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ग्रैविटी-कैलकुलस खोजने वाले न्यूटन ‘टोना-टोटका’ भी करते थे, मौत के बाद दुनिया को कैसे पता लगा?

अगर हम आपको बताएं कि महान साइंटिस्ट सर आइज़क न्यूटन (Sir Isaac Newton) अपनी बखरी (आंगन) में बैठे हैं. बगल में सेब की लाश पड़ी है. शरीर में भभूत लगी है. हाथ में चाकू है जो नींबू का गला उतारने के लिए तैयार किया जा रहा है. तो शायद आप कहेंगे, "ये कुछ ज्यादा हो गया." लेकिन न्यूटन के एक अलग तरह के ‘टोटके’ या कहें ऐल्केमी में शामिल होने के सुराग जरूर मिलते हैं.

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विज्ञान की दुनिया के सबसे बड़े नामों में से एक न्यूटन का नाम भी ऐसे टोना-टोटका में सामने आया

1930 का दशक, अमेरिका समेत दुनिया में महामंदी का दौर था. लोगों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो रहा था. अमेरिका जैसे देश की सरकार भी मंदी से निकलने के उपाय नहीं खोज पा रही थी. ऐसे में एक अर्थशास्त्री का इस महामंदी के दौर से नैय्या पार लगाने में नाम आता है. ये थे जॉन मेनार्ड कीन्स, फादर आफ मैक्रोइकोनॉमिक्स (macroeconomics). मैक्रोइकोनॉमिक्स यानी जीडीपी, केंद्रीय बैंकिंग, महंगाई और राष्ट्रीय आय के बारे में बताने वाला अर्थशास्त्र. कीन्स ने महंगाई और बेरोजगारी से निपटने के अपने विचारों को एक पेपर में छापा. ये था साल 1936 में आया ‘द जनरल थ्योरी ऑफ एंप्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी’. साल 1936 में कीन्स ने एक और काम किया, वो था न्यूटन के कुछ पुराने कागजात एक नीलामी में खरीदने का. इनमें क्या था बताते हैं.

न्यूटन थोड़ा ‘उल्टी खोपड़ी’ के शख्स थे!

यूनानी (Greek) दार्शनिक अरस्तु (Aristotle) का एक बड़ा धांसू quote है-

कोई भी महान शख्स थोड़ा बहुत सनकी हुए बिना नहीं रहा है. (No great mind has ever existed without a touch of madness.)

अमेरिकी पत्रकार बिल ब्रॉयसन (Bill Bryson) अपनी किताब ‘अ शार्ट हिस्ट्री ऑफ नियरली एवरीथिंग' में लिखते हैं कि न्यूटन एक निहायती होशियार शख्स थे. कई मामलों में थोड़ा उल्टी खोपड़ी भी कह सकते हैं. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में न्यूटन ने अपनी प्रयोगशाला बनाई. जो वहां की पहली प्रयोगशाला थी. लेकिन फिर बड़े अजीब प्रयोगों में भी लग गए. ब्रॉयसन लिखते हैं,

एक बार तो उन्होंने अपनी आंख में चमड़ा सिलने का सूजा घुसाने की कोशिश की. ये देखने के लिए कि होता क्या है? शुक्र है कुछ नहीं हुआ या कहें कुछ ज्यादा नहीं हुआ. वहीं एक दूसरे मौके पर उन्होंने सूरज को आंख दिखाने की कोशिश की. वो भी तब तक, जब तक उनकी आंखों ने जवाब नहीं दे दिया. आंखें तो बच गईं लेकिन कई दिन अंधेरे कमरे में काटने पड़े. ये सब बावलापन बस ये देखने के लिए कि इससे होता क्या है?

जब भी न्यूटन का नाम लिया जाता है तो बात आती है ग्रैविटी की. न्यूटन को ज्यादा चाहने वाले इसमें प्रकाशिकी (Optics) और कैलकुलस (calculus) भी जोड़ते हैं. अगर आप सेब और ग्रैविटी के सवालों की वजह से न्यूटन से खफा रहते हैं. तो कैलकुलस के सवालों को देखकर न्यूटन का पुतला जलाने पर उतारू हो सकते हैं. न्यूटन को कुछ लोग आइंस्टीन से भी बड़ा जीनियस मानते हैं.

वजह ये कि न्यूटन ने गणित की एक शाखा ही बना डाली थी. लेकिन 27 सालों तक लोगों से इसको छिपाए रखा. ग्रहों की दशा-दिशा हो या फिर गति के नियम न्यूटन ‘बाबा’ ने विज्ञान में बड़े योगदान दिए. वो भी महज 26 साल की उम्र में.

इन सब के साथ न्यूटन की रिसर्च का एक स्याह हिस्सा भी लोगों के सामने आता है. ऐल्केमी का, ऐल्केमी यानी सस्ती धातु, जैसे लेड से कीमती धातु जैसे सोना बनाने का तरीका खोजना. जैसे पारस पत्थर से कोई भी चीज छूकर सोना बनाने की कहानी सुनाई जाती है. 

इसे अब बचकानी बात समझा जा सकता है. तब भी इसे विज्ञान से ज्यादा ‘टोटका’ माना जाता था. एक समय पर ये टोटके करना गैरकानूनी भी था. ऐल्केमी में सब मर्जों की रामबाण दवा यानी ‘पेनेशिया’ और अमृत बनाने की बातें वगैरह भी शामिल हैं. पुराने दौर में कई लोग इस ‘असंभव’ खोज में जुटे थे.

विज्ञान की दुनिया के सबसे बड़े नामों में से एक न्यूटन का नाम भी ऐसे ‘टोना-टोटका’ में सामने आया. जरा सोचिए बचपन से विज्ञान की किताबों में जिसने हमें बड़े-बड़े सवाल दिए. वो कमरे में बैठ कर नींबू काट कर टोटका करता भला अच्छा लगेगा? पर सवाल ये कि न्यूटन का नाम इस सब से जुड़ा कैसे और क्या है पूरा मामला.

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साल 1936 में हुई न्यूटन के कागजातों की नीलामी में क्या निकला?

1727 में न्यूटन की मौत के बाद वो अपने पीछे करीब एक करोड़ शब्दों की चिट्ठियां, पांडुलिपि और नोट्स छोड़ गए. जिसमें 10 लाख शब्द उनके टकसाल के स्वामी (master of mint) या सरकारी सिक्के बनाने के काम से जुड़ी बातों पर थे. 30 लाख शब्द विज्ञान और गणित पर. वहीं लोगों के यकीन से परे 10 लाख शब्द पारस पत्थर बनाने की खोज को समर्पित थे. 

इसमें ज्यादातर दूसरे लोगों की ऐल्केमी पर की गईं रिसर्च शामिल थीं. जिन्हें न्यूटन ने अपने हाथों से लिखा था. न्यूटन की रिसर्च का ये स्याह पहलू लोगों की नजर से काफी समय तक छिपा रहा. या कहें छिपाया गया, समझते हैं. 

द वायर्ड को दिए एक इंटरव्यू में ‘द न्यूटन पेपर्स’ की लेखिका सारह ड्राई बताती हैं-

1800 के दशक का दौर था, न्यूटन के ये कागज कैम्ब्रिज भेजे गए. उनको छांटने और व्यवस्थित करने के लिए दो वैज्ञानिक चुने गए. एक थे जॉन कोच एडम. एडम का वरुण (Neptune) ग्रह खोजने में भी हाथ था. दूसरे वैज्ञानिक थे जॉर्ज स्टोक्स. खैर इन दोनों में एडम ने तो इन कागजों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा, लेकिन स्टोक्स ने बाकायदा कई नोट्स बनाए. लेकिन 16 सालों तक कुछ भी कहीं छापा या बताया नहीं गया. 

शायद उन्होंने सोचा होगा कल करते हैं. इसी में 16 साल निकाल देना कोई बड़ी बात नहीं.

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फिर पिक्चर में आते हैं अमेरिका इकोनॉमिस्ट कीन्स जिन्होंने 1936 में न्यूटन के कागजों का बक्सा नीलामी में खरीदा. इन कागजों में विज्ञान और गणित की बातों के अलावा ऐल्केमी और बाइबल से जुड़े तमाम नोट्स शामिल थे. जिनको न्यूटन ने कभी छापा नहीं. माना जाता है कि शायद वो ये सब दुनिया की नजरों से छिपाए रखना चाहते थे.

न्यूटन के दिनों की ऐल्केमी को काइमेस्ट्री (chymistry) से समझते हैं. इसको कैमेस्ट्री (Chemestry) से कंफ्यूज न करें. काइमेस्ट्री में तीन चीजें शामिल हैं. रंगों और डाई बनाना, दवाएं बनाना और आखिरी चीज किसी आम धातु को सोने में बदलने का तरीका खोजना. न्यूटन इन तीनों में ही दिलचस्पी रखते थे. 

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