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मुस्लिम धर्म अपनाने वाले मुहम्मद अली, अपना पुराना नाम सुनकर तैश में क्यूं आ जाते थे?

वो घटना जिसके बाद उन्हें किसी ने दोबारा केसियस क्ले नहीं पुकारा.

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'मेरा नाम मोहम्मद अली है. और अगर तुमने इसे अभी नहीं बोला, तो तुम इसे लड़ाई के बाद ठीक उस रिंग के बीचों-बीच पुकारोगे.'

17 जनवरी मोहम्मद अली का जन्मदिन होता है. पर बात साल 1964 की. विश्व मुक्केबाजी के सबसे दबंग नाम सोनी लिस्टन को चैंपियनशिप मैच में धराशायी कर सिर्फ़ 22 साल की उम्र में मुक्केबाज़ केसियस क्ले वर्ल्ड हैवीवेट बॉक्सिंग चैम्पियन बने. और इसके फौरन बाद उन्होंने अपना जन्मनाम छोड़कर एक नया नाम, नया धर्म अपनाने की घोषणा की.

अमेरिकन मुस्लिम धार्मिक संगठन 'नेशन ऑफ इस्लाम' और उनके नेता मैल्कम एक्स से प्रभावित होकर केसियस क्ले ने खुद को 'मोहम्मद अली' घोषित किया. संयुक्त राज्य अमेरिका मोहम्मद अली के इस फैसले पर दो फाड़ हो गया. उन्हें ऐसे लोगों तक का गुस्सा झेलना पड़ा, जिनका बॉक्सिंग से कोई लेना-देना ही नहीं था. बहुत लोगों ने उनके नाम और धर्म छोड़ने को उस अमेरिकन पहचान से गद्दारी माना, जिसने उन्हें यहां तक पहुंचाया था.

उसी साल वर्ल्ड बॉक्सिंग एसोसिएशन ने उनसे उनका हैवीवेट चैम्पियन का ताज छीन लिया. वजह तकनीकी थी. उन्होंने लिस्टन से रिटर्न टाइटल बाउट खेलने का कॉट्रेक्ट साइन किया था, जो वर्ल्ड बॉक्सिंग एसोसिएशन के नियमों के खिलाफ़ जाता था. दूसरी ओर शिकागो में मार्च 1965 में अर्नी टेरेल पन्द्रह राउंड चले मुकाबले में एडी माचन को हराकर नए डब्ल्यूबीए हैवीवेट टाइटल विजेता बन गए.

लेकिन मोहम्मद अली खेलते रहे. जीतते रहे. इधर उनकी नई पहचान को अमेरिकी और यूरोपियन समुदाय का एक बड़ा हिस्सा स्वीकार करने को तैयार नहीं था. खेल के जर्नल और पत्रिकाएं अभी तक उनका नाम केसियस क्ले ही लिखती आ रही थीं.

साल 1967. मोहम्मद अली की 28वीं प्रोफेशनल फाइट. उनका रिकॉर्ड अब तक 27-0 था. सामने थे अर्नी टेरेल. डब्ल्यूबीए हैवीवेट चैम्पियन. रिकॉर्ड 39-4 का. अर्नी पिछले पांच साल से अपना एक भी मुकाबला नहीं हारे थे और अपने करियर की पीक फॉर्म में थे. अली 6 फुट 3 इंच थे तो टेरेल 6 फुट 6 इंच. लम्बे हाथों के साथ उनकी 82 इंच की 'long jab' मशहूर थी, और उन्हें अपने समय का सबसे खतरनाक मुक्केबाज़ बनाती थी. उन्हें 'दी ऑक्टोपस' के नाम से जाना जाता था, और ह्यूस्टन में उस मैच के अति नाटकीय बिल्डअप को 'बैटल ऑफ दि सेंचुरी' बतानेवाले भी कम ना थे. हालांकि मोहम्मद अली का पलड़ा भारी माना जा रहा था, अली के चाहनेवालों की नज़र में भी टेरेल एक मज़बूत प्रतिद्वंद्वी थे.

6 फरवरी 1967. ह्यूस्टन के एस्ट्रोडोम में यह मुकाबला तय हुआ. दोनों ओर से उम्मीदें चरम पर थीं. अर्नी ने यहां बस एक ही गलती की. मैच से पहले के बिल्डअप के दौरान उन्होंने, शायद आदत के चलते या शायद सोच-समझकर, मोहम्मद अली को बार-बार उनके पुराने नाम केसियस क्ले से ही बुलाया. अली भड़क गए. नया नाम और नया धर्म अपनाते हुए अली ने यह साफ़ घोषणा की थी कि वो अपना पुराना नाम इसलिए छोड़ रहे हैं क्योंकि यह गुलामी की पहचान है.

बॉक्सिंग मैच के ठीक पहले एबीसी स्टूडियो में हॉवर्ड कोसेल को इंटरव्यू देते हुए यह मुद्दा एकदम उबाल पर आ गया. जैसे ही टेरेल ने सवाल का जवाब देते हुए 'केसियस क्ले' नाम लिया, अली बीच में ही उनकी बात काटकर चिल्लाने लगे,

'जब हॉवर्ड कोसेल और बाकी सभी मुझे मोहम्मद अली के नाम से पुकार रहे हैं, तुम खुद ब्लैक होकर भी मुझे बार-बार कैसियस क्ले क्यों कहे जा रहे हो?'

'क्योंकि हॉवर्ड कोसेल तुमसे नहीं लड़नेवाले, मैं लड़नेवाला हूं.'

'पर तुम मुझे मेरे नाम से क्यों नहीं पुकार रहे?'

'पर क्या है तुम्हारा नाम? तुमने तो कुछ साल पहले मुझे अपना नाम कैसियस क्ले बताया था.'

'मैंने कभी तुम्हें अपना नाम कैसियस क्ले नहीं बताया. मेरा नाम मोहम्मद अली है और तुमने ये अभी नहीं लिया तो तुम इसे लड़ाई के बाद ठीक उस रिंग के बीच में खड़े होकर पुकारोगे.'

https://www.youtube.com/watch?v=IBVviGSgu7M

ठीक इसके बाद अली ने टेरेल को 'अंकल टॉम' कहकर पुकारा और वहीं कैमरे पर दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो गई. अली अपनी जैकेट उतारकर स्टूडियो में ही मुकाबले के लिए तैयार थे और वहां खड़े लोगों को इंटरव्यू छोड़कर दोनों मुक्केबाजों के मध्य बीच-बचाव करवाना पड़ा. कई लोगों ने बाद में इसे दोनों का सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए किया 'पब्लिसिटी स्टंट' भी बताया, लेकिन जिन्होंने भी रिंगसाइड में 6 फरवरी का वो मुकाबला देखा उन्होंने ऐसा कहने की जुर्रत भी नहीं की.

37,321 दर्शकों की उपस्थिति में मुकाबला शुरु हुआ. मोहम्मद अली व्हाइट-रेड ड्रेस में थे और अपनी मशहूर 'फ्लोट लाइक ए बटरफ्लाई' तकनीक के साथ चपलता से पूरी रिंग में घूम रहे थे. उधर अली से तीन इंच ज़्यादा लम्बे टेरेल अपने हाथों को कुहनियों के बल सीधा कर सुरक्षा घेरा बनाए हुए थे और अली की एग्रेसिव टेक्टिक्स का काफी हद तक मुकाबला कर रहे थे. आलोचकों ने इसे 'पीकाबू स्टाइल' नाम दिया था. पहले छ-सात राउंड तक तो टेरेल मुकाबले पर रहे. अली मनमर्जी से खेलते लग रहे थे, लेकिन गेम में नॉकआउट पंच नहीं था. खेल पलट भी सकता था.

पांचवें राउंड तक आते-आते अली ने टेरेल की मशहूर 'long jab' का सही मंसूबा बांध लिया था, और उसके ठीक बाहर अपने पंजे जमाने लगे थे. और फिर सातवें राउंड में वो निर्णायक मौका आया. रिंग में तितली सी चपलता से फिसलते अली के पैर अब किसी बब्बर शेर से जम गए थे. टेरेल ने बस एक पल को आक्रामकता दिखाते हुए अपना सुरक्षा गार्ड नीचे किया और अली के दायें हाथ का अपरकट उनकी आंख पर लगा. खून टपकने लगा. और वो  टेरेल को पंच मारते हुए चिल्लाए, 'what's my name?, what's my name?'. इसके आगे मुकाबला पूरी तरह एकतरफा था. एकतरफा और बेरहम. मोहम्मद अली टेरेल की घायल आंख पर घूंसे पर घूंसे मारते जा रहे थे और चिल्लाते जा रहे थे,  'What's my name? Uncle tom! What's my name?'

टेरेल का चोखटा बिगड़ गया था और आंखें सूजकर बन्द हो चुकी थी. चेहरे से लगातार खून रिंग पर गिर रहा था. लेकिन मोहम्मद अली मारते ही जा रहे थे. अली के कोच रिंग के पास से चिल्ला रहे थे, 'kill him! kill him!'. देखनेवाले विश्व चैम्पियन मुक्केबाज़ के इस आततायी रूप को देख सन्न थे. दर्शकों में कई रहम की अपील करते हुए, मुकाबला रोके जाने की मांग करते रहे. लेकिन फाइट पूरे पंद्रह राउंड तक चली. रेफरी हैरी केसलर ने 13वें और 14वें राउंड में डॉक्टर को बुलाकर टेरेल की दाईं आंख की जांच भी करवाई. मुकाबले के बाद अर्नी को अपनी घायल आंख का ऑपरेशन करवाना पड़ा और हालांकि वो रिंग में वापस लौटे, उनका चैम्पियन बनने का सपना वहीं हमेशा के लिए खत्म हो गया.

मोहम्मद अली ने डब्ल्यूबीए का 1964 में छीना विश्व हैवीवेट चैम्पियन का खिताब फिर हासिल किया. मुकाबले के बाद 13 फरवरी को 'स्पोर्ट्स इलस्ट्रेटेड' में लिखते हुए पत्रकार टेक्स मुले ने इस मुकाबले को एक साथ "मुक्केबाज़ी की स्किल और नृशंसता के बर्बरतापूर्ण प्रदर्शन की शानदार नुमाइश" करार दिया.

https://www.youtube.com/watch?v=H8ZZmkNo6-o

पच्चीस वर्षीय अली ने सबको अच्छी तरह बता दिया था कि उनका नाम क्या है. जब वो अपनी नई चुनी हुई पहचान की रिंग में इस बर्बर तरीके से नुमाइश कर रहे थे, दरअसल वो उस अमेरिकी सरकार को भी जवाब दे रहे थे जो उन्हें जबरन वियतनाम युद्ध में धकेलना चाहती थी. लेकिन अब वो एक गुलाम नस्ल के सदस्य नहीं, एक आज़ाद इंसान थे. उन्होंने शाब्दिक और दार्शनिक, दोनों अर्थों में बाकायदा लड़ के अपनी इस नई पहचान को हासिल किया था.

मोहम्मद अली ने वियतनाम युद्ध का हिस्सा बनने से साफ़ इनकार कर दिया. "मेरी चेतना मुझे वहां जाकर अपने ही भाइयों, कुछ अन्य गहरे रंग के, गरीब और भूखे लोगों पर गोली चलाने की इजाज़त नहीं देती.  और वो भी इस बड़े और ताकत के दंभ से भरे अमेरिका के लिए, आखिर क्यूं? उन्होंने मुझे कभी 'निगर' नहीं कहा. उन्होंने मुझे कभी मारा नहीं. कभी मुझ पर कुत्ते नहीं छोड़े. उन्होंने मुझसे मेरी राष्ट्रीयता नहीं छीनी. मेरी मां का बलात्कार नहीं किया, मेरे पिता की हत्या नहीं की. मैं उन गरीब लोगों को कैसे मार सकता हूं. इससे अच्छा हो मुझे ही जेल में डाल दो." उनके शब्द थे.

मोहम्मद अली इसके बाद बस एक ही फाइट और लड़ पाए. सरकारी फरमान का उल्लंघन करने के जुर्म में उनसे उनके सारे टाइटल छीन लिए गए और उन्हें पांच वर्ष जेल की सज़ा सुना दी गई. सदी का सबसे बड़ा खिलाड़ी अचानक अपने ही देश में अपराधी था. जब तक वो 1970 में कोर्ट केस जीतकर प्रोफेशनल बॉक्सिंग में वापस लौटे, वे अपने बॉक्सिंग करियर के तीन सबसे चमकदार साल गंवा चुके थे. याद रखिए, यहां हम संभवत: दुनिया के सबसे बड़े खिलाड़ी के करियर के पीक पर पहुंचे तीन सालों बात कर रहे हैं.

लेकिन मोहम्मद अली अपने कहे से डिगे नहीं.

और इसके बाद उन्हें किसी ने केसियस क्ले कहकर नहीं पुकारा.