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दुनिया का सबसे खतरनाक समुराई योद्धा जो एक लकड़ी की तलवार से लड़ता था

इससे तगड़ा समुराई जापान में फिर कभी न हुआ

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मिया मोटो मुसाशी जापान के इतिहास का सबसे महान समुराई माना जाता है (तस्वीर: pexels/wikimedia)
मियामोटो मुसाशी

13 साल का एक लड़का एक रोज़ नदी किनारे टहल रहा था. तभी उसकी नज़र एक पट्टे पर पड़ी. पट्टे पर लिखा हुआ था- मैं इस प्रान्त के हर योद्धा को दो-दो हाथ करने के लिए चुनौती देता हूं. जिस लड़के ने इस चुनौती को देखा. वो कोई आम लड़का नहीं था. 7 साल की उम्र में उसने अपने खुद के पिता को ललकार दिया था. पिता ने एक रोज़ गुस्से में अपनी कटार उसकी ओर फेंक दी. लड़का बच गया लेकिन पिता ने उसे घर से उठाकर बाहर फेंक दिया. लड़के ने शहर छोड़ दिया. वो एक मठ में जाकर रहने लगा. अगले 6 साल तक हर रोज़ वो जंगल में जाता और पेड़ों के साथ मार्शल आर्ट की प्रैक्टिस करता. उस रोज़ जब उसे पट्टे पर लिखा चैलेंज दिखा, वो गया और पट्टे के नीचे अपना नाम लिखा आया. 13 साल की उम्र में अपने से दोगुनी उम्र के योद्धा को ललकारने वाले इस लड़के का नाम था मिया मोटो मुसाशी. जापान के इतिहास का सबसे महान समुराई.

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Miyamoto Musashi वह एक प्रसिद्ध जापानी योद्धा थे.  60 से अधिक लड़ाइयों के बावजूद, एक द्वंद्व नहीं हारा (तस्वीर: wikimedia commons)

मियामोटो मुसाशी को जापान में केन्से की उपाधि दी जाती है. इस शब्द का लिटरल अर्थ है, 'तलवार लिए हुए संत'. केन्से की उपाधि सिर्फ उन्हीं लोगो को दी जाती थी, जिन्हें अपनी कला में पूरी तरह पारंगत माना जाता था. यानी उनसे ऊपर कुछ नहीं. तलवारबाजी का गुरु जिन्हें माना जाता है. वो इनसे नीचे आते हैं , उनके लिए केंगो शब्द का इस्तेमाल किया जाता है. जापान में समुराई योद्धाओं का 800 साल का इतिहास रहा है. एक से एक समुराई हुए हैं. इनमें सबसे ऊपर जो नाम आता है, वो है, मियामोटो मुसाशी का. कारण- मुसाशी ने अपनी जिन्दगी में 60 डूएल यानी द्वंद्वयुद्ध लड़े और एक में भी हारा नहीं. इसके बाद जो दूसरा सबसे अच्छा समुराई माना जाता है, उसके नाम 31 लड़ाई जीतने का रिकॉर्ड है. (greatest samurai ever)

मियामोटो मुसाशी का जन्म 16 वीं सदी के आखिरी दशकों में हुआ था. इस समय पूरे जापान में अलग अलग कबीलों में भयंकर युद्ध छिड़ा था. मुसाशी के पिता, मोनी खुद एक मशहूर योद्धा थे. लेकिन मुसाशी की अपने पिता से नहीं पटती थी. एक रोज गुस्से में आकर उन्होंने मुसाशी को घर से बाहर निकाल दिया. मुशासी ने अपना शहर छोड़ दिया और वो जाकर एक मठ में रहने लगा. इसी मठ में उसके अंकल रहते थे , नाम था डोरिन. डोरिन की छत्र छाया में मुसाशी तलवार बाज़ी का प्रशिक्षण लेने लगा. कई साल बाद एक रोज़ डोरिन के पास एक ख़त आया. ख़त में लिखा था, "मुझे मुसाशी का चैलेंज स्वीकार है". डोरिन को ये ख़त उस प्रान्त में रहने वाले एक समुराई ने लिखा था. जिसका नाम था अरिमा किहेई. ख़त पढ़कर डोरिन ने मुसाशी से इस बारे में पूछा. (samurai japan)

सबसे ताकतवर कबीले को चित किया 

मुसाशी ने तब उन्हें वो कहानी सुनाई कि कैसे नदी किनारे लगे एक पट्टे पर वो अपना नाम लिख आया था. मुसाशी की उम्र 13 साल थी. जबकि अरिमा किहेई उससे दोगुनी उम्र का था. डोरिन जानते थे कि उनका भतीजा एक वयस्क समुराई का सामना नहीं कर पाएगा. इसलिए वो उसके पास गए और उससे अपने भतीजे की जान बख्स देने की इल्तिजा की. अरिमा किहेई ने डोरिन से कहा सिर्फ एक सूरत में मुशासी की जान बच सकती है. शर्त ये कि मुसाशी को सबके सामने उससे माफी और जान की भीख मांगनी पड़ेगी. 

जापानी लिटरेचर और इतिहास के ऊपर कई किताबें लिख चुके लेखक, विलियम स्कॉट विल्सन, अपनी किताब, द लोन समुराई में लिखते हैं, 

“द्वन्द युद्ध का समय आया. अरिमा किहेई को यकीन था कि मुसाशी आकर माफी मांगेगा. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. वो दौड़ता हुआ आया और बिना किसी चेतावनी के उसने एक छ फुट लम्बी लकड़ी की तलवार से किहेई पर हमला कर दिया. किहेई के पास लोहे की एक तलवार थी, जिसे वाकीजाशी कहते थे. किहेई ने वाकीजाशी से जवाबी हमला करने की कोशिश की. लेकिन वो जमीन पर गिर गया. इस बीच मुसाशी ने निशाना लगाकर किहेई की आंखों के बीचों बीच वार किया और तब तक करता रहा, जब तक उसकी मौत न हो गई.”

इसके तीन साल बाद, मुसाशी ने अपने अंकल का मठ छोड़ दिया. और मुशा शुग्यो पर निकल गया. मुशा शुग्यो यानी एक समुराई की तीर्थ यात्रा. इस यात्रा के दौरान समुराई अकेले यात्रा करता है. और बाकी समुराई योद्धाओं से द्वन्द युद्ध लड़ता है. यात्रा के पहले चरण में मुसाशी क्योटो गया. क्योटो का योशिओका कबीला सबसे ताकतवर माना जाता था. मुसाशी ने योशिओका के सबसे माहिर समुराई को द्वन्द युद्ध के लिए ललकारा. इस समुराई का नाम था सेजुरो. कहानी कहती है कि सेजुरो इंतज़ार करता रहा लेकिन मुसाशी ने आने में देर लगा दी. ये उसकी युद्ध रण नीति थी. एक छोटी लकड़ी की तलवार जिसे बोक्कन कहा जाता था, उससे मुसाशी ने सेजुरो पर औचक हमला किया और उसे ढेर कर डाला.

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मियामोटो को जापान में केन्से कहा जाता है, तलवार वाला संत (तस्वीर: wikimedia commons ) 

सेजुरो की हार योशिओका कबीले के लिए बड़ी शर्मिन्दगी की बात थी. उन्होंने डेन्शिचिरो नाम के योद्धा को मुसाशी से लड़ने के लिए भेजा. लेकिन वो भी युद्ध हार गया. इस हार ने योशिओका कबीले को गुस्से से भर दिया. उन्होंने एक नई रणनीति बनाई. उन्होंने मुसाशी को एक और युद्ध के लिए ललकारा. इस युद्ध के लिए उन्होंने डेन्शिचिरो के 12 साल के बेटे को आगे किया. हालांकि उनका असली प्लान ये था कि जैसे ही मुसाशी युद्ध के लिए आएगा, वो सब उस पर मिलकर हमला करेंगे और उसे मार डालेंगे.

मुसाशी उनसे दो कदम आगे था. इस बार वो समय से पहले ही पहुंच गया. उसने देखा कि 100 के करीब योशिओका कबीले के योद्धा, धनुष बाण और तलवार लिए, उसका इंतज़ार कर रहे हैं. उसने अचानक हमला करते हुए उनके 12 साल के लीडर को मार डाला और भाग गया. भागते हुए भी उसने युद्ध जारी रखा और कई योद्धाओं को ढेर कर डाला. कहते हैं जब मुसाशी भाग रहा था, उसने अपनी कमर में बंधी एक दूसरी तलवार निकाल ली और वो दो तलवारों से एक साथ युद्ध करने लगा. जिसके बाद समुराई परम्परा में दो तलवारों से लड़ने की प्रथा शुरू हुई.

महानतन समुराई द्वन्द युद्ध 

इस लड़ाई ने मुसाशी को पूरे जापान में प्रसिद्ध कर दिया था. उसके बारे में कहानियां चलती थीं कि वो नहाता नहीं था, ताकि किसी को उस पर औचक हमला करने का मौका न मिले. योशिओका कबीले को हराने के बाद अगले आठ साल तक मुसाशी ने कोई द्वन्द युद्ध न लड़ा. वो क्योटो के एक जेन मंदिर में रहकर ध्यान साधना करने लगा. साल 1612 में यहां उसकी मुलाकात ससाकी कोजिरो से हुई. कोजिरो एक ताकतवर कबीले का समुराई था. वो नोडाची नाम की एक समुराई तलवार का इस्तेमाल करता था. 6 फीट से ज्यादा लम्बी ये तलवार बहुत भारी हुआ करती थी. और इसका इस्तेमाल केवल माहिर योद्धा ही करते थे. कोजिरो के बारे कहा जाता था कि उसे हराना असम्भव है. वो तलवार चलाने की एक विशेस तकनीक में माहिर था. जिसमें तलवार को ऊपर से नीचे की ओर मारा जाता था.

इस तकनीक में तलवार का वार जमीन तक जाता था. हालांकि पहले वार का उद्देश्य सामने वाले को मारना नहीं होता था. बल्कि पहले हमले में तलवार जानबूझ कर चूक जाती थी. लेकिन जैसे ही सामने वाले योद्धा को लगता कि वो बच गया है. तलवार एक झटके में वापस आती. और उसकी जांघो से लेकर माथे तक चीरती हुई चली जाती. इस तकनीक की खासियत थी कि सामने वाला इसके लिए तैयारी नहीं कर सकता था. मर्शियल आर्ट की भाषा में इस तकनीक को सुबामे गेशी कहा जाता है. और इसी नाम की एक तकनीक जूडो में भी इस्तेमाल की जाती है.

ससाकी कोजिरो इस तकनीक में माहिर था. और उसने कई समुराई योद्धाओं को इस तकनीक से चित किया था. उसे "The Demon of the Western Provinces" यानी 'पश्चिमी प्रांत का राक्षस' बुलाते थे. बहरहाल 1612 में मुसाशी और ससाकी कोजिरो के बीच एक द्वन्द युद्ध रखा गया. जिसे समुराई योद्धाओं के इतिहास का सबसे महान द्वन्द युद्ध माना जाता है.

13 अप्रैल की तारीख. लड़ाई का वक्त सुबह आठ बजे रखा गया था. लोगों की भीड़ इकठ्ठा थी. सबको लड़ाई का इंतज़ार था. कोजिरो तो समय से पहुंच गया लेकिन मुसाशी कई घंटे तक नहीं आया. लोक कथाओं के अनुसार मुसाशी देर तक सोया रह गया था. कोजिरो ने अपने लोगों को उसे उठाने भेजा. मुसाशी उठा. उसने भरपेट नाश्ता किया. इसके बाद वो एक नाव में बैठकर द्वीप की ओर चला गया. द्वीप तक पहुंचने से पहले उसने अपने चप्पू से एक लकड़ी की तलवार बनाई. जिसे बोक्कन कहते थे. अब तक कोजिरो का गुस्सा सातवें आसमान पर था. मुसाशी के आते ही उसने उसे देर से आने के लिए उलाहना दी. और अपनी म्यान निकाल कर नदी में फेंक दी. जिसका मतलब था, कि युद्ध तब तक नहीं रुकेगा जब तक किसी की मौत न हो जाए. 

book of five rings
मियामोटो ने बुक ऑफ फाइव रिंग्स नाम की एक किताब लिखी थी (तस्वीर: wikimedia commons)

इसके बाद लड़ाई शुरू हुई. दोनों एक दूसरे का मुआयना कर रहे थे कि तभी दोनों ने एक साथ वार किया. कोजिरो ने अपना सिग्नेचर वार किया. निशाना सीधा मुसाशी के सर को लगा लेकिन किस्मत से उसने सर पर साफा बांधा हुआ था. साफा कटकर जमीन पर गिर पड़ा. लेकिन मुसाशी बच गया. दूसरी तरफ मुसाशी का वार सीधा कोजिरो के सर पर लगा था. उसके सर से खून बहने लगा और वो वहीं गिर गया. उसकी मौत हो गई. मुसाशी जीत गया.

सब रणनीति का खेल 

इसके बाद भी मुसाशी ने कई द्वन्द युद्ध लड़े. लेकिन एक में भी उसकी हार नहीं हुई. सिर्फ एक मुकाबला ऐसा था जो ड्रा रहा था.(samurai hindi) मुसाशी समुराई योद्धाओं की उस पांत से आते थे, जिन्हें रोनिन कहा जाता है. रोनिन यानी ऐसा समुराई जिसका कोई गुरु नहीं, और जो किसी कबीले के प्रति निष्ठा न रखता हो. मुसाशी ने कभी शादी नहीं की. हालांकि उन्होंने एक बेटा गोद लिया था. जो आगे जाकर जापान के एक शक्तिशाली सामंत का खास समुराई बना. हालांकि उसकी समय से पहले मृत्यु हो गई. मुसाशी ने अपनी बाकी की जिन्दगी दूसरों को सिखाने में बिताई. अपने अंतिम समय में मुसाशी ने एक किताब लिखी, द बुक ऑफ़ फाइव रिंग्स. (book of five rings)

किताब में वो लिखता है,

"ऐसा कोई काम मत करो, जिसका महत्व न हो"
"एक आदमी 10 को हरा सकता है. इसलिए 1 हजार आदमी,  10 हजार आदमियों को हरा सकते हैं. सब रणनीति का खेल है"
अगर तुम जान जाओ, क्या अस्तित्व रखता है. तो तुम ये भी जान सकते हो कि क्या अस्तित्व में नहीं है"

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ये किताब पश्चिम की कई भाषाओं में ट्रांसलेट हुई. इसे मिलिट्री स्कूल्स में स्ट्रेटेजी सिखाने के लिए पढ़ाया जाता है. जहां तक मियामोटो मुसाशी की बात है. उसकी मौत साल 1645 में हुई थी. कथाओं के अनुसार मौत के वक्त वो सीधा खड़ा हुआ था. उसके एक हाथ में तलवार थी और उसने योद्धाओं की पोशाक पहनी थी. मौत से ठीक पहले उसने अपना एक पैर उठाया और उसी हालत में मृत्यु को प्राप्त हो गया. मुसाशी को उसी अवस्था में दफना दिया गया. उसे उपाधि दी गई केन्से की. यानी वो संत जो अपने पास तलवार लिए रहता था. 

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