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90s में कॉमेडी का मतलब गोविंदा होता था, सिर्फ गोविंदा

गोविंद अरुण आहूजा ने अगले नाम के ए पहले नाम की पूंछ में लगा दिए. आज बड्डे है.

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क्लास एकदम फुल थी. एक्को बच्चा अपसेंट नहीं था. सिर्फ एक जन को छोड़कर. क्लास टीचर महोदय. इसीलिए मस्ती अपने चरम पर थी. मैं अपने केआरके छाप जोक सुना रहा था. सब हंस रहे थे. क्लास टीचर अंदर घुसे. सब सन्न. घुड़का "कौन है ये कर रहा है?" एक ज्वलनशील प्राणी सबकी क्लास में होता है. मेरे साथ भी था. इशारा कर दिया. अगले ही पल हम गुरुजी के सामने. उन्होंने पूछा "बड़ी खिसकढ़ी आ रही है. क्या बनोगे तुम?" मैंने मुंडी झुका रखी थी. पता नहीं शरीर के किस रोएं से आवाज निकल गई. गोविंदा. बस हम कूट दिए गए अदरक की तरह.
गोविंदा हमारे अंदर घुसा कैसे? वो ब्लैक एंड व्हाइट टीवी से शुक्रवार की रातों में इंजेक्ट होता था. जब रात साढ़े नौ बजे राजा बाबू, राजाजी, आंखें, साजन चले ससुराल, दूल्हे राजा आती थी. ये उस जमाने की बात है जब गोविंदा के पास हर हीरो से ज्यादा फिल्में थीं. और कॉमेडी का मतलब होता था गोविंदा. तब न पॉलिटिकली करेक्ट होने की हमारी उम्र थी. न माहौल में गुंजाइश.
चीची भैया से जो सबसे तगड़ा कनेक्शन पड़ता था वो ये कि गांव वाले छोकरे का बड़ा तगड़ा रोल करते थे. आंखें फिल्म याद है? उसमें तो गांव और शहर दोनों में फिट करने के लिए गोविंदा को डबल रोल में ठेल दिया था. "गउरीसंकर नाम है हमार" कहते कहते एक तरफ छिल गए. दूसरी तरफ चंद्रमुखी बुन्नू की जान खाए पड़ी थी. लेकिन जलवा ये था कि 2 नहीं, 4 रोल में भी गोविंदा को फिट कर देते तो देखने वालों का मजा दोगुने से चौगुना हो जाता.
जब डेविड धवन के साथ उनकी जोड़ी बनी तो फिर ऐसी ही फिल्में आईं. कि उस जुम्मे जब गोविंदा की फिल्म आई, अपन रात एक बजे तक जागने को मजबूर हो गए. आंखें इनकी जोड़ी की फिल्म थी जिसने सन 1993 में सबसे ज्यादा कमाई की. एक के बाद एक तकरीबन 17 फिल्में दोनों ने साथ कीं. जिनमें से ज्यादातर कॉमेडी थीं. राजा बाबू, कुली नंबर वन, साजन चले ससुराल, बनारसी बाबू, बड़े मियां छोटे मियां, हसीना मान जाएगी. ये सब इनकी ही उपज हैं.
आंटी नंबर वन में गोविंदा
आंटी नंबर वन में गोविंदा


नंबर वन वाली सारी सीरीज जबरदस्त थी. आंटी नंबर वन, अनाड़ी नंबर वन. साल 2000 रिकॉर्ड था. गोविंदा की 6 फिल्में आईं इस साल. हद कर दी आपने और जिस देश में गंगा रहता है इसी में थीं. इसी साल हमारा दिल भी टूटा पहली बार.जब वो विलेन का रोल किए. फिल्म शिकारी में. हाय दइया. अपने हीरो को पिटता देखने की हिम्मत न थी. फिर भैया चीची ने इत्ती बड़ी गलती कर डाली जो इनकी फिल्मी दुनिया की लंका लगा गई. ताल, देवदास और गदर पिच्चर में हीरो बनने से हाथ खड़े कर दिया. इन फिल्मों का क्या हुआ, ये इतिहास है.
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तब तक हमऊ थोड़ा थोड़ा समझदार हो चुके थे. कॉमेडी का लेवल भी गहरा गया था. गोविंदा चलताऊ हो चले थे. भागमभाग में भी महफिल अक्षय कुमार लूट ले गए. पार्टनर भी कुछ खास मजा नहीं दिलाइस. चल चला चल और डू नॉट डिस्टर्ब के बाद तो रही सही उम्मीद भी खत्म हो गई. इसी बीच उनके गरम मिजाज़ की खबरें भी आने लगीं. कि कभी किसी को कंटाप मार दिया. कभी किसी को धक्का दे दिया.
भागम भाग में गोविंदा
भागम भाग में गोविंदा


उसके बाद किल दिल आई भाई साब. भले ये फिल्म फेल हो गई लेकिन गोविंदा काम कर गए. मगर वो भौकाल नहीं लौटेगा जो 90s में था. हर डायलॉग पर कहकहे लगते थे. सीताराम काका को गोविंदा के डायलॉग रट जाते थे. उनको हंसी से ज्यादा उनका एक्शन पसंद था "कइसा उछल के मारता है गोबिंदवा." ललन हलवाई को गोविंदा का डांस पसंद था. कहिन जब खनमन खनमन करके ठांय से लात मारता है तो गुंडा की तबियत हरी हो जाती है. ये सब होता था. होता है. उस पीढ़ी के लोगों को गोविंदा अब भी उतने ही पसंद हैं. बस स्मार्ट जमाने में इतना रिपीट होता है मामला कि चीजें घिस जाती हैं. नहीं तो हफ्ते में एक दिन गोविंदा देखने को मिले. अब भी लाइन लग जाएगी. भला हो फिल्मी चैनल वालों का. जिन्होंने उनको 'सैंडविच' से सस्ता बना दिया.


विडियो- Govinda की ‘Coolie No. 1’ की ख़ास बातें, जिसने फिल्म को सुप्पर-डुप्परहिट बनाया था