंट्स को निशाना बनाते रहे हैं. म्युनिख ओलंपिक्स में ये हो चुका है. बीते बरसों में पेरिस बड़ी आतंकी घटनाएं झेल चुका है. समय-समय पर दंगे भी हुए हैं. इसलिए, सरकार कोई लूपहोल नहीं छोड़ना चाहती है.

> 5. पेरिस ओलंपिक्स और चीन
पेरिस ओलपिंक को प्रमोट करने के लिए कई मर्चेंडाइज बनाई गईं थी. इसमें कई खिलौने भी शामिल थे. ये खिलौने चीन में बनाए जा रहे थे. मगर बताया ये गया कि फ़्रांस की कंपनी ने बनाया है. जब ये बात पब्लिक हुई तो इसकी ख़ूब आलोचना हुई.

> 6. अज़रबैजान का दुष्प्रचार 
फ़्रांस ने आरोप लगाया है कि अज़रबैजान, पेरिस ओलंपिक को बदनाम करने की साज़िश रच रहा है. सरकारी एजेंसियों ने अज़रबैजान की कुछ वेबसाइट्स और फ़ेक सोशल मीडिया प्रोफाइल्स को एक्सपोज किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, इनके ज़रिए फ़्रांस को अक्षम बताने की कोशिश की जा रही थी. जानकार कहते हैं कि इसका एक कारण आर्मेनिया-अज़रबैजान विवाद हो सकता है. इस विवाद में फ़्रांस, आर्मेनिया का समर्थक रहा है. 
 
> 7. इज़रायली टीम की मौजूदगी.
जैसा कि हमने पहले बताया, रूस को यूक्रेन पर हमला करने के लिए ओलंपिक्स से प्रतिबंधित कर दिया गया. इसलिए मांग उठी कि इज़रायल को भी बैन किया जाए. इज़रायल पर गाज़ा में हज़ारों बेगुनाह लोगों की हत्या के आरोप लगते हैं. मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट्स भी आईं है. मगर उसकी टीम को ओलंपिक से बैन नहीं किया गया है. बल्कि उन्हें अतिरिक्त सुरक्षा दी जा रही है. फरवरी 2024 में फ़्रांस के 26 वामपंथी नेताओं ने इंटरनैशनल ओलंपिक कमिटी  (IOC) को लेटर लिखा था. इसमें इज़रायली टीम पर प्रतिबंध लगाने के लिए कहा था. लेकिन IOC ने इसपर कोई एक्शन नहीं लिया. इसके चलते IOC पर दोहरा मापदंड अपनाने के आरोप लग रहे हैं.

> 8. मज़दूरों का शोषण 
फ़्रांसीसी अख़बार लिबरेशन ने एक रिपोर्ट में दावा किया कि ओलंपिक गेम्स की तैयारी के लिए मज़दूरों से जोख़िम वाले काम करवाए जा रहे हैं. उन्हें ज़रूरत के हिसाब से सुरक्षा सामग्री भी नहीं दी गई और, वेतन भी कम दिया गया.

ये तो हुए पेरिस ओलंपिक से जुड़े आठ बड़े विवाद. अब बात करते हैं ओलंपिक के इतिहास की.
> आधुनिक ओलंपिक गेम्स का आयोजन 1896 में शुरू हुआ था. यूनान की राजधानी एथेंस में. इसमें 14 देशों के 200 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया था. 
> 1900 में पेरिस में दूसरा ओलंपिक्स कराया गया. इसमें 20 महिला खिलाड़ियों ने भी हिस्सा लिया. 
> 1904 का आयोजन अमेरिका के सेंट लुई में हुआ. यहां अमरीकी खिलाड़ियों का दबदबा रहा. 
> लंदन में पहली बार ओलंपिक आयोजित हुए 1908 में. पहली बार खिलाड़ियों ने अपने देश के झंडे के साथ स्टेडियम में मार्च किया. इसी ओलंपिक में अमरीकी खिलाड़ियों ने ब्रिटेन के जजों पर आरोप लगाया कि वे अपने देश का पक्ष ले रहे हैं.

1912 में स्टॉकहोम में ओलंपिक हुए और फिर विश्व युद्ध की छाया भी इन खेलों पर पड़ी. विश्व युद्ध के बाद एंटवर्प ओलंपिक 1920 में आयोजित हुआ. दूसरे विश्व युद्ध के पहले बर्लिन में 1936 में ओलंपिक गेम्स का आयोजन हुआ. इसमें एडोल्फ़ हिटलर ने अपना और नाज़ी पार्टी का प्रचार किया था.

ओलंपिक्स के इतिहास में हुए बड़े विवाद 

1.पहला वाकया 1968 के मेक्सिको ओलंपिक्स का है. 1968 के मेक्सिको ओलंपिक्स की सबसे बड़ी घटना थी - दो अश्वेत अमेरिकी धावकों का पोडियम पर काले मोजे में खड़े होकर मेडल लेना. वे दोनों नस्लभेद का विरोध कर रहे थे. इस घटना ने जॉन कार्लोस और टॉमी स्मिथ को अमेरिका की ओलंपिक टीम से निकाल दिया गया. बाद में उनका नाम इतिहास में दर्ज़ हुआ.
 

Mexico 1968
1968 के मेक्सिको ओलंपिक्स (फोटो- आईओसी)

2.मेक्सिको ओलंपिक्स से ठीक पहले राजधानी में छात्रों का ज़बरदस्त आंदोलन हुआ था. एक फ़ुटबॉल मैच के बाद स्कूली बच्चों की लड़ाई हो गई. झगड़ा शांत कराने आई पुलिस से मामला नहीं संभला तो सेना बुलाई गई. बच्चों ने स्कूल का दरवाज़ा बंद कर दिया. सेना ने गेट खुलवाने की बजाय उसे बम लगाकर उड़ा दिया. इसमें कई स्कूली छात्र मारे गए. जिस स्कूल में ये घटना घटी थी, वो नेशनल यूनिवर्सिटी के अंंडर आता था. आग वहां तक भी पहुंची. अगले कई महीनों तक पूरे शहर में सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए. उनकी मांग थी कि छात्रों के ख़िलाफ़ हिंसा करनेवालों पर कार्रवाई की जाए. राष्ट्रपति ने उल्टा धमकी देते हुए कहा, अब और प्रोटेस्ट बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
02 अक्टूबर 1968 को मेक्सिको सिटी के लाटेलोको स्क़्वायर पर हज़ारों स्टूडेंट्स जमा हुए. उन्हें ये तय करना था कि आगे कैसे बढ़ा जाए. बैठक के अंतिम समय में सैनिक स्टूडेंट लीडर्स को पकड़ने के लिए बढ़े. तभी वहां पर गोलीबारी शुरू हो गई. इसके बाद तो सेना ने बिना किसी चेतावनी के गोलियां बरसाईं. आधिकारिक आंकड़ा कहता है कि इस घटना में सिर्फ़ 26 लोग मरे. लेकिन प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक़, असल संख्या कई गुणा ज़्यादा थी. सेना ने इस नरसंहार पर कहा, हमको सेल्फ़-डिफ़ेंस में गोलियां चलानी पड़ी. मगर असलियत इसके उलट थी. वे पहले से ही नरसंहार का प्लान बनाकर आए थे. दरअसल, राष्ट्रपति महोदय को ये डर था कि प्रोटेस्ट की वजह से ओलंपिक गेम्स का आयोजन ख़तरे में पड़ सकता है. इसके लिए उन्होंने सैकड़ों मासूम छात्रों को क़ुर्बान करने में कोई देरी नहीं की. उस साल के ओलंपिक गेम्स तय समय पर ही शुरू हुए. मगर मेक्सिको के लोगों में पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया था.

Melbourne 1956 Summer Olympics
 मेलबर्न 1956 के ओलंपिक गेम्स (फोटो- आई ओ सी)

3. ऑस्ट्रेलिया का मेलबर्न शहर 1956 के ओलंपिक गेम्स का मेज़बान बना. ये गेम्स 22 नवंबर से शुरू होने वाले थे. ग्लोबल पॉलिटिक्स में उठा-पटक उससे पहले ही शुरू हो चुकी थी. पहली घटना मिडिल-ईस्ट की थी. ईजिप्ट के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर ने स्वेज़ नहर को नेशनलाइज कर दिया. उससे पहले नहर से होने वाली कमाई ब्रिटेन और फ़्रांस के खाते में जाती थी. ईजिप्ट को धेला तक नहीं मिलता था.
जब ब्रिटेन और फ़्रांस की कमाई बंद हुई, उन्होंने इजरायल के साथ मिलकर नासेर के तख़्तापलट का प्लान बनाया. 29 अक्टूबर 1956 को इज़रायल ने ईजिप्ट पर हमला कर दिया. ब्रिटेन और फ़्रांस ने युद्धविराम का अल्टीमेटम दिया. नासेर ने ये मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद फ़्रांस और ब्रिटेन ने भी ईजिप्ट में सेना उतार दी. हालांकि, बाद में उन्हें बुरी तरह अपमानित होकर वापस निकलना पड़ा.
इजरायल के हमले से नाराज़ ईजिप्ट ने मेलबर्न ओलंपिक का बॉयकॉट किया. इस बॉयकॉट में लेबनान और इराक़ भी शामिल हो गए. इन तीनों के अलावा तीन और देशों ने मेलबर्न ओलंपिक से अपना नाम वापस ले लिया था. ये थे - नीदरलैंड, स्पेन और स्विट्ज़रलैंड. इन देशों की मांग थी कि सोवियत संघ को मेलबर्न ओलंपिक से बाहर कर दिया जाए. ओलंपिक कमिटी ने मांग नहीं मानी. जिसके बाद तीनों देशों अपनी टीमें नहीं भेजी.

जहां तक बहिष्कार की बात है. 1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर आक्रमण किया. वो कोल्ड वॉर का दौर था. अमेरिका ने इसकी आलोचना की और सोवियत संघ को बाहर निकलने के लिए कहा. लेकिन उसने ये मानने से मना कर दिया. लिहाजा, जब 1980 में मॉस्को में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ, अमेरिका ने हिस्सा लेने से इनकार कर दिया. उसकी देखा-देखी 64 और देशों ने मॉस्को ओलंपिक्स से नाम वापस ले लिया. ओलंपिक खेलों के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में देशों ने गेम्स का बहिष्कार किया था.  इस बहिष्कार का जवाब आया, चार साल बाद 1984 में. जब ओलंपिक खेलों की मेज़बानी पहुंची, अमेरिका के लॉस एंजिलिस के पास. इस बार सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों ने हिस्सा नहीं लिया. हालांकि, उनकी संख्या कम थी.

Beijing 2008 Olympic
बीजिंग ओलंपिक्स 2008 (फोटो- विकीपीडिया)

4. 2008 में ओलंपिक गेम्स का आगमन बीजिंग में हुआ. बीजिंग ओलंपिक्स को सबसे खर्चीले खेल आयोजनों में गिना जाता है. इन गेम्स की ख़ूब तारीफ़ भी हुई. लेकिन पर्दे के पीछे की कहानी बहुत कम लोगों को पता है या उन्हें दबा दिया गया. ये कहानी है खेलों के लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर तैयार करने वाले मज़दूरों की. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़, मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी तक नहीं दी जाती थी. इसी तरह 2016 में हुआ. ब्राज़ील के रियो डि जनेरो को ओलंपिक गेम्स की मेज़बानी मिली. सरकार ने शहर की सुंदरता बढ़ाने के नाम पर झुग्गी बस्तियों को सुदूर इलाके में ट्रांसफ़र कर दिया था. जो नहीं जाना चाहते थे, उन्हें ज़बरदस्ती बेदख़ल किया गया. बाहरी लोगों को वे बस्तियां न दिखें, इसके लिए ऊंची-ऊंची दीवारें भी खड़ी की गईं थी.

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