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मुस्लिम नरसंहार के नारों पर पीएम मोदी आखिर चुप क्यों हैं?

कार्यक्रम के आयोजकों स्वामी प्रबोधानंद का नाम बताया जा रहा है.

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कार्यक्रम के आयोजकों स्वामी प्रबोधानंद का नाम बताया जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कितने ही ऐसे भाषण मिल जाएंगे जब अंतर्राष्ट्रीय मंचों से दुनिया को उन्होंने भारत का दर्शन बताया. वो दर्शन जिसमें शांति की बात होती है. बुद्ध और गांधी की बात होती है. पीएम मोदी वाली तुकबंदी में कहें तो भारत बुद्ध का देश है, युद्ध का देश नहीं हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अगर वाकई ऐसा है, तो प्रधानमंत्री को बार बार ये कहना क्यों पड़ता है? प्रधानमंत्री ही क्यों, हममें से ही कई लोग बहुत कोशिश करते हैं ये साबित करने की, कि हम पाकिस्तान, या अफगानिस्तान या चीन या उन तमाम देशों से अलग हैं जो धर्म के नाम पर या ज़मीन के लिए हिंसा और युद्ध करने को आतुर रहते हैं. हमारा सवाल आज यही है - कि हाथ के इस कंगन को बार बार आरसी में क्यों देखना पड़ता है? हमेशा की तरह एक बात हम शुरुआत में ही बता दें - आसान जवाब की उम्मीद मत रखिएगा. लेकिन आपकी सोचने में मदद करने के लिए, या कहिए सोचने को मजबूर करने के लिए हम आपको एक धर्म संसद की कहानी सुनाना चाहते हैं. इस कहानी को सुनने के बाद आप खुद से ये सवाल पूछ सकते हैं कि हम बार बार खुद को शांतिपूर्ण साबित करने की इतनी कोशिश क्यों करते हैं. ये कथित धर्म संसद हुई थी हिंदू धर्म के नाम पर. अब हिंदू धर्म को लेकर तो आपको पीएम मोदी के विचार मालूम ही होंगे. वो कितनी ही चुनावी रैलियों में कांग्रेस को इस बात के लिए कोस चुके हैं कि उन्होंने ''हिंदू'' शब्द के साथ आंतकवाद जोड़ने का पाप किया है. हमें याद आती है प्रधानमंत्री की 2019 में महाराष्ट्र के वर्धा की चुनावी रैली. जब मंच से प्रधानमंत्री कहते हैं कि हिंदू आतंकवाद कहकर कांग्रेस ने देश की मूलधारा को कलंकित किया है. माने, प्रधानमंत्री भी मानते हैं कि अगर हिंदुओं के साथ हिंसा शब्द जुड़े तो वो दुनिया की नज़रों में गिरते हैं. और तब पीएम ये भी कहते हैं कि अंग्रेज़ इतिहासकारों ने भी कभी हिंदुओं को हिंसक नहीं माना. तो प्रधानमंत्री मोदी के लिए हिंदू धर्म का एक ऊंचा स्थान है. जिसपर वो कोई लांछन नहीं झेल सकते. तो फिर ये कैसे हो गया कि हिंदू धर्म के नाम पर खुलेआम मुसलमानों के नरसंहार की बात हुई. लेकिन पीएम मोदी की पार्टी भाजपा के राज वाले उत्तराखंड ने एक मामला तक दर्ज नहीं किया. धामी साहब ! क्या आप ये सब सुन पा रहे हैं? उत्तराखंड के हरिद्वार में वेद निकेतन में तीन दिन तक धर्म संसद नाम से एक आयोजन हुआ. 17 से 19 दिसंबर के बीच. इस कार्यक्रम के आयोजकों में हिंदू रक्षा सेना नाम के संगठन के प्रमुख स्वामी प्रबोधानंद का नाम आ रहा है. उनके अलावा जूना अखाड़ा, निरंजनी अखाड़ा जैसे कई अखाड़ों से जुड़े लोगों और हिंदुत्ववादी नेताओं ने हिस्सा लिया. मीडिया रपटों के मुताबिक दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता रहे अश्विनी उपाध्याय और बीजेपी की महिला मोर्चा से जुड़ी नेता उदिता त्यागी ने भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लिया. धर्म संसद में क्या हुआ, इस पर आने से पहले कार्यक्रम में शामिल बड़े नामों से जान-पहचान कर लेते हैं. एक बड़ा नाम - स्वामी प्रबोधानंद, जैसा हमने पहले बताया हिंदू रक्षा सेना नाम के संगठन से जुड़े हैं और इस संगठन का बेस उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी में बताया जाता है. स्वामी प्रबोधानंद की उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ दो फोटो भी मीडिया में चल रही हैं. एक फोटो जनवरी 2018 की बताई जा रही है. और दूसरी अगस्त 2020 की. फोटो की पुष्टि करने के लिए और आयोजन के बारे में और जानकारी के लिए हमने स्वामी प्रबोधानंद को फोन किया. फोन का जवाब तो उन्होंने दिया, लेकिन जब फोटो पर सवाल पूछा तो उनकी तरफ से चुप्पी के अलावा कुछ सुनाई नहीं दिया. प्रबोधानंद के अलावा, एक और बड़ा नाम है यति नरसिंहानंद गिरी का. कुछ दिन पहले ही ये जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर बने थे. यूपी के ग़ाजियाबाद के डासना में पीठाधीश हैं. मंदिर में पानी पीने आए मुस्लिम बच्चे से मारपीट की बात हो या फिर धर्म परिवर्तन का आरोप लगाना. या फिर देश के शीर्ष राजनेताओं और महिलाओं के बारे में गलीच बातें करना, यति नरसिंहानंद हर जगह अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं. इसीलिए इस कार्यक्रम में भी थे. हाल ही में वसीम रिज़वी से धर्म परिवर्तन कर बने जगदीश नारायण त्यागी भी इस कार्यक्रम में थे. अब आते हैं कार्यक्रम के एजेंडे पर. तीन दिन की धर्म संसद के लंबे लंबे वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं. मतलब कुछ भी छिपकर नहीं हुआ. सब कुछ खुलेआम. वीडिया बनाकर इंटरनेट पर प्रसारण करवाया गया. तीन दिन का पूरा एजेंडा दो बिंदू में समेट कर बताया जा सकता है. पहला बिंदू - हिंदू धर्म खतरे में है और सनातन वैदिक राष्ट्र बनाना है. और दूसरा इस्लाम और मुस्लिमों को हटाना है. धर्म संसद में सनातन वैदिक राष्ट्र बनाने पर सहमति हुई, शपथ ली गईं. एक ऐसा राष्ट्र जहां कोई मदरसा ना हो, कोई मस्जिद ना हो. इस कार्यक्रम में इस्लाम के लिए कोढ़ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया. साध्वी अन्नूपूर्णा उर्फ पूजा शकुन पांडे का ने बयान बयान दिया –
 अगर कोई मेरे सनातन धर्म पर या हिंदुत्व पर खतरा बनकर मंडराएगा तो मैं हथियार उठाऊँगी भले ही मुझे गोडसे की तरह कलंकित कर दो. भले ही ये (मुसलमान) बढ़ रहे हैं लेकिन अगर हम जाग गए तो जल्द ही यह सनातन वैदिक हिन्दू राष्ट्र बनेगा.
एक महिला 20 लाख मुस्लिमों को मारने के लिए उकसा रही है. किसी छोटे मोटे अपराध के लिए नहीं नरसंहार के लिए उकसा रही है. लेकिन क्या हरिद्वार की पुलिस ने उन पर कोई केस दर्ज किया. जवाब है नहीं. हमने हरिद्वार के एसपी सिटी स्वतंत्र कुमार को फोन किया. पूछने के लिए कि क्या कार्रवाई हुई है. मामला उनके इलाके का है, कार्रवाई करना उनकी जिम्मेदारी बनती है. इसलिए हमने पूछा कि क्या कार्रवाई हुई है. एसपी सिटी ने कहा कि पुलिस की पैनी नज़र बनी हुई. हमने पूछा कितनी पैनी? क्या पैनापन इतना था कि एक कार्यक्रम में भड़काऊ भाषणबाज़ी हो गई, पुलिस को पता ही नहीं, और अब जब हर जगह वीडियो वायरल है तो पुलिस केस तक दर्ज नहीं कर रही. एसपी ने फोन काट दिया. जवाब देते ना बना. हमने दोबारा किया, ये पूछने के लिए क्या कोई केस भी दर्ज हुआ है. एसपी ने फोन नहीं लिया. हमने इंडिया टुडे से जुड़े स्थानीय संवाददाता से जानकारी मांगी, तो उन्होंने बताया कि कोई केस अभी दर्ज नहीं हुआ है. आप समझ रहे हैं न पुलिस और सरकार का पैनापन. हम आपको ऐसे दर्जनों मामले गिना सकते हैं जब इस तरह की बयानबाजी के आधार पर गिरफ्तारियां हुईं हैं या UAPA जैसी धाराएं लगाई गई हैं. ऐसे मामलों की संख्या तो और बड़ी है, जब बयानों में हिंसा की कोई बात नहीं हो रही थी. संविधान की दुहाई दी जा रही थी. लेकिन फिर भी साज़िश का आरोप लगाकर uapa की धाराएं ठूंस दी गईं. किसी क्रिकेट मैच में पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाने के आधार पर इसी देश में UAPA लग जाता है. लेकिन तथाकथित साध्वी मंच पर खड़ी होकर एक समुदाय को मारने की बात कहती है और उस पर केस तक दर्ज नहीं होता है. उत्तराखंड में सरकार  बीजेपी की, बीजेपी से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदू धर्म को शांतिप्रिय भी मानते हैं और दुनिया में भारत के शांतिप्रिय होने की छवि भी पेश करते हैं. तो प्रधानमंत्री को भी गौर करना चाहिए कि धर्म के नाम पर हिंसा भड़काने वाले इन लोगों को क्यों बचाया जा रहा है. कौन इनको बढ़ावा दे रहा है. इस मामले में कैसा केस दर्ज होना चाहिए, किस तरह की सजा का प्रावधान है और क्या पुलिस के अलावा कोई दूसरी एजेंसी भी केस दर्ज कर सकती है क्या. ये सब हमने कानून के जानकार और सुप्रीम कोर्ट में वकील गौरव भारद्ववाज से पूछा. उन्होंने हमें बताया –
ऐसे मामलों में IPC 124A, 153 A, 153B, 295A, धाराओं में में केस बनता है. आर्टिकल 19 में सभी को अपनी भवनाएं ज़ाहिर करने का अधिकार है. लेकिन सीमाएं भी हैं. अगर कोई किसी समाज के ख़िलाफ़ हिंसा की बात कर रहा है तो प्रशासन के पास अधिकार है कि वो यहां ख़ुद से एक्शन ले सकता है. भले ही एफ़आईआर न हुई हो.
अब हरिद्वार से आते हैं, दिल्ली. एक दूसरे वीडियो की बात. सुदर्शन चैनल के एडिटर इन चीफ सुरेश च्वहाणके अपने ट्वीटर हैंडल पर 19 दिसंबर को एक वीडियो डालते हैं. और लिखते हैं मेरे साथ हिंदू राष्ट्र की शपथ लेते हुए हिंदू युवा वाहिनी के शेर और शेरनियां. वीडियो में दिख भी रहा है कि हिंदू राष्ट्र की शपथ ली जा रही है. और पीछे हिंदू युवा वाहिनी का पोस्टर लगा है. आपको मालूम ही होगा कि हिंदू युवा वाहिनी की शुरुआत योगी आदित्यनाथ ने की थी. बस इतना याद कर लीजिए और फिर धर्म की राजनीति को समझने की कोशिश करिए. इतिहास की खिड़की से झांकने पर हम पाते हैं इतिहास में सबसे ज्यादा खून धर्म के नाम पर बहा है. चाहे वो येरूशलेम पर कब्जे के लिए हो या फिर बाबरी मस्जिद को गिराने के लिए. धर्म के झंडे ढोने वाले हाथ अक्सर खून से रंगे देखे गए हैं. और हम ये भी जानते हैं कि जर्मनी में यहूदियों का जो नरसंहार हुआ, वो सीधे ऑशवित्स में शुरू नहीं हुआ था. पहले छोटे छोटे कार्यक्रम हुए. फिर बड़े कार्यक्रम हुए. लोगों को शपथ दिलाई गई. यहूदियों को बदनाम किया गया. और फिर जाकर उन्हें ट्रेन में लादकर मारने ले जाया गया. आज जिस जमीन पर हम और आप खड़े हैं, वहां सभ्यता के अंकुर करीब साढ़े पांच हजार साल पहले फूटे. इस धरती ने दुनिया के चार बड़े धर्मों को जन्म दिया. बाहर से आए लोगों ने यहां रहने वालों को नदी का नाम दिया. सिंधु के नाम पर हिन्दू कहा. हमारी मनीषा की एक धारा ऐसी भी रही जिसने हर किस्म के विचारों का स्वागत किया. जिसने यह तस्लीम किया कि ईश्वर तक पहुंचने के अनगिनत रास्ते हैं. एक तरफ वेदों सम्मत हवन थे तो दूसरी तरफ कपाल क्रिया करते वाममार्गी. जहां हर गांव के अपने ग्राम-देवता हैं और दूसरी तरफ शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन. वेदों को ज्ञान का अंतिम स्त्रोत मानने वालों को भी श्रमण और लोकायत जैसी नास्तिक परम्परा के विद्वानों के लिए 'महर्षि' शब्द का उपयोग करते देखे गए. एक सभ्यता के तौर पर हमारा सबसे बड़ा हासिल यही है कि हर किस्म के विचार ने यहां अपने लिए दो पंजे टिकाने भर जगह तलाश ही ली. यह देश बहस-ओ-मुबाइश का देश है. शास्त्रार्थ की परम्परा का देश है. धर्म के तमाम पहलुओं पर खुली बहस हो किसे दिक्कत है. लोग जुटें और खूब चर्चा हो. लेकिन जब धर्म संसद के नाम पर मरने-मारने की कसमें खाई जाने लगें तो डर लगता है. कि ये पागलपन कहां जाकर रुकेगा.