साल 2015 में जापान में एक होटल खुला. जिसके नाम का मतलब ही ‘अजीब होटल’ था. ये था Henn na Hotel (हेना होटल), जिसकी शुरुआत के वक्त इसमें 243 रोबोट कर्मचारी थे. रोबोट जो रिसेस्पेशन में सीधा मेहमानों से मिलते थे. कुछ को तो डायनासोर का रूप भी दिया गया.
लैब में बना ये 'मिनी ब्रेन' क्या है, जो रोबोट्स में इंस्टॉल होकर पूरी दुनिया उल्टी-पुल्टी कर देगा?
दशकों से लैब में 'दिमाग' बनाने की कोशिश की जा रही है. जिसे 'mini brain' कहा जाता है. हाल में चीन में एक रोबोट के भीतर यह 'दिमाग' लगाकर देखा गया. पर 'mini brain' को लेकर कुछ एक्सपर्ट्स चिंता में भी हैं.
लेकिन फिर कुछ दिनों बाद एक खबर आती है. होटल से करीब आधे रोबोट्स को निकाल दिया गया है. माने रोबोट लोगों को भी नौकरी जाने का बराबर खतरा रहता है. वजह बताई गई कि रोबोट लगातार होटल के मेहमानों को परेशान करने लगे थे.
कइयों ने तो काम कम करने के बजाय, दूसरों का काम बढ़ाना शुरू कर दिया.
फिल्मों में तो रोबोट्स को हमने बहुत कुछ करते देखा है. टर्मिनेटर वाला रोबोट बाकायदा बंदूक चला के दुनिया भी बचा लेता है. लेकिन असल में इंसानों जैसे रोबोट अभी दूर की कौड़ी हैं. जापानी होटल वाले रोबोट्स को ही देख लीजिए.
लेकिन लोग अब इनको और बुद्धिमान बनाने में लगे हुए हैं. एक कोशिश में लैब में बना ‘दिमाग’ भी रोबोट के साथ जोड़ा जा रहा है. क्या है ये पूरा मामला, समझते हैं.
लैब में ‘दिमाग’ कैसे बनाए जाते हैं?लैब में बने ‘दिमाग’ को मिनी ब्रेन (Mini Brain) नाम दिया जाता है. पहले ‘मिनी ब्रेन’ को समझते हैं. करीब दशक भर पहले, अगस्त 2013 में द गार्डियन में एक खबर छपी. जिसमें कहा गया कि साइंटिस्ट्स ने लैब में एक टेस्ट ट्यूब के भीतर ‘दिमाग’ बनाया है. या कहें ग्रो किया यानी उगाया. आलू-भाजी उगाने के बारे में तो हम जानते हैं. लेकिन ‘दिमाग’ उगाना?
दरअसल ये ‘दिमाग’ Stem cell (स्टेम सेल) की मदद से ग्रो किया गया था. स्टेम सेल कुछ बुनियादी कोशिकाएं होती हैं, जो अलग-अलग अंगों के बनने में मदद करती हैं. माने स्टेम सेल से दिमाग की कोशिकाएं भी बन सकती हैं. और मसल्स की भी.
लैब में ‘दिमाग’ बनाने के लिए इंस्टीट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोटेक्नोलॉजी, वियना के साइंटिस्ट्स ने भी स्टेम सेल की मदद ली. जिन्हें लैब में गर्भ के भीतर जैसे हालात में रखा गया. यानी सही तापमान वगैरह पर. फिर पोषण वगैरह देकर इन्हें दिमाग की कोशिकाओं के तौर पर ग्रो किया गया. कुछ महीनों के बाद छोटा सा गेंद जैसा ऑर्गन बना.
जिसमें दिमाग के शुरुआती अलग-अलग हिस्से थे. खैर ये दिमाग ग्रो करते वक्त इसके इस्तेमाल का भी सवाल आया. जवाब बताया गया कि लैब में बने दिमाग पर दिमागी दवाओं को टेस्ट किया जा सकेगा. दिमागी बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी.
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धीरे-धीरे इसमें तरक्की हुई. ब्रेन डेवलपमेंट को लेकर रिसर्च की जाने लगीं. ऑटिज्म और दिमागी दौरे जैसी बीमारियों से लेकर दवाओं के नुकसान वगैरह को समझने की कोशिश की गई.
लेकिन इंसान इतने में कहां मानने वाले थे! फिर लैब में बने इस ‘दिमाग’ का एक नया प्रयोग शुरू हुआ. हाल ही में चीन में साइंटिस्ट्स ने ऐसे ही एक दिमाग को रोबोट के साथ जोड़ने की कोशिश की है. ये माजरा समझते हैं.
ये कहे जाते हैं न्यूरोबॉटहम जानते हैं कि कंप्यूटर दशकों से हमारे पास हैं. दूसरी तरफ इंसानों ने लैब में ‘दिमाग’ बनाने भी शुरू कर दिए. वहीं इन दोनों को जोड़कर Bio-computer (बॉयोकंप्यूटर) बनाने की मुहिम भी पुरानी है. जिसमें लैब में ग्रो किए ‘दिमाग’ को कम्यूटर चिप से जोड़ने की कोशिश की जा रही है.
हमारा दिमाग करोड़ों न्यूरॉन्स या तंत्रिकाओं से मिलकर बना होता है. तमाम गणनाएं ये पलक झपकते कर लेता है. लेकिन साइंटिस्ट्स इस बात से हैरान रहते हैं कि ऐसा करने के लिए ये महज 20 वॉट पावर का इस्तेमाल करता है. जहां एक तरफ कंप्यूटर दिन रात भयंकर बिजली लेकर चलते हैं. वहीं हमारा दिमाग इतनी सफाई से ऊर्जा का इस्तेमाल करता है. ऐसा कुछ प्रयोग, कंप्यूटर के साथ करने की कोशिश में ही साइंटिस्ट्स लगे हैं. मतलब, कैसे दिमाग की शक्तियों को कंप्यूटर में भरा जाए.
चीन की तियानजिन यूनिवर्सिटी में भी हाल में ऐसा ही कुछ करने की कोशिश की गई है. जिसमें रोबोट के साथ लैब में बना Mini Brain (मिनी ब्रेन) जोड़ा गया. और इससे रोबोट को कंट्रोल करने की कोशिश की गई. हालांकि, यह मिनी ब्रेन पूरी तरह से रोबोट को कंट्रोल नहीं करता है. इसे इंसानी मदद की जरूरत पड़ती है. लेकिन कुछ काम ये खुद से कर सकता है. मसलन कुछ पकड़ना. साइंस फोकस के मुताबिक, मिनी ब्रेन में हमारे दिमाग जैसा कुछ-कुछ फंक्शन करने की क्षमता होती है.
लेकिन इसे बाहर से कुछ इंसानी इनपुट देना पड़ता है. जिसके लिए एक चिप का इस्तेमाल किया गया है.
इस बारे में तियानजिन यूनिवर्सिटी के वाइस प्रेसिडेंट प्रोफ. मिंग डांग जानकारी देते हैं. उनके मुताबिक, यह सिस्टम कंप्यूटर चिप के साथ लैब में बने ‘दिमाग’ की मदद से रोबोट को कंट्रोल करता है. चिप के जरिए बाहर के वातावरण की जानकारी मिनी ब्रेन को मिलती है. और मिनी ब्रेन से पैदा हुए सिग्नल्स को रोबोट तक पहुंचाया जाता है. यानी कंप्यूटर चिप मिनी ब्रेन और बाहरी वातावरण के बीच की कड़ी की तरह काम करता है.
चीन का यह रोबोट हम इंसानों की तरह देख तो सकता नहीं है. तो इस काम में मदद के लिए, इसके ‘दिमाग’ को इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स के जरिए बाहर की जानकारी दी जाती है.
तो क्या अब रोबोट भी सोच सकेंगे? और इस सब पर एक्सपर्ट्स क्या चिंता जता रहे हैं? ये भी समझते हैं.
Popular Mechanics (पॉपुलर मैकेनिक्स) की खबर के मुताबिक, इस बारे में अलयसन मौत्री अपनी चिंता जाहिर करते हैं. मौत्री यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैंडिएगो के प्रोफेसर हैं. और लैब में ग्रो किए गए मटर के दानों जितने ‘दिमाग’ पर रिसर्च कर रहे हैं.
बकौल मौत्री,
जब धीरे-धीरे विज्ञान तरक्की करेगा. तब हां, हो सकता है ऐसे 'मिनी ब्रेन' एक दिन सचेत हो जाएं. लेकिन फिलहाल नहीं.
इसके साथ एक समस्या यह भी है कि हमें मालूम कैसे चले कि लैब में बना दिमाग क्या-कैसा महसूस कर रहा है? इस बारे में अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी (Penn State University) के सेंटर फॉर न्यूरल इंजीनियरिंग की प्रोफेसर लौरा काबरेरा का कहना है,
हमें नहीं मालूम अगर हम लाइन पार कर गए हैं. क्योंकि हमें नहीं मालूम कि ऐसा कुछ कैसे टेस्ट किया जाए.
क्या ऐसे दिमाग सचेत होते हैं? क्या उन्हें अपने बाहर के वातावरण के बारे में पता होता है? ऐसे सवाल भी हैं. जिनमें विज्ञान के साथ दर्शन भी है. मसलन, अगर ऐसे ‘मिनी ब्रेन’ एक दिन हम इंसानों जैसे सोचने-समझने लगें. तब क्या इनकी हत्या करना, इनपर जहरीली दवाओं का प्रयोग करना नैतिक होगा? आपको इस बारे में क्या लगता है?
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