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ईरान के ख़ामेनई ने भारत पर क्या बोला कि विदेश मंत्रालय ने सुना दिया?

पिछले कुछ समय में भारत-ईरान के संबंध उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं. 2018 में अमेरिका ने ईरान के साथ हुई न्यूक्लियर डील छोड़ दी. फिर ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए. इसके चलते भारत को ईरान से तेल खरीदना बंद करना पड़ा. हालांकि, चाबहार पोर्ट वाली डील सलामत रही. मई 2024 में भारत को 10 बरसों के लिए चाबहार पोर्ट को डेवलप और ऑपरेट करने का अधिकार मिला है. ख़ामेनई के बयान का दोनों देशों के संबंधों पर क्या असर पड़ सकता है?

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ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई (फ़ोटो-AFP)

16 सितंबर को भारत के विदेश मंत्रालय ने एक्स पर लिखा, हम भारत के अल्पसंख्यकों के संदर्भ में ईरान के सुप्रीम लीडर के बयान की कड़ी निंदा करते हैं. उनका बयान भ्रामक और अस्वीकार्य है. अल्पसंख्यकों पर बयान देने से पहले देशों को अपने गिरेबां में झांक लेना चाहिए.

 

विदेश मंत्रालय की तल्ख टिप्पणी ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई की एक पोस्ट के बाद आई. जिसमें उन्होंने लिखा था, इस्लाम के दुश्मनों ने इस्लामिक उम्माह के साझा इतिहास के बरक्स हमें अलग-थलग दिखाने की भरसक कोशिशे की हैं. हम तब तक ख़ुद को मुस्लिम नहीं मान सकते, जब तक हम म्यांमार, गाज़ा, भारत या दूसरी जगहों पर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ होने वाले अत्याचार से बेख़बर रहते हैं.
 

ख़ामेनई के इस बयान की ख़ूब आलोचना हो रही है. ईरान को अपना रिकॉर्ड चेक करने की सलाह दी जा रही है. भारत के अलावा इज़रायल ने भी ख़ामेनई को लताड़ा है. भारत में इज़रायल के राजदूत रुवेन अज़ार ने लिखा, ख़ामेनई, तुम अपने ही लोगों के शोषक और हत्यारे हो. इज़रायल, भारत और दूसरे लोकतांत्रिक देशों में मुस्लिमों को पूरी आज़ादी मिली हुई है, जोकि ईरान में प्रतिबंधित है. मैं उम्मीद करूंगा कि ईरान के लोग जल्द आज़ाद हों.
 


ख़ामेनई का बयान कई मामलों में दिलचस्प है. ये ऐसे समय में आया है, जब ईरान में महसा अमीनी हत्याकांड की दूसरी बरसी मनाई जा रही है. महसा को ठीक से हिजाब ना पहनने के चलते मार डाला गया था. दूसरी बात, ख़ामेनई ने अपनी पोस्ट से चीन का नाम ग़ायब कर दिया है. जबकि चीन में उइग़र मुस्लिमों के साथ होने वाले अत्याचार का लंबा इतिहास है.  आइए, भारत पर ख़ामेनई के बयान का मतलब समझते हैं. ख़ामेनई चीन का नाम लेने से क्यों बचते हैं? और, भारत-ईरान संबंधों का इतिहास क्या है?

अयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने कहा क्या है?

16 सितंबर को ख़ामेनई ने सुन्नी धर्मगुरुओं से मुलाक़ात की. इस दौरान उन्होंने कहा, अगर एक मुसलमान पीड़ा में है तो कोई मुसलमान उसके प्रति उदासीन नहीं हो सकता. चाहे वो पीड़ा गाज़ा की हो या दुनिया के किसी और कोने की. अगर एक मुसलमान, दूसरे मुसलमान की पीड़ा नहीं समझता है तो ये इस्लामी शिक्षा के ख़िलाफ़ है. जो कोई भी इस कर्तव्य की अनदेखी करेगा, उसे ऊपरवाले के सामने जवाबदेह ठहराया जाएगा. उन्होंने ये भी कहा कि इस्लामी समुदाय की गरिमा सिर्फ़ एकजुटता से ही पाई जा सकती है.

इसके कुछ देर बाद ख़ामेनेई ने यही बयान एक्स पर पोस्ट किया. इसमें उन्होंने गाज़ा और म्यांमार के साथ-साथ भारत का भी नाम लिया. उन्होंने लिखा कि इन जगहों पर मुसलमानों के ऊपर अत्याचार हो रहा है. और, इससे बेख़बर रहने वाला व्यक्ति ख़ुद को मुसलमान नहीं कह सकता.

ख़ामेनई ने अपनी पोस्ट में ‘इस्लामी उम्मा’ का शब्द इस्तेमाल किया. क्या होता है इसका मतलब? इस्लामी उम्मा का मतलब इस्लामिक समुदाय है. ऐसा समुदाय जिसमें दुनिया के अलग-अलग हिस्सों और बैकग्राउंड के मुसलमान आते हों.

म्यांमार और गाज़ा का नाम क्यों लिया?

अब आते हैं उत्पीड़न वाली बात पर. ख़ामेनई ने सबसे पहले म्यांमार का नाम लिया. म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों का नरसंहार हुआ था. लाखों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश, भारत और दूसरे देशों में चले गए. उनके लिए वापस लौटना मुश्किल होता गया है. ख़ामेनेई ने दूसरा नाम लिया गाज़ा का. गाज़ा का क्या मसला है? 07 अक्टूबर 2023 को हमास ने इज़रायल पर आतंकी हमला किया. 11 सौ से अधिक लोगों की हत्या कर दी. ढाई सौ से ज़्यादा लोगों को बंधक बनाकर ले गए. इस हमले के बाद इज़रायल ने गाज़ा में जंग शुरू की. इज़रायल के हमलों में 40 हज़ार से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. इनमें अधिकांश बच्चे और महिलाएं हैं. कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इज़रायल पर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाया है. मगर इज़रायल पीछे हटने के लिए तैयार नहीं है. ईरान इसको मुस्लिमों के नरसंहार की तरह पेश कर रहा है.

भारत का नाम क्यों लिया?

उन्होंने दावा किया कि भारत में भी मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है. खामेनई 1989 से ईरान के सुप्रीम लीडर हैं. ईरान में सुप्रीम लीडर का पद सबसे ऊपर होता है. रक्षा और विदेश नीति जैसे मसलों पर उनका फ़ैसला अंतिम रहता है. इसलिए, उनके बयान पर हंगामा हो रहा है. हालांकि, ये पहली बार नहीं है, जब उन्होंने भारत पर निशाना साधा हो.

कब-कब ख़िलाफ़ में बोल चुके हैं?

- 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद.
- 2002 के गुजरात दंगों के बाद.
- 2010 में उन्होंने दुनियाभर के मुस्लिमों से जम्मू-कश्मीर के हिंसक विद्रोह का समर्थन करने के लिए कहा था. ख़ामेनई का बयान 2008 में भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील के बाद आया था. साथ ही साथ, 2008 और 2009 में भारत ने इंटरनैशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) में ईरान के ख़िलाफ़ वोटिंग की थी.
- ख़ामेनई का अगला प्रलाप 2017 में आया. जब उन्होंने कश्मीर का नाम लेकर कहा, मुस्लिम वर्ल्ड को खुलकर यमन, बहरीन और कश्मीर के लोगों का समर्थन करना चाहिए,और शोषकों और तानाशाहों का विरोध करना चाहिए.
- फिर अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीन लिया था. इसके बाद उन्होंने कश्मीर के मुसलमानों की स्थिति पर चिंता जताई थी.
- फिर मार्च 2020 में दिल्ली दंगों के दौरान ख़ामेनई ने मुस्लिमों के नरसंहार का आरोप लगाया था.

भारत का रिएक्शन

अब चार बरस बाद उन्होंने गाज़ा और म्यांमार के साथ भारत का नाम जोड़ा है. हालांकि, उन्होंने इसकी कोई वजह नहीं बताई. जैसा कि हमने शुरुआत में बताया, विदेश मंत्रालय ने कड़ी आलोचना की है. कहा है कि दूसरों के ऊपर कॉमेंट करने से पहले अपने गिरेबां में झांक कर देख लेना चाहिए.

ईरान में अल्पसंख्यकों और महिलाओं का क्या हाल है?

- ईरान में 90 फीसदी आबादी शिया मुस्लिम है. शिया इस्लाम मुल्क का राजकीय धर्म है.
- मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनैशनल की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक़, ईरान में सुन्नी मुस्लिमों, बहाई, ईसाई, यहूदियों और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों को भेदभाव का सामना करना पड़ता है. सरकारी संस्थाओं में शियाओं का वर्चस्व है.
- अल्पसंख्यक समुदाय के लोग राष्ट्रपति नहीं बन सकते. उनके चीफ़ जस्टिस या गार्डियन काउंसिल का सदस्य बनने पर भी पाबंदी है. इसके अलावा, वे राजनीतिक पार्टियां भी नहीं बना सकते.
- ईरान में धर्म बदलने पर सज़ा का प्रावधान है.
- शरिया क़ानून का पालन नहीं करने पर बेरहम सज़ा दी जाती है. सबसे ताज़ा उदाहरण महसा अमीनी का है. महसा को ठीक से हिजाब ना पहनने के चलते मॉरैलिटी पुलिस ने गिरफ़्तार किया था. फिर थाने में उसको टॉर्चर किया गया. बाद में महसा की मौत हो गई. इसके बाद पूरे ईरान में हिजाब-विरोधी प्रदर्शन हुए. ईरान सरकार ने प्रोटेस्ट को बुरी तरह कुचलने की कोशिश की.
- एक और उदाहरण देखिए. 2023 में ईरान की सामाजिक कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को नोबेल पीस प्राइज़ देने का एलान हुआ. उस वक़्त नरगिस जेल में थीं. वो महिलाओं के अधिकारों की आवाज़ उठातीं थी. 2011 के बाद उनको 13 बार अरेस्ट किया गया है. नरगिस को 31 बरस की जेल और 154 कोड़ों की सज़ा सुनाई जा चुकी है.

भारत-ईरान के रिश्तों का इतिहास

1947 से पहले भारत की पश्चिमी सीमा ईरान से लगती थी. आज़ादी मिली तो पाकिस्तान नया मुल्क बना. अब पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा ईरान से मिलती है. भले ही बॉर्डर अलग हो गया, मगर साझी विरासत से अलग नहीं हुआ जा सकता. दोनों ने एक-दूसरे की संस्कृति, भाषा और कला समेत कई क्षेत्रों को प्रभावित किया है.

आधुनिक इतिहास की बात करें तो, 15 मार्च 1950 को दोनों देशों ने डिप्लोमेटिक संबंध स्थापित किए. 1963 में पंडित जवाहरलाल नेहरू ईरान के दौरे पर जाने वाले पहले प्रधानमंत्री बने.
मई 1974 में पहले परमाणु परीक्षण के बाद पश्चिमी देश भारत से नाराज़ थे. प्रतिबंध लगा दिए थे. मगर ईरान ने साथ दिया. अक्टूबर 1974 में शाह भारत के दौरे पर आए. कच्चा तेल आयात करने पर सहमति बनी. 1974 में भारत ने आधे से ज़्यादा कच्चा तेल ईरान से लिया था.

1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई. इस्लामी रिपब्लिक की स्थापना हुई. पाकिस्तान मान्यता देने में आगे रहा. भारत ने समर्थन करने से मना कर दिया था. फिर 1980 में ईरान-इराक़ जंग हुई तो भारत ने इराक़ का साथ दिया.

2005 में भारत और अमरीका के बीच सिविल न्युक्लियर डील पर सहमति बनी. उसी समय अमरीका ने ईरान को यूरेनियम इनरिचमेंट प्रोग्राम बंद करने के लिए कहा. ईरान ने मना कर दिया. इसके चलते अमरीका ने प्रतिबंध लगाए. भारत पर भी दबाव डाला. इसके चलते ईरान के साथ रिश्ते ख़राब हुए. 2008 में तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ईरान का दौरा किया. संबंध ठीक करने की अपील की.
2010 में ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई ने दुनियाभर के मुस्लिमों से कश्मीर में जिहाद की अपील की. इसपर भारत ने नाराज़गी जताई थी.

फिर आया 2016 का साल. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ईरान के दौरे पर गए. इस दौरे पर चाबहार पोर्ट को डेवलप करने को लेकर समझौता हुआ. दिसंबर 2018 में भारत ने पोर्ट का कंट्रोल अपने हाथों में ले लिया. चाबहार, पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है. ग्वादर को चीन ने लीज़ पर लिया है. वो इसके ज़रिए सेंट्रल एशिया के देशों को इंडियन ओशन से जोड़ना चाहता है. चाबहार को चीन को चैलेंज करने की कोशिश के तौर पर देखा गया. लेकिन इसमें लगातार मुश्किलें आती रहीं.

Narendra Modi
 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ईरान दौरे पर ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह अली ख़ामेनई से मुलाक़ात की एक तस्वीर (फ़ोटो- AFP)

अक्टूबर 2023 में हमास के आतंकी हमले का भारत ने कड़ा विरोध किया. इज़रायल के साथ खड़े होने की बात कही. उसी समय पर ईरान ने हमास का समर्थन किया था.

फिर नवंबर में हूती विद्रोहियों ने रेड सी में मालवाहक जहाज़ों पर अटैक बढ़ा दिए. उन्होंने धमकी दी थी कि रेड सी से गुज़रने वाले इज़रायली जहाज हमारे मिलिटरी टारगेट्स हैं. हालांकि, वे दूसरे देशों के जहाजों को भी निशाना बनाने लगे. मसलन, दिसंबर में भारत आ रहे एक केमिकल टैंकर पर मिसाइल अटैक किया गया. जिसके बाद भारत ने नौसेना के 10 जहाज़ रेड सी की तरफ़ तैनात किए. अमरीका ने आरोप लगाया कि मिसाइल हमला ईरान से हुआ था. हालांकि, भारत ने इसपर कुछ नहीं कहा. जनवरी 2024 में अमरीका और ब्रिटेन ने यमन में हूती विद्रोहियों पर बमबारी शुरू की. अमरीका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने हमले के तुरंत बाद डॉक्टर जयशंकर को फ़ोन भी किया. मगर भारत ने यमन अटैक पर भी कोई बयान नहीं दिया है. जानकार ने कहा, ये ईरान को साधने की कोशिश के तहत किया जा रहा है. जनवरी में ही विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर ईरान के दौरे पर गए. वहां चाबहार पोर्ट और दूसरे मसलों पर बात हुई. मई में चाबहार पोर्ट को लेकर डील सफल रही. उसी महीने ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की हेलिकॉप्टर हादसे में मौत हो गई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा दुख जताया. जबकि भारत के उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने ईरान गए थे. फिर जुलाई 2024 में मसूद पेज़ेश्कियान ईरान के राष्ट्रपति बने. उनके शपथग्रहण में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने हिस्सा लिया था.

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