चलो, दिलदार चलो.. चांद के पार चलो — मगर चांद तो दूर जा रहा है! ऐसा एक रिसर्च कह रहा है. विस्कॉन्सिन-मेडिसन विश्वविद्यालय का रिसर्च. इसके मुताबिक़, चांद धरती से दूर जा रहा है और इसका हम पर सीधा असर पड़ेगा. हो सकता है, दिन के घंटे भी बढ़ जाएं. अब जो एक घंटा बढ़ेगा, ये सोने के कोटे में जुड़ेगा या काम के? ये आपकी समय-काल-परिस्थिति को मुबारक़!
'चंदा मामा' एक रोज बहुत दूर होंगे, तब दिन 25 घंटों का होगा, ये कब होगा?
चांद धरती से दूर जा रहा है और इसका हम पर सीधा असर पड़ेगा. क्या-क्या होगा?

पृथ्वी सूरज से जितनी दूर है, उससे कम या ज़्यादा होती, तो जीवन ही न होता. पृथ्वी के ऐक्सिस भी तय है. थोड़ी सी झुकी हुई है. अगर न झुकी होती, तो वैज्ञानिक बताते हैं कि मौसम ही न होते. मतलब हमारे होने का संयोग ‘टू परफ़ेक्ट’ है. फिर चंदा मामा दूर के और दूर कैसे जा रहे हैं?
अंतरिक्ष में पृथ्वी कितनी स्पीड से चलती है? ये बाक़ी खगोलीय बॉडीज़ से तय होता है, जो उस पर फ़ोर्स लगाते हैं. जैसे, बाक़ी ग्रह और चंद्रमा. ये पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने, डगमगाने और सूर्य के चारों ओर घूमने में मदद करते हैं. इन सभी बदलावों का एक नाम है, मिलनकोविच चक्र (Milankovitch Cycles). यही तय करता है कि धरती पर सूरज की रोशनी कितना और कैसे बिखरेगी. माने एक अर्थ में पृथ्वी की जलवायु पर भी इसका असर होता है.
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स्टडी के मुताबिक़, चांद पृथ्वी से लगभग 3.8 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की रफ़्तार से दूर जा रहा है. इसका असर धरती पर दिन की लंबाई पर पड़ेगा. हिसाब लगाया जाए, तो यही क़रीब 20 करोड़ सालों में या उसके आसपास. तब धरती का एक दिन 25 घंटे तक चलेगा.
विस्कॉन्सिन-मेडिसन विश्वविद्यालय में भूविज्ञान के प्रोफ़ेसर स्टीफन मेयर्स बताते हैं,
जैसे-जैसे चंद्रमा दूर होता जाता है, पृथ्वी एक घूमते हुए स्केटर की तरह होती है, जो अपनी बाहें फैलाते ही धीमी हो जाती है.
ऐसा केवल धरती और चांद के बीच गुरुत्वाकर्षण संबंधों और इन दोनों के बीच लगाए जा रहे ज्वारीय बल (टाइडल फ़ोर्स) के चलते होता है. इसी स्टडी से पता चलता है कि 140 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर एक दिन 18 घंटे का होता था.
अब जब 25 हो जाएगा, तब बड़ी दिक़्क़त होगी. इंटरनैशनल लेबर लॉ कहता है कि दिन को तीन हिस्सों में बांटना चाहिए. 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 मनोरंजन. 25 होने के बाद ये हिसाब गड़बड़ाएगा. मगर हमें क्या! जो प्राणी मुचुअल फंड में निवेश करने से पहले ये सोचते हैं कि कौन इतने दिन जिएगा, उनके लिए चांद केवल सुंदर कविताओं में आता है. इसीलिए, इब्न-ए-इंशा की एक सुंदर रचना का अंश:
शाम समय एक ऊंची सीढ़ियों वाले घर के आंगन में
चांद को उतरे देखा हम ने.. चांद भी कैसा पूरा चांद
‘इंशा जी’ इन चाहने वाली, देखने वाली आंखों ने
मुल्कों-मुल्कों, शहरों-शहरों, कैसा-कैसा देखा चांद
दर्द की टीस तो उठती थी, पर इतनी भी भरपूर कभी
आज से पहला कब उतरा था दिल में इतना गहरा चांद
अम्बर ने धरती पर फेंकी नूर की छींट उदास-उदास
आज की शब तो अंधी शब थी, आज किधर से निकला चांद
‘इंशा जी’ ये और नगर है, इस बस्ती की रीत यही
सब की अपनी-अपनी आंखें, सबका अपना-अपना चांद
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