महीने के आखिर में जब सैलरी वाला मैसेज ‘टन्न’ से इन-बॉक्स में गिरता है, तब वो आवाज किसी कामकाजी जीव के जीवन में 'राग मेघ मल्हार' से कम नहीं होती होगी. लेकिन सैलरी के साथ एक समस्या भी है. ये आती तो है तो जाती भी है. कई बार तो आलम ये होता है कि महीने की ‘मझधार’ या कहें 15 तारीख को ही ‘मंथ एंड’ आ जाता है. ‘मंथ एंड’ माने महीने के अंत में जेब खाली होने का बेदर्द हादसा. ऐसे में इसके खिलाफ एक ही हथियार बचता है. सैलरी बढ़ाने के लिए बॉस से मोल-भाव (salary negotiation). बाकी अप्रेजल के दिन (appraisal day) ऑफिस में क्या सीन होता है, वो नीचे लगी फोटो से समझा जा सकता है.
सैलरी बढ़ाने की अगर ये ट्रिक्स मालूम होंगी तो जेब में होगा पैसा ही पैसा!
अमेरिकी सैलरी कोच जॉश डूडी ने इस बारे में बाकायदा एक किताब भी लिखी है. टाइटल है, 'Fearless Salary Negotiation.'
लोग तो ये भी मानते हैं कि सैलरी निगोशिएशन या मोल-भाव एक प्राचीन कला है. जिसे सीखने में ‘चांदनी चौक टू चाइना’ फिल्म के सिद्धू जैसी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है. तब जाकर कहीं ये ‘गुप्त विद्या’ अर्जित की जाती है. हां, इस बारे में बाकायदा कई किताबें भी लिखी गई हैं. जो बाजार में मौजूद हैं. तो हमने सोचा क्यों न आपको भी ये ‘गुप्त विद्या’ या कहें टिप्स बताई जाएं. ताकि आप भी अपने बॉस से सैलरी बढ़ाने की बात आसानी से कर पाएं.
अमेरिकी सैलरी कोच जॉश डूडी ने इस बारे में बाकायदा एक किताब भी लिखी है. टाइटल है, Fearless Salary Negotiation. हिन्दी में अनुवाद करने की कोशिश करें तो कह सकते हैं, “सैलरी के लिए बात करते टाइम घबराना नहीं है.”आइए 3 लेवल में ये कला समझते हैं.
सबसे पहले तो ये तैयारी करें कि क्या सैलरी सच में कम है? इसके लिए glasdoor, linkedin जैसी ऑनलाइन वेबसाइट्स का सहारा लिया जा सकता है. यानी पता लगाकर रख लें कि आपकी पोस्ट और फील्ड में औसत कितनी सैलरी दी जाती है. ये मोल-भाव के टाइम काम आ सकता है.
1. एक सीमा तय करें. जैसे कि मुझे इतनी बढ़त चाहिए. और हां, डूडी कहते हैं आंकड़े प्रतिशत (percentage) में बताएं जैसे 20-25 फीसद की बढ़त की मांग कर सकते हैं. (प्रतिशत में कहना शायद कूल लगता होगा)
2. दूसरी चीज है कंपनी के आर्थिक हालात समझना. हाल में कंपनी ने भारी मुनाफा कमाया हो तो ये सैलरी हाइक की बात करने का अच्छा मौका हो सकता है.
3. अपने काम का हिसाब रखें. सैलरी बढ़ाने की बात करते समय आप ये तो नहीं कह पाएंगे कि मैंने बहुत काम किया है, भर-भर के काम किया है. दिखाने के लिए कुछ ठोस तो होना चाहिए. इसलिए अपने काम का हिसाब रखें, ये भी 'कयामत की घड़ी' में काम आ सकता है.
लेवल-2: बात-चीतजिस बॉस के चुटकुलों पर साल भर झूठी हंसी की नुमाइश की हो उनके सामने सैलरी बढ़ाने की बात करना इतना भी आसान नहीं होगा. इसलिए कुछ टिप्स हैं जो इस काम को अंजाम देते वक्त अपनाई जा सकती हैं.
जैसे बात-चीत का टाइम ऐसा रखें जिस वक्त बॉस का मूड ठीक हो. सोमवार को तड़के पहली फुरसत में बॉस से पैसा बढ़ाने के लिए कहना शायद अच्छा आइडिया न हो.
1. अब वक्त है मैदान में उतरने का. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि शुरुआत थोड़ा ऊंची रखें. मतलब जितनी बढ़त की उम्मीद कर रहे हों उससे थोड़ा ज्यादा बोलें. लेकिन इतना नहीं कि सीधा बोल बैठें-
2. ये बात भी ध्यान में रखें कि बॉस बात मान ही जाएंगे इसकी गारंटी तो है नहीं. इसलिए एक पॉजिटिव तरीके से बात करें. मन मुताबिक सैलरी न मिले तो बीच का रास्ता निकालें.
3. एक टाइम लिमिट रखें. हो सकता है आपको तुरंत कोई जवाब न मिले इसलिए थोड़ा टाइम भी ले सकते हैं. 2-3 महीने, जो भी आपको ठीक बैठें.
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लेवल-3: आखिर में क्या?बॉस से बात-चीत के दो नतीजे हो सकते हैं. एक कि आपको बढ़त मिलेगी. दूसरा मंथ एंड का कोहराम जारी रहेगा, मतलब बॉस सैलरी बढ़ाने के लिए नहीं मानेंगे. लेकिन फिक्र की बात नहीं है. दोनों ही सूरत में कुछ न कुछ किया जा सकता है.
बात न बने तो?अगर बॉस नहीं माने तो भी ये हार नहीं है. इसको नकारात्मक तरीके से नहीं लेना चाहिए. साथ ही आप ‘शार्क टैंक’ शो की तरह काउंटर ऑफर भी दे सकते हैं. जैसे-
1. वर्क फ्रॉम होम लेने की बात करें.
2. काम का बोझ थोड़ा कम करने के लिए कहें.
3. एक-आध छुट्टियों के लिए कहें.
अब बचा काम प्रैक्टिस का. इतना सब प्लान बनाने का कोई फायदा नहीं होगा अगर आप बॉस के सामने ये सब बोल ही न पाएं. इसलिए इसकी प्रैक्टिस भी अपने किसी दोस्त के साथ कर सकते हैं. साथ ही उसे भी इस 'दिव्य कला' के बारे में जागरुक कर सकते हैं.
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