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राम स्वादानुसार : क्योंकि नमक से नमक नहीं खाया जाता

जैसे मिथिला ने समझा, ईश्वर सिर्फ़ नमक हो सकता है.

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मिथिला ने बहुत पहले रामत्व को समझ बूझ लिया था, वो भी अपने भोजन में. (तस्वीरें सांकेतिक)
रामरस. मिथिला के अंचल में एक नाम है. पुकार का शब्द. नाम धरने वाले किसी भी चीज़ को रामरस पुकार लेते. सोना, धान, मिट्टी, बारिश… लेकिन उन पुरखों की बलिहारी कि उन्होंने रामरस कहा असल रामरस को. मिथिलांचल के किसी भोज में पहली बार ये नाम सुना था. एक नवहा हाथ में पत्ता लिए खाने वालों की पांत से चला जाता था. रामरस…रामरस…रामरस…पुकारता जाता था. जिज्ञासा हुई कि पूड़ी, तरकारी, चटनी, खीर के बीच ये कौन सा व्यंजन आया? बुलाकर रामरस मांगा, पत्तल पर बालक ने कोने में नमक परस दिया. हे राम!! इतना मीठा नाम, वो भी नमक का. ढिठाई लगी, धोखा महसूस हुआ. खाने का रस तो ले लिया रामरस ने. बे-मन से भोज भुगता. लेकिन नहीं. फिर आहिस्ते से दर्शन समझ आया. इट्स ऐन ऐब्सल्यूट केस ऑफ़ डिकोडिंग.
पूर्वांचल से लगाई मिथिला तक, अब भी ऐसे ही पांत पंगत में बैठकर खाते हैं भोज (सांकेतिक तस्वीर)
पूर्वांचल से लगाई मिथिला तक, अब भी ऐसे ही पांत पंगत में बैठकर खाते हैं भोज (सांकेतिक तस्वीर)


मैथिली के घरवाले ना पहचानते तो राम को पहचानता कौन? पूरी दुनिया में राम को किसी ने वाक़ई जाना तो मिथिला ने. मैथिलों ने. नमक को रामरस कहा. नमक से इतर और किसे कहते रामरस? पाँचों तत्वों में उन्हें नमक मिला राम का सार कहने को. नमक से नमक नहीं खाया जाता. नमक की ना तरकारी बन सकती है, ना दाल. लेकिन नमक के बिना ये भी बेसार ही रहे. रत्ती भर नमक काम कर जाता है. सबके अपने राम. जैसा ज़ायक़ा, उतने भर राम. सीता वालों ने आने वाली नस्लों के लिए एक शब्द में सारे जवाब घोल दिए. किसी ने कभी किसी को सिर्फ़ नमक खाते नहीं देखा. नमक को संगी चाहिए. राम को साथ चाहिए. स्टैंड अलोन वाला मामला नहीं जमता. राम को घेर कर रात भर मंडप में गारी गातीं अनपढ़ माएँ जानती थीं कि राम कौन हैं? कितने हैं? सुबह ओसारे में दामाद को भरी आँख से दही लगाते हुए जानकी की अम्मा जानती थीं, ईश्वर सिर्फ़ नमक हो सकता है. विद्वान जनक के लोग राम को ठीक-ठीक माप पाए थे.
गुजरात का कच्छ, नमक के ठीहे जहां तक नज़र जाए वहां तक फैले हुए.
गुजरात का कच्छ, नमक के ठीहे जहां तक नज़र जाए वहां तक फैले हुए.


सीता की डोली के पीछे चलते सुकुमार राम के चित्र. दुनिया भर में आज भी रामकथा के चित्र मिथिला से बेहतरीन कहीं बनते नहीं. कहारों के साथ डोली में सीता को विदा करा ले जाते राम. पीछे-पीछे झूमते-रोते-गाते लोग. ऐसे रंग की नज़र गुम हो जाने की पूरी संभावना. कबूतर या चील के गिरे हुए पंख के आगे हिरण वग़ैरह की पूँछ के बाल बांधकर बनी कूची. रंग बनते थे लाह, सिंदूर, नील, गेरू, सीपी और पीले रंग के लिए फूलों के साथ रामरस. क़ुदरत की उधारी. रामरस मिलाने से रंग और पक्के होते थे ऐसा बताते हैं. क्यों ना होते? राम की तस्वीर में रामरस ना हो तो कैसे पूरेगी छवि राम की. सीता की ओढ़ी हुई पियरी में रामरस. मिथिला चित्रकारी में इस बात का सबसे ज़्यादा ख़्याल रखा जाता है कि, रंगों से कोई जगह छूट ना जाए. रत्ती भर भी जगह रंगों से अछूती ना रह जाए. नहीं तो ख़ाली जगह में खल-कामी शक्तियाँ आ बसती हैं.
मधुबनी पेंटिंग में राम और सीता की छवि जितने रंगों में मौजूद है, शायद ही कहीं और हो (सांकेतिक तस्वीर)
मधुबनी पेंटिंग में राम और सीता की छवि जितने रंगों में मौजूद है, शायद ही कहीं और हो (सांकेतिक तस्वीर)


हमसे कौन सी ख़ाली जगह रह गई? राम की छवि में लाल रंग के लिए हमसे पहले रक्त का इस्तेमाल कौन करता रहा होगा? राम को समझने में हम सब चूक गए. इस महादेश में ईश्वर ही अपने प्रेम में चूक गए. चौखट पर हाथ जोड़कर खड़ी सीताओं और नदी किनारे मन मसोसती राधाओं का देश! हमारे सामने से दाल तरकारी हटाकर कोरे नमक की थाली कब परस दी गई? राम के नाम पर मारे गए बेटे के लिए हुलसकर रोती मां के आंसू में कितना रामरस होता होगा? कोई माप है? अपनी कहानियाँ ही वापस नहीं सुन पाए हम. सब कुछ तो था उनमें. रोम-रोम बींधे गए शरीर में भी मरने से पहले पितामह भीष्म कहते हैं ‘धर्मः मतिभ्यः उद्गृहीतः’. जो बुद्धि से पैदा हो वही धर्म है. हमने धर्म से बुद्धि उपजा ली. उलट बांसी देखो. बरसे कमली, भीजे आसमान. जैसे किसी मुर्दे की हथेली पर बची रह जाती है उम्र वाली रेखा. जो उम्र बची थी उसे मटके में डालकर लाल कपड़ा बांध दिया हमने. रामरस इसीलिए तो जाता रहा. नमक से नमक नहीं खाया जाता.