स्टीवन स्पीलबर्ग. Sci-Fi हो या सच्ची घटनाओं से इंस्पायर होकर फिल्में बनाना, स्पीलबर्ग ने एक से बढ़कर एक फिल्में दर्शकों को दी हैं. उनकी बेस्ट फिल्मों में से एक है 1993 में आई फिल्म Schindler's List. फिल्म एक जर्मन उद्योगपति, ऑस्कर शिंडलर की कहानी पर आधारित है. ऑस्कर शिंडलर ने वर्ल्ड वॉर II के दौरान अपने कारखानों में काम करने वाले एक हजार से ज्यादा पोलिश-यहूदी शरणार्थियों को होलोकॉस्ट से बचाया था. इस फिल्म का एक डायलॉग भी बहुत फेमस हुआ- ‘This list is life.’
एयरपोर्ट पर काट दिए जिंदगी के 18 साल, हॉलीवुड में फिल्म भी बन गई, ये कहानी नहीं हकीकत है
नासेरी जब ब्रिटेन के एयरपोर्ट पहुंचे तो अपना पासपोर्ट नहीं दिखा सके. उन्हें ब्रिटिश इमिग्रेशन अधिकारियों (British Immigration Officials) ने पेरिस के चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे पर वापस भेज दिया गया.

उन्होंने Munich और Catch Me If You Can जैसी फिल्में बनाईं, जो सच्ची घटनाओं पर आधारित थीं. इसी फेहरिस्त में शामिल है फिल्म The Terminal. ये फिल्म ईरान के एक रिफ्यूजी मेहरान करीमी नासेरी की जिंदगी पर आधारित है. मेहरान फ्रांस के टर्मिनल 1 पर फंस गए थे, और वो भी 18 साल के लिए.

नासेरी का जन्म 1945 में ईरान में हुआ. पढ़ाई-लिखाई की उम्र हुई तो 1974 में वो इंग्लैंड में एक कॉलेज में पढ़ने के लिए गए. उन्हें, 'सर, अल्फ्रेड मेहरान' नाम से पुकारा जाना पसंद था. इससे जुड़ा किस्सा भी हम आपको आगे बताएंगे. आगे चलकर नासेरी को ईरान के आखिरी शासक, मोहम्मद रजा पहलवी जिन्हें 'शाह' के नाम से जाना जाता है, उनकी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के कारण जेल में डाल दिया गया. इस घटना पर नासेरी ने बताया था कि 1977 में जब वो ईरान वापस लौटे तो उन्हें बिना पासपोर्ट के एयरपोर्ट से निर्वासित माने डिपोर्ट कर दिया गया.
अपने देश से निर्वासित होने के बाद उन्होंने कई यूरोपीय देशों में राजनीतिक शरण मांगी, लेकिन हर बार उन्हें इनकार ही मिला. कड़ी मशक्कत के बाद, नासेरी को बेल्जियम में शरणार्थियों के लिए United Nations High Commissioner for Refugees से शरणार्थी प्रमाणपत्र मिला. हालांकि, ये दावा विवादित था, क्योंकि जांच से पता चला कि नासेरी को कभी भी ईरान से निष्कासित नहीं किया गया था. शरणार्थी प्रमाणपत्र होने के चलते नासेरी ब्रिटेन और फ्रांस के बीच ट्रैवल कर सकते थे. पर साल 1988 में नासेरी के लिए चीजें बिगड़ना शुरू हो गईं. उन्होंने दावा किया कि उनका ब्रीफकेस, जिसमें उन्होंने अपने शरणार्थी प्रमाणपत्र रखे थे, पेरिस के एक ट्रेन स्टेशन पर चोरी हो गया.
हालांकि, नासेरी के इस दावे को चुनौती मिली. लोग कहते हैं कि नासेरी ने वास्तव में ब्रिटेन के लिए नांव पर सवार होकर अपने दस्तावेज ब्रुसेल्स को डाक से भेजे थे, और उनके चोरी होने के बारे में झूठ बोला था. इसके बाद नासेरी जब ब्रिटेन के एयरपोर्ट पहुंचे तो अपना पासपोर्ट नहीं दिखा सके. उन्हें ब्रिटिश इमिग्रेशन अधिकारियों (British Immigration Officials) ने पेरिस के चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे पर वापस भेज दिया गया, क्योंकि वे वहीं से ट्रैवल कर रहे थे.

कहानी एक और रोचक मोड़ तब लेती है, जब नासेरी वापस पेरिस पहुंचते हैं. यहां वो अपना शरणार्थी प्रमाणपत्र दिखाने में असफल रहते हैं. उन्हें पेरिस के चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे पर डिटेन कर लिया जाता है. उन्हें उस वेटिंग एरिया में रखा जाता है जो बिना डॉक्यूमेंट्स के यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए बनाया गया था. नासेरी का मामला बाद में फ्रेंच ह्यूमन राइट्स लॉयर क्रिश्चियन बॉर्गेट ने लिया. इसके बाद बेल्जियम से नासेरी के नए दस्तावेज जारी करने का प्रयास किया गया, लेकिन वहां के अधिकारी इसके लिए तभी राजी थे जब नासेरी खुद व्यक्तिगत रूप से वहां उपस्थित रहते.
1995 में, बेल्जियम के अधिकारियों ने उन्हें बेल्जियम की यात्रा करने की इजाजत दी, लेकिन केवल तभी जब वो एक सामाजिक कार्यकर्ता की देख-रेख में वहां रहने के लिए सहमत होते. इसे नासेरी ने यूके में प्रवेश करने की इच्छा के आधार पर अस्वीकार कर दिया. बाद में फ़्रांस और बेल्जियम, दोनों देशों ने नासेरी को वहां रहने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने डॉक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. क्योंकि उन डॉक्यूमेंट्स में नासेरी को ब्रिटिश के बजाय ईरानी बताया गया था और उनका पसंदीदा नाम, 'सर अल्फ्रेड मेहरान' नहीं लिखा गया था. दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर करने से इनकार करने पर उनके वकील बॉर्गेट काफी निराश हुए.
चूंकि नासेरी के पास रहने के लिए कोई जगह नहीं बची थी इसलिए नासेरी ने 1988 में पेरिस के चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे के टर्मिनल 1 में रहना शुरू कर दिया. 1990 के दशक में, फ्रांस की सरकार ने कहा कि वह फ्रांस में रहने वाले एक अवैध प्रवासी हैं, लेकिन वे उन्हें निर्वासित करने में असमर्थ थे, क्योंकि कोई भी देश उन्हें स्वीकार करने को तैयार नहीं था. तब से नासेरी ने पेरिस हवाई अड्डे को अपना घर बना लिया. एयरपोर्ट पर वो कभी डायरी लिखते, कभी रेडियो सुनते. एयरपोर्ट पर आने-जाने वाले लोग नासेरी को कभी-कभी खाना भी खिला देते थे.

इसी कहानी ने स्टीवन स्पीलबर्ग को फिल्म The Terminal बनाने के लिए प्रेरित किया. इस फिल्म में मुख्य किरदार निभाया था ऑस्कर अवॉर्ड विजेता टॉम हैंक्स और कैथरीन ज़ीटा जोन्स ने. न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक, स्टीवन स्पीलबर्ग ने उनके जीवन पर आधारित फिल्म के अधिकार माने राइट्स के लिए 2 लाख 50 हजार डॉलर से अधिक कीमत अदा की.
नासेरी ने 'The Terminal Man' नाम से ऑटोबायोग्राफी भी लिखी थी, जो 2004 में पब्लिश हुई. नासेरी की लाइफ से प्रेरित होकर फ्रांस के फिल्म निर्माता फिलिप लियोरेट की फिल्म 'लॉस्ट इन ट्रांजिट', ब्रिटिश संगीतकार जोनाथन डोव की ओपेरा 'फ्लाइट', हामिद रहमानियन और मेलिसा हिब्बार्ड की डॉक्यूमेंट्री 'सर अल्फ्रेड ऑफ चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट', ग्लेन लुचफोर्ड और पॉल बर्कजेलर की मॉक्यूमेंट्री 'हियर टू व्हेयर' जैसे मूवीज़ और एक्ट शामिल हैं.
एयरपोर्ट पर रहने के चलते नासेरी के मेंटल हेल्थ पर नकारात्मक असर पड़ा. उन्हें 2006 में अस्पताल में भर्ती कराया गया और पेरिस में शरण दी गई. साल 2007 के अंत में मेहरान अस्पताल बाहर आ गए और French Red Cross सोसाइटी की एयरपोर्ट ब्रांच की देख-रेख में रहने लगे. फ्रांसीसी अखबार लिबरेशन की रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद उन्होंने फिल्म के लिए मिले पैसों से हॉस्टल में समय बिताया. 12 नवंबर 2022 को नासेरी की दिल को दौरा पड़ने से चार्ल्स डी गॉल हवाई अड्डे पर मौत हो गई. नासेरी अपनी मौत से कुछ हफ्तों पहले ही चार्ल्स डी गॉल एयरपोर्ट के पास रहने के लिए लौटे थे. 18 सालों तक जिस जगह को नासेरी ने अपना घर माना, उन्होंने उसी जगह अंतिम सांस ली.
वीडियो: तारीख: ईरान का वो शरणार्थी की जो 18 साल तक एयरपोर्ट पर रहा