नासा के महत्वकांक्षी मून मिशन आर्टेमिस (Artemis) को टाल दिया गया है. दरअसल, 27 अगस्त को आर्टेमिस के लॉन्च व्हीकल पर कई बार बिजली गिरी थी. हालांकि, लॉन्च में कोई दिक्कत आने की आशंका नहीं थी, ये बात खुद नासा (NASA) के सीनियर टेस्ट डायरेक्टर जेफ स्पौल्डिंग ने बताई थी. लेकिन लॉन्च से कुछ ही देर पहले कहानी में एक और ट्विस्ट आ गया!
नासा का मिशन आर्टेमिस-1, जो इंसानों को चांद के जरिए मंगल पर भेजने की प्लानिंग कर रहा है
इस मिशन की लॉन्चिंग 29 अगस्त को होनी थी, लेकिन इंजन की खराबी के चलते इसे टाल दिया गया.
NASA के मून मिशन आर्टेमिस-1 की लॉन्चिंग 29 अगस्त, शाम 6:03 बजे (IST) कैनेडी स्पेस सेंटर (Kennedy Space Centre) से होनी थी. लेकिन इंजन में खराबी के चलते लॉन्चिंग नहीं हो पाई.
बात ये है कि चांद पर पहली बार तो कोई स्पेसक्राफ्ट भेजा नहीं जा रहा है. फिर नासा के इस मिशन की इतनी चर्चा क्यों हो रही है? इस आर्टिकल में हम इसी के बारे में बात करेंगे.
NASA की वेबसाइट के मुताबिक, आर्टेमिस नासा का एक ‘ह्यूमन एंड रोबोटिक मून एक्सप्लोरेशन’ प्रोग्राम (Human and Robotic Space Exploration Program) है. ह्यूमन माने इंसान और रोबोट से रोबोटिक हम समझते हैं. मून एक्सप्लोरेशन का मतलब है चांद को एक्सप्लोर करना. आम भाषा में कहें तो चांद पर रिसर्च कर, उसके बारे में बेहतर जानकारी हासिल करना. जिसकी चर्चा अभी हो रही है, वो इस पूरे प्रोग्राम का पहला चरण है.
इस प्रोग्राम के मेजर कंपोनेंट्स हैं- SLS (स्पेस लॉन्च सिस्टम), ओरिजिन नाम का स्पेसक्राफ्ट माने अंतरिक्ष यान और लूनर गेटवे-ह्यूमन लैंडिंग सिस्टम्स. प्रोग्राम का लॉन्ग टर्म उद्देश्य चांद पर परमानेंट बेस कैंप बनाना और मंगल ग्रह पर मानव मिशन को भेजना है. SLS ही स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च कर, सही जगह पहुंचाएगा.
गेटवे नासा के सस्टेनेबल लूनर ऑपरेशंस का एक अहम हिस्सा है. चांद से जुड़े ऑपरेशंस को लूनर ऑपरेशंस कहते हैं. साथ ही, ये चांद की परिक्रमा करने वाले एक मल्टी-पर्पस आउटपोस्ट के तौर पर काम करेगा.
आर्टेमिस मंगल ग्रह पर इंसानों को भेजने के लिए एक शुरुआती प्रयास की तरह काम करेगा. नासा का उद्देश्य है कि आर्टेमिस की सफलता के जरिए मंगल ग्रह पर ज्यादा महत्वकांक्षी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए रास्ते खोल दिए जाएं. नासा के अधिकारियों के मुताबिक, ये उद्देश्य अगले दशक के आखिर तक अचीव हो सकता है.
इस प्रोग्राम की शुरुआत साल 2017 में हुई. अगर ये मिशन सफल होता है, तो 1972 के बाद पहली बार इंसान फिर से चांद पर होगा. इससे पहले ये कारनामा 1972 में Apollo17 मिशन ने किया था.
नाम आर्टेमिस ही क्यों?ग्रीक माइथोलॉजी माने ग्रीक पौराणिक कथाओं के मुताबिक आर्टेमिस, अपोलो की जुड़वा बहन हैं. क्योंकि 1972 में अपोलो मिशन ही चांद से जुड़ा आखिरी मिशन था, ऐसे में अपोलो से कनेक्शन जोड़ने के लिए इस मिशन का नाम आर्टेमिस रखा गया है. इतना ही नहीं, आर्टेमिस को चांद की देवी भी कहा जाता है.
आर्टेमिस, अलग-अलग चरणों में चांद को एक्स्प्लोर करेगा. पहला चरण है आर्टेमिस-1, जिसके लॉन्च को टाल दिया गया है. इस चरण के बाकी के मिशन पहले के चरण के मुकाबले कठिन होंगे.
आर्टेमिस-1 मिशनआर्टेमिस-1, नासा के डीप स्पेस एक्सप्लोरेशन सिस्टम का पहला उड़ान परीक्षण है. इसका नाम पहले एक्सप्लोरेशन मिशन-1 था.
- ये एक स्पेस स्टेशन पर डॉक किए बिना अंतरिक्ष में लंबे समय के लिए रहेगा. जो अंतरिक्ष यात्रियों के लिए इतने लंबे टाइम ड्यूरेशन के लिए अब तक किसी स्पेसक्राफ्ट द्वारा नहीं किया गया है.
- स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) रॉकेट, दुनिया का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है और मिशन के दौरान चार से छह सप्ताह तक पृथ्वी से 2,80,000 मील की दूरी तय करेगा.
- आर्टेमिस-1 एक मानव रहित अंतरिक्ष मिशन है.
-मिशन का मुख्य उद्देश्य है क्रू मॉड्यूल की सुरक्षित एंट्री, स्पेसक्राफ्ट का सही से उतरना, स्प्लैशडाउन और रिकवरी. स्प्लैशडाउन का मतलब होता है समुद्र में अंतरिक्ष यान की (सेफ) लैंडिंग.
-मिशन ख़त्म होगा जब ओरियन पृथ्वी पर सुरक्षित वापस लौट आएगा.
क्या वाकई स्पेसक्राफ्ट एकदम खाली जाएगा?ये पहला वाला मिशन भले ही मानवरहित है, लेकिन ये स्पेसक्राफ्ट बगैर किसी को लिए नहीं उड़ेगा. द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, स्पेसक्राफ्ट के अंदर तीन डमी होंगे. कमांडर मूनिकिन काम्पोस और उनकी दो सहायक हेलगा और जोहर.
काम्पोस का नाम रखा गया है, आर्थर काम्पोस पर. ये वो इंजिनियर थे, जिन्होंने अपोलो 13 को क्षतिग्रस्त होने से बचाया था. हेलगा और जोहर हैं दो फीमेल डमी, जो ह्यूमन टिश्यू से बनी हैं. क्यों? ताकि स्पेस में होने वाले रेडिएशंस के लिए भी टेस्ट्स किए जा सकें. यही कॉस्मिक रेडिएशंस अंतरिक्ष यात्रा का सबसे बड़ा जोखिम भी होती हैं. स्पेसक्राफ्ट के साथ 10 सैटेलाइट्स भी जाएंगे.
आर्टेमिस-1 की सफलता के बाद क्या होगा?अगर आर्टेमिस-1 में सब सही से हो जाता है तो, दूसरा मिशन होगा आर्टेमिस-2. जो मानवरहित नहीं होगा और उसमें अंतरिक्ष यात्री चांद की परिक्रमा कर 2024 में वापस पृथ्वी पर लौट आएंगे.
उसके बाद, 2025 या 2026 में शुरू होगा इसका तीसरा चरण – आर्टेमिस-3. इस फेज में एस्ट्रोनॉट्स को चांद के साउथ पोल पर उतारा जाएगा. और ये होगा स्पेसएक्स (SpaceX) के स्टारशिप की मदद से!
फिर, पूरे आर्टेमिस प्रोग्राम के सभी अनुभवों से सीख लेकर, एस्ट्रोनॉट्स का पहला गुट मंगल ग्रह पर भेजा जाएगा. यही नहीं, नासा का प्लान है कि इस प्रोग्राम से अच्छी खासी सीख लेकर, भविष्य में सोलर सिस्टम के बाकी ग्रहों पर भी इंसानों को भेजा जाए.
दूसरी एजेंसी भी हैं शामिलजाते जाते एक ट्रिविया– नासा इकलौती स्पेस एजेंसी नहीं है, जो इस प्रोग्राम से जुड़ी है. और भी हैं! Canadian Space Agency (CSA) का कमिटमेंट है कि वो गेटवे के लिए उम्दा रोबोटिक्स उपलब्ध कराएगी. साथ ही, ESA (European Space Agency) ने ESPIRIT मोड्यूल देने का जिम्मा लिया है. ये मॉड्यूल कम्युनिकेशन की क्षमता की बेहतरी के लिए है. जापान की JAXA (Japan Aerospace Exploration Agency) का प्लान है लॉजिस्टिक्स और हैबिटेशन से जुड़े योगदान करना.
जैसा हमने आपको पहले बताया, नासा का मानना है कि मानव रहित आर्टेमिस-1, फ्यूचर में स्पेस में पहुंच बढ़ाने में मदद करेगा. इस छह सप्ताह लंबे मिशन में, स्पेसक्राफ्ट लगभग 65,000 किलोमीटर की दूरी तय कर लौट आएगा. मिशन के दौरान एसएलएस रॉकेट और ओरियन अंतरिक्ष यान अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करेंगे.
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