भारत ने अपने बेड़े में एक और न्यूक्लियर सबमरीन को शामिल कर लिया है. नाम है INS अरिघात (Nuclear Submarine INS Arighat). अरिघात को इंडियन नेवी (Indian Navy) में कमीशन किया गया है. 29 अगस्त को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) ने विशाखापत्तनम में INS अरिघात को इंडियन नेवी को सौंपा. जिसके बाद से भारत के 'न्यूक्लियर ट्रायड' (Nuclear Triad) को लेकर चर्चा काफी बढ़ गई है. कहा जा रहा है कि भारत का न्यूक्लियर ट्रायड अब पहले से और मजबूत हो गया है. ट्रायड की मजबूती पर लौटेंगे, पहले जानते हैं कि ये Nuclear Triad नाम की क्या होता?
क्या है 'Nuclear Triad' जिससे भारत की न्यूक्लियर पावर पर दुनिया की नजर रहने वाली है?
भारत में Nuclear Triad को Nuclear Command Authority (NCA) के तहत आने वाली Strategic Forces Command कंट्रोल करती है.

Nuclear Triad को आसान भाषा में समझे तो ये एक तरह का 3-D मिलिट्री फोर्स स्ट्रक्चर है. 3-D स्ट्रक्चर को एक लाइन में समझा जाए तो इसके तहत मिसाइल की तीन तरह की कैटेगरी हैं. यानी ये तिकड़ी है. इन सभी मिसाइलों में न्यूक्लियर वेपन स्ट्राइक करने की क्षमता होती है. मसलन,
- ICBMs (इंटरकॉन्टिनेंटल बैलेस्टिक मिसाइल): इसके तहत जमीन पर आधारित न्यूक्लियर मिसाइल्स आती हैं.
- SSBNs (Ship, Submersible, Ballistic, Nuclear): इस कैटेगरी में न्यूक्लियर मिसाइल से लैस सबमरीन को रखा जाता है.
- स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स: इसमें वो स्ट्रैटेजिक एयरक्राफ्ट आते हैं जिनमें न्यूक्लियर बम और मिसाइल शूट करने की क्षमता होती है.

Nuclear Triad का कॉन्सेप्ट दुनिया में न्यूक्लियर वेपन बनने के बाद डेवलप हुआ. जब बड़े-बड़े देशों के पास न्यूक्लियर वेपन की क्षमता हो गई तो इन देशों ने अपनी तीनों सेनाओं को मजबूती देने के लिए न्यूक्लियर वेपन का सहारा लिया. इस थ्योरी को भी एक नाम दिया गया. Credible Minimum Deterrence (CMD). माने किसी भी देश को खुद की रक्षा करने के लिए कम से कम एक लिमिट तक ऐसे हथियारों की क्षमता रखनी होगी.
भारत की ये मिनिमम लिमिट साल 2018 में पूरी हुई. जिसके बाद से भारत अपना Nuclear Triad पूरी तरह से ऑपरेशनल कर पाया. 2018 में INS अरिहंत लॉन्च करने के बाद भारत इस क्षमता तक पहुंचा. किसी भी देश की थल सेना, वायु सेना और नौसेना को न्यूक्लियर क्षमता प्रदान कर देना Nuclear Triad की क्षमता को दर्शाता है. माने इसमें तीन हिस्से होते हैं. इन तीनों को भी एक-एक कर समझते हैं.
जमीन परइसके तहत वो मिसाइल आती हैं जिन्हें जमीन से फायर किया जा सकता है. जैसे ICBMs (Inter-Continental Ballistic Missiles), SRBMs (Short Range Ballistic Missiles) व अन्य. ICBM मिसाइल की मारक क्षमता को काफी घातक माना जाता है. ये मिनटों में अपने टार्गेट पर अटैक कर सकती हैं. इसका सबसे सटीक उदाहरण है अग्नि-5 मिसाइल. जो कि 5,500 किलोमीटर तक अटैक कर सकती है.
भारत की जमीन से मार करने वाली कुछ अन्य मिसाइलों में पृथ्वी, आकाश और त्रिशूल जैसी मिसाइलें शामिल हैं.

इस कैटेगरी में SSBNs आते हैं. माने Ship Submersible Ballistic Nuclear Submarines. SSBN की लोकेशन ट्रैक करना मुश्किल होता है. इसलिए ये न्यूक्लियर हमले के समय में सेकेंड स्ट्राइक, माने अटैक का रिस्पॉन्स देने के लिए काम आती है.
इसके तहत INS अरिहंत आता है. जिससे K-15 सागरिका मिसाइल फायर की जा सकती है. इसकी रेंज 700 किलोमीटर है. अरिहंत से K-4 मिसाइल भी दागी जा सकती हैं. इनकी रेंज 3,500 किलोमीटर होती है.

30 अगस्त को कमीशन हुई INS अरिघात भी इसी कैटेगरी का हिस्सा है. अरिहंत की तुलना में अरिघात K-4 मिसाइलों को ले जाने के लिए ज्यादा उपयुक्त बताई जाती है.
आसमान में ताकतइसमें वो एयरक्राफ्ट शामिल हैं जिनसे न्यूक्लियर बम गिराए जा सकते हैं. इन्हें बॉम्बर एयरक्राफ्ट भी कहा जाता है. मसलन Sukhoi Su-30MKI, Mirage 2000H, SEPECAT Jaguar, और Rafale.

Nuclear Triad के बारे में इतनी सब जानकारी तो समझ ली. लेकिन किसी भी देश के लिए Nuclear Triad को एक्टिव करना इतना आसान नहीं है. भारत में भी ये इतना आसान नहीं है. भारत में Nuclear Triad को Nuclear Command Authority (NCA) के तहत आने वाली Strategic Forces Command कंट्रोल करती है. अब ये NCA क्या है?
Nuclear Command Authority (NCA) की स्थापना साल 2003 में की गई थी. ये देश के न्यूक्लियर हथियारों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार है. NCA के तहत दो तरह की काउंसिल होती है. पॉलिटिकल और एग्जीक्यूटिव. पॉलिटिकल काउंसिल के चेयरमैन प्रधानमंत्री होते हैं. ये काउंसिल ही न्यूक्लियर हथियार के इस्तेमाल पर फैसला ले सकती है.
एग्जीक्यूटिव काउंसिल के चेयरमैन नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर होते हैं. ये न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी के लिए इनपुट देती है और पॉलिटिकल काउंसिल के निर्देशों को लागू करती है.
भारत के अलावा इन देशों के पास क्षमताभारत के अलावा अमेरिका, रूस, चीन और पाकिस्तान के पास भी Nuclear Triad की क्षमता है. इसके अलावा इज़रायल के पास भी Nuclear Triad होने की बात कही जाती है, लेकिन इसकी कोई पुष्टि अभी तक नहीं हुई है. फ्रांस के पास भी पहले Nuclear Triad की क्षमता थी, लेकिन जब से फ्रांस ने ग्राउंड से लॉन्च करने वाली मिसाइलों को त्यागा है वो इस कैटेगरी से बाहर हो गया है.
Triad होने का फायदाNuclear Triad की क्षमता देशों को कई लेवल पर कई तरह की मजबूती प्रदान करती है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण है Balance of Power. भारत अपनी एक लंबी सीमा न्यूक्लियर क्षमता रखने वाले पाकिस्तान और चीन से साझा करता है. दोनों ही देश भारत के शत्रु देशों में गिने जाते हैं. किसी भी तरह का न्यूक्लियर हमला भारत को बड़ा नुकसान पहुंचा सकता है. ऐसे में न्यूक्लियर ट्रायड का होना काफी महत्वपूर्ण है. साथ ही दक्षिणी एशिया में चीन को काउंटरबैलेंस करने के लिए भारत का न्यूक्लियर ट्रायड एक बड़ा रोल प्ले करता है. माने ये पावर को बैलेंस करने के भी काम आता है.
Nuclear Triad सेकेंड स्ट्राइक की क्षमता में भी अहम रोल निभाता है. इसके साथ-साथ Credible Minimum Deterrence (CMD) के लिए भी काफी जरूरी होता है.
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