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दुनिया की सबसे खतरनाक महिला स्नाइपर, दूर से जिसकी राइफल देख नाजी कांप उठते थे

World War 2 के दौरान सोवियत रूस की तरफ से लड़ने वाली ल्यूडमिला पवलिचेंको (Lyudmila Pavlichenko) ने Germany के 309 सैनिकों को मार गिराया था. हालांकि इस कारनामे के बाद भी उनसे पूछा गया तो ये कि वो स्कर्ट के अंदर किस कपड़े का अंडरवियर पहनती हैं? जानिए कहानी दुनिया की सबसे मारक महिला स्नाइपर की, जिसका नाम था Lady Death और जिससे नाजी फौज कांपती थी.

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द्वितीय विश्व युद्ध में ल्यूडमिला ने 309 नाजियों को मार गिराया था.

साल 1941 की बात है. सोवियत रूस की टेरेटरी में एक नाजी जर्मनी का मिलिट्री व्हीकल घूम रहा था. जिसके लाउडस्पीकर से आवाज आ रही थी. ‘लेडी डेथ अगर हमारे साथ आ जाए तो उन्हें सम्मान के साथ-साथ चॉकलेट भी दी जाएंगी.’ द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप में चॉकलेट एक रेयर कमॉडिटी बन गई थी. इसके कुछ दिन बाद वही मिलिट्री व्हीकल फिर घूमता नजर आया. हालांकि इस बार लाउडस्पीकर से आ रही आवाज का लहजा अलग था. ‘लेडी डेथ अगर हमारे सामने नहीं आईं तो उनके 309 टुकड़े कर दिए जाएंगे.’ 

कौन थी लेडी डेथ? और नाजी उनके 309 टुकड़े क्यों करना चाहते थे. 309 का स्पेशल आंकड़ा क्यों? आज जानेंगे कहानी लेडी डेथ की.

बंदूक के स्कोप पर बना क्रॉस का निशान. अंगूठा ट्रिगर पर और शरीर जमीन पर. घंटों एक ही पोज में लेटा शख्स इंतज़ार में. सामने दीवार से हेलमेट का एक हिस्सा उठता है. और धांय गोली चल जाती है. 
युद्ध का ये बयान सुनकर आपको याद आता है एक नाम- स्नाइपर. ऐसे ख़ास सैनिक जो दूर तक सटीक निशाना लगाने के लिए जाने जाते हैं. हालांकि स्नाइपर का जिक्र आते ही हमारी कल्पना अक्सर एक मेल सैनिक की बनती है. सिमो हायहा उर्फ़ वाइट डेथ जिन्होंने 500 से ज्यादा दुश्मनों को स्नाइपर के तौर पर मार गिराया था. बहरहाल मुद्दा ये कि बंदूक पर सिर्फ मर्दों का कॉपी राइट नहीं है. न ही बहादुरी पर. एक नाम से शुरुआत करते हैं. -  ल्यूडमिला पवलिचेंको 

कौन थीं ल्यूडमिला पवलिचेंको ?

एक लाइन में कहा जाए तो इतिहास की सबसे खतरनाक महिला स्नाइपर जिसने 309 दुश्मनों को अपना निशाना बनाया था. दुश्मन भी ऐसे वैसे नहीं. द्वितीय विश्व युद्ध के मोर्चे पर सोवियत रूस की तरफ से लड़ने वाली ल्यूडमिला ने 309 नाजियों को मार गिराया था. हालांकि इस कारनामे के बाद भी उनसे पूछा गया तो ये कि वो स्कर्ट के अंदर किस कपड़े का अंडरवियर पहनती हैं?   

ल्यूडमिला पवलिचेंको की कहानी शुरू होती है, आज के यूक्रेन से. जो 1991 से पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करता था. 14 साल की उम्र में ल्यूडमिला यूक्रेन की राजधानी कीव में आकर रहने लगीं. अपनी आत्मकथा में वो लिखती हैं, "एक बार पड़ोस के लड़के ने कहा, देखो मैं क्या सटीक निशाना लगाता हूं." 

लड़के को शेखी बघारता देख ल्यूडमिला ने फैसला किया कि वो भी हथियारों की ट्रेनिंग लेंगी. और उन्होंने एक शूटिंग सेंटर में दाखिला ले लिया. यहां कुछ ही दिनों में उन्होंने बंदूक चलाने में महारत हासिल कर ली. ल्यूडमिला का निशाना इतना अच्छा था कि उन्हें कई सारे पदक और मेडल मिले. 

कुछ साल बाद ल्यूडमिला ने एक लड़के से शादी की. एक बेटा भी पैदा हुआ. लेकिन जल्द ही शादी टूट गई. इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और साथ ही हथियारों की एक फैकट्री में काम करने लगीं. ये बात है साल 1937 की. ल्यूडमिला हिस्ट्री की पढाई कर एक प्रोफ़ेसर बनना चाहती थीं. लेकिन इसके दो साल बाद ही विश्व युद्ध की शुरुआत हो गई. 

साल 1941. जून के महीने में जर्मन फौज ने सोवियत संघ पर हमला कर दिया. ऑपरेशन बार्बरोसा के तहत 4 लाख जर्मन सैनिकों ने हमला किया. जो मानव इतिहास का सबसे बड़ा ऑफेंसिव ऑपरेशन था. सोवियत फौज को वालंटियर्स की जरुरत थी. ल्यूडमिला ने यूनिवर्सिटी में रहते हुए सोवियत आर्मी द्वारा चलाए जाने वाले एक स्नाइपर स्कूल में ट्रेनिंग ली थी. इसलिए युद्ध की शुरुआत होते ही वो आर्मी में भर्ती होने पहुंच गईं. 

वहां उनसे कहा गया कि वो नर्स बन सकती हैं. ये सुनकर ल्यूडमिला ने अपने सारे मेडल टेबल पर पटकते हुए कहा, "युद्ध में जाऊंगी तो लड़ने के लिए".

इसके बावजूद युद्ध के दौरान ल्यूडमिला को ट्रेंच खोदने की जिम्मेदारी मिली. सोवियत फौज में राइफलों की कमी थी. इसलिए ट्रेंच खोदने वालों को अक्सर सिर्फ एक ग्रेनेड दिया जाता था. 
एक रोज़ ट्रेंच वॉर के दौरान ल्यूडमिला के बगल में लड़ रहे एक सैनिक को गोली लगी और वो वहीं गिर गया. ल्यूडमिला ने उसकी राइफल उठाई और मोर्चा संभाल लिया. उस रोज़ सोवियत सैन्य अधिकारियों ने पहली बार ल्यूडमिला का निशाना देखा. बंदूक चलाने में उनकी महारत देख, उन्हें स्नाइपर की जिम्मेदारी दे दी. मोर्चे पर पहली बार ल्यूडमिला ने एक दो नाजी सैनिकों को निशाना बनाया. जो उन्होंने 400 मीटर की दूरी से लगाया था. ये हालांकि बस शुरुआत थी. 

अपने अचूक निशाने के चलते ल्यूडमिला जल्द ही एक लेजेंड बन गई. सैकड़ों नाजी सैनिकों को मारने के बाद उन्हें नाम मिला - लेडी डेथ. उनके किस्से पूरे सोवियत संघ के साथ-साथ जर्मनी में भी फ़ैल गए. 
नाजियों के बीच लेडी डेथ का ऐसा कहर था कि पहले तो उन्होंने ल्यूडमिला को अपने साथ आने का लालच दिया. जब इससे बात न बनी तो उन्होंने धमकी दी. ल्यूडमिला को 309 टुकड़ों में काट दिया जाएगा. 309 क्यों? इसलिए क्योंकि ल्यूडमिला ने 309 नाजियों को स्नाइपिंग से शिकार बनाया था. 

युद्ध के मोर्चे पर ल्यूडमिला ने लगभग डेढ़ साल लड़ाई की. किस्सा है कि एक बार नाजियों की एक टुकड़ी उन्हें पकड़ने के लिए भेजी गई. ल्यूडमिला को चकमा देने के लिए एक लकड़ी पर हेलमेट चढ़ा कर उसे झाड़ियों के पीछे लगाया गया. ताकि ल्यूडमिला निशाना लगाएं और उनकी पोजीशन एक्सपोज हो जाए. ल्यूडमिला इस चाल को पहचान गईं. धीरे-धीरे सरकते हुए उन्होंने एक कांटों भरी झाड़ी में खुद को छिपा लिया. झाड़ी में बड़े-बड़े कांटे थे. जो उनके हाथ-पांव और बाकी शरीर से खून निकाल रहे थे. इसके बावजूद वो उसी पोजीशन में बनी रहीं. और नाजी उन्हें पकड़ने में असफल रहे. 

इस घटना के बाद ल्यूडमिला को पकड़ने की और कोशिशें भी हुईं. जैसा पहले बताया कि ल्यूडमिला अब तक लेजेंड बन चुकी थीं. लेकिन सोवियत संघ के हाई कमान जोसेफ स्टालिन ने उन्हें युद्ध के मैदान से पीछे हटा लिया. उन्हें नए स्नाइपर्स को ट्रेन करने की जिम्मेदारी मिली. साथ ही उनका इस्तेमाल प्रोपोगेंडा के लिए हुआ. 

प्रोपोगेंडा आज एक निगेटिव वर्ड बन गया है. लेकिन इसका इस्तेमाल पॉजिटिव सेन्स में भी किया  जाता था. प्रोपोगेंडा का मतलब होता था- प्रचार. साल 1943 में जर्मनी युद्ध में पिछड़ रहा था. 
स्टालिन चाहते थे कि नाजियों से लड़ने के लिए किसी तरफ दो मोर्चे खोले जाएं. इस काम के लिए उन्हें अमेरिकियों की मदद की जरुरत थी. लिहाजा अमेरिकियों को मनाने के लिए दो सोवियत सैन्य अधिकारियों को अमेरिका भेजने का फैसला किया गया. इनमें से एक ल्यूडमिला पवलिचेंको थीं.     

अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंक्लिन ने वाइट हाउस में ल्यूडमिला से मुलाक़ात की. और यहीं ल्यूडमिला की मुलाक़ात फर्स्ट लेडी एलेनर रूजवेल्ट से भी हुई. पहली ही मुलाक़ात में दोनों की दोस्ती हो गई. दोनों ने मिलकर पूरे अमेरिका का दौरा किया. जहां ल्यूडमिला ने सोवियत संघ के लिए समर्थन जुटाया और लोगों से युद्ध में मदद देने की अपील की. अपनी आत्मकथा में ल्यूडमिला बताती हैं, अमेरिका में उन्हें प्रेस से कई अटपटे सवालों का सामना करना पड़ा. मसलन एक तरफ ल्यूडमिला कह रही थीं, "नाजी जिन्दा रहे तो हर बच्चे-बूढ़े को मार देंगे" 

दूसरी तरफ प्रेस उनसे सवाल पूछ रही थी कि क्या युद्ध के मैदान पर वो मेकअप करके जाती हैं. एक जगह तो उनसे उनकी स्कर्ट की लम्बाई पर सवाल पूछा गया. टाइम मैगज़ीन को दिए एक इंटरव्यू में वो कहती हैं, "अमेरिकियों के लिए ये जानना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि एक महिला फौजी क्या अपनी स्कर्ट के नीचे सिल्क की अंडरवियर पहनती है."  

अमेरिका का दौरा पूरा कर ल्यूडमिला ने ब्रिटेन का दौरा किया और यहां भी उन्होंने ब्रिटिश फौज से सोवियत रेड आर्मी की मदद की अपील की. ब्रिटिश और अमेरिकी फौज के साथ मिलकर सोवियत रेड आर्मी जर्मनी को हराने में सफल रही. और 1945 में युद्ध ख़त्म हो गया.

साल 1945 में युद्ध के बाद पवलिचेंको का क्या हुआ? 

युद्ध के बाद ल्यूडमिला ने एक बार फिर यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया. और इतिहास में डिग्री पूरी की. पढाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक इतिहासकार के तौर पर करियर बनाया. और सोवियत नौसेना का इतिहास सहेजने का काम किया. आर्डर ऑफ़ लेनिन और हीरो ऑफ सोवियत यूनियन से सम्मानित लेडी डेथ ने 58 साल की जिंदगी जी. साल 1974 में एक स्ट्रोक के चलते उनकी मृत्यु हो गई. 

इतिहास की सबसे मारक महिला स्नाइपर के बारे में और जानना चाहते हैं तो आप लेडी डेथ नाम की किताब पढ़ सकते हैं. वहीं उनकी कहानी पर साल 2015 में एक फिल्म भी आई थी. जिसका नाम था, Battle for Sevastopol . आप चाहें तो देख सकते हैं. 

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