कई साल पहले पेशावर के एक शरणार्थी शिविर में नेशनल ज्योग्राफिक के फोटोग्राफर स्टीव मकरी ने एक बच्ची की फोटो ली थी. 1985 में मैगजीन में ये फोटो छपी थी. उन पर बाद में डॉक्यूमेंट्री भी बनी थी, वो खूब फेमस हुईं और लोग उनको ‘अफगान वॉर की मोनालीसा’ कहने लगे. अफगान गर्ल के नाम से ये खूब चर्चित भी हुईं. नीली आंखों वाली वो फोटो जाने कितनी बार देखी गई. ये हाल ही में धोखाधड़ी के केस में फंस गई है. और फिर एक बार मसीहा बना है यही फोटोग्राफर स्टीव मकरी. पढ़िए क्या हुआ जब उनके एक फैन को पता चला कि वो फोटोशॉप करता है.
एक बार मैंने अपनी फोटो खिंचवाई थी. स्टूडियो वाले को बोला कि फोटो को थोड़ी अच्छी बना देना. तीसरे-चौथे दिन फोटो लेने गया तो बेहोश होते-होते बचा था. वहां खड़ा होके सिंपल फोटो खिंचवाई थी. और इसमें बाइक पर बैठा था. बाइक भी जिसको देखकर मुझे मितली आ जाती है. धूम फिल्म जैसी. कोट पहना दिया. गले में हार डाल दिया. उसने क्या किया कि मेरा सिर काट कर किसी और तस्वीर पर लगा दिया था. उस दिन के बाद 'फोटोशॉप' से नफरत हो गई.
फिर थोड़ी और समझ आई, तो फोटोशॉप जैसे सॉफ्टवेयर को 'जज' करना छोड़ दिया. लेकिन बीते दिनों दुनिया के सबसे बड़े फोटोग्राफरों में से एक स्टीव मैकरी का फोटोशॉप विवाद सामने आया.
पहले जानें स्टीव मैकरी कौन हैं
ताजमहल की जीवंत तस्वीरें हो. या नैशनल जियोग्राफिक वाली अफगान लड़की की नीली आंखों वाली तस्वीर. 2007 में खींची गई जोधपुर की नीले रंग में रंगी सुंदरता झलकाती तस्वीरें, या राजस्थान की रेतीली आंधी से खुद को बचाने की कोशिश करती औरतों की 'डस्ट स्टॉर्म' सीरिज की तस्वीरें. ये सारे रंग कैमरे में कैद किये हैं स्टीव मैकरी ने.
Photo- Steve McCurry (Taj and Train, Agra. 1983)
Photo- Steve Mccurry (Jodhpur)
Photo- Steve Mccurry (Dust Storm Series, Rajasthan. 1983)
नैशनल जियोग्राफिक मैगज़ीन के जून 1985 के एडीशन में एक तस्वीर छपी थी. नीली आंखों वाली लड़की की. 'अफगान गर्ल' के नाम से. यह तस्वीर बहुत चर्चित हुई. इस तस्वीर के फोटोग्राफर स्टीव मैकरी को इसके बाद सारी दुनिया जान गई.
स्टीव का जन्म पेंसिल्वेनिया में हुआ. उन्होंने पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी से फिल्म की पढ़ाई की. दो सालों तक एक न्यूज़पेपर के साथ काम किया. फिर फ्रीलांस काम करने लगे और झोले में कुछ कपड़े, कैमरा लेकर इंडिया के सफर पर आ गए. अब तक सब लोग यहां के आर्किटेक्चर और शहरों की तस्वीरों खींचते थे. लेकिन इन्होंने लोगों की डेली लाइफ की तस्वीरें खींची. इंडिया से वो सीमा पार कर पाकिस्तान और अफगानिस्तान की यात्रा पर निकल गए. अफगानिस्तान इस वक्त रूसी आक्रमण झेल रहा था. यहां उन्होंने संघर्ष की तस्वीरें खींची. जो बहुत सारी मैगजीन्स में छपी. इसके बाद तो जैसे उन पर अवार्ड्स की बारिश शुरू हो गई.
इतने दिन दुनिया उन्हें फोटो जर्नलिस्ट कहती थी. उन्हें युद्ध संघर्षों, अलग-अलग देशों की संस्कृतियों, और प्रोर्ट्रेट फोटोग्राफी के लिए जाना जाता है. अलग-अलग असाइनमेंट्स के लिए वे दुनियाभर में घूमे और लोगों के पोर्ट्रेट, संघर्ष की तस्वीरें खींची. उनकी बहुत सारी किताबें आईं. दुनिया भर में उनकी तस्वीरों की एक्ज़िबिशन आयोजित होती है. ऊंची बोलियों में उनकी तस्वीरें बिकती है. उनको फोटोग्राफी की दुनिया में करीब चार से ज्यादा दशक चुके हैं. दुनिया के सबसे बेहतरीन फोटोग्राफरों में उनका नाम दर्ज है. उनकी तस्वीरों के लाखों प्रशंसक हैं. बहुत सारे फोटोग्राफर उनसे प्रेरित हुए हैं.लेकिन फोटोशॉप वाले विवाद के बाद अब वो कहते हैं कि मैं फोटोजर्नलिस्ट नहीं, बल्कि 'विजुअल स्टोरीटेलर' हूं. यानी तस्वीरों से कहानी कहने वाला.
एक दिन मैं स्टीव मैकरी को टेडएक्स पर सुन रहा था. उनसे पूछा गया कि आप फोटोशॉप के बारे में क्या सोचते हैं. उनका जवाब था 'पिक्चर में वही दिखता है जो हम फोटो क्लिक करते वक्त देखते या महसूस करते हैं. मुझे नहीं लगता है कि हमको अपनी तस्वीरें चमकाने के लिए फोटोशॉप जैसी चीज़ों का प्रयोग करना चाहिए. मुझे तो जिस तरह से लोग और उनका जीवन दिखता है वैसे ही उनको तस्वीरों में कैद करता हूं'.
कितना अच्छा लगता हैं यह सब सुनकर. मेरे जैसे नौसिखिए ऐसी टॉक सुनकर इंस्पायर हो जाते हैं फोटोग्राफर बनने को. अच्छी-अच्छी सच्ची तस्वीरें खींचने को.
https://youtu.be/njhkRyw3CKo?t=6m35s
हाल के दिनों में स्टीव मैकरी अपनी तस्वीरों में फोटोशॉप यूज़ करने के लेकर विवादों में है. पिछले दो महीनों में उनकी बहुत सारी तस्वीरों की असलियत सामने आई है. ये तस्वीरें भयंकर एडिट की गई है. बहुत सारे लोग उनकी तस्वीरों में किये गये फोटोशॉप चेंजेज को अनएथिकल बताकर उनको क्रिटिसाइज कर रहे हैं. इस विवाद के बाद बहस शुरू हो गई है कि तस्वीरें किस तरीके से पेश की जानी चाहिए. लोग कैसे तस्वीरों के सच होने पर विश्वास करे.पर्सनली कहूं तो स्टीव मैकरी की फोटोशॉप तस्वीरें देखकर मुझे अच्छा नहीं लगा. हालांकि मैं उन्हें जज नहीं कर रहा. फिर भी एक बहस तो होनी चाहिए. एक लकीर तय होनी चाहिए की एडिटिंग किस हद तक एथिकल है. 'विजुअल स्टोरीटेलिंग' और 'फोटोजर्नलिज्म' में फर्क स्पष्ट होना चाहिए.
जैसलमेर और जोधपुर वाली स्टीव मैकरी की तस्वीरें देखने के बाद में उनका फैन हो गया था. इस बार के जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में वो आये थे. मैं नहीं जा पाया इसका बहुत दु:ख हुआ.
फोटो- स्टीव मैकरी
फोटो- स्टीव मैकरी
फोटो- स्टीव मैकरी
फोटोशॉप विवाद के बाद मैंने उनकी बहुत सारी तस्वीरें देखी. इन तस्वीरों में भयंकर फेरबदल किया गया था. अफगान गर्ल वाली तस्वीर में उस लड़की की आंखों में फोटोशॉप से छेड़छाड़ की गई है. मतलब ये कि उन तस्वीरों में लगता है कि वो अचानक से खींची गई है किसी एक्टिविटी की. लेकिन वो उनके द्वारा रची गई हैं. जिसे उन्होंने अपने हिसाब से लोगों को सेट करके खींचा है. उनके ब्लॉग से इस खुलासे के बाद बहुत सारी तस्वीरें हटा दी गई है.
फोटो- स्टीव मैकरी
ऊपर जो फोटो है इसके बारे में इंडियन फोटोग्राफर सतीश शर्मा ने अपने ब्लॉग पर लिखा हैं. उनका कहना है कि इस फोटो में जो महिला दिख रही है वो उनके किसी फोटोग्राफर दोस्त की बीवी है. और कुली के हाथ में जो सूटकेस दिख रहा है वो खाली है. इस तरह की बहुत सारी तस्वीरें हैं जो बना कर खींची गई है. इन तस्वीरों में लोगों को अपने हिसाब से खड़ा किया है उन्होंने.फोटोशॉप को लेकर वैसे ही बहुत बड़ी बहस छिड़ी है. बहुत सारे फोटोशॉप्ड तस्वीरों के मामले आते रहते है. 2015 में चैन्नई में आई बाढ़ का दौरा किया था प्रधानमंत्री मोदी ने. उसके बाद पीआईबी ने एक तस्वीर पोस्ट की थी. मोदी हेलिकॉप्टर में बैठे हैं और खिड़की से पानी में डूबते घर देख रहे हैं. यह तस्वीर फोटोशॉप्ड थी. इसे लेकर खूब मजाक उड़ाया गया. सोशल मीडिया पर अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी से लेकर महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू तक की झूठी फोटोशॉप्ड तस्वीरें खूब शेयर की जाती हैं. और ज्यादातर लोग इन तस्वीरों को सही मान लेते हैं.
इन तस्वीरों के पीछे कौन होता है. ये किसी को नहीं मालूम. लेकिन स्टीव मैकरी दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं. और जो जितना प्रसिद्ध होगा लोग उसके गलत होने पर उसको उतना ही ज्यादा क्रिटिसाइज करेंगे. इस पर भी एक बहस है कि स्टीव मैकरी की इतनी आलोचना क्यों कि जा रही है. जब आजकल इतना फोटोशॉप चल रहा हैं. तस्वीर खींचने के दौरान कैमरे में उस घटना का एक बेहद छोटा हिस्सा कैप्चर होता है लेकिन उसके बाद या पहले की चीज हमें नहीं दिखती.
अगर देखा जाए तो फोटो जर्नलिज्म में भी बहुत सारी तस्वीरें एडिटेड या स्टेज्ड होती है. होती होंगी लेकिन फोटो जर्नलिज्म में इस तरह से फोटोशॉप करना और स्टेज्ड तस्वीरें खींचना एथिकल नहीं समझा जाता. हम तस्वीर खींच रहे होते है. कैमरा जो देखता है वही क्लिक करता है. ऐसा तो है नहीं कि हम पेंटिंग बना रहे हैं. कल कुछ देखा था और उसे याद करके कैनवास पर उकेर रहे हैं. अब जब स्टीव मैकरी कह रहे हैं कि वो फोटो जर्नलिस्ट नहीं विजुअल स्टोरीटेलर हैं. फिर फोटो जर्नलिज्म और विजुअल स्टोरीटेलिंग में कैसे फर्क दिखाया जाए? थोड़ा बहुत कलर करेक्शन करना फोटो जर्नलिज्म में जायज समझा जाता है. लेकिन तस्वीर को आकर्षक दिखाने के लिए उसमें से चीजें हटाना या जोड़ना उस फोटो की असलियत ही बदल देता है. स्टीव, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.