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संदीप मित्तल! आपका छद्म-विज्ञान हिंदू धर्म के किसी काम नहीं आएगा

IPS संदीप मित्तल ने शिवलिंग, न्यूक्लियर रेडिएशन, भांग और चेर्नोबिल पर जो लिखा, वो भ्रमित करने वाला है.

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संदीप मित्तल का महाशिवरत्रि से जुड़ा ट्विटर थ्रेड और शिवलिंग. (सोर्स - ट्विटर)
पश्चिम में विज्ञान और धर्म की लड़ाई बहुत पुरानी और जानी-मानी है. हम प्राचीन काल में देखें तो पाएंगे कि तब भारतीय उपमहाद्वीप के धर्मों और विज्ञान के बीच कोई खासा तनाव नहीं था. लेकिन आजकल एक पैटर्न आम होता जा रहा है. धार्मिक प्रतीकों और रीति-रिवाज़ों का जबरन एक वैज्ञानिक आधार खड़ा करने का पैटर्न.
जब मैं ये स्टोरी लिखना शुरू कर रहा हूं तब ट्विटर पर #ISupportDrSandeepMittal ट्रेंड कर रहा है. पूरे इंडिया में पहले नंबर का ट्रेंड. इसलिए हमें ये ज़रूरी लगा कि इस बारे में बात होनी चाहिए.
ये स्टोरी संदीप मित्तल के ट्वीट में लिखी गई बात पर है, तो फिलहाल आप बस इतना जान लीजिए कि संदीप मित्तल एक IPS अफसर हैं.
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ट्विटर पर  23 फरवरी को दिनभर IPS संदीप मित्तल से जुड़ा ट्रेंड टॉप पर रहा. (सोर्स - ट्विटर)

महाशिवरात्रि और संदीप मित्तल का ट्वीट

शुक्रवार यानी 21 फरवरी, 2020 को महाशिवरात्रि थी. इसी को लेकर 22 फरवरी को मित्तल ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये. पूरा थ्रेड एक बार में पढ़िए-
ट्विटर पर कई ज्ञानियों ने कहा कि महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर इतना दूध चढ़ाकर बर्बाद क्यों किया जाता है. हिंदू धर्म की धार्मिक परंपराओं की निंदा करना आजकल फैशन बन गया है. शिवलिंग की आकृति एक एलिपसॉयड जैसी होती है तथा यह प्राकृतिक ऊर्जा का संचय करने में समर्थ होता है.
इस ऊर्जा के विकिरण से बचने के लिए शिवलिंग पर जल दूध आदि चढ़ाया जाता है जैसे न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिए हैवी वाटर का प्रयोग किया जाता है. शिवलिंग पर बेलपत्र सूरजमुखी के फूल एवं भांग इत्यादि भी चढ़ाए जाते हैं.
यह सभी पौधे परमाणु ऊर्जा के विकिरण को नियंत्रण रखने मैं सक्षम हैं. चेर्नोबिल परमाणु आपदा के बाद उस संपूर्ण क्षेत्र में भांग के पौधों को उगा कर विकिरण को कंट्रोल नियंत्रित किया गया था.
आज समय, इस प्रकार के प्रश्न पूछने की बजाए, इस बात का है कि हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में जिन बातों को परंपरा में निहित कर लिया गया है उसकी वैज्ञानिक गुढ्ता को समझने के लिए शोध करें और उस को बढ़ावा दें.
इतना विस्तार पूर्वक मैं केवल प्रश्न का उत्तर देने के लिए नहीं लिख रहा हूं अपितु अपने बहन भाइयों को शिवलिंग के गुण एवं महत्व को समझाने का प्रयास कर रहा हूं.
शिवरात्रि पर बहुत जगह प्रसाद के रूप में भांग दी जाती है.
शिवरात्रि पर बहुत जगह प्रसाद के रूप में भांग दी जाती है.

मित्तल की बात में कितना सच?

इस पूरे थ्रेड में कई दावे हैं. हम तीन मुख्य दावों का वैज्ञानिक आधार जांचेंगे. शुरू करते हैं.
शिवलिंग और रेडिएशन
दावा नं. 1 - शिवलिंग की आकृति एक एलिपसॉयड जैसी होती है तथा यह प्राकृतिक ऊर्जा का संचय करने में समर्थ होता है.
एक तो उन्होंने स्पष्ट नहीं किया है कि ये किस तरह की प्राकृतिक ऊर्जा है. हमने एलिपसॉयड आकृति में कोई स्पेशल एनर्जी स्टोरेज होती है या नहीं इस बारे में पता करने की कोशिश की. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. उन्होंने अपने थ्रेड में न्यूक्लियर एनर्जी और रेडिएशन से जुड़े उदाहरण दिए हैं. तो इसे न्यूक्लियर ऊर्जा ही समझ लिया गया. लेकिन फिर संदीप ने जवाब में लिखा-
मैंने अपनी ट्वीट में कहीं भी नहीं कहा कि शिवलिंग में परमाणु ऊर्जा होती है. विकिरण किसी भी उर्जा जैसे मैग्नेटिक, ग्रेविटेशनल आदि से हो सकता है.
तो इन्हें स्पष्ट करना चाहिए कि ये किस ऊर्जा का विकरण है. हमारे आसपास मौजूद हर चीज़ थर्मल रेडिएशन छोड़ती है. एक बेसिक नियम जान लीजिए -
हर वो पदार्थ जिसका तापमान एब्सोल्यूट ज़ीरो से ज़्यादा है वो थर्मल रेडिएशन इमिट करता है. (एब्सोल्यूट ज़ीरो तापमान केल्विन स्केल का ज़ीरो है. सेल्सियस स्केल में ये तापमान -273.15 डिग्री सेल्सियस है.)
मतलब कोई भी चीज़ जिसका तापमान -273 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा है, वो थर्मल रेडिएशन एमिट करती है. 
इंसानी शरीर का थर्मल रेडिएशन मैप.
इंसानी शरीर का थर्मल रेडिएशन मैप.


इंसान के खुद के शरीर का नॉर्मल टेंप्रेचर लगभग 37 डिग्री सेल्सियस होता है. हमारा शरीर भी रेडिएशन छोड़ता है. इसलिए कंबल हमें गर्म रखता है. कंबल बाहरी ठंडी हवा को रोकने के अलावा शरीर से निकले रेडिएशन को ट्रैप करने (रोकने) का काम भी करता है. और इस तरह वो हमें गर्म रखता है.
स्टीफन-बोल्ट्ज़मेन लॉ हमें एक ब्लैक-बॉडी से निकली पावर और तापमान का रिलेशन बताता है. यहां ब्लैक-बॉडी का मतलब काली-वस्तु बिलकुल नहीं है. (ब्लैक-बॉडी एक आदर्श बॉडी होती है, जो अपने तक आ रहे सारे रेडिएशन सोख लेती है. लेकिन आदर्श जैसा तो इस दुनिया में कुछ है नहीं. इसलिए किसी भी मटेरियल से निकलने वाला रेडिएशन आदर्श से अलग होता है.)
तो डॉक्टर संदीप मित्तल को स्पष्ट करना चाहिए कि वो किस तरह के रेडिएशन की बात कर रहे हैं. क्या वो थर्मल रेडिएशन की बात कर रहे हैं? अगर हां, तो फिर लगभग हर चीज़ वो रेडिएशन एमिट करती है.
चलिए, दूसरे दावे की ओर बढ़ते हैं.
दूध, जल और न्यूक्लियर मॉडरेशन
दावा नं. 2 - इस ऊर्जा के विकिरण से बचने के लिए शिवलिंग पर जल-दूध आदि चढ़ाया जाता है जैसे न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिए हैवी वाटर का प्रयोग किया जाता है.
न्यूकलियर फिशन का स्कीमेटिक. (सोर्स - विकिमीडिया)
न्यूकलियर फिशन का स्कीमेटिक. (सोर्स - विकिमीडिया)


हां ये तो है कि न्यूक्लियर रिएक्टर में मॉडरेशन के लिए हैवी वॉटर यानी D2O का इस्तेमाल होता है. नॉर्मल पानी यानी H2O में हाइड्रोजन होता है जबकि हैवी वॉटर ड्यूट्रियम. ये ड्यूट्रियम न्यूट्रॉन्स को धीमा करता है ताकि एक इफेक्टिव फिज़न रिएक्शन हो सके. लेकिन यहां दूध और जल कहां से आ गया. दूध और जल कैसे एक मॉडरेटर का काम करेंगे, ये समझ से परे है.
फिर से वही बात आ जाती है. ये स्पष्ट ही नहीं किया गया है कि किस तरह के विकिरण यानी रेडिएशन की बात हो रही है. तो फिलहाल इस बात को जांचना मुश्किल है कि दूध और जल उस विकिरण को मॉडरेट करेंगे या नहीं.
ड्यूट्रियम हाइड्रोजन का आइसोटोप है. बस ये हाइड्रोजन से भारी होता है. इसलिए इस वाले पानी को हैवी वॉटर कहते हैं. (सोर्स - विकिमीडिया)
ड्यूट्रियम हाइड्रोजन का आइसोटोप है. बस ये हाइड्रोजन से भारी होता है. इसलिए इस वाले पानी को हैवी वॉटर कहते हैं. (सोर्स - विकिमीडिया)


तीसरे दावे पर चलते हैं. इस दावे की वैज्ञानिक जड़ तो है, लेकिन डॉक्टर संदीप ने इस जड़ की शाखाएं बना दी हैं. और इस आम के पेड़ की शाखाओं से संदीप अमरूद तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.
चेर्नोबिल रेडिएशन और भांग
दावा नं. 3 - शिवलिंग पर बेलपत्र, सूरजमुखी के फूल एवं भांग इत्यादि भी चढ़ाए जाते हैं. यह सभी पौधे परमाणु ऊर्जा के विकिरण को नियंत्रण रखने मैं सक्षम हैं. चेर्नोबिल परमाणु आपदा के बाद उस संपूर्ण क्षेत्र में भांग के पौधों को उगा कर विकिरण को कंट्रोल नियंत्रित किया गया था.
अभी तक इन्होंने स्पष्ट नहीं किया था कि ये किस ऊर्जा के विकिरण की बात हो रही है. लेकिन यहां लिखते हैं कि बेलपत्र, सूरजमुखी के फूल एवं भांग इत्यादि के पौधे परमाणु ऊर्जा के विकरण यानी न्यूक्लियर रेडिएशन को नियंत्रित करने में सक्षम हैं.
पहली बात तो अगर ये न्यूक्लियर रेडिएशन को रोकने के काम आते हैं, तो क्या संदीप यह नहीं कह रहे कि शिवलिंग से न्यूक्लियर रेडिएशन निकलता है? नहीं तो इस बात का यहां पर क्या तुक है?
दूसरी बात गंभीर और बेहद मिस्लीडिंग है. चेर्नोबिल में भांग के पौधे से न्यूक्लियर रेडिएशन नियंत्रित करने से शिवलिंग तक पहुंचने वाली बात.
1986 में सोवियत रूस के चेर्नोबिल में एक परमाणु दुर्घटना हुई थी. परमाणु दुर्घटना के बाद वो इलाका रेडियोएक्टिव कॉन्टैमिनेशन का शिकार हो गया. मतलब रहने रहने लायक नहीं बचा. फिर कुछ साइंटिस्ट वहां गए और इसे दुरुस्त करने के तरीके तलाशे गए. इन्हीं तरीकों का ज़िक्र फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के दौरान दोबारा हुआ.
चेर्नोबिल पर एक सीरीज़ पिछले साल बहुत पॉप्युलर हुई थी. (सोर्स - रॉयटर्स)
चेर्नोबिल पर एक सीरीज़ पिछले साल बहुत पॉप्युलर हुई थी. (सोर्स - रॉयटर्स)


चेर्नोबिल में भांग के पौधे यानी कैनेबिस से न्यूक्लियर रेडिएशन कम करने वाली बात के पीछे साइंटिफिक स्टडीज़ हैं. लेकिन यहां उस बात का कितना तुक है? ये जानने के लिए न्यू साइंटिस्ट मैग्ज़ीन के एक आर्टिकल
में झांकना होगा.
चेर्नोबिल हादसे के बाद यूएस की बायोटेक फर्म फाइटोटेक और यूक्रेनियन अकेडमी ऑफ एग्रीकल्चुरल साइंसेज़ ने चेर्नोबिल हादसे के बाद वहां जाकर स्टडीज़ कीं. वो चेर्नोबिल के न्यूक्लियर प्रभावित इलाके के आसपास कैनेबिस उगाने लगे. उन्होंने अपनी स्टडी में पाया जो कैनेबिस के पौधे उन्होंने उगाए थे, उनमें अच्छी-खासी मात्रा में सीज़ियम पाया गया. सीज़ियम एक रोडिएक्टिव एलीमेंट है, जो चेर्नोबिल हादसे के बाद वहां की मिट्टी में सैटल हो गया.
हमें ये बुनियादी समझ तो है कि हर पौधा बढ़ने के लिए मिट्टी से कुछ न्यूट्रिएंट्स (पोषक तत्व) सोखता है. कैनेबिस के बारे में कमाल की बात ये है कि वो मिट्टी से सीज़ियम जैसे रेडियोएक्टिव एलीमेंट्स भी सोख लेता है.
भांग के पौधे के अलग-अलग हिस्सों का इस्तेमाल नशे के लिए भी किया जाता है. (सोर्स - विकिमीडिया)
भांग के पौधे के अलग-अलग हिस्सों का इस्तेमाल नशे के लिए भी किया जाता है. (सोर्स - विकिमीडिया)

भले ही ये उस मिट्टी में मौजूद सीज़ियम का 1% हिस्सा सोखता है लेकिन इस बात में दम तो है कि कैनेबिस यानी भांग का पौधा मिट्टी से रेडियोएक्टिव एलीमेंट्स सोख लेता है. लेकिन आप इसका कैच समझिए. वो मिट्टी से रेडियोएक्टिव एलीमेंट्स सोखता है. अपनी जड़ों के ज़रिए.
आप भांग का पौधा काटकर किसी चीज़ के ऊपर रख देंगे तो वो अपनी पत्तियों से रेडिएशन नहीं रोकने लगेगा.
मान लीजिए वो किसी तरीके से ऐसा कर भी लेता है, तब भी वो कोई पास रखने वाली चीज़ नहीं होगी. चेर्नोबिल वाली इस स्टडी से जो पौधे लाए गए थे, उन्हें एक सील्ड इन्सीनरेटर में जलाकर रेडियोएक्टिव राख को ठिकाने लगा दिया गया था. क्योंकि वो पौधे रेडिएक्टिवली दूषित थे.

धर्म और विज्ञान का साथ

ऐसा नहीं है कि कैनेबिस किसी काम का नहीं है. इसकी मेडिसिनल प्रॉपर्टीज़ वाली बहस
को नहीं नकारा जा सकता. बीते सालों में हम कई जगहों पर मेडिकल मेरिजुआना को लीगल
होते देख रहे हैं. लेकिन इसे डायरेक्ट न्यूक्लियर रेडिएशन रोकने वाला बता देना एक पैटर्न का हिस्सा है. उसी पैटर्न का जो गाय के गोबर से न्यूक्लियर रेडिएशन रोकने की बात
करता है. अगेन, गोबर की उपयोगिता को भी नहीं नकारा जा सकता. गोबर एक बढ़िया फ्यूल है. उससे बेहतरीन जैविक खाद बनती है. लेकिन न्यूक्लियर रेडिएशन?
हमारा संविधान अपने दायरे में रहकर हमें धर्म का पालन करने की इजाज़त देता है. अगर आप अपने धर्म का पालन करते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन झूठ और भ्रम से उपजे ज्ञान को किसी भी धर्म का वैज्ञानिक आधार नहीं बनाया जा सकता है.
भांग का पौधा और गाय का गोबर आपको न्यूक्लियर हमले से नहीं बचाएंगे. (सोर्स - विकिमीडिया)
भांग का पौधा और गाय का गोबर आपको न्यूक्लियर हमले से नहीं बचाएंगे. (सोर्स - विकिमीडिया)


ऐसा भी नहीं है कि आपके धर्म के किसी भी हिस्से का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. कुछ धार्मिक श्लोकों में कमाल की चीज़ें छुपी हुई हैं. पता कीजिए, कैसे अद्भुत तरीके से कृष्ण और गोपियों वाले एक श्लोक में 31 डेसिमल तक पाई की एक्यूरेट वैल्यू
बताई गई है? कैसे माधवाचार्य ने अपने श्लोकों में ट्रिग्नोमेट्री की साइन टेबल
कोड कर रखी है. ये सब कटपयादि सिस्टम का कमाल है. हमने कटपयादि सिस्टम पर एक डीटेल्ड स्टोरी
की है, उसे ज़रूर पढ़ें.
अपने धर्म में विज्ञान खोजिए लेकिन देखिए कि कहीं आपके धार्मिक प्रतीक और रीति-रिवाज़ किसी पैटर्न का शिकार तो नहीं हो रहे.
डॉक्टर संदीप मित्तल किसी छोटे-मोटे पद पर नहीं हैं कि उनकी बात को इग्नोर किया जा सके. न ही उनके फॉलोवर इतने कम हैं. संदीप एक IPS अफसर हैं. और ऐसा भी नहीं है उनकी साइंटिफिक समझ को माफ किया जा सके. सिविल सर्विसेज़ एग्ज़ामिनेशन में एक बड़ा हिस्सा साइंस एंड टेक्नोलॉजी को टेस्ट करता है, साथ ही ये एग्ज़ाम संविधान की समझ भी परखता है. संविधान जिसमें देश में वैज्ञानिक चेतना के विकास की बात लिखी है.
और भ्रम न फैलाने वाली बात तो इतनी ऑब्वियस है कि उसे कहीं लिखने की ज़रूरत भी नहीं.


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