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देश का सबसे खूनी उपचुनाव जिसने CM की इज़्जत मिट्टी में मिला दी

1857 के शहीदों की कब्र का भी मान नहीं रखा था.

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हाल के कुछ दिन उपचुनावों के नाम रहे हैं. किसी न किसी वजह से उपचुनाव चर्चा का केंद्र बने हुए हैं. चेन्नई के आर. के. नगर में 'अम्मा' की विरासत को लेकर उनकी ही पार्टी के दो धड़े एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं. राजस्थान के धौलपुर में एक विधानसभा सीट मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी हुई है. और मध्य प्रदेश में नेताओं ने गर्मी न बढ़ाई तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन खुद चर्चा का मुद्दा बन गई. ऐसे ही हाई वोल्टेज माहौल में एक उपचुनाव आज से 27 साल पहले हरियाणा के महम में हुआ था.
इस उपचुनाव ने उस वक्त राष्ट्रीय स्तर पर कौतुहल और बेचैनी पैदा कर दी थी. इसमें एक मुख्यमंत्री (और एक उप-प्रधानमंत्री) की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. फरवरी 1990 में यहां हुए उपचुनावों में इतनी हिंसा हुई थी कि नतीजा तक घोषित नहीं हो पाया था. दोबारा चुनाव कराए गए. फिर हिंसा हुई, चुनाव रद्द हो गए. 1991 में तीसरी बार चुनाव हुए और तब जाकर कोई नतीजा निकल पाया. लोग इसे 'महम कांड' के नाम से जानते हैं. तब के अंग्रेज़ी अखबारों ने यहां के लिए महम से मिलते जुलते अंग्रेज़ी शब्द 'mayhem' का इस्तेमाल किया.
देवी लाल महम सीट से चुनाव लड़ते थे
देवीलाल महम सीट से चुनाव लड़ते थे

एक तहसील जहां हरियाणा के नेता माथा टेकने आते हैं

महम रोहतक ज़िले में पड़ता है. छोटा सा कस्बा है, तहसील महम ही लगती है. लेकिन इस कस्बे का हरियाणा की राजनीति में बहुत भौकाल है. यहां 'चौबीसी का चबूतरा' है. चबूतरे में महम के वो शहीद दफन हैं जो 1857 में अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़े थे. किसी भी दल के हों, हरियाणा के नेता यहां नियमित रूप से माथा टेकने आते हैं. इलाके की सर्वखाप पंचायत चबूतरे से ही अपने फैसले सुनाती है. महम चौबीसी की सर्वखाप पंचायत यहां की सूपरपंचायत है. यहां से निकले फरमान की लोग बहुत इज़्ज़त करते हैं.
लेकिन चबूतरे की प्रसिद्धी हरियाणा तक सीमित है. महम का ज़िक्र हरियाणा के बाहर हुआ देवीलाल के चलते. वही देवीलाल जिन्होंने इंडियन नेशनल लोक दल बनाया था. महम की विधान सीट से उन्होंने लगातार जीत कर हैट्रिक बनाई थी. महम लोक दल और देवीलाल का गढ़ था. देवीलाल ही थे जिनकी राजनीति ने महम के साथ 'कांड' जोड़ दिया. 1990 के उपचुनावों में हुए इस कांड के बाद से अब तक, जब भी महम का ज़िक्र आता है, साथ में कांड ज़रूर लगा होता है.

बदलाव केंद्र की राजनीति में, असर महम पर

'महम कांड' का असल बैकग्राउंड हरियाणा की जगह केंद्र की राजनीति में तैयार हुआ. 1980 से 1990. ये दो दशक भारत की राजनीति में मंथन जैसे थे. बहुत उठापटक वाले. और ऐसे नतीजों वाले, जिनके बारे में पहले कभी किसी ने नहीं सोचा था. 1989 के आम चुनावों के नतीजों ने पूरी पॉलिटिक्स पलट कर रख दी थी. जनता दल का 'चक्र' ऐसा चला कि देश के इतिहास की सबसे मज़बूत सरकार गिर गई. कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी रही लेकिन सीटें 404 से घट कर 197 रह गईं. वीपी सिंह का जनता दल 143 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर था लेकिन कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए 43 सीटों वाले लेफ्ट और 85 सीटों वाली भाजपा ने बाहर से समर्थन का वादा कर दिया. तो सरकार जनता दल की ही बनी. 2 दिसंबर 1989 को वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. राजीव को नेता प्रतिपक्ष बनना पड़ा.
वीपी सिंह (बाएं) राजीव गांधी के साथ
वीपी सिंह (बाएं) राजीव गांधी के साथ


इसी सरकार में उप-प्रधानमंत्री बने देवीलाल. कहा जाता है कि इस सरकार में प्रधानमंत्री देवीलाल भी हो सकते थे लेकिन उन्होंने मना कर दिया. खैर, उन दिनों देवीलाल हरियाणा की जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री होते थे. दिल्ली जाने के लिए उन्होंने हरियाणा विधानसभा से इस्तीफा दिया. और तब ज़रूरत पड़ी उनकी विधानसभा सीट के लिए एक उपचुनाव कराने की. ये सीट महम थी. कह सकते हैं कि तभी तय हो गया कि महम के नाम के साथ कांड जुड़ जाएगा.

महम सीटः चौटाला की ज़िद और डांगी की बगावत 

देवीलाल ने अपना राज-पाट सौंपा अपने बेटे ओम प्रकाश चौटाला को. 2 दिसंबर 1989 को ही ओम प्रकाश चौटाला हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. लेकिन वो तब हरियाणा विधान सभा में विधायक नहीं थे. तो उन्हें उनके पिता की सीट महम से चुनाव लड़वाना तय हुआ. लगातार तीन बार देवीलाल के जीतने से ये सीट लोक दल का गढ़ बन गई थी. तो चौटाला के लिए ये एक सेफ सीट समझी गई थी.
ओम प्रकाश चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला


लेकिन इस बात ने महम चौबीसी को नाराज़ कर दिया. क्योंकि महम चौबीसी चाहती थी कि यहां से आनंद सिंह डांगी लड़ें. डांगी देवीलाल के बेहद करीबी थे. देवीलाल के चुनाव कैंपेन का काफी काम दांगी की देख-रेख में होता था. देवीलाल के आशीर्वाद से ही डांगी हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग का चेयरमैन बने थे. लेकिन चौटाला अपने पिता की सीट से लड़ने पर अड़े रहे. तो डांगी बागी हो गए. अपरे राजनैतिक गुरू के बेटे के खिलाफ महम से निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर पर्चा भर दिया. और इसी बात से तय हो गया कि महम का चुनाव एक हाई-वोल्टेज मुकाबला होगा.

उपचुनावः पहली बार की वोटिंग

चौटाला अपने पिता की सीट पर एक ताकतवर महापंचायत (महम चौबीसी) के दबदबे के खिलाफ लड़ रहे थे. इसलिए सवाल हार जीत से ज़्यादा का था, इज़्जत का था. तो लोक दल के काडर ने चुनाव जीतने के लिए खूब गुंडागर्दी की. इनकी अगुवाई की ओम प्रकाश के बेटे अभय सिंह ने. 27 फरवरी 1990 को महम में वोट पड़े और जम कर बलवा हुआ. बूथ कैपचरिंग हुई. पत्रकारों से भी झूमाझटकी हुई. इस सब में पुलिस ने अभय सिंह का साथ दिया.
नतीजे में केंद्र से आए चुनाव आयोग के सूपरवाईज़र ने 8 बूथों पर दोबारा वोटिंग का आदेश दे दिया. अभय सिंह इस दिन भी अपने साथ लोक दल काडर और पुलिस को लेकर निकले. डांगी के समर्थकों को वोट डालने से रोका गया. डांगी के समर्थकों ने ज़ोर आज़माया तो पुलिस ने उन पर गोली चला दी. 8 लोगों की जान गई.
पुलिस को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ी. बैंसी गांव में डांगी समर्थकों की भीड़ जब पुलिस और अभय सिंह की ओर लपकी को वो जाकर एक स्कूल में छिप गए. यहां एक कॉन्सटेबल हरबंस सिंह को मजबूर किया गया कि वो अभय सिंह से कपड़ों की अदला-बदली कर ली. जब भीड़ स्कूल में घुसी तो उन्होंने हरबंस को अजय सिंह समझ लिया और मार डाला. 
इस सब के बाद उपचुनाव रद्द कर दिए गए. चौटाला सरकार ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के जज एस.एस. ग्रेवाल के हाथों जांच का आदेश दे दिया.
अभय सिंह
अभय सिंह

उपचुनावः दूसर बार की वोटिंग

इसी साल मई की 21 तारीख को महम में दोबार उपचुनाव कराना तय हुआ. महम में हालात नहीं सुधरे तो चौटाला के लिए एक दूसरी सीट दरबान कलां खाली कराई गई. लेकिन चौटाला महम से लड़ने के पर अड़े रहे. फिर लोक दल से बागी होकर अमीर सिंह ने यहां से निर्दलीय कैंडिडेट के तौर पर पर्चा भर दिया. ये भी कहा गया कि अमीर सिंह को चौटाला ने ही खड़ा किया था. माहौल में तनाव था. हर किसी को डर था कि कोई अनहोनी न हो जाए.
और ये डर सच निकला जब 16 मई 1990 को भिवानी में अमीर सिंह की लाश मिली. अमीर सिंह का मर्डर हुआ था. एक कैंडिडेट की हत्या हो जाने से चुनाव रद्द हो गए. पुलिस ने अमीर सिंह मर्डर का इल्ज़ाम लगाया डांगी पर. डीआईजी वाय.एस नाकई ढेर सारी पुलिस फोर्स लेकर डांगी को गिरफ्तार करने मदीना गए. लेकिन डांगी के समर्थक आड़े आए और पुलिस ने गोली चला दी. तीन और लोगों की जान गई. इसे मदीना कांड कहा गया.
बाद में डांगी सुप्रीम कोर्ट अपने खिलाफ जांच पर स्टे ले आए. अगस्त में केंद्र की वीपी सरकार के कहने पर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज डीपी मैदोन ने अमीर सिंह मर्डर और मदीना में हुई फाइरिंग की जांच शुरू की. मैदोन ने दिसंबर में इस्तीफा दे दिया. ये कहकर कि हरियाणा सरकार सहयोग नहीं कर रही.

फिर यहां की राजनीति ने केंद्र के समीकरण पर दबाव ला दिया

महौल इतना खराब हुआ कि केंद्र में वीपी सिंह पर कार्रवाई का दबाव बनने लगा. वो जनता दल सरकार के प्रधानमंत्री थे और हरियाणा की सरकार जनता दल सरकार ही कहलाती थी. (वैसे देवीलाल ने चुनाव लोक दल नाम से लड़ा था.) उन्होंने ओम प्रकाश चौटाला से इस्तीफा देने को कहा. केंद्र की सरकार को समर्थन दे रही भाजपा भी इसी के लिए दबाव बना रही थी. लेकिन देवीलाल इसके खिलाफ थे. इस्तीफा दने की धमकी तक दी. पर वीपी सिंह अड़ गए. ओमप्रकाश का इस्तीफा लेकर ही माने. 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता को हरियणा के मुख्यमंत्री की शपथ दिला दी गई. यहीं से देवीलाल वीपी सिंह से कट गए.

और फायदा हुआ कांग्रेस को

आनंद सिंह दांगी
आनंद सिंह डांगी 


देवीलाल के चलते महम से कांग्रेस का सफाया-सा हो गया था. 1966 में इस सीट के अस्तित्व में आने के बाद से कांग्रेस यहां दो बार ही जीत पाई थी. 1991 में यहां तीसरी बार चुनाव कराए गए. इस बार कांग्रेस ने आनंद सिंह डांगी को अपना कैंडिडेट बनाकर चुनाव में उतारा. उपचुनाव के दौरान हुए बलवे से लोक दल की छवि को काफी नुकसान हुआ था. नतीजे में डांगी जीत गए. इतिहास में ये पहली बार हुआ था कि महम से लोक दल का कैंडिडेट नहीं जीता था. चौटाला फिर कभी महम से नहीं लड़े.
अप्रैल 1991 में चौटाला के बनाए ग्रेवाल कमीशन ने अभय सिंह और डीआईजी समशेर सिंह पर लगे सारे आरोप खारिज कर दिए. लेकिन जून 1991 में हरियाणा में विधान सभा चुनाव हो गए. लोक दल हार गया और सरकार बनी कांग्रेस के भजन लाल की. भजन लाल ने ग्रेवाल कमीशन की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. उधर केंद्र की इंक्वायरी में जस्टिस मैदोन की जगह लेने आए जस्टिस के एन साइकिया को ले आया. फरवरी 1992 में अमीर सिंह मर्डर की जांच के लिए सीबीआई की जांच शुरू हुई.

साइकिया कमीशन की रिपोर्ट आई 1994 में. इसमें माना गया कि अमीर सिंह का मर्डर चौटाला और उनके आदमियों ने कराया था.

 
इस उथल-पुथल को आज काफी वक्त हो गया है. चौटाला दोबारा हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. महम में एक लोक दल ने वापसी भी की. लेकिन कांड यहां के लोगों के मानस पर जमा हुआ है. इतना कुछ घटा कि लोग आसानी से भूल नहीं सकते. और ना ही राजनेता भूलने देना चाहते हैं. महम में आज भी कोई चुनावी सभा बिना महम कांड के ज़िक्र के खत्म नहीं होती. लोक दल के अलावा सारी पार्टियां इसे 'लोकतंत्र की हत्या' बताती हैं. तब के शहीदों को श्रद्धाजली देकर अपने कार्यक्रम शुरू करती हैं. 'महम कांड' का ज़िक्र अभी काफी दिनों तक बना रहने वाला है.


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