सत्तासी दशमलव अट्ठावन (87.58) मीटर यह दूरी नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) के जैवलिन ने टोक्यो ओलंपिक्स-2020 में तय की थी. जिसकी बदौलत उन्हें गोल्ड मेडल मिला था. लेकिन पेरिस ओलंपिक्स में उन्हें सिल्वर मेडल से ही संतोष करना पड़ा. इस थ्रो का एंगल था, करीब 36 डिग्री. नीरज की ट्रेनिंग और स्ट्रगल की कहानियां, तो आप अब तक खूब सुन चुके होंगे. पर इस सब से इतर, एक सवाल जो दिमाग में आता है. हम तो फिजिक्स की किताबों में पढ़ते आ रहे हैं कि कोई चीज जब 45 डिग्री के एंगल पर फेंकी जाती है. तभी वह ज्यादा से ज्यादा दूरी तय करती है. लेकिन ओलंपिक्स में ना नीरज चोपड़ा ने 45 डिग्री के एंगल पर जैवलिन फेंका, ना ही पाकिस्तान के अरशद नदीम (Arshad Nadeem) ने. ये क्या मजरा है?
विज्ञान कहता है 45 के एंगल पर भाला फेंकिए, सबसे दूर जाएगा, फिर नीरज चोपड़ा ने ऐसा क्यों नहीं किया?
Physics का नियम ऐसा कहता है. लेकिन Olympics Games में ना तो Neeraj Chopra और ना ही Arshad Nadeem ने Javelin 45 डिग्री के एंगल पर फेंका. इन दोनों ने ऐसा क्यों किया?
पेरिस ओलंपिक्स 2024 की बात करें, तो नीरज के थ्रो का एंगल था, करीब 36 डिग्री. वहीं अरशद नदीम ने 31 डिग्री के एंगल पर थ्रो किया था. ऐसे में सवाल आता है कि क्या किताबों वाली फिजिक्स में कोई झोल है? जो असल जिंदगी में ये लागू नहीं हो पा रही है. ये पूरा मामला समझने के लिए पहले समझते हैं कि किताब में 45 डिग्री का एंगल आता कहां से है?
किताब में जिस प्रोजेक्टाइल या प्रक्षेप्य - अपनी भाषा में कहें, तो जिस फेंकने वाली चीज की बात होती है, उसमें कुछ कंडीशन होती हैं. मसलन उसे जिस सतह से फेंका जाता है, उसका एंगल वहीं से लिया जाता है. माने कोई गेंद जिस सतह से फेंकी जाए उसी पर पहुंचे, ना कि जमीन से 4-5 फुट ऊपर. और उसका एंगल 45 डिग्री हो, तब वह सबसे ज्यादा दूरी तय करती है.
इससे कम एंगल होगा, तो गेंद अधिकतम दूरी तय करने से पहले ही जमीन पर गिर जाएगी. इससे ज्यादा एंगल होगा, तो गेंद ज्यादा ऊंचाई तक जाएगी. लेकिन जमीन पर तय की गई इसकी दूरी कम हो जाएगी. नीचे लगी तस्वीर से एक रफ्तार पर फेंकी गई, किसी चीज के एंगल और दूरी का रिलेशन समझा जा सकता है.
दरअसल होता ये है कि कोई चीज जब किसी प्रोजेक्टाइल की तरह फेंकी जाती है, जैसे क्रिकेट में गेंद फेंकी जाती है. तब उस चीज पर मेन दो तरह के बल लगते हैं. एक तो जिस फोर्स से यह फेंकी गई, दूसरा जो फोर्स गुरुत्वाकर्षण इस पर लगाता है. फर्ज करिए किसी आदमी के फेंकने का फोर्स फिक्स है. वहीं गुरुत्वाकर्षण बल भी फिक्स ही है. तो बदलने के लिए बचता है सिर्फ एंगल. इसे ही बदलकर, आप किसी फेंकी गई चीज की दूरी तय कर सकते हैं.
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अब वो अलग जोड़-घटाव है कि इस एंगल पर ऊपर की तरफ ज्यादा फोर्स हो जाएगा, इस एंगल पर नीचे की तरफ. लेकिन कुल मिलाकर हम ये समझते हैं कि एक बीच का एंगल निकलकर आता है. जिसमें ना तो गेंद ज्यादा ऊपर की तरफ जाती है, ना ही अधिकतम दूरी तय करने से पहले जमीन पर गिरती है. ये एंगल होता है 45 डिग्री का, जो आइडल कंडीशन पर काम करता है. अब आते हैं अरशद और नीरज के एंगल पर.
45 डिग्री की जगह 36 डिग्री क्यों?अब किताब से बाहर निकलकर पेरिस चलते हैं, मन में ही सही.
जैवलिन में जब कोई एथलीट थ्रो करता है, तो 45 डिग्री पर ना फेंकने के पीछे कुछ कारण हैं.
मसलन जिस पर हम पहले बात कर चुके हैं, आइडल कंडीशन. आइडल कंडीशन में कोई चीज जिस सतह से फेंकी जाती है. वह उसी सतह पर आकर गिरती है. लेकिन जैवलिन के मामले में यह थोड़ा अलग है. यह जमीन से कुछ फुट ऊपर से फेंकी जाती है. ऐसे में अगर ये 45 डिग्री पर फेंका गया, तो यह ज्यादा दूर जाने के बजाए पहले ही गिर जाएगा.
इसलिए हाइट के मुताबिक एथलीट्स अपना एंगल तय करते हैं. ताकि जमीन की ऊंचाई बढ़ने के मुताबिक सटीक एंगल पर भाला फेंका जा सके.
Neeraj Chopra, Arshad Nadeem के ऐसा करने की एक वजह ये भीवहीं एक दूसरा कारण है, जिसमें फिजिक्स के साथ-साथ बायोलॉजी भी जुड़ी है. ये बात है कि इंसानी शरीर किस एंगल पर ज्यादा ताकत के साथ कुछ फेंक सकता है? जवाब मिलता है 45 डिग्री के एंगल पर फेंकने पर जैवलिन पर इतना फोर्स नहीं लग पाता. जिसकी वजह से इसकी स्पीड कम हो जाती है. और अगर स्पीड कम हो गई, तो जैवलिन की दूरी बढ़ने की बजाय कम हो जाएगी. माने एंगल बढ़ाने से अगर दूरी बढ़ी भी, तो वह कम रफ्तार की वजह से कम हो जाएगी.
कुल मिलाकर अगर आपको कोई चीज 45 डिग्री पर फेंकनी है, तो सारी कंडीशन एकदम सटीक होनी चाहिए. नहीं तो फिर आपको मौजूदा कंडीशन के हिसाब से एंगल रखना होगा.
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