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कानपुर की मनोहर कहानियां: न्यू जनता टी स्टाल

सनीचर आया और हम कानपुर की एक और मनोहर कहानी ले आए. निखिल भैया कहे हैं कि ये वाली में कुछ सस्पेंस है.

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निखिल सचान का हर शनिवार एक नया इंट्रो लिखना पड़ता है. इस चक्कर में इनके बारे में काफ़ी बातें निकल चुकी हैं. इतनी नयी बातें तो देश के परधानमंत्री के बारे में नहीं मालूम चली थीं. इंजीनियर, लेखक और आशिक निखिल सचान, कानपुर को अपनी शर्ट की ऊपर वाली जेब में लेके चलते हैं. कहते हैं इससे दिल अपनी औकात में रहता है. हर शनिवार, कानपुर की मनोहर कहानी सुनाने की रस्म को बाकायदे कायम रखते हुए पांचवी कहानी सुना रहे हैं.

nikhil sachan

कानपुर की मनोहर कहानियां

पांचवी किस्त न्यू जनता टी स्टाल

Kanpur Manohar Kahaniyan प्रखर - लंगड़ यार दू ठो चाय इस्पेसल पिलाओ गुरु. कम पानी, ज्यादा दूध. खौलाओ चौचक, पिलाओ औचक. अखबार नहीं आया क्या ? सुधांशु - अमा यार लंगड़े ये अमर उजाला और दैनिक जागरण से ऊपर उठो कभी. टाइम्स ऑफ़ इन्डिया रखो अपने टी स्टाल पर. नहीं तो इस झान्टू अख़बार के जैसे ही ज़िन्दगी झटूआए रहेगी. अबे प्रखर सुनाओ पढ़ के कुछ बढियां ख़बर हो तो. प्रखर - अमर उजाला में क्या ख़बर आएगी बे. मरियमपुर गर्ल्स कॉलेज के बाहर शोहदा गिरफ्तार, बिहार बोर्ड के चार टॉपर पुनः परीक्षा में हुए फेल, पनकी मंदिर में निकला सांप, अधेड़ उम्र की महिला ने खा लिया सल्फास, चलती ट्रेन से कान का बुन्दा खींच के लड़का फ़रार, फोरेंसिक जांच में गाय के मीट की हुई पुष्टि. सुधांशु - क्या दादरी वाले केस में? मीट गाय का निकल आया ? प्रखर - हां गाय का ही निकला. अच्छा हुआ ये अख़लाक़ मरा भो** का. सुधांशु - गुरु ये मुल्ले आजकल बहुत गंद फैलाए हुए हैं. बस धर के बच्चे पैदा करेंगे, पड़े का नल्ला खाएंगे और यहां वहां बम फोड़ेंगे लंगड़ - सुधांशु भैया काहे सुबह-सुबह कोस रहे हैं मुल्लों को. कोई और ख़बर पे बहस हो तो क्रांति आए. रंगायन-रूपायन खोलिए, देखें आयशा टाकिया का फोटो आया है? उसकी सेहत पर बहस तो बदन से सुस्ती दूर हो. सुधांशु - देखो ज्यादा मठाधीशी मत करो, नहीं तो अभी झपड़िया दिए जाओगे तब पता चलेगा कि पंजीरी कहां बट रही थी. प्रखर - अरे तुमको नहीं पता लंगड़. कुछ पढो लिखो तो पता चले. सुब्रमणियम स्वामी को फेसबुक पर फॉलो करो, तो पता चले तुमको. दो हज़ार तीस तक मुल्ले हिन्दुओं से ज्यादा हो जाएंगे. फ़िर कटुए ही कटुए दिखाई देंगे सब जगह. सुधांशु - ये तो साले हम हिन्दू ही चू*या हैं कि इनसे प्रेम से रहिते हैं. नहीं तो बांग्लादेश, साउदी और पाकिस्तान में कोई हिन्दू बचा है? हमारे यहां तो उल्टा बढ़ रहे हैं. प्रखर- ये जित्ते लोग हमाए हिंदुस्तान में सेकुलर बने फ़िरते हैं उनकी अम्मा के साथ जब लव जिहाद होगा तब अकल आएगी. कल कुछ कटुए पेले गए हैं, काहे से गाय का मीट ले जा रहे थे. उनको लीटर भर गो मूत पिलाया गया तो आत्मा शुद्ध हुई गई. सुधांशु - इनको सालों को मीट ही खाना है तो खस्सी खा लें, मुर्गा पेल लें. लेकिन न. गाय ही खाएंगे. अच्छा हुआ मरा अख़लाक़वा, ये साले आइसिस बना रहे हैं हर जगह. इनका बस चले तो सारे हिन्दू ख़तम कर दें लंगड़ - हिन्दूओं को क्यों ख़तम कर देंगे. मुसलमान आदमी के पास और भी बहुत काम है करने को. ये लीजिए स्पेसल चाय पीजिए. प्रखर - अबे तुम हो वही, जिसमे आता है दही. माने कुल्हड़. कभी चमनगंज, बेकनगंज या रहमानी मार्किट साइड जाओ. वहां किसी कटुए से बहस करके देख लो. दुई मिनट में बीस मुल्ले खड़े हो जाएंगे तुम्हई गर्दन काटने. तब समझ आएगा कि कित्ते सीधे होते हैं मुल्ले. सुधांशु - अबे यार चाय अच्छी नहीं बनी है लंगड़. दूसरी बना के देओ. मुह गंधा गया. लंगड़ - अरे दूसरी पी लीजिए सुधांशु भैया. चाय अच्छी न लगे तो पैसा मत दीजिए. नया कप बनाएंगे और साथ में पारले जी फ़्री. सुधांशु - तुम यार आदमी बारीक़ हो. प्रखर - ये बात तो है. लंगड़ आदमी बहुत सही है. लंगड़ यार एक बात बताओ. तुमको लंगड़ लंगड़ बुलाते कभी दिमाग में आया नहीं कि तुम्हारा असली नाम क्या है ? लंगड़ - अब लंगड़ ही बुला लीजिए. नाम का क्या कीजिएगा. ये लीजिए पारले जी खाइए सुधांशु - अरे अब बता भी दो अपना नाम. तुम तो जज़्बाती हो लिए बे. लंगड़ - जाने दीजिए भैया प्रखर - बताओ बे लौंडिया जैसे जाने दीजिए वाला राग काहे अलाप रहे हो ?
लंगड़ - अब्दुल रशीद खान. हमाए ख़ाली एक भाई है, दस की फ़ौज नहीं. चमनगंज में रहिते हैं. फिर भी हम आज तक किसी को घेर के कभी नहीं मारे. अमर उजाला इसलिए रखते हैं क्योंकि आपके दादा जी को वही अख़बार पसंद है. हम लंगड़े भी इसलिए हुए हैं क्योंकि अपने बचपन के दोस्त संतोष को बचाने के चक्कर में चार लोग से भिड़ गए थे. और हां वो चारों हिन्दू थे. लेकिन फिर भी कल को आपको कोई रहमानी मार्किट या बिरहाना रोड में घेर ले तो हमें जरूर बुलाइएगा. एक ही टांग के बल पर आपके लिए लड़ जाएंगे.
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