महाराष्ट्र की राजनीति पिछले 5 सालों में नाटकीय घटनाक्रमों से भरी रही है. तीन मुख्यमंत्री बदले. ढाई साल पहले सरकार का तख्ता पलट हुआ. राज्य की दो मुख्य पार्टियों में बगावत हुई. और अब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सबको चौंका दिया है. बीजेपी के नेतृत्व वाला महायुति गठबंधन प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रहा है. गठबंधन को 231 सीटें मिलती दिख रही हैं.
Maharashtra Election: पांच फैक्टर्स से पांच महीने में पलटी BJP की लोकसभा चुनाव वाली दर्दनाक कहानी
Maharashtra Election के नतीजों के बाद हर कोई यही जानना चाह रहा है कि इन पांच महीनों में ऐसा क्या हुआ, जो महायुति गठबंधन ने इतनी बंपर वापसी की. पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे कई वजहों को गिना रहे हैं. इनमें महाराष्ट्र सरकार की चर्चित 'लाडकी बहिन योजना' से लेकर ओबीसी वोट को एकजुट करना और आरएसएस से मदद जैसे फैक्टर्स शामिल हैं.
सिर्फ 5 महीने पहले की बात है. लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश के बाद सबसे बड़ा झटका महाराष्ट्र में लगा था. 48 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में NDA 17 सीटों पर सिमट गया था. बीजेपी को सिर्फ 9 सीटें मिली थीं. कहा जाने लगा कि इसका असर विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेगा. लेकिन अब राज्य में बीजेपी इतिहास बनाने जा रही है.
बीजेपी ने राज्य में 149 सीटों पर चुनाव लड़ा था. वो 133 सीटों पर जीतती दिख रही है. लोकसभा चुनाव में लगे झटके के बाद बीजेपी के लिए ये बड़ी जीत मानी जा रही है. महायुति में शामिल दूसरे दलों का प्रदर्शन भी लोकसभा चुनाव के मुकाबले अच्छा रहा है. शिवसेना (शिंदे गुट) 57 सीटों पर जीत रही है. एनसीपी (अजित पवार गुट) को 41 सीटें मिलीं हैं.
इस नतीजे के बाद हर कोई यही जानना चाह रहा है कि इन पांच महीनों में ऐसा क्या हुआ, जो महायुति गठबंधन ने इतनी बंपर वापसी की. पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक इसके पीछे कई वजहों को गिना रहे हैं. इनमें महाराष्ट्र सरकार की चर्चित 'लाडकी बहिन योजना' से लेकर ओबीसी वोट को एकजुट करना और आरएसएस से मदद जैसे फैक्टर्स शामिल हैं.
'लाडकी बहिन योजना'लोकसभा चुनाव के बाद ही बीजेपी ने राज्य में कोर्स करेक्शन शुरू कर दिया था. इसलिए 28 जून 2024 को महायुति सरकार ने माझी लाडकी बहिन योजना शुरू की. लोकसभा चुनाव परिणाम के सिर्फ 24 दिन बाद. इसके तहत 21 से 65 साल की महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये दिए जा रहे हैं. लाभ पाने वालीं महिलाओं के परिवार की आय 2.5 लाख रुपये सालाना से अधिक नहीं होनी चाहिए. सरकार ने ये भी वादा किया कि सत्ता में वापस आने के बाद इसे बढ़ाकर 2100 रुपये प्रति महीने किया जाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार की इस योजना का लाभ राज्य की 2.25 करोड़ महिलाओं तक पहुंचा जो कुल महिला आबादी का 55 फीसदी है. पिछले चार महीने में महिलाओं के खाते में 7500 रुपये आ चुके हैं. दिवाली बोनस के रूप में महिलाओं को पिछले महीने 3000 रुपये मिले थे. जानकार बताते हैं कि इस योजना का महिला वोटर्स पर जबरदस्त असर पड़ा है.
इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार ऋत्विक भालेकर कहते हैं,
"हम पत्रकार जब फील्ड पर जाते हैं तो ज्यादातर समय पुरुषों से बात करते हैं. महिलाओं से ज्यादा बात नहीं हो पाती है. लेकिन जो जनादेश मिला है उससे साफ है कि इस योजना का असर दिखा है."
भालेकर ये भी कहते हैं कि योजना का असर है कि इस बार महिलाओं का वोट परसेंट भी बढ़ा और इसका सीधा फायदा महायुति को हुआ.
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस बार राज्य में महिलाओं के वोट परसेंट में करीब 6 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. संख्या के हिसाब से कहें, पिछले चुनाव के मुकाबले 52 लाख ज्यादा महिला वोटर्स ने वोटिंग में हिस्सा लिया. 2019 के महाराष्ट्र चुनाव में महिलाओं का वोट परसेंट 59.26 था. वहीं, इस चुनाव में वोट परसेंट बढ़कर 65.21 फीसदी हो गया. आंकड़ों को देखें तो ठाणे में महिलाओं के वोट परसेंट में 11 फीसदी और पालघर में 9 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई.
इंडिया टुडे से जुड़े एक और सीनियर पत्रकार धवल कुलकर्णी दी लल्लनटॉप को बताते हैं कि 12 से 15 विधानसभा सीटें ऐसी रहीं, जहां महिलाओं का वोट परसेंट पुरुषों से ज्यादा रहा. इसे लाडकी बहिन योजना का प्रभाव माना जा सकता है.
इससे पहले, पिछले साल मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी 'लाडली बहना योजना' और 'महतारी वन्दन योजना' के जरिये बीजेपी ने गेम पलटा था. मध्य प्रदेश में बीजेपी ने 23 से 60 साल की महिलाओं को एक हजार रुपये देने का वादा किया गया. वहीं कुछ दिन बाद इसे बढ़ाकर 1250 रुपये कर दिए गए थे. पूर्व सीएम शिवराज सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि अगर राज्य में उनकी सरकार फिर से बनती है तो लाडली बहना योजना की रकम 1250 रुपये से बढ़ाकर 3000 रुपये कर दिया जाएगा. वहीं, छत्तीसगढ़ में भी बीजेपी ने 'महतारी वन्दन योजना' के तहत हर विवाहित महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये देने का वादा किया था.
ओबीसी जातियों की गोलबंदीमराठा आरक्षण की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन के कारण लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ था. पार्टी को मराठवाड़ा क्षेत्र में एक भी सीट नहीं मिली थी. मराठा आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जरांगे पाटिल ने 4 अगस्त 2024 एलान किया था कि वे निर्दलीय विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. और सभी 288 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी उतारेंगे. लेकिन वोटिंग से ऐन पहले उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. माना जा रहा है कि इससे बीजेपी को कुछ राहत मिली.
इसके अलावा, इस आंदोलन को देखते हुए बीजेपी ने पहले ही दूसरी ओबीसी जातियों को एकजुट करने में जुट गई थी. मराठा समुदाय ओबीसी कोटे से आरक्षण की मांग कर रहा है. इसलिए इसके खिलाफ राज्य में ओबीसी गोलबंदी हुई. राज्य में बीजेपी का बड़ा वोट बैंक ओबीसी को ही माना जाता है.
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इंडियन एक्सप्रेस में वरिष्ठ पत्रकार गिरीश कुबेर लिखते हैं कि लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी एक्शन में आ गई थी और ओबीसी नेताओं को जमीन पर उतारा. बीजेपी नेताओं ने अलग-अलग ओबीसी गुटों के साथ करीब 330 बैठकें कीं. केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसमें अहम भूमिका निभाई. वे लिखते हैं कि बीजेपी की ये माइक्रो मैनेजमेंट रणनीति काम आई. राज्य में ओबीसी आबादी करीब 38 फीसदी है, जो करीब 175 सीटों पर बड़ा फैक्टर बनता है.
जातिगत गोलबंदी के मुद्दे पर धवल कुलकर्णी कहते हैं,
"मराठा आंदोलन के खिलाफ ओबीसी तो एकजुट हुए ही. दूसरी बात ये है कि कई सीटों पर एक से ज्यादा मराठा उम्मीदवार खड़े थे. जरांगे पाटिल ने कहा था कि जिन लोगों ने हमें तकलीफ दी है, हमें उनके खिलाफ वोट करना है. लेकिन इन्होंने ये नहीं बताया कि किनके खिलाफ वोट करना है. कहीं ना कहीं मराठा वोट बंटा भी."
इसके अलावा वे कहते हैं कि ओबीसी समुदाय भी हिंदुत्व के नैरिटव से प्रभावित होता है. ऐसे में उन पर "बटेंगे तो कटेंगे" जैसे बयानों का भी असर हुआ होगा.
कहा जा रहा था कि महाराष्ट्र में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का असर नहीं पड़ेगा. लेकिन जानकार कह रहे हैं कि इस मुद्दे का भी थोड़ा-बहुत असर देखने को मिल रहा है. सांप्रदायिक बयानबाजी के साथ, जातिगत गोलबंदी ज्यादा असरदार रही है.
दलित वोटर्स का साथ मिलालोकसभा चुनाव में बड़ी संख्या में दलितों ने महा विकास अघाडी के पक्ष में वोट किया था. ऐसा इसलिए हुआ था कि विपक्ष ने आरोप लगाया था कि अगर बीजेपी 400 पार सीट लाएगी तो वो संविधान बदल देगी. जानकार मानते हैं कि इस बार ऐसा कुछ नहीं था. और महायुति सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण पर दिए गए फैसले को लेकर एक कमिटी गठित कर दी. राज्य में दलितों में नव-बौद्धों को प्रभुत्व वर्ग माना जाता है.
धवल कुलकर्णी कहते हैं,
"महाराष्ट्र सरकार ने कमिटी गठित की दलितों में उप-वर्गीकरण कैसे किया जाए. राज्य में जो गैर नव-बौद्ध दलित हैं, उनकी शिकायत थी कि बहुत सारे फायदे ये ले लेते हैं. उप-वर्गीकरण के फैसले पर कमिटी गठित के कारण मुझे लगता है कि जो हिंदू दलित हैं, वे महायुति के साथ चले गए."
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हरीश वानखेड़े कहते हैं कि महाराष्ट्र में कांग्रेस को बड़ा करने में नव-बौद्ध दलितों खासकर महाड़ों का योगदान रहा है. इसी के चलते लोकसभा चुनाव में भी महा विकास अघाडी को फायदा मिला. और इस चुनाव में भी कांग्रेस को बड़ा सपोर्ट दलितों का ही आया है. वहीं, नव-बौद्ध के अलावा दूसरी दलित जातियां पहले से बीजेपी के साथ रहीं हैं और इस बार भी शायद ऐसा हुआ.
RSS ने भरपूर सहयोग दियाकई राजनीतिक जानकार बताते हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और आरएसएस के बीच जो खाई पैदा हुई थी, वो विधानसभा चुनाव में दूर हो गई. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जमीन पर आरएसएस ने कैंपेन को पूरी तरह संभाल लिया था. संघ से जुड़े सभी 35 संगठनों ने बीजेपी और सहयोगी दलों के लिए सक्रिय होकर प्रचार किया. संघ के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा,
"हमने चुनाव को गंभीरता से लिया था. हमारे कैडर ने डोर-टू-डोर कैंपेन किया. हमें लोकसभा चुनाव में जाति और धर्म के कारण हुए ध्रुवीकरण के खतरों का अंदाजा था."
चुनाव प्रचार में शामिल एक और आरएसएस नेता इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं,
"RSS के साइलेंट कैंपेन ने बीजेपी के मैसेज को ग्राउंड पर पहुंचाने में मदद की. आरएसएस ने लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद ही ग्राउंड पर काम शुरू कर दिया था."
धवल कुलकर्णी भी मानते हैं कि आरएसएस के अलग-अलग गुट हिंदू वोटर्स को गोलबंद करने में सफल रहे हैं.
महा विकास अघाडी की गलतियांजानकार ये भी मानते हैं कि महा विकास अघाडी के दलों के बीच गुटबाजी ज्यादा रही, इसका फायदा भी महायुति गठबंधन को मिला. कभी मुख्यमंत्री पद को लेकर तो कभी सीटों की संख्या को लेकर शिवसेना (उद्धव गुट) और कांग्रेस के बीच बयानबाजी सार्वजनिक रूप से सामने आई. मसलन, शिवसेना (UBT) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने 13 अगस्त 2024 को बयान दिया था कि अगर महा विकास अघाडी की सरकार आएगी तो उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बन सकते हैं. इस पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नाना पटोले ने कहा था कि अगर शरद पवार या उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई बयान देते हैं, तो कांग्रेस उसे गंभीरता से लेगी. अन्यथा, दूसरों के बयानों पर विचार करने की जरूरत नहीं है.
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ये सिर्फ एक उदाहरण है. ऐसा कई बार हुआ. सुबह शिवसेना का कोई नेता बयान देता, उस पर कांग्रेस का कोई नेता शाम तक प्रतिक्रिया दे देता. इससे गठबंधन के भीतर मतभेद बने रहे. इसका ग्राउंड पर भी असर देखने को मिला.
इस भीतरी लड़ाई पर धवल कुलकर्णी कहते हैं,
"इसका फायदा महायुति को हुआ. इस भीतरी लड़ाई के कारण कई सीटों पर बगावत हुई. जैसे सोलापुर में कांग्रेस की सांसद परिणीति शिंदे ने महा विकास अघाडी के उम्मीदवार के खिलाफ निर्दलीय को समर्थन दे दिया. यही झगड़ा कई जगहों पर देखने को मिला."
कुलकर्णी की माने तो बीजेपी ने इन अलग-अलग फैक्टर्स पर माइक्रो मैनेजमेंट करके काम किया, और इसलिए कामयाब भी हुई.
महाराष्ट्र में विधानसभा की कुल 288 सीटें हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था - 161 सीटें. लेकिन शिवसेना के रोटेशनल सीएम की मांग पर अड़े रहने से मामला नहीं बन सका था. ड्रामे के बाद राज्य में महा विकास अघाडी की सरकार बनी थी. लेकिन जून 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद राज्य में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार आई थी. फिर, पिछले साल जुलाई में एनसीपी में भी बगावत हुई और अजित पवार के नेतृत्व में एक धड़ा सरकार के साथ शामिल हो गया था.
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