The Lallantop

इंसान के दिमाग में चिप! एलन मस्क की कंपनी ने ये क्या बना दिया?

साल 2023 में जानवरों पर सफल ट्रायल के बाद न्यूरालिंक ने इसके ह्यूमन ट्रायल यानी इंसानों पर ट्रायल के लिए मंजूरी मांगी थी. मई 2023 में अमेरिका के फूड एण्ड ड्रग ऐड्मिनिस्ट्रैशन - FDA ने न्यूरालिंक को ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी दे दी थी.

post-main-image
न्यूरालिंक ब्रेन चिप

आपने टर्मिनेटर मूवी देखी है? नहीं देखी होगी तो नाम जरूर सुना होगा. या DC जस्टिस लीग में Cyborg को,  जिसके रोबोटिक हाथ भी थे. इन सारी मूवीज़ में एक चीज दिखाई गई थी, ब्रेन यानी इंसानी दिमाग में लगी एक चिप जिसकी मदद से हर उस काम को अंजाम दिया जा सकता है जिसके लिए हमारा शरीर सक्षम नहीं है.  ऐसा ही एक करिश्मा कर दिखाया है एलन मस्क की कंपनी न्यूरालिंक ने.

तो आपको बताते हैं ?
-न्यूरालिंक क्या है ?
-ब्रेन में चिप लगाकर न्यूरालिंक क्या हासिल करना चाहती है ?
-अगर ये प्रयोग सफल होता है तो दुनिया पर क्या असर पड़ेगा?
-और,  न्यूरालिंक के अलावा और कौन ऐसी चिप बना रहा है?

एलन मस्क. हमेशा चर्चा में रहने वाले बिज़नेसमैन. स्पेस एक्स और टेसला के मालिक. स्टारलिंक इंटरनेट भी इन्हीं की कंपनी है. कुछ समय पहले इन्होंने ट्विटर भी खरीद लिया और ट्वीट वाली चिड़िया को X में तब्दील कर दिया. अपने मजेदार ट्वीट्स के लिए चर्चा में रहते हैं. माने मस्क भईया हैं एकदम मूडी आदमी. पर इसके साथ ही उनकी दूरदर्शिता भी काबिले तारीफ है. और इसी दूरदर्शिता की वजह से उन्होंने बनाई थी न्यूरालिंक. 2016 में एक स्टार्टअप के तौर पर शुरू हुई न्यूरालिंक ने अब कमाल कर दिया है.कहा जा रहा है कि अगर न्यूरालिंक का ये प्रयोग पूरी तरह से सक्सेसफुल हुआ तो मेडिकल साइंस की दुनिया बदल जाएगी.

पहले न्यूरालिंक के बारे में थोड़ा जान लेते हैं. 
साल 2016. एलन मस्क ने 7 वैज्ञानिकों की एक टीम के साथ न्यूरालिंक को शुरू किया. मकसद था ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस यानी BCIs बनाना. अब आप कहेंगे ये क्या होता है?
ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस जिसे ब्रेन मशीन इंटरफेस भी कहा जाता है, एक ऐसी डिवाइस है जो दिमाग में हो रही इलेक्ट्रिक ऐक्टिविटी को किसी बाहरी कम्प्यूटर या रोबोटिक हाथ से जोड़ देती है. माने यूं समझिए कि मस्क की कंपनी एक ऐसी चिप बनाने में लगी थी जिससे लकवाग्रस्त या शारीरिक रूप से दिव्यांग लोग भी आसानी से अपने रोजमर्रा के काम कर सकेंगे. इस डिवाइस या चिप को न्यूरालिंक ब्रेन कंप्यूटर इंटरफेस भी कहा जाता है. पर इसकी कहानी 2016 से नहीं, बल्कि 1970 के दशक से शुरू होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, लॉस एंजेलेस में Jacques Vidal ने नैशनल साइंस फाउंडेशन से ग्रांट लेकर इसकी शुरुआत की थी.  1973 में प्रकाशित Jacques Vidal का पेपर साईंटिफिक लिट्रेचर की दुनिया में ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस की पहली तसदीक करता है. साफ-साफ कहें तो मस्क की ये कंपनी इंसानी दिमाग को समझने (understanding the brain), Interfacing with the brain और Engineering with the brain के सिद्धांत पर काम कर रही है.

साल 2023 में जानवरों पर सफल ट्रायल के बाद न्यूरालिंक ने इसके ह्यूमन ट्रायल यानी इंसानों पर ट्रायल के लिए मंजूरी मांगी थी. मई 2023 में अमेरिका के फूड एण्ड ड्रग ऐड्मिनिस्ट्रैशन - FDA ने न्यूरालिंक को ह्यूमन ट्रायल की  मंजूरी दे दी थी. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए न्यूरालिंक के कुछ कर्मचारियों ने बताया कि कंपनी को फिलहाल 10 लोगों के दिमाग में ये चिप लगाने की क्लियरेन्स मिल गई है. इस चिप को मस्क और उनकी कंपनी ने नाम दिया है 'टेलिपैथी.'   कुलजमा बात ये है कि जब हमारे शरीर का कोई अंग काम करने लायक नहीं बचता, तो उसका ट्रांसप्लांट किया जाता है. उसी तर्ज पर ये एक तरीके का ट्रांसप्लांट ही है.

न्यूरालिंक चिप

 क्या है इस चिप में?

न्यूरालिंक चिप सिक्के के आकार की है. इसका इस्तेमाल मस्तिष्क और नर्वस सिस्टम के डिसऑर्डर का सामना कर रहे लोगों के लिए किया जा सकेगा. इसे सर्जरी करके इंसान के दिमाग़ में डाला जाता है.चिप में ढेर सारे छोटे-छोटे तार होंगे. एक तार इंसान के बाल के मुक़ाबले 20 गुना पतला होगा. इन तारों में 1024 इलेक्ट्रोड्स होंगे, जो दिमाग़ की हर हरकत पर नजर रखेंगे. और, दिमाग़ की फ़िज़ियोलॉजिकल और नर्वस गतिविधियों को उत्तेजित करेंगे. एक काम ये भी होगा कि जो डेटा चिप में इकट्ठा होगा, उसे कंप्यूटर में डाला जाएगा. इस डेटा का इस्तेमाल भविष्य में होने वाली रिसर्च में किया जाएगा. कंपनी का दावा  है कि आप क्या सोच रहे हैं, चिप ये पढ़ सकती है यानी माइंड रीडिंग. स्मार्टफ़ोन और कंप्यूटर जैसे बेसिक डिवाइसेज़ के कंट्रोल की बात भी सामने आई है. इसके अलावा चिप के जरिए मशीनों से बात करने का दावा भी किया गया है. जब इस चिप का ट्रायल हो रहा था तब पहले-पहल कुछ जानवरों पर इसका ट्रायल किया गया. न्यूरालिंक ने अपने यूट्यूब चैनल पर इसका वीडियो भी पोस्ट किया था जिसमें एक अफ्रीकी बंदर, जिसके दिमाग में चिप लगाई गई थी, वो जॉयस्टिक से वीडियो गेम खेलता दिख रहा है. पर इसी कारण कंपनी को एक जांच का भी सामना करना पड़ा. न्यूरालिंक पर आरोप लगा कि उसने 2018 से अबतक अपने ब्रेन चिप के ट्रायल के लिए 1500 से अधिक जानवरों की जान ले ली.  

जॉयस्टिक से वीडियो गेम खेलता बंदर

अब ह्यूमन ट्रायल की मंजूरी मिल गई थी तो ये ट्रायल शुरू भी हुआ. आप न्यूरालिंक की वेबसाइट पर जाएं तो आपको ट्रायल के लिए रजिस्ट्रेशन करने का ऑप्शन दिखेगा. हालांकि शर्त ये है कि इसके लिए वालंटियर की उम्र 22 साल से कम नहीं होनी चाहिए . तो पहला इंप्लांट हो चुका है. ये इंप्लांट एक न्यूरो डिसॉर्डर से पीड़ित मरीज पर किया गया है. न्यूरालिंक के मुताबिक ये इंप्लांट सफल रहा और मरीज तेजी से ठीक भी हो रहा है.  एलन मस्क ने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी देते हुए कहा कि शुरुआती नतीजों को देखकर उत्साह बढ़ा है. इससे मानव शरीर में न्यूरॉन स्पाइक का पता चलने की उम्मीद और बढ़ी है. दरअसल न्यूरॉन स्पाइक, वो सिग्नल होता है, जिससे न्यूरॉन आपस में संपर्क साधते हैं. कंपनी ने कहा है कि उसका मकसद न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर से पीड़ित लोगों की ज़िंदगी को आसान बनाना है.

अब आखिर आपको बताते हैं कि न्यूरालिंक के कंपटीशन में और कौन सी कंपनियां हैं. 
ब्रेन चिप इंटरफेस का बाजार अभी तो नया है, पर समय के साथ-साथ और कंपनियां इस क्षेत्र में कदम रख रही हैं. 
इस मार्केट में 
-Synchron
-Paradromics
-Blackrock Neurotech
- BIOS  

BIOS ऐसी कंपनी है जो न्यूरल डिसऑर्डर्स के लिए आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स का इस्तेमाल कर रही है.