17वीं शताब्दी का भारत. जब देश के विभिन्न हिस्सों में विदेशी ताकतें अपनी जड़ें जमा रही थीं. दक्षिण भारत में पुर्तगालियों और डचों का बोलबाला था. वहीं पश्चिम में अंग्रेज अपनी पकड़ बनाने में लगे हुए थे. ये सभी अलग अलग थे, लेकिन इन्हें ताकतवर बनाने वाली शक्ति एक थी- नौसेना. जंगी जहाज़ों का बेड़ा लेकर आई यूरोपियन शक्तियों ने तटीय इलाकों पर कब्ज़ा जमाना शुरू किया था, और धीरे-धीरे मेनलैंड पर कब्ज़ा जमाते गए.
छत्रपति शिवाजी ने ऐसे बनाई थी मराठी नेवी , जिसने मुगलों, अंग्रेजों, पुर्तगालियों... सबको धूल चटा दी!
Shivaji Maratha Navy History: छत्रपति शिवाजी राजे के नेतृत्व में मराठा नेवी का निर्माण हुआ. मराठा नेवी के जहाजों के नीचे का हिस्सा सपाट होता था, जिससे ये तट के करीब आ कर हमला करने में सक्षम था.
दूसरी तरफ तुलना करें तो भारत में तमाम राजा थे. बड़ी बड़ी फौजें थीं. लेकिन सबका मुख्य जोर आर्मी मजबूत करने पर था बजाय नौसेना के. ऐसी स्थिति में 17 वीं शताब्दी में उदय हुआ एक ऐसा मराठा नायक का, जिसने न सिर्फ जमीन पर बल्कि समंदर में भी अपने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे. हम बात कर रहे हैं छत्रपति शिवाजी राजे और उनके द्वारा बनाई गई मराठा नेवी की.
मराठा नौसेना का जन्मछत्रपति शिवाजी ने एक ऐसे राज्य की स्थापना की जिसने कई सालों तक लगभग पूरे भारत पर राज किया. शिवाजी एक कुशल रणनीतिकार थे और अपनी दूरदृष्टि के लिए जाने जाते थे. भारत में गुरिल्ला वॉरफेयर या छापामार युद्ध कला का उपयोग उन्होंने ही किया था.
शिवाजी महाराज के शासन में महाराष्ट्र और कोंकण के इलाके में तीन बड़ी ताकतें थीं. पहला बंबई पर ब्रिटिशर्स का कब्ज़ा था, गोवा और भसीन में पुर्तगाली बैठे थे और तीसरा मुंबई के पास जंजीरा पर अफ्रीका से आए सिद्दियों का शासन था, जिन्हें ताकतवर मुग़ल शक्ति का संरक्षण हासिल था.
इन सभी के पास अपनी नौसेना थी और मराठा साम्राज्य से इनकी लगातार लड़ाई चलती रहती थी. साथ ही इनका पूरा व्यापार भी इसी समुद्र के रास्ते से होता था. शिवाजी को पता था कि इनको हराने और मराठा साम्राज्य की सुरक्षा के लिए नौसेना की जरूरत है. भारत के जाने माने इतिहासकार सर जदुनाथ सरकार के अनुसार ”छत्रपति शिवाजी महाराज की जन्मजात राजनैतिक प्रतिभा का सबसे स्पष्ट प्रमाण उनकी नौसेना और नौसैनिक अड्डों की स्थापना है."
कैसे बने मराठा नौसेना के जहाज?पुर्तगाली मजबूत और ताकतवर जंगी जहाज़ बनाने के लिए जाने जाते थे. और ये बात शिवाजी महाराज को भी मालूम थी. इसलिए उन्होंने अपने जहाज़ बनाने का जिम्मा पुर्तगाली इंजीनियर्स को सौंपा. शिवाजी को हालांकि ये अंदेशा भी था कि जैसे ही गोवा में बैठे पुर्तगाली अधिकारियों को इस बात का पता चलेगा वे कुछ न कुछ अड़चन जरूर डालेंगे. इसलिए उन्होंने अपने करीबी आबाजी सोनदेव को एक सलाह दी. सलाह ये कि पुर्तगाली इंजीनियर्स की मदद के लिए ऐसे कुशल लोगों को लगाया जाए, जो जहाज बनाने की कला सीख सकें. जैसा शिवाजी ने सोचा था, वैसा ही हुआ भी. इंजीनियर्स ने जहाज आधे बनाए थे कि पुर्तगाली अधिकारियों ने काम रुकवा दिया. पुर्तगाली वापस लौट गए. लेकिन कुशल मराठा कारीगरों ने इस काम को पूरा किया और इसी के साथ जन्म हुआ एक ऐसी नेवी का, जिसे कई अर्थों में आधुनिक कहा जा सकता था. मायनाक भण्डारी इसके पहले प्रमुख थे.
शिवाजी महाराज ने अपने बेड़े को चार प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया था.
- गुराब: ये बड़े और शक्तिशाली जहाज थे, जिनका उपयोग मुख्य रूप से समुद्री युद्धों में किया जाता था. ये जहाज लकड़ी के बने होते थे और इन पर तोपों का उपयोग किया जाता था. गुराब जहाजों का आकार बड़ा होता था, और इन्हें युद्ध के दौरान दुश्मन के जहाजों पर आक्रमण करने के लिए बनाया गया था.
- गालबात (गलबात): गालबात या गलबात जहाज, गुराब की तुलना में छोटे होते थे, लेकिन इनका उपयोग भी युद्ध के लिए ही किया जाता था. ये जहाज तेज गति से चलने में सक्षम थे और दुश्मन के जहाजों का पीछा करने या तुरंत हमला करने में सहायक होते थे.
- टारगोट (टारगु): टारगोट जहाज छोटे और हल्के जहाज होते थे, जिनका उपयोग गश्त और छोटी लड़ाइयों के लिए किया जाता था. ये जहाज बहुत तेज होते थे और दुश्मन की नजरों से बचकर तेजी से हमला करने में सक्षम होते थे.
- पाल (पालखी): पाल जहाज समुद्र के बड़े जहाज होते थे, जिनका उपयोग मुख्य रूप से लंबी दूरी की समुद्री यात्रा और व्यापार के लिए किया जाता था.
मराठा नेवी और यूरोपियन नेवीज़ में कुछ अंतर थे. मसलन, पुर्तगाली और अंग्रेजी जहाज लंबी दूरी तय करने के लिए बने थे, जिस वजह से उनका नीचे का हिस्सा काफी बड़ा होता था. इसके बरअक्स, मराठा नेवी के जहाज तुलनात्मक रूप से छोटे आकार के होते थे. साथ ही उनका नीचे का हिस्सा फ्लैट होता था. अपनी इसी खासियत की वजह से वे तटों के काफी नजदीक पहुंचकर हमला कर सकते थे. जो दूसरे यूरोपियन जहाजों के लिए संभव नहीं था. साल 1679 में एक ब्रिटिश गवर्नर ने लड़ाई में हार के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ट्रस्ट को लिखा,
“उनके जहाज़ वहां जा सकते है जहां हम नहीं जा सकते.”
नौसेना की डिटेल्स जानने के बाद छत्रपति शिवाजी राजे ने इस नौसेना का इस्तेमाल बड़ी सूझबूझ से किया.
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शिवाजी की नौसेनाशिवाजी ने करीब 30 से 40 छोटे बड़े जहाजों के बेड़े के साथ अपनी नौसेना की शुरुआत की थी. जिनकी संख्या समय के साथ 200 के आकड़ों को पार कर गई. इस नई शक्ति से उन्हें कई लड़ाइयां जीतने में मदद मिली. जिसमें शामिल है सूरत की लड़ाई. 1664 में मुगल कमांडर इनायत खान और मराठाओं के बीच हुई इस लड़ाई मे नौसेना ने महत्वपूर्ण रोल निभाया था. हुआ यूं कि लड़ाई के दौरान, मुग़लों का एक जंगी बेड़ा सूरत की ओर रवाना हुआ. लेकिन मराठा नौसेना ने उसे पांच दिन तक समुद्र में ही रोके रखा. जिसके चलते मराठाओं ने इस युद्ध को आसानी से जीत लिया.
ऐसा ही एक दूसरा उदाहरण है बसरूर का, जो आज के कर्नाटक में पड़ता है. बसरूर के राजा की मौत के बाद पुर्तगालियों ने मौके का फायदा उठा कर उस पर कब्जा कर लिया. तब वहां की रानी ने छत्रपति को भाई समान मानते हुए उनसे मदद मांगी. शिवाजी अपनी नौसेना के साथ बसरूर पहुंचे और वहां से पुर्तगालियों को खदेड़ दिया. आज भी बसरूर में 13 फरवरी को इस मौके की याद में जश्न मनाया जाता है.
जहाज की सुरक्षा के लिए बनवाया किलाशिवाजी जानते थे कि सिर्फ जहाज़ ही सुरक्षा के लिए काफी नहीं होंगे. इसलिए उन्होंने समुद्र के किनारे और बीच में किलों का निर्माण किया, ताकि मराठा नौसेना के जहाज सुरक्षित रह सकें और दुश्मनों से निपटने के लिए रणनीतिक स्थान उपलब्ध हो. इसमें शामिल था सिंधुदुर्ग. मुंबई से 450 किमी दूर कोंकण के मालवन में बने इस किले को खुद शिवाजी ने अपनी निगरानी मे बनवाया था. यह एक अभेद्य किला था. इसका निर्माण समुद्र के बीच में किया गया था, ताकि इसे दुश्मन के हमलों से सुरक्षित रखा जा सके.
इसके अलावा उन्होंने मुंबई के नजदीक ही कोलाबा में एक किले का निर्माण किया. बंबई पर इस समय ब्रिटिशर्स का कब्जा था. उन्होंने किले के निर्माण पर आपत्ति दर्ज की थी. लेकिन शिवाजी पर इसका कोई असर नहीं हुआ. अंग्रेजों ने उन्हें रोकने के लिए अपनी नौसेना को भेजा लेकिन शिवाजी ने उन्हें बुरी तरह से हरा दिया. सिर्फ इतना ही नहीं शिवाजी ने अंग्रेजों के जहाज पर कब्जा कर लिया और अंग्रेज सैनिकों को बंदी भी बना लिया, जिसके लिए अंग्रेजों ने शिवाजी को भारी कीमत अदा की. शिवाजी ने अपनी नौसेना का उपयोग करके 1670 तक लगभग पूरे कोंकण पर अपना राज स्थापित कर लिया था. केवल 3 जगह ऐसी थीं, जो उनकी पकड़ से दूर थीं- गोवा, मुंबई और वसई.
मराठा नौसेना का दूसरा अध्यायशिवाजी के बाद उनके बेटे छत्रपति संभाजी राजे ने मराठा नौसेना की कमान संभाली. रायगढ़ के पास अरब सागर में मुरुड जंजीरा नाम का एक किला है. यहां अफ्रीकी मूल के सिद्दियों का राज़ था. संभाजी इस किले को जीतना चाहते थे, ताकि वहां नौसैनिक अड्डा बनाया जा सके. इस काम में वे सफल नहीं हो पाए. लेकिन उन्होंने कई दूसरे किलों का निर्माण कराया. जिनसे मराठा शक्ति में और इजाफा हुआ. संभाजी की मौत के बाद मराठा नौसेना को नई दिशा दी कान्होजी आंग्रे ने.
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कान्होजी को इंडिया के सबसे लेजेंडरी नेवल कमांडर्स में से एक माना जाता है. एडमिरल को मराठा नौसेना में सरखेल कहा जाता था. आंग्रे का पूरा बचपन समुद्र के किनारे ही बीता इसलिए उनका समुद्र के साथ एक नजदीकी रिश्ता था. कान्होजी आंग्रे एक कुशल सेनापति थे. उनकी रणनीतिक बुद्धिमानी ने मराठा नौसेना को उस समय की सबसे शक्तिशाली समुद्री सेना में बदल दिया.
कान्होजी ने न सिर्फ अंग्रेज, पुर्तगालियों और सिद्दियों को हराया, उनकी प्रसिद्धि का एक बड़ा कारण ये भी था कि वे दुश्मन जहाजों पर कब्ज़ा कर लेते थे. किस्सा मशहूर है कि एक बार कान्होजी ने मुंबई से मात्र 2 मील दूर यानी दुश्मन की नाक के नीचे से एक अंग्रेजी जहाज़ को कब्ज़े में ले लिया. जहाज में एक ब्रिटिश गवर्नर की पत्नी भी थी. इसलिए अंग्रेजों ने आंग्रे को बड़ी कीमत देकर अपने जहाज़ को छुड़वाया था.
इतना ही नहीं, उन्होंने एक बार अपनी नौसेना को लेकर लंबे समय तक मुंबई का घेराव कर दिया था, जिसके चलते अंग्रेजों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ था. अंत में अंग्रेज़ों को आंग्रे को एक बड़ी रकम देनी पड़ी, जिसके बाद उन्होंने मुंबई से अपनी नौसेना को हटा लिया. कहा जाता है की आंग्रे की वजह से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को हर साल 50 हजार पाउंड का अतिरिक्त नुकसान होता था.
आंग्रे की बढ़ती शक्ति से परेशान होकर अंग्रेजों, पुर्तगालियों और सिद्दियों ने साथ मिलकर उनपर हमला किया. तीन विदेशी ताकतों की विशाल सेना का सामना मराठा नौसेना ने अकेले किया. खंडेरी के युद्ध के नाम से मशहूर लड़ाई में तीनों को धूल चटा दी थी.
कान्होजी की ताकतवर मराठा नौसेना के किस्सेउस दौर में पुर्तगाली अपने इलाके में आने जाने वाले जहाजों पर टैक्स लगाते थे. जहाज ले जाने के लिए कारताज लेना पड़ता था. कारताज को हम एक तरह से टैक्स रसीद समझ सकते हैं, जिसके बिना कोई भी उनके इलाके में प्रवेश नहीं कर सकता था. आंग्रे ने इसे मानने से इंकार कर दिया था. उन्होंने अपना अलग कागज जारी किया, जिसे दस्तक कहते थे. मराठा नौसेना और आंग्रे की ताकत का आलम यह था कि सभी जहाजों के लिए दस्तक लेना जरूरी हो गया था, चाहे वो अंग्रेजों और पुर्तगालियों के ही क्यों न हों.
आंग्रे की लीडरशिप में मराठा नौसेना का दबदबा सूरत से लेकर कोंकण तक था. पूरे कोंकण में मराठा नौसेना के किले बने हुए थे. यहां तक कि अंडमान निकोबार द्वीप पर भी उनका अधिकार हो गया था. मराठा नौसेना 17वीं और 18वीं सदी में दुनिया की सबसे शक्तिशाली नौसेनाओं में से एक थी.
शिवाजी महाराज की दूरदर्शिता से लेकर कान्होजी आंग्रे की नेतृत्व क्षमता तक, सिंधुदुर्ग और कोलाबा के अभेद्य किलों से लेकर समुद्री डकैती पर नियंत्रण तक, मराठा नौसेना ने मराठा साम्राज्य की समुद्री सीमा को सुरक्षित रखा और भारतीय समुद्री इतिहास में अपना अमिट स्थान बनाया, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है.
वीडियो: तारीख: क्या थी मराठा नेवी जिसकी वजह से समुद्र में मराठा इतने शक्तिशाली हुए?