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नीतीश के बेटे निशांत कुमार राजनीति में आ रहे हैं, लेकिन इसके पीछे है कौन?

2020 विधानसभा के बाद कमजोर दिख रही JDU को 2024 लोकसभा चुनावों के नतीजों ने ऑक्सीजन दे दिया है. केंद्र में BJP की सरकार उन पर निर्भर है. पार्टी अभी मजबूत स्थिति में हैं. उनकी बारगेनिंग पावर मजबूत हैं. ऐसे में Nitish Kumar के आसपास के लोग उन पर Nishant को लॉन्च करने का दबाव बना रहे हैं.

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निशांत की सियासी लॉन्चिंग अब तय हो गई है. (एक्स)

बिहार में इन दिनों दो तस्वीरों की बड़ी चर्चा है. एक 15 मार्च को सीएम हाउस से होली मिलन की तस्वीर. और दूसरा उसके अगले दिन जदयू कार्यालय के बाहर लगा एक पोस्टर. दोनों में एक साम्य है. इनके तार एक शख्स से जुड़े हैं. जिनकी सियासी लॉन्चिंग अब तय मानी जा रही है. नाम है निशांत कुमार. पहले इन तस्वीरों की पहेली सुलझाते हैं. क्योंकि कहा गया है कि एक तस्वीर जो बयां करती है हजार शब्द नहीं कर पाते. इनके सहारे सीएम नीतीश कुमार के बेटे निशांत की लॉन्चिंग की स्टोरी भी डिकोड हो जाएगी.

सीएम हाउस से वायरल तस्वीर 

सीएम हाउस में नीतीश कुमार ने 15 मार्च को होली मिलन समारोह रखा था. इस समारोह में निशांत कुमार नीतीश कुमार की कोर टीम के सदस्यों के साथ गलबहियां करते दिखे. निशांत के हाथ विजय कुमार चौधरी और संजय कुमार झा के कंधे पर दिखे. इस तस्वीर के बाद कहा जाने लगा है कि ये होली मिलन निशांत की लॉन्चिंग के लिए ही रखा गया था. नीतीश कुमार यूं तो सीएम हाउस में होली मनाते रहे हैं. लेकिन पिछले 20 साल में पहली बार सीएम आवास में इस लेवल का होली मिलन कार्यक्रम मनाया गया है. इस आयोजन में प्रदेश भर से एक हजार से ज्यादा जदयू के नेता और कार्यकर्ता जुटे थे. 

माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने इस जुटान के जरिए अपने समर्थकों तक मैसेज पहुंचा दिया है कि जदयू का भविष्य अब निशांत होंगे. वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं 

इस होली मिलन समारोह में वो लोग बुलाए गए थे जो पिछले 25-30 सालों से नीतीश कुमार से जुड़े हैं. ये नीतीश कुमार के लोग हैं. इनकी लॉयल्टी इस हद तक है कि नीतीश अगर कह दें कि सूरज पश्चिम से उगता है तो उनके लिए यही सच होगा. उस कैडर को बुला कर मैसेज दिया गया कि जदयू का फ्यूचर अब निशांत कुमार हैं. इनको इसलिए लाया गया है ताकि पार्टी को बचाया जा सके और आगे ले जाया जा सके. अभी पार्टी मजबूत स्थिति में है. और यही अवसर है कि अगली पीढ़ी को विरासत सौंपने की तैयारी की जाए.

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जदयू कार्यालय के बाहर लगे पोस्टर

होली मिलन समारोह के अगले दिन जदयू कार्यालय के बाहर एक पोस्टर चस्पा किया गया. पोस्टर पर लिखा है, बिहार की मांग सुन लिए निशांत बहुत बहुत धन्यवाद. इससे पहले निशांत के पॉलिटिकल डेब्यू की मांग करने वाले पोस्टर्स भी लगे थे. जेडीयू कार्यकर्ता लंबे समय से ये डिमांड करते आ रहे हैं. होली मिलन समारोह और उसके बाद लगे ये पोस्टर्स जो इशारा करते हैं उसको जेडीयू के एक नेता ने ऑन कैमरा स्वीकार किया है. 

जदयू के रणनीतिकार और नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह ने दावा किया कि निशांत की एंट्री हो गई है. बस अब औपचारिक एलान शेष है. इसके अलावा नीतीश कुमार की खास माने जाने वाली मंत्री लेसी सिंह ने अपने सोशल मीडिया पर दो तस्वीरें पोस्ट की है. पहली तस्वीर में नीतीश कुमार के साथ वो और उनकी बेटी और दामाद दिख रहे हैं. दूसरी तस्वीर में वो निशांत के साथ नजर आ रही हैं. 

इन घटनाक्रम पर वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल बताते हैं,

 अब तक जेडीयू नेताओं में निशांत के साथ तस्वीर शेयर करने की होड़ नहीं थी. न ही निशांत कभी जेडीयू नेताओं के साथ नजर आते थे. लेकिन पहली बार निशांत आकर्षण का केंद्र बने थे. लोग उनके साथ तस्वीर खिंचाने को लेकर बेताब दिख रहे थे. निशांत के राजनीति में आने का फैसला नीतीश कुमार को लेना है. लेकिन जो तस्वीरें सीएम हाउस की चारदीवारी से बाहर आ रही हैं. वो साफ-साफ संकेत दे रही हैं कि नीतीश के उत्तराधिकारी निशांत बनने जा रहे हैं.

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निशांत कुमार की लॉन्चिंग क्यों?

बिहार की सभी पार्टियों में सेकेंड जेनरेशन ने कमान संभाल ली है. राजद के प्रदेश अध्यक्ष भले लालू यादव हो लेकिन पिछले महीने एक बैठक कर तेजस्वी को सारे फैसले लेने के अधिकार दे दिए गए. चिराग पासवान ने अपनी पिता की विरासत को संभाल लिया है. जीतन राम मांझी भी अब अपने बेटे संतोष सुमन को आगे कर रहे हैं. बीजेपी सम्राट चौधरी को प्रोजेक्ट कर रही है. ऐसे में जेडीयू को भी उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाले लीडर की तलाश है. विजय कुमार चौधरी और संजय कुमार झा जैसे नेता जेडीयू की विरासत को आगे नहीं ले जा सकते. जेडीयू नीतीश कुमार की पार्टी है. और उनका कोर वोटर लव-कुश किसी दूसरी जाति के नेता के नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगा. 

नीतीश कुमार ने नेतृत्व को लेकर इसके पहले कई प्रयोग किए लेकिन उन्होंने जिन पर भरोसा जताया. वो पार्टी में एक पैरलल पावर सेंटर बनाने में जुट गए. और उनको पार्टी के बाहर जाना पड़ा. बाद में सरेंडर करने के बाद उनमें से कुछ की वापसी हुई. इस फेहरिस्त में उपेंद्र कुशवाहा, ललन सिंह, आरसीपी सिंह, प्रशांत किशोर और जीतन राम मांझी जैसे नाम शामिल हैं. दरअसल एक मजबूत जनाधार वाला नेता कभी नहीं चाहता कि उसके अलावा कहीं और पावर सेंटर बने. नीतीश कुमार इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. व्यक्ति और परिवार केंद्रित पार्टियों में दूसरा पावर सेंटर नहीं होता. 

2020 विधानसभा के बाद कमजोर दिख रही जेडीयू को 2024 लोकसभा चुनावों के नतीजों ने ऑक्सीजन दे दिया है. केंद्र में बीजेपी की सरकार उन पर निर्भर है. पार्टी अभी मजबूत स्थिति में है. उनकी बारगेनिंग पावर मजबूत है. ऐसे में नीतीश कुमार के आसपास के लोग उन पर निशांत को लॉन्च करने का दबाव बना रहे हैं. इसमें उनके परिवार, जाति और जिले से जुड़े करीबी लोग शामिल हैं. और शायद अब नीतीश कुमार भी उत्तराधिकार के प्रयोग को लेकर थक चुके हैं. 

परिवारवाद के आरोपों का क्या?

नीतीश कुमार परिवारवाद को लेकर राजद पर निशाना साधते रहे हैं. ऐसे में अब ये सवाल नीतीश कुमार पर भी उठेंगे अगर निशांत कुमार राजनीति में आते हैं. इस सवाल के जवाब में मनोज मुकुल बताते हैं, 

अभी निशांत कुमार को पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाती है या उनको चुनाव लड़ाया जाता है तो नीतीश कुमार पर परिवारवाद का आरोप लगेगा. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. वो चुनाव तक बिना किसी पद के पार्टी के लिए काम करेंगे. पार्टी के प्रवक्ताओं से संवाद करेंगे. पार्टी की कोर ग्रुप से तालमेल बिठाएंगे. वॉर रूम की मॉनिटरिंग करेंगे. चुनाव लड़ने के लिए बनने वाली रणनीतियों को समझेंगे. यानी जो काम पार्टी के लिए नीतीश कुमार करते रहे हैं उसकी ट्रेनिंग लेंगे.

अगर चुनाव नतीजे जेडीयू के फेवर में रहे. तो फिर निशांत को पार्टी या सरकार में कोई बड़ी भूमिका दी जा सकती है. इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े संतोष सिंह बताते हैं, 

फिलहाल तो जदयू को एक नेता चाहिए था जो उन्हें मिल गया है. अब आगे जदयू में उनकी स्वीकार्यता किस तरह से होती है इस पर चीजें निर्भर करेंगी. नीतीश कुमार की पार्टी अगर विधानसभा चुनाव में बीजेपी से बेहतर प्रदर्शन करती है तो पार्टी निशांत के लिए मुख्यमंत्री पद भी मांग सकती है. ये चीजें आगे चलकर तय होंगी.

मनोज मुकुल भी इस तर्क से सहमत नजर आते हैं. साथ ही वो एक इंट्रेस्टिंग बात इसमें जोड़ते हैं. अगर अभी निशांत को पार्टी या सरकार में कोई बड़ी भूमिका दी जाएगी तो उनकी तुलना तेजस्वी यादव से होगी. फिर नीतीश बनाम तेजस्वी न होकर लड़ाई तेजस्वी बनाम निशांत हो जाएगी. तेजस्वी के पास दस साल का अनुभव है. डिप्टी सीएम रहे हैं. उनको पूरा बिहार जानता है. फिर निशांत उनके सामने कमजोर पड़ जाएंगे.

कुछ सियासी विश्लेषकों का मानना है कि अगर निशांत को चुनाव लड़ाया जाता है तो इस बात को बल मिल जाएगा कि नीतीश कुमार पूरी तरह से फिट नहीं हैं. जिसका आरोप विपक्ष लगाता रहा है. फिलहाल लग रहा है कि निशांत पॉलिटिक्स में आ गए हैं. और बैकडोर से पार्टी और संगठन का काम देखेंगे. हालांकि कुछ राजनीतिक जानकार दावा कर रहे हैं कि निशांत कुमार को हरनौत विधानसभा से चुनाव लड़ाया जा सकता है. जहां से शुरुआती दो असफलताओं के बाद नीतीश कुमार पहली बार विधायक बने थे. हालांकि इन दावों में अभी बहुत दम नहीं है. 

जदयू निशांत को सीधे-सीधे कोई बड़ी जिम्मेदारी भले ना दे. उनके लिए कोई सेफ पैसेज बनाया जाएगा. लेकिन इतना तय है कि अब जदयू का नेतृत्व कोई बाहरी नहीं करेगा. कुछ दिन पहले एक पूर्व अधिकारी मनीष वर्मा की बात चली थी. लेकिन अब इन सब अटकलों पर विराम लग गया है. फिलहाल तो तस्वीरें यही कह रही हैं कि निशांत ही नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी होने जा रहे हैं.

वीडियो: बिहार चुनाव के बाद नीतीश कुमार के साथ क्या करेगी बीजेपी? पप्पू यादव ने बताया है