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CRPF जवान को नक्सलियों से छुड़ाने वाले पत्रकार मुकेश चंद्राकर की कहानी, साथियों ने सब बताया

Mukesh Chandrakar Murder Case: मुकेश चंद्राकर नक्सल प्रभावित सुदूर इलाक़ों में जाते और वहां की कहानी कहते. उन्होंने 2021 में बीजापुर में नक्सलियों द्वारा किडनैप किए गए CRPF जवान की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस निडर-निर्भीक पत्रकार की कहानी, जानिए उसके साथियों की जुबानी.

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मुकेश चंद्राकर बस्तर जंक्शन नाम का यू-ट्यूब चैनल चलाते थे. (फ़ोटो - फ़ेसबुक/Mukesh Chandrakar)

छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर (Mukesh Chandrakar) का शव बरामद होने के बाद बवाल मचा है. एक ठेकेदार के कंपाउंड में बने सेप्टिक टैंक में उनका शव मिला है. छत्तीसगढ़ के पत्रकारों का कहना है कि मुकेश चंद्राकर ने ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के ख़िलाफ़ सड़क निर्माण में कथित भ्रष्टाचार की रिपोर्ट की थी, इसलिए मुकेश की हत्या की गई है. मुकेश की आख़िरी लोकेशन भी ठेकेदार के यहां बने कंपाउंड की ही बताई गई.

छत्तीसगढ़ के उनके साथी पत्रकारों ने इसे हत्या बताया और उन्होंने मुकेश से जुड़े अपने अनुभव सुनाए हैं. सबने कहा कि अगर दिल्ली या रायपुर से कोई पत्रकार रिपोर्टिंग के लिए बीजापुर जाता था, तो उसका ठिकाना मुकेश चंद्राकर का घर ही होता था. मुकेश 2021 में भी चर्चा में आए, जब वो नक्सलियों के पास से एक CRPF के जवान को आग्रह कर ले आए थे. मुकेश उन चंद लोगों में हैं, जिनकी बस्तर के जंगलों में अंदर तक पहुंच थी. 

मुकेश चंद्राकर की मौत के मामले में 3 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. इनमें आरोपी ठेकेदार सुरेश चंद्राकर के दो सगे भाई, दिनेश चंद्राकर और रितेश चंद्राकर भी शामिल हैं. जबकि ठेकेदार सुरेश अब भी फरार है. ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ ने इस घटना की निंदा की है और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए जाने की मांग की है. बीजापुर और रायपुर में पत्रकार मुकेश के साथ न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

Mukesh Chandrakar कौन थे?

29 साल के मुकेश की पढ़ाई बस्तर संभाग में हुई. छोटी उम्र में ही उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया. उनके भाई युकेश चंद्राकर भी पत्रकार हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार बताते हैं कि मुकेश चंद्राकर बासागुड़ा के रहने वाले हैं. ये गांव नक्सलियों के ख़िलाफ़ छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चलाया गए एक आंदोलन (सलवा जुडूम) के समय उजाड़ दिया गया था. 3 साल तक आसपास के अनेकों गांव वीरान रहे थे. फिर गांव को 2009 में बसाया गया.

मुकेश चंद्राकर NDTV समेत कई मीडिया संस्थानों के लिए फ़्रीलांसिंग करते थे. ‘’ नाम का उनका यू-ट्यूब चैनल है, जिसके लगभग 1 लाख 60 हज़ार सब्सक्राइबर हैं. पत्रकारिता का उनका अनुभव लगभग 1 दशक का था. वो नक्सल प्रभावित सुदूर इलाक़ों में जाते और दंडकारण्य की कहानी कहते. जब पत्रकारों के राजनीतिक झुकावों पर अक्सर चर्चा होती है, ऐसे समय में मुकेश नक्सलियों और पुलिस अधिकारियों से संपर्क रखते थे.

पुलिस को अगर नक्सलियों से कोई काम होता, तो मुकेश दोनों के संपर्क सूत्र होते. हिमांशु कुमार अपने फ़ेसबुक पोस्ट में मुकेश के बारे में बताते हैं,

2019 में जब मैं बीजापुर गया, तब मुकेश चंद्राकर ने मेरा इंटरव्यू लिया. हम उसके बाद से लगातार संपर्क में रहे. मेरी उनसे कई बार फोन पर बात हुई. वो अक्सर अपने वीडियो के लिंक मुझे मेरे वॉट्सऐप पर भेजा करते. वो होनहार और मेहनती थे. वो ख़तरे उठाकर दूर-दूर तक रिपोर्टिंग करने जाते थे.

Mukesh Chandrakar को साथी पत्रकारों ने कैसे याद किया?

छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग नक्सलियों से घिरा हुआ है. इसी बस्तर संभाग में बीज़ापुर भी आता है, जहां मुकेश रहते थे. लेकिन कई बार बस्तर की रिपोर्टिंग के लिए रायपुर और दिल्ली के पत्रकार बस्तर और नारायणपुर के सुदूर इलाक़ों में पहुंचते, लेकिन बीजापुर कई बार उनसे छूट जाता. ऐसे में मुकेश उनसे नाराज़ होते और उन्हें अपने यहां आने का न्योता देते. कई बार पुलिस पर आरोप लगते हैं कि उन्होंने जिनको नक्सली बताकर मार दिया, वो आम ग्रामीण लोग होते हैं. ऐसे में मुकेश को ये हमेशा पता होता था कि मुठभेड़ असली है या नकली.

छत्तीसगढ़ के सीनियर पत्रकार देवेश तिवारी ने मुकेश के साथ अपने अनुभव शेयर किए. लल्लनटॉप के साथ बातचीत में उन्होंने बताया,

बीजापुर से जुड़ी किसी भी ख़बर को लेकर मुझे सबसे पुख्ता जानकारी मुकेश चंद्राकर से ही मिलती थी. चाहे जंगल में किसी अंदर के इलाक़े में कोई घटना हो जाए या नक्सली भीतर से कोई संदेश दें. वो सब अपने सच्चे रूप में मुकेश के ज़रिए निकलती थी. कोई मुठभेड़ सच्ची है या पुलिस द्वारा प्लांटेड, ये भी मुकेश को पता होता था.

देवेश कहते हैं कि वैसे तो पत्रकारिता हर जगह मुश्किल हो चली है, लेकिन बस्तर में समस्याएं और भी हैं. वो बस्तर के पत्रकार के संघर्ष को लेकर कहते हैं,

सांप बिच्छू से लेकर उफनती नदी में बहने का डर. IED बम या स्पाइन घोल का ख़तरा. ये सब तो ऐसी चीज़ें हैं, जिनसे जंगल में होने के चलते आपको सामना करना ही पड़ेगा. लेकिन इसके अलावा ये भी डर कि नक्सली या पुलिस की गोली के बीच आप झूलते रहते हैं. और चूंकि इलाक़े की ख़बरों तक ‘मेनस्ट्रीम मीडिया’ की पहुंच तुलनात्मक रूप से कम है, तो ऐसे में भ्रष्टाचार की संभावना ज़्यादा. जब आप उन पर ख़बरें करें, तो उसके लिए दबाव भी ज़्यादा होता है.

मुकेश के लिए ऐसी ही बात बस्तर के सीनियर पत्रकार और बस्तर टॉकीज नाम का यू-ट्यूब चैनल चलाने वाले रानु (विकास) तिवारी भी कहते हैं. उन्होंने लल्लनटॉप को बताया कि मुकेश उनके ‘कॉपी पेस्ट’ थे. रानु तिवारी कहते हैं,

मुकेश अक्सर मेरे पास आता और पत्रकारिता को लेकर बात करता. शुरुआत में उसने गैरेज में काम किया, महुआ बीना और ऐसे करते-करते पत्रकारिता में आया. मुझसे कहता कि आपकी ही तरह रिपोर्टिंग करूंगा. गमछा रखना, कमर पर हाथ रखकर रिपोर्टिंग करना, ये सब उसने मुझे देखकर ही शुरू किया. बीजापुर में मेरा अंतिम ठिकाना मुकेश का घर ही होता था. मैं उसके घर को अपने लिए ‘चंद्राकर धर्मशाला’ कहता.

रानु तिवारी ने कहा कि लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि आपने कोई सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी या अपने यू-ट्यूब चैनल पर ख़बर नहीं दी. लेकिन मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि ये मेरे लिए बहुत पर्सनल था. अभी मेरे पास प्रतिक्रिया देने के लिए कुछ नहीं है. 

भिलाई टाइम्स नाम का पोर्टल चलाने वाले स्थानीय पत्रकार ने भी मुकेश चंद्राकर को याद किया. उन्होंने अपने यू-ट्यूब चैनल पर कहा,

अक्सर मुकेश से बात होती थी. वो हमेशा कहता था कि बस्तर तो आते हो, लेकिन बीजापुर नहीं आते. वो ज़मीनी हक़ीकत बाहर लाता था. ऐसी जगहों पर पहुंचकर ख़बर लाता था, जहां सिस्टम भी नहीं पहुंचा. जब रायपुर या दिल्ली के पत्रकार बीजापुर पहुंचते थे, तो मुकेश उनके रहने और खाने-पीने का इंतेजाम करता था. आज मैं भावुक हूं, उनकी बातों को याद कर रहा हूं.

Mukesh Chandrakar की रिपोर्ट में क्या था?

मुकेश चंद्राकर ने ठेकेदार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार की रिपोर्ट तैयार की थी. ये रिपोर्ट 24 दिसंबर को NDTV में छपी, जिसके मुताबिक, बीजापुर के गंगालूर से नेलशनार तक बन रही सड़क के निर्माण में काफ़ी भ्रष्टाचार हुआ. रिपोर्ट में सिर्फ़ एक किलोमीटर के दायरे में ‘35 गड्ढे’ मिलने का भी ज़िक्र था. सड़क निर्माण में इस्तेमाल हो रही सामग्री की गुणवत्ता भी ‘काफी खराब’ बताई गई.

प्रोजेक्ट ‘120 करोड़ रुपये’ का बताया जा रहा है, जिसमें 52 किलोमीटर की लंबाई वाली सड़क बननी है. इसमें 40 किलोमीटर तक काम पूरा हो चुका है. जब मुकेश चंद्राकर की undefined, तब जगदलपुर लोक निर्माण विभाग ने जांच कमिटी गठित की. रिपोर्ट में बीजापुर कलेक्टर संबित मिश्रा का भी बयान छपा. कलेक्टर ने बताया था कि PWD को गुणवत्तापूर्ण काम करने का आदेश दिया है.

CRPF जवान को नक्सलियों के पास से लाए

मुकेश चंद्राकर ने 2021 में बीजापुर में नक्सलियों द्वारा किडनैप किए गए एक CRPF जवान की रिहाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दरअसल, 3 अप्रैल, 2024 को बीजापुर में नक्सलियों और पुलिस में मुठभेड़ हो गई. इस मुठभेड़ में 22 जवान शहीद हो गए और 31 घायल हो गए. वहीं, CRPF के कमांडो बटालियन फ़ॉर रेजोल्यूट एक्शन (COBRA) के जवान राकेश्वर सिंह मन्हास को नक्सलियों ने अपने कब्जे में रख लिया. लेकिन लगभग एक हफ़्ते के अंदर राकेश्वर सिंह को रिहा कर दिया गया.

हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के मुताबिक़, तब इस रिहाई का श्रेय पुलिस ने मुकेश चंद्राकर को दिया था. मुकेश अक्सर नक्सली हमलों, मुठभेड़ों और बस्तर को प्रभावित करने वाले हर ज़रूरी मुद्दों पर व्यापक रूप से रिपोर्टिंग करते रहते थे. हिंदुस्तान टाइम्स के साथ बातचीत में NDTV (जिसके लिए मुकेश फ़्रीलांसिंग करते थे) के रेजिडेंट एडिटर अनुराग द्वारी बताते हैं,

एक पत्रकार के रूप में मेरे साथी ने सच्चाई को उजागर करने के लिए अंतिम क़ीमत चुकाई. यह उन जोखिमों की एक कठोर याद दिलाता है, जो पत्रकार जवाबदेही की तलाश में प्रतिदिन उठाते हैं.

अनुराग द्वारी आगे कहते हैं मुकेश का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, हम पारदर्शिता और न्याय के लिए उनकी लड़ाई जारी रखेंगे.

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