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न्यूजक्लिक के पत्रकारों के खिलाफ दिल्ली पुलिस के एक्शन पर विपक्ष क्या बोला?

दिल्ली पुलिस ने Newsclick वेबसाइट से जुड़े रहे कुछ पत्रकारों के ठिकानों पर छापे मारे हैं. जिन पत्रकारों के यहां रेड पड़ी है उनमें पत्रकार उर्मिलेश और अभिसार शर्मा सहित कई नाम शामिल हैं.

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न्यूजक्लिक के फाउंडिंग एडिटर प्रबीर पुरकायस्थ और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर

3 अक्टूबर 2023. हिन्दी के वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने एक्स पर एक पोस्ट लिखा. सुबह करीब 6 बजकर 23 मिनट के आसपास. उन्होंने कहा कि 3 अक्टूबर की ही शाम दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर पर शाम साढ़े 6 बजे वो राहुल गांधी पर लिखी गई किताब पर चर्चा में शामिल होंगे.

कुछ देर तक सब शांत रहे, लेकिन एक्स पर फिर दो पत्रकारों की पोस्ट सामने आई. भाषा सिंह और अभिसार शर्मा. भाषा सिंह ने लिखा, 

"इस फोन से आखिरी ट्वीट, दिल्ली पुलिस मेरा फोन जब्त कर रही है"

और अभिसार शर्मा ने लिखा,

"मेरे घर दिल्ली पुलिस आई है, मेरा लैपटॉप और फोन जब्त कर रही है"

लेकिन कुछ देर बाद वीडियो सामने आने लगे. वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के घर से पुलिस निकल रही थी. एक गाड़ी में बिठाकर उर्मिलेश कहीं ले जाए जा रहे थे. फिर मामला खुला. दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने कुछ पत्रकारों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के घर छापा मारा था. खबरों में छापों की कुल लोकेशन 35 बताई गई थी. ये लोग किसी न किसी रूप में वर्तमान में या अतीत में एक समाचार संस्थान से जुड़े रहे. संस्थान का नाम - न्यूज़क्लिक. ये एक न्यूज़ वेबसाइट है, जिसका अपना यूट्यूब चैनल है और अपने सोशल मीडिया हैंडल भी. ये वेबसाइट हिन्दी और अंग्रेजी दो भाषाओं में काम करती है. खबरों के मुताबिक न्यूज़क्लिक के खिलाफ इस छापेमारी में दिल्ली पुलिस ने 100 से ज्यादा पुलिसकर्मी शामिल हुए. छापेमारी के पहले 2 अक्टूबर को दिल्ली पुलिस की मीटिंग हुई. और छापे की रणनीति तैयार की गई. अब एकाध बेसिक सवाल हल करते है. किसके यहां छापा मारा गया? और क्यों मारा गया? और केस क्या है?

किन-किन लोगों के यहां छापा मारा गया?

सबसे पहला नाम प्रबीर पुरकायस्थ क्योंकि वो न्यूजक्लिक के फाउंडिंग एडिटर हैं. साल 2009 में उन्होंने न्यूज़क्लिक शुरू किया था. प्रबीर पत्रकारिता बैकग्राउंड से नहीं आते हैं. लेकिन लेख वगैरह लिखते रहे हैं. वामपंथी राजनीति से जुड़े हैं. इमरजेंसी के दौरान जेल भी गए थे. तब वो जेएनएयू में पढ़ाई कर रहे थे और CPI(M) के स्टूडेंट विंग SFI से जुड़े थे. न्यूजक्लिक शुरुआत करने के पीछे भी यही वजह थी कि लेफ्ट का स्पेस मीडिया में कम था. 'द कैरेवन' को दिये एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि इस स्पेस में लेफ्ट की मौजूदगी को मौजूद करना है.

इसके बाद अभिसार शर्मा, न्यूजक्लिक के लिए फिलहाल 'इंडिया की बात' नाम का एक प्रोग्राम करते हैं. इसके अलावा अपने यूट्यूब चैनल से भी समसामयिक मुद्दों पर वीडियो डालते हैं. अभिसार लंबे समय तक अलग-अलग टीवी न्यूज चैनलों में एंकर रह चुके हैं. उन्हें पत्रकारिता के कुछ अवार्ड भी मिल चुके हैं.

भाषा सिंह, न्यूजक्लिक की कंसल्टिंग एडिटर हैं. करीब दो दशक से पत्रकारिता कर रही हैं. सिर पर मैला ढोने की प्रथा और किसानों की आत्महत्या पर उनके काम चर्चित रहे हैं.

अब बात करें वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश की बात करें तो वो फिलहाल न्यूजक्लिक में रीडर्स एडिटर हैं. समसामयिक विषयों पर वीडियो प्रोग्राम भी करते हैं. पिछले चार दशक से पत्रकारिता कर रहे हैं. कई हिन्दी अखबारों में रहे हैं.राज्यसभा टीवी (अब संसद टीवी) में कार्यकारी संपादक रह चुके हैं. फ्रीलैंसिंग करते रहे हैं.

इस लिस्ट में परंजॉय गुहा ठाकुरता भी हैं. परंजॉय भी न्यूजक्लिक के प्रोग्राम में कई बार नजर आए. पत्रकारिता के अलावा उन्होंने कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाई हैं. साथ ही IIM अहमदाबाद, दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में गेस्ट फैकल्टी के तौर पर पढ़ाया भी है. अलग-अलग अखबारों और मैगजीन में काम किया. चर्चित जर्नल इकनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (EPW) के एडिटर भी रह चुके हैं.

तीस्ता सीतलवाड़. तीस्ता एक थिंक टैंक ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर हैं. ये थिंक टैंक न्यूजक्लिक के लिए कई आर्टिकल लिखता है. वो सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) नाम का एक एनजीओ चलाती हैं.

संजय राजौरा. कॉमेडियन और व्यंग्यकार. पहले स्टेज पर आते थे, अब कम आते हैं. वो न्यूज़क्लिक के लिए भारत एक मौज नाम का शो करते हैं.

अनिंद्य चक्रवर्ती: टीवी चैनल NDTV पर आने वाले एक चर्चित चेहरा रहे हैं. वहाँ से रुखसती लेने के कुछ समय बाद न्यूज़क्लिक से जुड़े और उनसे कई समसामयिक मुद्दों पर एक्सपलेनर करते हैं, वीडियो बनाते हैं और कुछ मौकों पर इंटरव्यू भी करते हैं.

इनके अलावा इतिहासकार सुहैल हाशमी और CPM नेता सीताराम येचुरी के आधिकारिक आवास पर भी छापे मारे गए. सुहैल हाशमी के यहां छापे क्यों मारे गए और उनके न्यूज़क्लिक से क्या जुड़ाव रहे हैं, ये जानकारी अभी तक सामने नहीं आ सकी है. लेकिन येचुरी के यहां छापा क्यों? क्योंकि उनके कर्मचारी श्री नारायण के बेटे न्यूज़क्लिक के लिए काम करते हैं.

ये छापा क्यों मारा गया था?

17 अगस्त की तारीख. इस दिन दिल्ली पुलिस ने न्यूज़क्लिक के खिलाफ तीन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था. UAPA यानी Unlawful Activities (Prevention) Act, सेक्शन 153 A यानी दो गुटों के बीच दुश्मनी पैदा करना, सेक्शन 120 B यानी आपराधिक साजिश रचना.

ध्यान रहे कि ये केस न्यूज़क्लिक के खिलाफ दर्ज किये गए थे. न कि पत्रकारों और लेखकों के खिलाफ-जिनके यहां छापे पड़े हैं. सूत्रों के हवाले से आई खबरें बताती हैं कि छापेमारी करते दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने लोगों से कहा था कि वो न्यूज़क्लिक केस की जांच करने आए हैं.

न्यूज़क्लिक पर आरोप क्या हैं?

चीन से गलत तरीके से पैसे लेने का और उससे जुड़े जरूरी कागज एजेंसियों के पास सबमिट न करने का. दरअसल साल 2021 में ED ने न्यूज़क्लिक के खिलाफ जांच शुरू की थी. आरोप वही थे - चीन से पैसे लेने के. लेकिन कुछ साबित नहीं हो पा रहा था. लिहाजा जांच शुरू हुई. इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक जांच में ED को पता चला कि न्यूज़क्लिक को तीन साल के दरम्यान 38 करोड़ रुपये मिले थे, जो कथित तौर पर ऐसे फंड थे, जिन्हें फ्रॉड की श्रेणी में रखा जा सकता था.

लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने ED के हाथ बांध दिए. आदेश जारी किया कि आप न्यूज़क्लिक और उसके संपादक प्रबीर पुरकायस्थ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे. लगभग दो सालों तक गाड़ी लगभग वहीं रुकी. लेकिन अगस्त 2023 में देश की संसद में न्यूज़क्लिक का नाम उछला. कैसे?

7 अगस्त की तारीख थी और संसद का मानसून सत्र चल रहा था. BJP सांसद निशिकांत दुबे ने अपने भाषण में न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट का हवाला दिया. ये रिपोर्ट 5 अगस्त को प्रकाशित हुई थी. निशिकांत दुबे ने कहा कि न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट ने भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल "टुकड़े-टुकड़े गैंग" और "कुछ मीडिया संस्थानों" को एक्सपोज कर दिया है. इसके बाद दुबे ने आरोप लगाया. कहा कि चीन ने एक मीडिया संस्थान को पैसे पहुंचाए हैं. ये मीडिया संस्थान न्यूज़क्लिक था. उन्होंने ये भी कहा कि भारत के खिलाफ माहौल बनाने के लिए चीन कुछ पत्रकारों को पैसा दे रहा है.

निशिकांत दुबे कह रहे थे कि न्यूज़क्लिक के ऑपरेशन में चीन का पैसा लगा हुआ है. वहीं कुछ पत्रकारों पर भी उनके आरोप थे. और सरकार के आरोपों के मुताबिक, इसी फन्डिंग के तहत काम कर रहे न्यूज़क्लिक ने एंटी-इंडिया कैम्पेन चलाया है और साथ ही चायनीज़ प्रॉपगंडा बढ़ाने का काम किया है. ध्यान दें कि इस समय केंद्र सरकार न्यूयॉर्क टाइम्स के लेख का हवाला दे रही थी. ये रोचक घटना थी क्योंकि बीते कुछ मौकों पर भाजपा सरकार और न्यूयॉर्क टाइम्स का गतिरोध सामने आ चुका था. दो मौके तो फौरी तौर पर गिना देते हैं. एक तो वो, जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने खबर छापी कि Indian Council for Medical Research - ICMR ने कोरोना को हल्के हाथों से डील किया, ताकि पीएम मोदी के राजनीतिक गोल पूरे हो सकें, तो सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था. फिर दूसरा मौका वो, जब nytimes ने दिल्ली सरकार के स्कूलों पर रिपोर्ट छापी तो सरकार ने उस रिपोर्ट को प्रायोजित करार दिया. बाद में nytimes ने कहा कि उनकी रिपोर्ट प्रायोजित नहीं थी.

बहरहाल, लोकसभा में बोल रहे निशिकांत दुबे अपने आरोप बस न्यूज़क्लिक तक महदूद रखते तो बात अलग होती. उन्होंने अपने भाषण में कांग्रेस पार्टी का नाम ले लिया. वो कांग्रेस पर चीन का हितैषी होने के आरोप लगा रहे थे, निशिकांत दुबे अपने भाषण में न्यूज़क्लिक-कांग्रेस-चीन का नेक्सस बना रहे थे. लिहाजा सदन में उस दिन हंगामा हुआ था.

सदन की कार्रवाई खत्म हुई और कुछ देर बाद ही शाम को केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर मीडिया के कैमरों पर आए, उन्होंने न्यूज़क्लिक पर एक-एक करके इल्जाम लगाना शुरू किया. उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसियां न्यूज़क्लिक की लंबे समय से जांच कर रही थीं, और जब वो जांच कर रही थीं तो कांग्रेस ने अपना विरोध जताया था.

"भारत लंबे समय से बता रहा था कि न्यूजक्लिक भी प्रचार की एक खतरनाक वैश्विक चाल है. अगर मैं कहूं कि कांग्रेस, चीन, न्यूजक्लिक सभी एक भारत विरोधी गर्भनाल से जुड़े हुए हैं. राहुल गांधी की नकली 'मोहब्बत की दुकान' में चीनी सामान साफ नजर आने लगा है. चीन के प्रति प्यार और भारत के खिलाफ दुष्प्रचार दिखता था."

इसके बाद अनुराग ठाकुर ने एक नाम प्रमुखता से लिया - नेविल रॉय सिंघम. अनुराग ठाकुर ने बताया कि नेविल रॉय ने ही न्यूजक्लिक में पैसा लगाया हुआ है. और उनके संबंध चीन में सत्ता संभाल रही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की प्रोपैगैंडा विंग के साथ जुड़े हुए हैं. मतलब सरकार और पार्टी के पक्ष में प्रचार करने वाली विंग के साथ जुड़े हुए हैं.

अब आगे बढ़ने के पहले आपको छोटे में नेविल रॉय सिंघम की प्रोफ़ाइल को समझना होगा. नेविल अमरीकी व्यापारी हैं. लेकिन रहते हैं शंघाई में. उम्र है 69 साल.  समाजवादी चिंतक और यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में प्रोफेसर रहे आर्चिबॉल्ड डब्ल्यू सिंघम उर्फ आर्चि सिंघम के बेटे हैं. 1991 में आर्चिबॉल्ड का निधन हुआ था. आर्चि श्रीलंका के रहने वाले थे. बेटे नेविल पर चीन के प्रचार के लिए पैसे बांटने के आरोप लगे. जिस न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट का हवाला निशिकांत दुबे हवाला दे रहे थे, उस रिपोर्ट में कहा गया कि नेविल ने ये काम करने के लिए अपनी फर्म वर्ल्डवाइड मीडिआ होल्डिंग्स का इस्तेमाल किया. और मीडिया एजेंसियों से चीन का प्रचार करवाया.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि नेविल और उनकी कंपनियों के जरिए बस न्यूजक्लिक को नहीं, और भी कई संस्थाओं को पैसे पहुंचाए. भारत से अभी तक न्यूज़क्लिक का ही नाम सामने आ सका है. और इस पैसे के बदले में इन संस्थाओं से एक ही काम लिया जाता है - चीन का प्रचार करो. बस इसके लिए थोड़ी अभिजात्य या कहें sophisticated भाषा का प्रयोग किया जाता है - प्रोपैगैंडा करना.

इस रिपोर्ट में नेविल के ऑफिस की भी डीटेल दी गई थी. डीटेल ये कि नेविल अपना काम जिस ऑफिस से ऑपरेट करते हैं, उस ऑफिस स्पेस में एक और कंपनी काम करती है, जिसका मोटो है  -

"चीन द्वारा दुनिया भर में किये जा रहे जादुई बदलावों से विदेशियों को परिचित करवाना"

टाइम्स ने न्यूजक्लिक का एक वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि इस वीडियो में चीन की सरकार का काफी कवरेज है. जैसे एक वीडियो में वेबसाइट कहती है,

"चीन का इतिहास मजदूर वर्ग को अब भी प्रेरित कर रहा है."

लेकिन नेविल ने उस वक़्त इन आरोपों को खारिज कर दिया था. ईमेल में कहा था कि वो बस अपने मन से चलते हैं, किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं ना किसी से आदेश लेते हैं.

फिर जब अखबार, सदन और प्रेसवार्ता में इतना हल्ला हो गया तो पार्टियों के बीच परंपरागत रूप से आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुए. लेकिन दिल्ली पुलिस और ED को काम करने की छूट मिल गई थी. 11 अगस्त को ED ने दिल्ली हाईकोर्ट सेफ़रियाद की न्यूज़क्लिक और उसके संपादक पर एक्शन लेने दीजिए क्योंकि नए साक्ष्य सामने आए हैं. फिर 17 अगस्त को वो केस ही दर्ज हो गया, जिसकी बिना पर आज दिल्ली पुलिस का एक्शन देखने को मिला.

अब पुलिस का एक्शन है तो प्रतिक्रियाएं भी हैं. राजद सांसद मनोज झा, उन्होंने कहा,  

'जो आपसे सवाल पूछे, आपकी भजन मंडली में शामिल न हो, वे उनके खिलाफ ऐसा ही करते हैं. वे ऐसा करके क्या दिखाना चाहते हैं?'

सपा अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि ये छापे हारती हुई भाजपा की निशानी हैं. ये कोई नयी बात नहीं है ईमानदार खबरनवीसों पर भाजपाई हुक्मरानों ने हमेशा डाले हैं छापे, लेकिन सरकारी प्रचार-प्रसार के नाम पर कितने करोड़ हर महीने ‘मित्र चैनलों’ को दिये जा रहे हैं ये भी तो कोई छापे! कांग्रेस के खेमे से भी प्रतिक्रिया आई. राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि "मैं समझता हूं तानाशाही आ गई है. ये BJP का सभी पत्रकारों को साफ संदेश है. हम आज़ाद पत्रकारिता का समर्थन करते हैं. हम इन रेड्स की कड़ी निंदा करते हैं."

इसके अलावा INDIA गठबंधन ने भी साझा बयान जारी करके कहा कि भाजपा ने बीते 9 सालों में मीडिया के खिलाफ कई एक्शन लिए हैं. साथ ही Information Technology rule 2021 का भी हवाला दिया कि इस नियम के बाद और बड़े स्तर पर वस्तुपरक पत्रकारिता यानी अब्जेक्टिव रिपोर्टिंग कम हो गई.

ये तो पार्टियों की बात हो गई. पत्रकारों की बॉडी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, और बाकी कई पत्रकार संघों-संगठनों की ओर से भी बयान जारी किये गए. प्रेस क्लब में पत्रकारों की मीटिंग बुलाई गई. एक्स पर बयान जारी करके कहा गया कि वो पत्रकारों के साथ खड़े हैं और सरकार से आग्रह करते हैं कि वो जल्द से जल्द तमाम डीटेल के साथ सामने आएं.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बयान जारी करके कहा कि संभव है कि ये छापे मीडिया की आवाज दबाने के लिए किये गए हैं. कानून को अपना काम तो करना ही चाहिए, लेकिन उसके लिए सही तरीका फॉलो होना चाहिए. किसी खास जुर्म के खिलाफ एक्शन को देखकर ये नहीं लगना चाहिए कि हम अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ काम कर रहे हैं.  

अब बात आती है सरकार की. सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का कहना है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा खंबा है. और इन छापों का मकसद मीडिया की आवाज दबाने नहीं बल्कि देश विरोधी गतिविधियों को रोकना है.

बातें तो सही हैं कि मीडिया को अपना काम करने देना चाहिए. मीडिया एक लोकतंत्र का चौथा खंभा है, जैसा एक पुराना वाक्य जिंदा रहना चाहिए. उसकी स्वायतत्ता और उसकी आजादी भी जिंदा रहनी चाहिए. लेकिन यहां पर हम पत्रकारों को इस बात की तसदीक करने की भी जरूरत है कि हम उसी लोकतंत्र के नागरिक भी हैं. हम पर वही कानून लागू होते हैं, जो किसी आम नागरिक पर होते हैं. जब किसी भी संस्थान पर आरोप लगे हैं, खबरें चली हैं तो जांच हो, और एक पक्के और न्याय संगत तरीके से हो. दोषी को सजा मिले और निर्दोष को आवाज. और सभी पार्टियों और उनकी सरकारों से आवाज उठाने की और सवाल पूछने की रीढ़ सलामत रहे.