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आधी अधूरी मोना लीसा दुनिया की सबसे फेमस पेंटिंग कैसे बन गई?

क्या है मोना लीसा की प्रसिद्धि का राज़?

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मोना लीसा को बनाने में लियोनार्डो द विंची को 14 साल लग गए थे (तस्वीर: wikimedia Commons)

दुनिया में दो पेंटिंग सबसे ज़्यादा फ़ेमस हुई. इत्तेफ़ाक ये कि इन दोनों पेंटिंग्स के चित्रकार का नाम लियोनार्डो है. इनमें एक वो थी जो फ़िल्म टाइटैनिक में लियोनार्डो द कैप्रियो ने बनाई थी. और दूसरी जिसका नाम है मोना लीसा (Mona Lisa). इसे बनाया था लियोनार्डो द विंची (Leonardo di Vinci) ने. टाइटैनिक वाली पेंटिंग क्यों फ़ेमस है, ज़ाहिर है. फ़िल्म फ़ेमस तो पेंटिंग भी फ़ेमस. लेकिन सवाल ये है कि दूसरे लियोनार्डो की पेंटिंग, मोना लीसा पूरी दुनिया में इतनी फ़ेमस कैसे हो गई, कि पेंटिंग्स में रत्ती भर रुचि ना रखने वाला आदमी भी इसका नाम जानता है. शायद सुना हो आपने कि मोना लीसा की प्रसिद्धि का कारण उसकी रहस्यमई मुस्कराहट है. लेकिन क्या सच में यही बात है. या कोई और ही कारण है. क्या है इस पेंटिंग का इतिहास. ये इतनी फ़ेमस कैसे हुई और सबसे बड़ा सवाल, इसकी क़ीमत कितनी है? (Mona Lisa price) 

Mona Lisa की चोरी

कहानी की शुरुआत करते हैं साल 1911, 22 अगस्त की तारीख़ से. मंगलवार का दिन. फ़्रांस की राजधानी पेरिस में लूव नाम का एक म्यूज़ियम है, जिसे खोलने की तैयारी हो रही थी. लूव दुनिया का सबसे बड़ा म्यूज़ियम है. मतलब हॉलीवुड फ़िल्मों में जितनी पेंटिंग चोरी होते हुए आपने देखी होंगी, उनमें से अधिकतर लूव में ही है. दुनिया की सबसे फ़ेमस पेंटिंग मोना लीसा भी यहीं लगी है. 1911 की उस सुबह लूव में काफ़ी गहमागहमी थी. क्योंकि लुई बेरुद नाम का एक फ़ेमस पेंटर संग्रहालय में आने वाला था. लुई बेरूद उस रोज़ मोना लीसा की एक नक़ल बनाने वाले थे. लेकिन जैसे ही वो पेंटिंग के पास पहुंचे. वहां नजारा दूसरा था. पेंटिंग की जगह चार कील और धूल का एक आयत बना हुआ था. 21 वीं सदी होती तो पेंटर इसे मॉडर्न आर्ट समझकर बलैया लेने लगता. लेकिन लुई बेरूद पुराने बखत के आदमी थे. सो गार्ड से पूछने लगे, भई ये लियोनार्डो की मोना लीसा कहां गई?

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गार्ड हैरान थे. किसी ने इस पेंटिंग की तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया था. लाज़मी है. अब आगरा में रहने वाला रोज़ रोज़ ताजमहल देखने जो क्या जाएगा. पेंटिंग को खूब ढूंढा गया. लेकिन वो नहीं मिली. जैसे ही ये बात म्यूज़ियम के मैनेजमेंट तक पहुंची, वहां हड़कम्प मच गया. बात पूरे शहर में फैली. फिर देश में. और फिर दुनिया में. एक पुराना फ़लसफ़ा है कि कोई चीज़ खो जाए, तब जाकर उसकी असली कद्र मालूम होती है. ऐसा ही मोना लीसा के साथ भी हुआ. हालांकि उस समय तक मोना लीसा आम जनता में इतनी फ़ेमस नहीं थी. लेकिन चित्रकार कम्यूनिटी में इसके क़दरदान बहुत थे. ऐसे सैकड़ों लोग लूव में जमा हुए. शोक मनाने के लिए. न्यू यॉर्क टाइम्स ने अगले दिन इस खबर को पहले पन्ने पर जगह दी. इस खबर के अनुसार पेरिस में हाल वो हो गया था मानों अपने किसी चहेते की मौत हो गई हो. लोग मोना लीसा की ख़ाली जगह पे फूल चढ़ाने लगे.

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फ्रांस के लूव म्यूजियम में अधिकतर पर्यटक मोना लीसा को देखने आते हैं (तस्वीर: getty)

जिस रोज़ मोना लीसा चोरी हुई, म्यूज़ियम का निदेशक छुट्टी मनाने मेक्सिको गया था. लौटने के बाद जब उससे इस बारे में पूछा गया, उसने जवाब दिया, "मोना लीसा का चोरी होना ऐसा है. मानो कोई रात के अंधेरे में जुगनू चुराने की कोशिश करे". निदेशक को उसकी लापरवाही के लिए उसके पद से हटा दिया गया. लेकिन ये समस्या का हल नहीं था. लियोनार्डो की मोना लीसा, जो पिछले 400 साल से झुके हुए कंधे लेकर एकजगह बैठकर अपनी रहस्यमई मुस्कान बिखेरती रहती थी. अचानक उठकर चली गई थी. लेकिन कहां? और किसके साथ? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं था.

Leonardo ने चुराई Mona Lisa?

मोना लीसा की खोज के लिए दुनियाभर में पुलिस दौड़ाई गई. चप्पे चप्पे में छापे मारे गए. लेकिन कोई फ़ायदा ना हुआ. पुलिस ने सैकड़ों लोगों को गिरफ़्तार कर पूछताछ की. गिरफ़्तार किए जाने वालों में एक नाम ऐसा था. जो आगे चलकर दुनिया का महान चित्रकार बना. नाम था पाब्लो पिकासो. पिकासो की कुछ पेंटिंग हमने स्क्रीन पर दिखाई है, जिससे आपको पता चलेगा कि पेंटिंग की दुनिया में पिकासो भी कम बड़ा नाम नहीं. पिकासो शक के घेरे में इसलिए आए क्योंकि उन्होंने कुछ चोरी की पेंटिंग्स ख़रीदी थीं. पिकासो से भी पूछताछ हुई लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया. इस तरह कुछ दो साल बीत गए. अब तक सब मान चुके थे कि मोना लीसा हमेशा के लिए खो गई है. क्योंकि इस दौरान मार्केट में उसे बेचे या ख़रीदे जाने की कोई खबर नहीं थी.

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साल 1913 में मोना लीसा एक बार फिर खबरों में आई. पता चला कि इटली में किसी ने उसे बेचने की कोशिश की है. हुआ ये कि 29 नवंबर, 1913 की तारीख़ को इटली के एक एंटीक्स डीलर, एलफ़्रेदो गेरी के पास एक ख़त आया. लिखा था "लियोनार्डो द विंची की चोरी हुई पेंटिंग मेरे पास है. ये पेंटिंग इटली के पास होनी चाहिए क्योंकि इसे बनाने वाला भी इटली का था". लेटर में नीचे दस्तख़त में लिखा था- लियोनार्डो .

एलफ़्रेदो ने ख़त का जवाब दिया. ख़तों के ज़रिए ही एक मीटिंग फ़िक्स हुई. 10 दिसंबर 1913 के रोज़. पांच फुट तीन इंच का एक शख़्स एलफ़्रेदो गेरी की दुकान में दाखिल हुआ. उसकी बड़ी बड़ी मूंछे थी. पूछे जाने पर उसने अपना नाम लियोनार्डो बताया. उसने पेंटिंग दिखाने के बदले 1 लाख डॉलर यानी 2023 के हिसाब से लगभग 80 लाख रुपए की रक़म मांगी. सौदा तय हुआ. कुछ रोज़ बाद एलफ़्रेदो, इटली के त्रिपोली शहर के एक होटल के कमरे में दाखिल हुआ. ये लियोनार्डो का कमरा था. एलफ़्रेदो ने लियोनार्डो से पेंटिंग के बारे में पूछा. लियोनार्डो हड़बड़ी में था.

Mona lisa history
विंचेजो पेरूजिया ने 1911 में मोना लीसा को चोरी कर उसे फेमस कर दिया (तस्वीर: Getty)

उसने बिस्तर के नीचे से एक सूटकेस निकाला. सूटकेस के अंदर कपड़े थे. उसने कपड़े हटाए. कपड़ों के नीचे एक ख़ुफ़िया जेब बनी हुई थी. जेब के अंदर से उसने पेंटिंग बाहर निकाली. एलफ़्रेदो गेरी ने पेंटिंग को देखा. उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई. लियोनार्डो को लगा उसे पेंटिंग के असली होने की तसल्ली हो गई है. वो उठा और उसने डील पक्की करने के लिए अपना एक हाथ एलफ़्रेदो के तरफ़ बढ़ाया. दूसरी तरह से भी एक हाथ आया. लेकिन उस हाथ में एक हथकड़ी भी थी. लियोनार्डो ने गर्दन उठाई तो देखा, कमरे में पुलिस आ चुकी थी. तब जाकर उसे समझ आया कि ये पूरा खेल उसे फ़ंसाने के लिए रचा गया था.

कैसे चोरी हुई Mona Lisa?

जो शख़्स खुद को लियोनार्डो बता रहा था, उसका असली नाम विंचेजो पेरूजिया था. पेरूजिया ने पुलिस को पेंटिंग के चोरी होने की पूरी कहानी बताई. 21 अगस्त 1911 की सुबह. लूव म्यूज़ियम उस रोज़ मेंटेनेस के लिए बंद था. और ये बात पेरूजिया को मालूम थी. वो बाक़ी मज़दूरों के साथ म्यूज़ियम में दाखिल हुआ. और एक सफ़ेद पोशाक पहन ली. जो म्यूज़ियम के कर्मचारियों की पोशाक थी. इसके बाद वो म्यूज़ियम में उस जगह गया, जहां मोना लीसा टंगी हुई थी. पेंटिंग शीशे के अंदर थी. उसने उसे वहां से उतारा. और अपने सफ़ेद लबादे में लपेट लिया. इसके बाद वो जैसे म्यूज़ियम के अंदर घुसा था वैसे ही बाहर भी निकल गया. पेंटिंग को उसने दो साल तक पेरिस के अपने घर में छुपाकर रखा. जिसके बाद उसे वो इटली ले गया. यहां उसने पेंटिंग को बेचने की कोशिश की. और इसी चक्कर में वो पकड़ा गया. पेंटिंग बेचने के पीछे उसका मक़सद पैसे कमाना था. लेकिन साथ ही वो ये भी चाहता था कि पेंटिंग इटली के पास होनी चाहिए. क्योंकि उसे बनाने वाला यानी लियोनार्डो द विंची, इटली का नागरिक था.

विंचेजो पेरूजिया पकड़ा गया. उसे कुछ साल जेल में गुज़ारने पड़े. लेकिन साथ ही वो इटली का हीरो बन गया. पेंटिंग मिलने के बाद उसे पूरे इटली में प्रदर्शित किया गया. हालांकि इटली की सरकार ने फ़ैसला किया कि उसे फ़्रांस को लौटा दिया जाए. क्योंकि फ़्रांस के सम्राट, किंग फ़्रांसिस ने उसे लियोनार्डो द विंची से ख़रीदा था. दिसंबर 1913 में मोना लीसा को फ़्रांस को लौटा दिया गया. मोना लीसा लौट आई. जैसे घर से रूठकर भागा कोई बच्चा लौट आता है. जिस प्रकार वापिस लौटे बच्चे को घर में रहने वाले बच्चे से ज़्यादा प्यार मिलता है. ज़्यादा पूछ होती है. उसी तरह इस चोरी की घटना ने भी पूरी दुनिया में मोना लीसा को फ़ेमस कर दिया. मोना लीसा दुनिया की सबसे फ़ेमस पेंटिंग बन गई. आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं.

हर साल लगभग 1 करोड़ लोग लूव म्यूज़ियम आते हैं. इनमें 75% विदेशी पर्यटक होते हैं. म्यूज़ियम द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, इनमें 80% लोग ख़ास तौर पर मोना लीसा को देखने आते हैं. मोना लीसा की प्रसिद्धि की कई विवेचनाएं की गई हैं. मसलन कहा जाता है कि इसकी मुस्कुराहट बहुत ही रहस्यमई है. एक नजर में मोना लीसा आपको मुस्कुराती हुई दिखाई देती है. लेकिन अगर देर तक देखते रहें, तो धीरे-धीरे ये मुस्कुराहट ग़ायब होती जाती है. हालांकि मोनलीसा के क़ई आलोचक भी है, जिनका मानना है, ये पेंटिंग महज़ मीडिया में आने के कारण फ़ेमस हो गई. जबकि इससे कहीं बेहतर पेंटिंग दुनिया में मौजूद है.

है क्या ऐसा Mona Lisa में? 

न्यूयॉर्क टाइम्स के एक आर्टिकल में आर्ट क्रिटिक जेसन फ़रागो ,मोना लीसा को 16 वीं सदी की किम कारदेशियन की संज्ञा देते हैं. किम कारदेशियन एक अमेरिकी सेलेब्रिटी हैं. बहुत फ़ेमस हैं. लेकिन क्यों है, ये बात भी मोना लीसा की तरह ही एक रहस्य है. बहरहाल फ़रागो अपनी बात के समर्थन में आंकड़े भी पेश करते हैं. साल 2019 में ब्रिटिश पर्यटकों से एक सर्वे के दौरान पूछा गया किस पर्यटन आकर्षण ने उन्हें सबसे ज़्यादा निराश किया. 80% लोगों ने इस सवाल के जवाब में मोना लीसा का नाम लिया. निराश होने की वजह भी थीं. ढाई फ़ीट लम्बी इस पेंटिंग को देखने के लिए 12 फ़ीट की दूरी पर खड़ा होना पड़ता है. इसके लिए लाइन लगती है हज़ारों लोगों की. और मौक़ा मिलता है बस मिनट भर निहारने का. मोना लीसा को एक बुलेट प्रूफ़ ग्लास में रखा जाता है. और इंतज़ाम ऐसा किया गया है कि अगर भूकम्प भी आ जाए तो इसे कोई नुक़सान नहीं होगा. (Mona Lisa History)

Leonardo Da Vinci
मोना लीसा को हर रोज़ कई प्रेम पत्र और फूल मिलते है (तस्वीर: getty)

जहां तक पेंटिंग के इतिहास की बात है, इतालवी चित्रकार लियोनार्डो द विंची ने अक्टूबर 1503 में इस पेंटिंग को बनाना शुरू किया था. ये जिस महिला की पेंटिंग है, उसका नाम लीसा डेल जियोकोंडो था. जो एक इतालवी ज़मींदार की पत्नी थी. ज़मींदार ने ही लियोनार्डो को पेंटिंग का काम दिया था. लेकिन लियोनार्डो ने इसे ज़मींदार को नहीं सौंपा. बल्कि किसी कारण से चार साल तक ये पेंटिंग अधूरी रही. आगे जाकर फ़्रांस के सम्राट ने लियोनार्डो द विंची को फ़्रांस आने के लिए बुलावा भेजा. फ़्रांस में पेंटिंग का काम फिर शुरू हुआ. लेकिन फिर 1517 में दी विंची के दाएं हाथ को लकवा मार गया. जिसके कारण मोना लीसा कभी पूरी नहीं बन पाई. जी हां, दुनिया की सबसे फ़ेमस पेंटिंग अधूरी थी, लेकिन इसका जलवा ऐसा था कि एक वक्त में फ़्रेंच सम्राट नेपोलियन इसे अपने बेडरूम में लगाए रखता था.

अंत में सबसे काम के सवाल की बात भी कर लेते हैं. मोना लीसा की क़ीमत कितनी है? बिन्नेस का सिद्धांत कहता है, किसी चीज़ की क़ीमत तभी पता चल सकती है जब उसे बेचा जाए. लेकिन फ़्रेंच हेरिटेज क़ानून के अनुसार मोना लीसा पब्लिक प्रॉपर्टी है, इसलिए इसे बेचा नहीं जा सकता. हालांकि फिर भी कुछ आंकड़े हैं जिनसे हम कुछ अनुमान लगा सकते हैं. साल 1962 में मोना लीसा को प्रदर्शन के लिए अमेरिका लाया गया था. तब इसका बीमा हुआ था 100 मिलियन डॉलर में. यानी 2023 के हिसाब से लगभग, 5500 करोड़ रुपए. 

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