
पीए संगमा (बाएं) ने शरद पवार (ऊपर) और तारिक अनवर (नीचे) के साथ मिलकर नई पार्टी बनाई और नाम रखा नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी.
बाद में जब शरद पवार की कांग्रेस से नजदीकियां बढ़ीं तो अपनी पार्टी का पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस में विलय कर दिया और नई पार्टी बनाई नेशनलिस्ट तृणमूल कांग्रेस. हालांकि एक साल के अंदर ही पीए संगमा का नेशनलिस्ट तृणमूल कांग्रेस से मोहभंग हो गया और एक बार फिर उन्होंने शरद पवार की एनसीपी का दामन थाम लिया. 2006 में वो एनसीपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे. संगमा का 2012 तक एनसीपी के साथ बना रहा, लेकिन जब उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने का फैसला किया तो शरद पवार के साथ उनके मतभेद हो गए. इससे नाराज पीए संगमा ने एनसीपी छोड़ दी और अपनी नई पार्टी बनाई नेशनल पीपल्स पार्टी.

जनवरी 2013 में पीए संगमा ने बनाई थी नेशनल पीपल्स पार्टी.
2016 में जब पीए संगमा का निधन हो गया, तो उनकी पार्टी को जिसने संभाला उसका नाम है कोनराड संगमा. कोनराड संगमा पीए संगमा के बेटे हैं और फिलहाल अपने पिता की बनाई पार्टी नेशनल पीपल्स पार्टी के अध्यक्ष हैं.कैंपेन मैनेजर से की थी राजनैतिक करियर की शुरुआत

कोनराड संगमा ने अपने पिता पीए संगमा के लिए प्रचार किया था और इसी के साथ उनका पॉलिटिकल कैरियर शुरू हुआ था.
कोनराड संगमा ने अपनी सियासत की शुरुआत अपने पिता के कैंपेन मैनेजर के तौर पर की थी. जब पीए संगमा ने कांग्रेस का साथ छोड़कर एनसीपी बनाई, तो कोनराड संगमा ने पीए संगमा के लिए चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला. 2008 में जब मेघालय में विधानसभा के चुनाव हुए, तो कोनराड संगमा और उनके भाई जेम्स संगमा दोनों ही एनसीपी के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे. दोनों ने जीत हासिल की. 2008 में जब डीडी लपांग की कांग्रेस की सरकार गिर गई और डोंकुपार रॉय के नेतृत्व में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी ने सरकार बनाई, तो कोनराड संगमा पहली बार कैबिनेट मंत्री बने. मंत्री बनने के साथ ही उन्हें राज्य के अहम विभागों जैसे फाइनेंस, पावर, टूरिज्म और आईटी विभाग का मंत्री बना दिया गया. हालांकि ये सरकार बस एक साल ही चली और फिर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया. इसके बाद जब कांग्रेस ने एक बार फिर से डीडी लपांग के नेतृत्व में सरकार बनाई, तो कोनराड संगमा नेता प्रतिपक्ष बन गए.

जब डीडी लपांग (बाएं) मेघालय के मुख्यमंंत्री बने तो कोनराड संगमा नेता प्रतिपक्ष बनाए गए.
पिता की मौत के बाद और बड़ा हुआ कद
यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन और यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया से अपनी पढ़ाई करने वाले कोनराड संगमा का सियासी कैरियर तब और ऊपर हो गया, जब उनके पिता पीए संगमा का निधन हो गया. 4 मार्च 2016 को पिता के निधन के बाद कोनराड संगमा एनपीपी के अध्यक्ष बने और उसके बाद से ही उनका सियासी करियर परवान चढ़ने लगा. जब 2013 में पीए संगमा ने पार्टी बनाई थी, तो उसी वक्त उन्होंने ऐलान किया था कि वो बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन का हिस्सा होंगे. कोनराड ने भी अपने पिता की बात रखी और एनडीए का हिस्सा बने रहे.

तुरा उपचुनाव में कोनराड संगमा ने कांग्रेस मुख्यमंत्री मुकुल संगमा की पत्नी को 1.93 लाख वोटों से हराया था.
2016 में संगमा की मौत के बाद मेघालय की तुरा लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने थे. इस चुनाव में कोनराड संगमा ने एनपीपी के उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया. वहीं उनके सामने मेघालय के मुख्यमंत्री मुकुल संगमा की पत्नी डिक्कांची डी शिरा थीं. जब नतीजे आए तो डिक्कांची एक लाख 93 हजार वोटों से हार गई थीं. सियासी तौर पर कोनराड संगमा की अब तक की ये सबसे बड़ी जीत थी, क्योंकि तुरा लोकसभा में पड़ने वाली 24 में से 22 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था. इसके बाद भी कोनराड संगमा ने रिकार्ड वोटों से जीत हासिल की थी.
वीडियो में देखिए, मेघालय में हारकर भी क्यों जीती भाजपा
देश की पहली पार्टी है एनपीपी, जिसे चुनाव आयोग ने सस्पेंड कर दिया था
2014 में जब लोकसभा के चुनाव हुए थे, तो चुनाव आयोग ने देश की सभी राजनैतिक पार्टियों को अपने खर्च घोषित करने के लिए कहा था. इसके बाद भी पीए संगमा के नेतृत्व वाली पार्टी एनपीपी ने अपना खर्च नहीं बताया. इससे नाराज चुनाव आयोग ने 2015 में एनपीपी की मान्यता सस्पेंड कर दी. एनपीपी देश की पहली ऐसी पार्टी बन गई, जिसे एनपीपी ने सस्पेंड किया था.
भाई और बहन को भी जिताया चुनाव

कोनराड खुद चुनाव नहीं लड़े. उन्होंने अपनी बहन अगाथा (बाएं) और भाई जेम्स को चुनाव मैदान में उतारा और जीत हासिल की.
अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न किताब के साथ 2018 के विधानसभा चुनाव में उतरे कोनराड संगमा ने खुद कहीं से चुनाव नहीं लड़ा. पार्टी के अध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने अपने भाई जेम्स संगमा और अपनी बहन अगाथा संगमा को विधानसभा के चुनाव में एनपीपी का उम्मीदवार बनाया. जेम्स और अगाथा दोनों ही चुनाव जीत गए हैं. 2008 में जब पीए संगमा ने मेघालय विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए तुरा लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था, तो उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी अगाथा संगमा को सौंप दी. उपचुनाव में अगाथा ने चुनाव जीत लिया और केंद्र में राज्य मंत्री बन गईं. उस वक्त अगाथा की उम्र मात्र 29 साल थी और वो सबसे कम उम्र की महिला सांसद थीं. पिता के एनपीपी बनाने के बाद अगाथा संगमा ने भी एनसीपी छोड़ दी और एनपीपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचीं.
सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय रहते हैं कोनराड संगमा

कोनराड संगमा पूर्वोत्तर से आने वाले पहले ऐसे नेता हैं, जो सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय हैं. फेसबुक, यू्ट्यूब और ट्विटर के जरिए लोगों से बात करने की वजह से युवाओं में कोनराड खासे लोकप्रिय हैं. मेघालय चुनाव से पहले बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए का हिस्सा होने के बाद भी कोनराड ने मेघालय में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया था. बीजेपी ने भी बात मान ली थी. अब जब कोनराड की पार्टी को 19 सीटें मिली हैं और बीजेपी के पास दो सीटें हैं, तो कोनराड हर जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने की कवायद में जुटे हुए हैं.
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