जब से गुजरात दंगों पर जांच शुरू हुई थी, लोगों ने नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाए थे कि उन्होंने दंगों को रोकने के लिए जानबूझकर प्रयास नहीं किए. अब नानावटी-मेहता कमीशन की रिपोर्ट ने अपने दोनों हिस्सों में उन्हें क्लीन चिट दी है. (सांकेतिक तस्वीर: फ्रीप्रेसजर्नल)
गुजरात, 2002. गोधरा दंगों की जांच को लेकर नानावटी-मेहता कमीशन की रिपोर्ट का दूसरा हिस्सा गुजरात असेम्बली में पेश किया गया. पहला हिस्सा 2008 में पेश कर दिया गया था. बुधवार 11 दिसंबर को पेश की गई इस रिपोर्ट में किन लोगों को क्लीन चिट दी गई, और क्या डीटेल्स दी गईं, ये सब कुछ बताते हैं आपको. पहले इस रिपोर्ट का बैकग्राउंड समझ लीजिए.
2002 में गुजरात के इन दंगों की जांच करने के लिए पहले गुजरात हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज
के जी शाह की अगुवाई में ये कमीशन बनाया गया था. वो इसके इकलौते मेंबर भी थे. लेकिन कथित रूप से नरेंद्र मोदी के साथ उनकी नज़दीकी की वजह से लोगों ने इस पर आपत्ति जताई. तो 21 मई 2002 को गुजरात सरकार ने रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जस्टिस
जी टी नानावटी को इसका चेयरमैन बनाया. इस तरह कमीशन में दो मेंबर हो गए. 2008 में के जी शाह की मौत के बाद गुजरात हाई कोर्ट के ही रिटायर्ड जज
अक्षय एच मेहता को कमीशन का हिस्सा बनाया गया और उसके बाद ये
नानावटी-मेहता कमीशन के नाम से जाना गया.
गुजरात दंगों की दसवीं बरसी पर कैंडल मार्च निकालते लोग. (तस्वीर: ट्विटर)रिपोर्ट का पहला हिस्सा गोधरा स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के कोच S-6 को जलाने की घटना से संबंधित था. ये घटना 27 फरवरी 2002 को हुई थी. इसकी बाबत कमीशन ने कहा था कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा ट्रेन का कोच जलाई जाने वाली ये घटना एक षड्यंत्र थी. जिसका उद्देश्य आतंक फैलाना और प्रशासन के कदम उखाड़ना था.
2008 में आई इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया था कि चीफ मिनिस्टर (जोकि उस समय नरेंद्र मोदी थे) और उनके मंत्रिमंडल के किसी भी दूसरे मिनिस्टर या पुलिस ऑफिसर ने इस घटना में कोई भूमिका नहीं निभाई थी. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा जो निर्देश दिए गए हैं, उनका पालन करने में इनकी तरफ से कोई कमी हुई हो, इसका कोई सुबूत नहीं है.
रिपोर्ट के पहले हिस्से में, जिसमें गोधरा के पास साबरमती ट्रेन के डब्बे जलाने की जांच हुई थी, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दी गई थी.2014 में इसका दूसरा हिस्सा सबमिट हुआ. और अब गुजरात के गृहमंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने असेम्बली में इसे पेश किया. ये उन दंगों से सम्बंधित है, जो साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने के बाद गुजरात में शुरू हुए. इसमें ये लिखा गया है कि:
# गोधरा के बाद हुए दंगों में राज्य के नेताओं या पुलिस अफसरों का कोई हाथ नहीं था.
# तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को इस पूरे मामले में क्लीन चिट दी गई है.
# गोधरा हादसे के बाद शुरू हुए दंगे पहले से आयोजित नहीं थे. कोई षड्यंत्र नहीं किया गया था.
# संजीव भट्ट, राहुल शर्मा, और आर बी श्रीकुमार नाम के तीन पुलिस अधिकारियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए हैं. संजीव भट्ट ने आरोप लगाया था कि नरेंद्र मोदी ने दंगाइयों को रोकने में जानबूझकर लापरवाही करवाई.
# इस बात को खारिज किया गया कि राज्य के अधिकारियों ने हो रहे दंगों से जानबूझकर नजरें फेर लीं.
इस रिपोर्ट ने गुजरात के पूर्व गृहमंत्री हरेन पंड्या, गुजरात असेम्बली के पूर्व स्पीकर अशोक भट्ट और पूर्व मंत्री भारत बरोट को भी क्लीन चिट दी है. इनमें से हरेन पंड्या की 2003 में और अशोक भट्ट की 2010 में मौत हो चुकी है.
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