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धमकियों से डरकर उत्तरकाशी छोड़ रहे मुस्लिम कारोबारी, 'Love Jihad' पर CM पुष्कर सिंह धामी का बयान वायरल

मुस्लिम दुकानदारों को धमकियां देने वालों पर पुलिस ने अबतक कोई कठोर कार्रवाई नहीं की है.

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पुरोला में हिन्दू-मुसलमानों के बीच तनाव कम नहीं हो रहा है | फोटो: ट्विटर

उत्तरकाशी चर्चा में है. थोड़ा स्पेसफिक हुआ जाए तो उत्तरकाशी जिले का पुरोला टाउन चर्चा में है. सोशल मीडिया पर तरह-तरह के तमाम वीडियो, फोटो और दावे वायरल हो रहे हैं. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पुरोला टाउन की मार्केट में मुस्लिम समुदाय की करीब 30-35 दुकानें हुआ करती थीं. सालों से ये लोग यहीं रह रहे थे. यहीं इनका बिजनेस था. लेकिन पिछले कुछ दिनों में करीब एक दर्जन दुकानें बंद हो चुकी हैं. दुकानदार अपना सामान समेटकर बाहर चले गए.

क्यों चले गए, इस पर भी आएंगे. लेकिन पहले आपको एक कहानी सुनाते हैं. ज़ाहिद मलिक की कहानी. 30 साल पहले ज़ाहिद उत्तरकाशी के पुरोला में आकर बसे थे. छोटे-मोटे कारोबार चलाए. फिर एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान शुरू की. 18 साल से वो यही दुकान चला रहे हैं. ये दुकान ही उनके परिवार की रोटी चलाती रही. इंडियन एक्सप्रेस के अवनीश मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक़, बीते बुधवार- 7 जून को - ज़ाहिद ने अपना सामान बांधा, ट्रक पर चढ़ाया और अपनी 18 साल की रोज़ी को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कर दिया.
ज़ाहिद के बड़े भाई - अब्दुल वाहिद - ज़ाहिद से भी पहले पुरोला आ गए थे. अब्दुल अब नहीं रहे, मगर उनकी दर्ज़ी की दुकान अब भी है. जो उनका बेटा शाहनवाज़ चलाता है. आस-पास का माहौल और धमकियों के डर से अब शाहनवाज़ भी अपनी दुकान बंद करने की कगार पर है.

इन दोनों के अलावा एक और कहानी है. मुहम्मद अशरफ़ की कहानी, जो इलाक़े में कपड़ों की दुकान चलाते हैं. और वो उन कुछ मुसलमानों में से हैं, जिनका पुरोला में अपना मकान है. उन्होंने मीडिया को बताया कि सोशल मीडिया पर उन्हें धमकी दी जा रही है. उन्हें व्यापार मंडल के वॉट्सऐप ग्रुप से भी हटा दिया गया है. उन्होंने कहा, "मेरा परिवार 1978 में बिजनौर से पुरोला आया था. हमारी दुकान सबसे पहली दुकानों में थी. मेरे परिवार की तीन पीढ़ियां यहीं रहीं. लेकिन हमने ऐसा पहले कभी नहीं देखा. मैं यहां पैदा हुआ था. यहीं के स्थानीय सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ाई की. मेरे ज़्यादातर दोस्त हिंदू हैं. हम इस जगह को नहीं छोड़ सकते."

ज़ाहिद, शाहनवाज़ और अशरफ़. कहानी केवल इन तीनों की नहीं है. पुरोला इलाक़े के उन सभी मुसलमानों की है, जो सालों से वहां अपनी रोज़ी कमाने आते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट की मानें तो अब तक 7 से ज़्यादा दुकानदार पुरोला इलाक़े से जा चुके हैं. खिलौने और बरतन के तीन व्यापारी, दो कपड़ों के व्यापारी, एक गाड़ी धुलने वाला और एक मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान वाला.

सोशल मीडिया पर वायरल कुछ वीडियोज में दावा किया जा रहा है कि मुस्लिम दुकादारों की दुकानें तोड़ी गईं. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है. आपने हालिया घटनाक्रम जान लिया. अब आपको एक बार इस पूरे मामले की टाइमलाइन बता देते हैं.

26 मई. माने आज की तारीख़ से 17 दिन पहले. पुरोला इलाक़े में कुछ लोगों ने तीन लोगों को पकड़ लिया था. एक नाबालिग लड़की और दो पुरुष. ((क्यों पकड़ लिया?)) दो पुरुषों में से एक मुसलमान था. एक का नाम उबैद ख़ान, दूसरे का जीतेंद्र सैनी. स्थानीय भीड़ ने तुरंत ये आरोप लगा दिया कि ये 'लव जिहाद' का मामला है. मौक़े पर पुलिस बुलाई गई. लड़की को घर भेज दिया गया और पुलिस ने दोनों आरोपियों के ख़िलाफ़ IPC की धारा 363 (अगवाई), 366-A (नाबालिग लड़की की ख़रीद-फरोख़्त) और POCSO की संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया. दोनों अभी न्यायिक हिरासत में हैं.

घटना के बाद इलाक़े में तनाव फैल गया. इलाक़े के 7-8 मुस्लिम परिवारों को कथित तौर पर धमकियां मिलने लगीं कि वो इलाक़ा ख़ाली करें. हालांकि, SDM ने इसके उलट दावा किया. उन्होंने मीडिया को बताया कि डर से लोगों के जाने की ख़बरें झूठी हैं. उत्तरकाशी के SP अर्पण यदुवंशी ने भी कहा कि उन्हें अब तक ऐसी कोई शिकायत या सूचना नहीं मिली है. लेकिन 4 जून की रात को कुछ अज्ञात लोगों ने पुरोला बाज़ार में मुस्लिम समुदाय की दुकानों पर धमकी भरे पोस्टर चिपका दिए. इसमें उन्हें 15 जून को होने वाली महापंचायत से पहले दुकानें खाली कर देने की धमकी दी गईं. बड़े अक्षरों में लिखा था -- 'दुकानें ख़ाली करो या ख़ामियाज़ा भुगतो!'

आजतक से जुड़े ओंकार बहुगुणा की रिपोर्ट के मुताबिक़, इलाके में बढ़ते तनाव को देखते हुए कुछ दुकानदार शहर छोड़कर चले भी गए. इस तरह की कोई भी सूचना न मिलने का इनकार करने वाले SP अर्पण यदुवंशी ने पोस्टर की बात मानी और कहा कि पोस्टर हटा दिए गए और उन्हें चिपकाने वालों की पहचान करने के लिए जांच की जा रही है. इन्हीं पोस्टर्स में ये भी लिखा था कि "दुकान-बंदी" की चेतावनी 'देवभूमि रक्षा अभियान' के तहत दी जा रही है. क्या है ये देवभूमि रक्षा अभियान? देवभूमि रक्षा अभियान. एक दक्षिणपंथी समूह है, जिसने स्वतःस्फ़ूर्त ये कौल उठाया है कि वो उत्तराखंड को बचाएंगे. अपनी "रोटी, बेटी और चोटी" बचाएंगे. किससे? कथित जिहादियों से.

आजतक से बातचीत में संस्था के संस्थापक स्वामी दर्शन भर्ती ने कहा था, "जिस प्रदेश में देश भक्त पैदा होते थे, वो पलायन कर गए. अब जेहादी बसाए जा रहे हैं. उनकी रोटी, बेटी और चोटी पर बड़ा संकट है. अगर जिहादियों को नहीं भगाया गया तो, उत्तराखंड का खात्मा हो जाएगा" दर्शन भर्ती ने गोहत्या के भी आरोप लगाए थे और कहा था कि उनका धर्म संविधान से भी ऊपर है.

देवभूमि रक्षा अभियान, वही समूह है जिसने पिछले महीने भाजपा नेता यशपाल रावत की बेटी की शादी के ख़िलाफ़ राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन किया था. क्यों? क्योंकि ये शादी एक मुस्लिम आदमी से हो रही थी, जिससे वो प्रेम करती थी. विरोध की वजह से समारोह रद्द भी करना पड़ा. अब इसी देवभूमि रक्षा अभियान की ओर से कथित 'लव जिहाद' के बढ़ते मामलों के खिलाफ 15 जून को एक महापंचायत का आयोजन किया गया है.  

हैदराबाद से सांसद और AIMIM प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी ने इस महापंचायत पर चिंता जताई है. ओवैसी ने ट्वीट कर कहा,
"15 जून को होने वाली महापंचायत पर तुरंत रोक लगाई जाए! वहां रह रहे लोगों को सुरक्षा प्रदान की जाए. वहां से पलायन कर गए लोगों को वापस बुलाने का इंतज़ाम किया जाए. भाजपा सरकार का काम है कि गुनहगारों को जेल भेजे और जल्द अमन क़ायम हो."

और जिन पर अमन कायम करने की जिम्मेदारी है वो क्या कह रहे हैं?
दो दिन पहले यानी 10 जून को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तरकाशी आए थे. यहां उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में लव जिहाद और लैंड जिहाद को बख्शा नहीं जाएगा. धामी ने समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) का भी जिक्र किया और कहा कि जल्द इसे उत्तराखंड में लागू किया जाएगा. धामी इससे पहले भी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की बात कह चुके हैं. साथ ही राज्य की डेमोग्राफ़ी में बदलाव को लेकर भी चिंता जता चुके हैं. डेमोग्राफी में बदलाव का मतलब है किसी क्षेत्र की आबादी के आकार और संरचना में होने वाले बदलाव. इसे किसी समूह या समुदाय की आबादी में होने वाले बदलावों से भी जोड़कर देखा जाता है. 10 जून के बाद आज एक बार फिर से उन्होंने लव जिहाद और डेमोग्राफ़ी चेंज पर एक्शन लेने की बात कही.

एक तरफ धामी कह रहे हैं कि राज्य में किसी भी कीमत पर कानून व्यवस्था खराब नहीं होने दी जाएगी. लव जिहाद पर कार्रवाई की बात कह रहे हैं. लेकिन उनके वादों और दावों पर सवाल उठ रहे हैं. सवाल ये कि मुस्लिम समुदाय की दुकानों पर पोस्टर लगा दिए गए, उन्हें दुकान खाली करने की धमकी दी गई, लेकिन ऐसा करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. इसीलिए पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल भी उठ रहे हैं. उत्तरकाशी की घटना एक उदाहरण मात्र है कि किस तरह से छोटी-छोटी घटनाओं को सांप्रदायिक रंग देकर कानून-व्यवस्था का प्रश्न बना दिया जाता है.