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मौलाना अरशद मदनी की पूरी कहानी, जिन्होंने ओम-अल्लाह को एक बता बवाल खड़ा कर दिया

मौलाना अरशद मदनी ने असदुद्दीन ओवैसी को गद्दार बताया था. वहीं, कहा था कि जब मोदी सत्ता में आएंगे तो देश बंट जाएगा.

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मौलाना अरशद मदनी (फोटो-ANI)

बीते तीन दिन दिल्ली में धर्मगुरुओं का जुटान हुआ. मौका था जमीयत उलेमा-ए-हिंद (JUH) के 34वें अधिवेशन का. रामलीला मैदान में आयोजित इस कार्यक्रम में दूसरे धर्म के वक्ताओं को भी बुलाया गया था. कार्यक्रम के आखिरी दिन मौलाना अरशद मदनी (Maulana Arshad Madani) के एक बयान से बवाल हो गया. दूसरे धर्म के वक्ता गुस्से में मंच छोड़कर चले गए. मदनी ने कार्यक्रम में बोलते हुए मनु-आदम और ओम-अल्लाह की आपस में तुलना कर दी. इसी पर जैन मुनि आचार्य लोकेश मुनि ने विरोध किया और कहा कि मिलजुलकर और प्यार-मोहब्बत से रहने की बात ठीक है, लेकिन मनु और उनकी औलाद की बातें बेकार की हैं. इतना कहते हुए लोकेश मुनि ने मंच छोड़ दिया.

मौलाना अरशद मदनी ने 12 फरवरी को इसी कार्यक्रम के मंच से कहा, 

"मैंने बड़े-बड़े धर्मगुरुओं से पूछा कि जब कोई नहीं था, ना श्री राम थे, ना ब्रह्मा थे, ना शिव थे, जब कोई ना था तो सवाल पैदा होता है कि मनु पूजते किसको थे. कोई कहता है कि शिव को पूजते थे, लेकिन उनके पास इल्म नहीं है. बहुत कम लोग ये बताते हैं कि जब दुनिया में कुछ नहीं था तो मनु ओम को पूजते थे. तब मैंने पूछा कि ओम कौन हैं? बहुत लोगों ने कहा कि वो एक हवा हैं जिनका कोई रूप नहीं है, कोई रंग नहीं है, हवा दुनिया में हर जगह है. उन्होंने आसमान बनाया, उन्होंने जमीन बनाई. इन्हीं को तो हम अल्लाह कहते हैं. इन्हीं को तो तुम ईश्वर कहते हो. फारसी बोलने वाले ख़ुदा कहते हैं. अंग्रेजी बोलने वाले गॉड कहते हैं. इसका मतलब है कि मनु यानी आदम एक ओम यानी एक अल्लाह को पूजते थे."

अरशद मदनी ने इस बयान के आधार पर यह भी कह दिया कि जो लोग "घर वापसी" की बात करते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि हम तो अपने ही घर में बैठे हैं. मदनी के इसी ओम-अल्लाह को मिलाने की बात पर कई लोग नाराज हो गए हैं.

कौन हैं मौलाना अरशद मदनी?

मौलाना सैय्यद अरशद मदनी, इस्लामिक संगठन 'जमीयत उलेमा-ए-हिंद' (अरशद गुट) के अध्यक्ष हैं. 100 साल पुराने इस संगठन का उद्देश्य इस्लाम धर्म के विचारों और उसकी विरासतों का संरक्षण करना है. संगठन का संबंध दारुल उलूम देवबंद से है. भारतीय मुसलमानों में देवबंदी अल्पसंख्यक हैं. एक अनुमान के मुताबिक, करीब 15 से 20 फीसदी मुसलमान खुद को देवबंदी मानते हैं. साल 1919 में कई देवबंदी स्कॉलर्स ने मिलकर 'जमीयत उलेमा-ए-हिंद' बनाया था. जमीयत की राजनीतिक विचारधारा 'समग्र राष्ट्रवाद' की थी, जो आजादी के दौरान मुस्लिम लीग के ठीक खिलाफ थी. संगठन ने भारत विभाजन का भी विरोध किया था.

अरशद मदनी, मौलाना सैय्यद हुसैन अहमद मदनी के बेटे हैं. हुसैन अहमद मदनी भी 'जमीयत उलेमा-ए-हिंद' के अध्यक्ष थे. साल 1938 में हुसैन अहमद मदनी ने 'मुत्तहिद कौमियत और इस्लाम' नाम की एक किताब लिखी थी. मुत्तहिद कौमियत का अर्थ होता है 'समग्र राष्ट्रवाद'. किताब में उन्होंने लिखा था कि हिंदू और मुसलमान दो अलग धर्म से जरूर आते हैं, लेकिन एक ही कौम और एक ही देश का हिस्सा हैं. ये विचार मोहम्मद अली जिन्ना और उनकी मुस्लिम लीग की विचारधारा के खिलाफ थे.

जब हुसैन अहमद मदनी इस तरह की बात कर रहे थे, उसी दौरान अरशद मदनी का जन्म हुआ. साल 1941 में. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की वेबसाइट से जानकारी मिलती है कि अरशद मदनी ने आठ बरस की उम्र में कुरान को रट लिया. शुरुआती पढ़ाई के दौरान उन्होंने फारसी सिलेबस को भी पढ़ा. फिर 1955 में अरबी भाषा सीखनी शुरू की. साल 1959 में उन्होंने दारुल उलूम देवबंद में दाखिला लिया. 1964 में यहां से उनकी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी हुई. पढ़ाई के बाद अगले साल बिहार के चर्चित मदरसे 'जामिया कसमिया' में पढ़ाने गए. यहां करीब ढाई साल तक सेवा दी.

जब मदीना गए मदनी...

फिर मदनी ने इस्लाम को लेकर अपने ज्ञान को गूढ़ करने का सोचा. या फिर ऐसा कह सकते हैं कि उनके पिता ने ऐसा करने का सुझाव दिया. साल 1967 में अरशद मदनी मदीना (सऊदी अरब) चले गए. वहां करीब 14 महीने रहे और इस्लामिक विचारों को लेकर अध्ययन किया. ज्यादातर समय वहां की मस्जिद में रहे. फिर वापस भारत आ गए. वापस आने पर मदनी के गुरु मौलाना सैय्यद फखरुद्दीन ने उन्हें मुरादाबाद के शाही मदरसे में पढ़ाने को कहा. साल 1969 में मदनी ने वहां पढ़ाना शुरू किया. बाद में इसी मदरसे में प्रशासनिक जिम्मेदारियां भी मिलीं. 1971 में उन्हें मदरसे की एडवायजरी काउंसिल का कन्वेनर बनाया गया. अगले ही साल वहां के वाइस प्रिंसिपल बन गए.

मौलाना अरशद मदनी (फोटो- इंडिया टुडे)

साल 1982 में मदनी को दारुल उलूम देवबंद बुला लिया गया. उन्होंने यहां लंबे समय तक पढ़ाया. यहां भी 1987 से 1990 तक वाइस प्रिंसिपल रहे. फिर 1996 से 2008 तक इसी दारुल उलूम के प्रिंसिपल रहे. दारुल उलूम आने के बाद मदनी को जमीयत 'उलेमा-ए-हिंद' में भी जिम्मेदारी मिलने लगी. साल 1984 में उन्हें संगठन की वर्किंग कमिटी का सदस्य बनाया गया. साल 2006 में अरशद मदनी के भाई असद मदनी का निधन हुआ. असद तब संगठन के अध्यक्ष थे. उनके निधन के बाद अरशद मदनी देश के सबसे बड़े इस्लामिक संगठन के सर्वेसर्वा बन गए.

साल 2008 में जमीयत 'उलेमा-ए-हिंद' दो हिस्सों में बंट गया. मौलाना महमूद मदनी ने अपने गुट को 'असली जमीयत' बताया. अरशद मदनी पर आरोप लगा कि वो जमीयत के खिलाफ काम कर रहे हैं. हालांकि, अरशद मदनी के जमीयत 'उलेमा-ए-हिंद' के अध्यक्ष बने रहे. इनके समर्थकों को संगठन में 'अरशद गुट' कहा जाने लगा. दोनों गुटों ने अपनी-अपनी वर्किंग कमिटी बना ली. पिछले साल से दोनों गुटों के मर्जर की भी बात चल रही है.

आधुनिक शिक्षा के समर्थक, लेकिन…

अरशद मदनी की कहानी उलेमा-ए-हिंद के इतर भी है. साल 1997 में उन्होंने एक 'मदनी चैरिटेबल ट्रस्ट' बनाया था. यह ट्रस्ट पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में धार्मिक शिक्षण संस्थानों को फंड करता है. इन राज्यों में ट्रस्ट की ओर से इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (ITI) भी खोले गए. उन्होंने 'आधुनिक शिक्षा' के लिए देवबंद में मौलाना मदनी मेमोरियल इंग्लिश मीडियम स्कूल भी खोला.

मदनी ने इस्लाम से जुड़ीं कई किताबों का अनुवाद भी किया. इनमें उनके पिता की बायोग्राफी भी शामिल है. उन्होंने सैय्यद हुसैन अहमद मदनी की बायोग्राफी 'नक्श ए हयात' का उर्दू से अरबी में अनुवाद किया.

मदनी एक तरफ आधुनिक शिक्षा की वकालत करते हैं. लेकिन उन्हें लड़के और लड़कियों की एक साथ पढ़ाई से भी दिक्कत है. हाल में मदनी ने कहा था कि को-एजुकेशन सिस्टम से मुस्लिम लड़कियां अपने धर्म से भटक जाएंगी. मदनी के मुताबिक, जमीयत उलेमा-ए-हिंद को-एजुकेशन के खिलाफ है, ये मुस्लिम लड़कियों को धर्मांतरण की तरफ ले जा रहा है. उन्होंने ये भी दावा किया कि इससे सुनियोजित तरीके से मुस्लिम लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है. इसलिए को-एजुकेशन सिस्टम पर जल्द रोक लगाना जरूरी है.

अरशद मदनी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के सदस्य भी हैं. इसके अलावा वे देश की कई धार्मिक संस्थाओं में सलाहकार के तौर पर जुड़े हैं. देश के बाहर कई धार्मिक मंचों पर बोलते हैं. धार्मिक का मतलब यहां इस्लामिक चर्चा से है.

मोदी आएंगे तो देश बंट जाएगा- मदनी

अरशद मदनी अपने तीखे बयानों के लिए जाने जाते हैं. कई बार उन्होंने BJP-RSS की पॉलिटिक्स के खिलाफ खुले मंच से बयान दिए हैं. साल 2014 में केंद्र में BJP की सरकार बनने से पहले अरशद मदनी ने कहा था कि अगर नरेंद्र मोदी सत्ता में आएंगे, तो देश बंट जाएगा. फरवरी 2013 में इंडिया टुडे को दिए एक इंटरव्यू में महमूद मदनी ने कहा था कि गुजरात के कुछ हिस्सों में मुसलमान नरेंद्र मोदी को वोट कर रहे हैं. इस पर अरशद मदनी ने कहा था कि जो वोट दे रहे हैं, वो सिरफिरे हैं. उन्होंने कहा था कि मोदी इंसानियत के कातिल हैं, आम मुसलमानों की यही राय है.

मौलाना अरशद मदनी (फाइल फोटो- पीटीआई)

हालांकि, लगातार दूसरी बार नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद धीरे-धीरे मदनी का रुख बदलने लगा. BJP और RSS के प्रति उनके बयानों में नरमी आई. कई मुद्दों पर चुप रहे या हल्के हाथों से सरकार का समर्थन किया. 2019 लोकसभा चुनाव के बाद अरशद मदनी ने RSS सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात की और उनकी प्रशंसा की थी. इस मुलाकात के बाद एक मीडिया आउटलेट से बात करते हुए मदनी ने कहा था कि भागवत से मुलाकात के दौरान 'हिंदू राष्ट्र' जैसी बात नहीं हुई. उन्होंने यह भी कहा था कि RSS हिंदू राष्ट्र की सोच से दूर हो सकता है. मदनी ने तब कहा था कि भागवत से उनकी मुलाकात का मकसद ये था कि देश में शांति किस तरह कायम हो.

पिछले साल (मई 2022) एक धार्मिक कार्यक्रम में मदनी ने कहा था कि हमें बहुसंख्यक समाज के लोगों के साथ नजदीकियां बढ़ानी चाहिए. उन्हें अपने मदरसों और अपने स्कूलों की शिक्षा के बारे में समझाना चाहिए. उन्होंने कहा था कि हमारी लड़ाई हिंदू भाइयों से नहीं, बल्कि सत्ता में बैठ उन लोगों से है जो धर्म के नाम पर देश को बर्बाद कर रहे हैं.

ओवैसी को गद्दार बताया

साल 2015 की शुरुआत में जमीयत अध्यक्ष ने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और उनके भाई को "गद्दार" बता दिया था. मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे ओवैसी की भाषा को लेकर सवाल पूछा गया था. मदनी ने कहा था कि ओवैसी गद्दार हैं और वे इसलिए ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते हैं, ताकि AIMIM को हैदराबाद में कुछ सीट मिल सके.

मौलाना अरशद मदनी अपने संगठन की राजनीतिक विचारधारा को कई मौकों पर दोहराते हैं. उसी 'समग्र राष्ट्रवाद' की विचारधारा को. पिछले साल मदनी ने कहा था कि जिन लोगों ने देश की आजादी के लिए त्याग किया वो 'देशद्रोही' कैसे हो सकते हैं. एक कार्यक्रम में उन्होंने दावा किया था कि भारत का स्वतंत्रता आंदोलन उलेमा और मुस्लिमों ने शुरू किया था. ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत का पहला झंडा उलेमा ने उठाया था. मदनी ने सवाल किया कि जिन्होंने सबसे पहले आजादी का नारा दिया, वो गद्दार कैसे हो सकते हैं?

तो ये है अरशद मदनी की पूरी कहानी.

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