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आपबीती: NIT के लड़के आधी रात को जा पहुंचे भानगढ़

इनका भूतों के मामले में मानना था कि मानो या न मानो ,पर ऊंगली न करो, फिर भी जा पहुंचे भानगढ़.

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DSC_0496अमित पाण्डेय एनआईटी कुरुक्षेत्र में पढ़ते हैं. अपने दोस्तों के साथ राजस्थान का भानगढ़ किला घूमने जा पहुंचे. हमेशा से सुन रखा था भुतहा सा है. पर जैसा पाया उसे लिख भेजा. साथ में वीडियो बनाना भी न भूले. हमसे साझा किया. पढ़िए क्या लिखते हैं. और आपके पास भी कुछ साझा करने को हो तो भेज दीजिए lallantopmail@gmail.com पर. 


NIT कुरुक्षेत्र के इंजीनियरिंग के 5 लड़के, होली में कॉलेज में एक हफ्ते की छुट्टी हुई,बाकी लोग गए अपने-अपने घर. लेकिन इनके मंसूबे कुछ और ही थे. उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के रहने वाले अमित पाण्डेय ने बचपन से ही अपने गांव में भूत-प्रेत के किस्से सुन रखे थे. लेकिन पढ़ा-लिखा लड़का ये सब मानने को तैयार न था, जिज्ञासा का कीड़ा अन्दर था ही और छुट्टी भी थी, ऊपर से साथ मिल गया नजीबाबाद के दिलीप किशोर सिंह का. इन दोनों ने मिल कर तीन और दोस्तों को तैयार किया, और निकल दिए एशिया की सबसे भुतही जगह पर रात गुजारने, भानगढ़. पियूष वर्मा जो बरेली से हैं. इनके पिताजी रेलवे के एक आला अधिकारी हैं, इसलिए ये AC में पैदा हुए हैं और स्लीपर क्लास का दरवाजा भी नहीं लांघा था, जनरल तो शायद देखा ही नहीं था. सौरभ कुशवाहा कानपुर से हैं और बहुत ही इमोशनल इंसान हैं, रहन-सहन बोली-भाषा ऐसी कि बस एक इंसान से मिल कर पूरे कानपुर की फील आ जाए. इनके एक मामा हैं जो IIT से पढ़े हैं बड़े करीबी हैं वो सौरभ के. IIT वाले वैसे तो बड़ी इंटेलेक्चुअल और उलझी हुई बातें करते हैं पर भूत प्रेत के बारे में उन्होंने एक बड़ी ही सुलझी हुई सलाह दी थी इनको कि "मानो या न मानो ,पर ऊंगली न करो!" और इस नसीहत को अब तक गठरी में बांधकर जीते आए थे कुशवाहा जी. पांचवे किरदार का नाम है मोहित कर्दम, ये गाजियाबाद से हैं लेकिन अपने आपको NCR का कूल लौंडा बताने की जगह UP का बताने में ज्यादा गर्व महसूस करते हैं. तो इस तरह से ये पंच मण्डली तैयार हुई, बड़े सवेरे एक EMU थी कुरुक्षेत्र से दिल्ली के लिए, सुबह उठना तो असंभव ही है इंजीनियरिंग के बन्दों के लिए तो बिना सोए ट्रेन पकड़ना सही विकल्प था. कुछ और बकलोली करने की सूझी तो ये निर्णय लिया की पैसे देकर सफर नहीं करेंगे. खाना भी लंगर, दरगाह, गांव. कहीं भी खाते हुए चलेंगे, 'Humble begging' ये नाम दिया था इसको दिलीप किशोर ने. बिना टिकट ट्रेन में चढ़ के, ट्रक में लिफ्ट लेके, जीप के ऊपर बैठके, जैसे-तैसे रात में 1 बजे ये पहुंचे भानगढ़. रास्ते में जिसे भी बताते कि भानगढ़ जा रहे वो ऐसे देखता जैसे इनके वापस आने की कोई उम्मीद न हो. कई सारे सलाह मशवरे भी मिले कि सुबह चले जाना, रात हमारे यहां रुक जाओ. भानगढ़ के किले के भुतहा बनने की जो कहानियां ये इंटरनेट पर पढ़ के गए थे, वो ट्रक ड्राइवर ने इन्हें फिर से सुना दी. कुल मिला के ये लोग दीवार फांद के रात में 2 बजे अन्दर पहुंचे. अंदर शहर से खंडहर बने मकानों को देखकर और चमगादड़ के झुंड के झुंड देखकर एक बार को फटी तो इनकी लेकिन मन था की अब आ गये हैं तो रहस्य सुलझा के ही जाएंगे.

पूरा एक शहर बसा था अन्दर, पतली सड़क के दोनों तरफ बाजार. जिनकी छत किसी तांत्रिक के श्राप की वजह से ढह चुके थे. एक अजीब सा रहस्यमयी दृश्य बना रहे थे. दिलीप ने एक दो दीवारों पर चढ़ने की कोशिश करनी चाही तो अपने IIT वाले मामा जी की सलाह को दिल के किसी कोने में दबाए हुए कुशवाहा ने रोक दिया, क्या पता कब कौन सी पिशाचिनी दिलीप के इस साहसिक कृत्य से क्रुद्ध हो जाये और हम सब को पेल दे. दिलीप उतर भी गया क्योंकि फिसलन बहुत थी , भूत पिशाच तो बजरंग बली के घनघोर नारंगी रंग की टी शर्ट को देखकर ही ना पास आते उसके. घनघोर नारंगी से मेरा मतलब है की कैमरा ब्लैक एंड वाइट मोड में करने के बाद भी नारंगी ही दिखने वाला नारंगी रंग की टी-शर्ट जो आंखों में दर्द पैदा कर दे.

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बाजार को पीछे छोड़ते हुए हम राजमहल की तरफ बढ़ रहे थे तभी हुआ वो जिसकी उम्मीद में ये आए थे! वर्मा ने चौंककर कहा आगे कुछ है, इन्होंने आंख घुमाना शुरू किया उससे पहले कर्दम ने बोला की सफ़ेद साड़ी सी दिखी अंधेरे में आगे गायब होती हुई, अब तो फटी इनकी. आगे बढ़ें या लौट चलें इस सोच में डूबे एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे तभी आगे से गाय के डकारने की आवाज आई, सफ़ेद गाय थी वो जिसको सफ़ेद साड़ी वाली चुड़ैल समझ रहे थे ये. सबने सांस ली और उन दोनों को पानी पी-पी के गरिआया. मोबाइल के टॉर्च की रौशनी में ये आगे बढ़ते रहे और किले के अन्दर घुसते गये. एक खंडहर के अन्दर आग जल रही थी, अन्दर गये तो पता चला 2 तांत्रिक लोग कुछ सिद्ध करने में लगे थे, जैसे फिल्मों में दिखाते हैं बुरी ताकतों को जगाने वाला तंत्र-मंत्र, ऐसा कुछ. ये 5 लोग आये थे और 5 ही वापस जाना चाहते थे इसलिए बिना उनका ध्यान भंग किये अपनी सांसे रोके ये उस जगह से बाहर निकल आए. अमित पाण्डेय के हिसाब से भूत-वूत तो नहीं दिखा लेकिन वहां के माहौल में कुछ है. मतलब ऐसा लगता है जैसे कोई रोक रहा हो अन्दर जाने से, नेगेटिविटी सी है कुछ वहां. हवा का अंधी में बदलना, किसी किसी पेड़ का अलग ही हिलना डुलना, कुत्तों का सामने शांत रहना पर किले में घुसते ही एक सुर में रोने लग जाना. फट तो किसी की भी जाए. लेकिन इंजीनियरिंग के लड़के कितने भी लफंगे हों, थोड़े अलग तो होते ही हैं! सुबह 7 बजे तक ये किले के अन्दर ही रुके और रात में एक वीडियो भी बनायी जिसमे अपना अनुभव बताया है इन सब ने. https://www.youtube.com/watch?v=Ed8ATzT23fU सुबह जब ये वापस जा रहे थे तो कुछ कैब में लोग भानगढ़ की तरफ जा रहे थे ..घूमने.. वो लोग इनको वहां निकलता देख हैरान हो रहे थे और ये पांच उन सबको देख के हंसे जा रहे थे!