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'लॉयल विंगमैन': सरहद पार किये बिना भी एयरस्ट्राइक कर सकेंगे वायुसेना के पायलट

भारत के Loyal Wingman Programme का नाम CATS Warrior है. जिसे Indian Air Force के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) बना रही है.

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लॉयल विंगमैन में एक जहाज के साथ बाकी मानव रहित जहाज होंगे (फोटो- एक्स/इंडियन एयरफोर्स)

हवाई जहाज, जंगी जहाज या फाइटर जेट. नाम सुनते ही जेहन में सबसे पहले क्या आता है? एक चमकता हुआ, दिखने में खूबसूरत पर बहुत ही खतरनाक जहाज जिस पर हथियार लगे हैं. साथ में अपना हेलमेट लिए खड़ा एक पायलट. एक काबिल फाइटर पायलट को एक जहाज मिल जाए और वो आसमान में हो तो उससे खतरनाक कोई चीज नहीं होती. 1967 में हुई मशहूर 6 Days War के दौरान इजरायल के एयरफोर्स चीफ रहे  Moti Hod कहा करते थे कि 'आसमान में फाइटर जेट से खतरनाक कोई चीज़ नहीं है, हालांकि वो जमीन पर अपनी रक्षा करने में जरा भी सक्षम नहीं हैं.'

1967 की जंग इस बात की गवाही देती है कि एयरफोर्स किसी भी युद्ध का रुख बदल सकती है. कुछ ऐसा ही हुआ था 1971 की भारत-पाक जंग में. राजस्थान के लौंगेवाला में 23 पंजाब के मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी 83 सैनिकों के साथ पाकिस्तान की पूरी टैंक ब्रिगेड का सामना कर रहे थे. पर सुबह की पहली किरण के साथ इंडियन एयरफोर्स के हंटर जहाजों ने जब पाकिस्तानी टैंकों को निशाना बनाना शुरू किया तो जैसलमेर में डिनर करने का सपना देखने वाले पाकिस्तानी ब्रिगेडियर तारिक मीर के हौसले पस्त हो गए.

Hawker Hunter
भारतीय वायुसेना के हंटर जहाज (PHOTO-Wikipedia)

इन सभी के इतर और भी कई कहानियां हैं जो ये बताती हैं कि एक देश के लिए जंग में एयरफोर्स कितनी अहम होती है. लिहाजा हर देश चाहता है कि उसकी वायुसेना के पास उन्नत विमान हों. दूसरे विश्वयुद्ध के वीडियोज़ देखें तो हमें याद आते हैं जर्मनी के स्टूका (Junkers Ju 87) विमान जिन्होंने मित्र देशों की नाक में दम कर दिया था. जापान के पायलट जो जानबूझकर अपना विमान अमेरिकी युद्धपोतों पर क्रैश कर देते थे. इन सब कहानियों से एक बात स्थापित होती है कि न सिर्फ उन्नत जहाज बल्कि फाइटर पायलट की समझ और तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता किसी भी एयरफोर्स को और उन्नत बनाने में अहम भूमिका निभाती है.

Junkers Ju 87
जर्मनी के स्टूका विमान (PHOTO-Wikipedia)

इसके बाद समय बीता और अस्तित्व में आए ड्रोन. ऐसे मानव रहित विमान जो जासूसी, निगरानी से लेकर हमला करने में सक्षम थे. और इस कड़ी में एक और तकनीक का नाम जुड़ गया है जिसे पायलट और ड्रोन का साझा रूप कहा जा सकता है. इस तकनीक का नाम है, लॉयल विंगमैन. आसान भाषा में कहें तो एक ऐसा जहाज जो होगा एक ड्रोन, पर वो काम करेगा बिल्कुल किसी पायलट की तरह. कुछ देशों के लॉयल विंगमैन को तो AI से लैस करने की भी बातें चल रही हैं. यानि हो सकता है कि भविष्य में आयरन मैन मूवी में दिखाए गए टोनी स्टार्क के AI , Jarvis की तरह कोई ऐसा प्रोग्राम हो जो खुद से सही-गलत का चुनाव कर सके. खुद से अपने कंट्रोलर से ठीक वैसे ही बात करे जैसे कोई पायलट अपने बेस या लीडर से करता है. कुछ इन्हीं चीजों पर बेस्ड है लॉयल विंगमैन की तकनीक. क्या है ये, समझते हैं.

पहली झलक 

साल 2019, मौका था इंडियन एयरफोर्स के एयर शो 'Aero India' का. कई देशों की जानी मानी कंपनियों ने अपने विमानों का प्रदर्शन किया. Lockheed Martin, Boeing, General Dynamics जैसी दिग्गज एयरक्राफ्ट कंपनियों ने इसमें हिस्सा लिया. भारत की शान कहे जाने वाले हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने भी इसमें सहभागिता की. यूं तो फाइटर जेट्स, ड्रोन ने हमेशा की तरह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है. पर इन सबमें एक अलग तरह के कॉन्सेप्ट ने लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा, ये था हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का लॉयल विंगमैन प्रोग्राम (Loyal Wingman Program) जिसे HAL के कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम (CAT'S) के नाम से जाना जाता है. 

HAL CATS Warrior
 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का कॉम्बैट एयर टीमिंग सिस्टम (PHOTO-Wikipedia)

दुनिया के कई देश मसलन अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने कई मौकों पर अपने इस प्रोग्राम का प्रदर्शन भी किया है. इन देशों ने लॉयल विंगमैन प्रोग्राम की टेस्ट फ्लाइट्स भी की हैं. एयर पावर के लिहाज से इसे एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रोग्राम माना जाता है. साथ ही भविष्य में होने वाली लड़ाइयों में इसका रोल अहम माना जा रहा है. तो समझते हैं कि क्या है ये प्रोग्राम, क्या है इसकी खासियत, और क्यों इसे एयरफोर्सेज़ का भविष्य कहा जा रहा है ?

शुरुआत 

लॉयल विंगमैन प्रोग्राम नाम के इस कॉन्सेप्ट की शुरुआत हुई थी सन 2000 के आसपास. उस समय दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया. चूंकि उस दशक में अमेरिका में हुए 9/11 के बाद से दुनियाभर में हंगामा मचा हुआ था. अमेरिका का पूरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ आतंकवाद और अल-कायदा पर था. इसलिए आने वाले कई सालों तक इस प्रोग्राम में कोई बढ़ोतरी या प्रोग्रेस देखने को नहीं मिली. 2010 आते-आते ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन ने कुछ हद तक इस पर काम किया. पर उनके भी अधिकतर संसाधन अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान और अल-कायदा से लड़ रही नाटो (NATO- North Atlantic Treaty Organization) की फौज के साथ थे.

British soldiers prepare to board a Chinook twin-rotor helicopter landing on a field
अफगानिस्तान में नाटो फौज (PHOTO-Wikipedia)

फिर आया 2011 का साल. अमेरिका के नेवी सील्स ने पाकिस्तान के एबटाबाद में अलकायदा के चीफ ओसामा बिन लादेन को मार गिराया. दुनिया और खासकर अमेरिका ने चैन की सांस ली.  हालांकि जंग अभी खत्म नहीं हुई थी. अमेरिका आने वाले सालों में भी तालिबान और इस्लामिक स्टेट से लड़ता रहा. पर अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन मारा जा चुका था लिहाजा अमेरिकी और बाकी देशों की सैन्य कंपनियों ने वापस से लॉयल विंगमैन प्रोग्राम पर ध्यान देना शुरू किया.

Killing of Osama bin Laden
अमेरिका ने इसी कंपाउंड में लादेन को मारा था (PHOTO-Wikipedia)
कॉन्सेप्ट

लॉयल विंगमैन, जैसा कि नाम से जाहिर है एक वफादार विंगमैन यानी पायलट. एविएशन की भाषा में विंगमैन शब्द विमान उड़ाने वाले के लिए इस्तेमाल किया जाता है. इस कॉन्सेप्ट के अनुसार एक पूरा जंगी जहाजों का बेड़ा जिसे स्क्वाड्रन कहते हैं उसमें सिर्फ एक ही जहाज ऐसा होगा जिसे कोई इंसान उड़ाएगा. इस जहाज को नाम दिया जाता है मदर शिप. स्क्वाड्रन के बाकी जहाज मानव रहित होंगे जो मदर शिप के आदेशानुसार काम करेंगे. जैसे आपके फोन में किसी ब्लूटूथ डिवाइस को पेयर किया जाता है, ठीक वैसे ही ये मानव रहित विमान मदर शिप से पेयर्ड रहेंगे. मकसद ये था कि मदर शिप एक निश्चित जगह जाकर रुक जाएगी. अगर ऑपरेशन किसी ऐसे क्षेत्र में हो जहां पायलट को भेजने पर पकड़े जाने का डर हो, ऐसे में ये कॉन्सेप्ट काम आता.

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लॉयल विंगमैन में मदर शिप बेड़े का लीडर होगा (PHOTO-Meta AI)

एक और कारण जिससे लॉयल विंगमैन को भविष्य का योद्धा कहा जा रहा है, उसकी वजह है इसकी आम फाइटर जेट्स से कम लागत. आपने अगर मार्वल की मूवी Guardians Of The Galaxy 2 देखी हो तो उसमें इससे मिलते-जुलते एक कॉन्सेप्ट को दिखाया गया है. सोवरेन ग्रह जब पीटर और उसके दोस्तों पर जहाजों से हमला करता है तब उन जहाजों के पायलट्स, जहाज में नहीं होते बल्कि उससे काफी दूर अपने ग्रह से ही उन्हें चला रहे होते हैं. इससे अगर नुकसान होना होता है वो वो सिर्फ जहाज का होता है, योद्धा या पायलट सही-सलामत रहता है.

guardians of the galaxy vol 2
मार्वल मूवी में अपने बेस पर बैठा पायलट (बाएं) और वहां से कंट्रोल होता जहाज (दाएं) (PHOTO- X/Social Media)

पर लॉयल क्यों? क्या अभी के पायलट लॉयल या वफादार नहीं हैं? जवाब है अभी के पायलट बिल्कुल वफादार हैं. और एक मशीन कितनी भी उन्नत हो जाए, वो इंसान की तरह बहुआयामी नहीं सोच सकती. पर एक समय में कई तरह की जानकारियों को जितनी तेज कोई मशीन या AI प्रोसेस कर सकता है, उतनी तेज कोई भी इंसान नहीं कर सकता. उदाहरण के लिए अगर एक पायलट को किसी दुश्मन के क्षेत्र में भेजा जाए तो वो मिशन तो पूरा कर सकता है. पर हो सकता है लौटते समय वो दुश्मन की एंटी एयरक्राफ्ट गन या दूसरे किसी जहाज के निशाने पर आ जाए. 

बुरी स्थिति ये हो सकती है कि पायलट एक बार जहाज उड़ाये, और फिर लेकर रफूचक्कर हो जाए जैसा एक बार एक इराकी एयरफोर्स के पायलट मुनीर रेड्फा ने इजरायल के साथ मिलकर किया था. उन्होंने इराक का मिग-21 चुरा कर सीधा उसे इजरायल में लैंड किया था. इससे इतर मशीनी पायलट में ऐसा कुछ होने की संभावना न के बराबर है. मशीन या ए आई, दुश्मन के एयरबेस से खुद की दूरी पता कर सकता है. वो ये भी कैलकुलेट कर सकता है कि दुश्मन के पास कौन से जेट्स हैं और उन्हें उस तक पहुंचने में कितना समय लगेगा.

भारत की स्थिति 

अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया के अलावा भारत भी इस पर काम कर रहा है. 1962 में हुई चीन से जंग के बाद से स्क्वाड्रन के मामले में भारतीय एयरफोर्स अब तक के अपने सबसे निचले नंबर पर है. लल्लनटॉप से बात करते हुए रिटायर्ड विंग कमांडर अरिजीत घोष बताते हैं कि एक स्क्वाड्रन में 17 जहाज होते हैं. भारत की जरूरतों को देखते हुए इंडियन एयरफोर्स में 42 स्क्वाड्रन स्वीकृत हैं. पर बिजनेस स्टैन्डर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक  समय इंडियन एयरफोर्स मात्र 31 स्क्वाड्रंस के साथ ऑपरेट कर रही है. इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं. मसलन कई पुराने जहाजों का रिटायर होना, साथ ही नए जहाजों की खरीद में देरी भी घटते स्क्वाड्रन का एक कारण है.

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भारत की एयरफोर्स में स्क्वाड्रंस की संख्या घट रही है (PHOTO- X/Indian Air Force)

फाइटर जेट्स खरीदकर या देश में बनाकर 42 स्क्वाड्रन के नंबर तक पहुंचना भी बहुत जल्दी संभव नहीं है. पर चुनौतियां इन चीजों का इंतजार नहीं करतीं. भारत का स्वदेशी एयरक्राफ्ट तेजस और एडवांस मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (Advanced Multirole Combat Aircraft - AMCA) अभी भी पूरी तरह से एयरफोर्स में कमीशन होने के लिए तैयार नहीं हैं. ऐसे में एयरफोर्स ने अपने स्क्वाड्रन की घटती संख्या को मेंटेन करने के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के लॉयल विंगमैन प्रोग्राम, CATS (Combat Air Teaming System) पर आगे काम करना शुरू किया है. 

कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि Aero India 2021 में HAL द्वारा दिखाए गए मॉडल की टेस्ट फ्लाइट जल्द ही देखने को मिल सकती है. अगर सब ठीक रहा तो भारत को जल्द ही इस प्रोग्राम के तहत कुछ जेट्स या यूं कहें कि लॉयल विंगमैन मिल सकते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडियन एयरफोर्स जल्द ही 200-250 ऐसे मानव रहित जहाजों पर काम शुरू करने वाली है.

हालांकि अभी इस कॉन्सेप्ट में कई चुनौतियां भी हैं. सवाल है कि भारत के पास अभी जितने विमान हैं, उनमें से किस विमान के लिए ऐसे UCAV यानी Unmanned Aerial Combat Vehicle बनाए जाएंगे. क्या एक बार बनाए गए जहाज हर जहाज के साथ पेयर किए जा सकेंगे ? उदाहरण के लिए राफेल के साथ पेयरिंग के लिए बनाए गए UCAVs क्या सुखोई के साथ भी पेयर किए जा सकेंगे? इन सब सवालों के जवाब तभी मिलेंगे जब लॉयल विंगमैन प्रोग्राम के तहत भारत का पहला बेड़ा ऑपरेशनल हो जाएगा.

दुनिया का हाल

ऑस्ट्रेलिया: हाल के दिनों में देखें तो ऑस्ट्रेलिया की एयरफोर्स का लॉयल विंगमैन प्रोग्राम सबसे आगे चल रहा है. रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयरफोर्स ने अपने UCAV का नाम MQ-28 Ghost Bat रखा है. 2021 में पहली उड़ान के बाद अब तक ऑस्ट्रेलिया MQ-28 Ghost Bat सीरीज़ के 8 और UCAV बना चुका है.

MQ-28
बोइंग द्वारा निर्मित ऑस्ट्रेलिया का MQ-28 Ghost Bat (PHOTO- Boeing Australia)

चीन: भारत का प्यारा पड़ोसी चीन भी जोर-शोर से अपनी सेनाओं के लिए UCAV डेवलप कर रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि चीन ने अपने UCAVs में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी इस्तेमाल किया है. चीन ने हाल ही में हुए Zhuhai एयर शो में अपने लॉयल विंगमैन UCAV को प्रदर्शित किया. इसका नाम Feihong FH-97A है. फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ये लॉयल विंगमैन हवा से हवा (air to air) और हवा से जमीन (air to ground), दोनों तरह के मिशन को अंजाम देने में सक्षम है.

China's 'loyal wingman'
चीन का Feihong FH-97A (PHOTO-AP)

जर्मनी: यूरोप की दिग्गज एयरोस्पेस कंपनी, एयरबस ने BAE सिस्टम्स के साथ मिलकर जंगी जहाज Eurofighter Typhoon के लिए लॉयल विंगमैन डेवलप करना शुरू कर दिया है. खबरों के मुताबिक 2030 तक इसकी पहली उड़ान देखने को मिल सकती है.

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 एयरबस के लॉयल विंगमैन का कॉन्सेप्ट (PHOTO-Airbus)

रूस: रूस ने अपने लॉयल विंगमैन के प्रोजेक्ट को काफ़ी हद तक सीक्रेट रखा. हालांकि ARMY-2020 में रूस अपने उन्नत ड्रोन Sukhoi S-70 Okhotnik जिसे Hunter B के नाम से ख्याति प्राप्त है, और Kronshtadt Grom नाम के UCAV पर काम कर रहा है. 2020 में इसकी तस्वीर सामने आई थी. 

Kronshtadt Grom - Wikipedia
रूस का UCAV Kronshtadt Grom (PHOTO-Wikipedia)

अमेरिका: रक्षा क्षेत्र में सबसे उन्नत और मजबूत देश अमेरिका Skyborg प्रोग्राम के तहत ऐसे मानव रहित विमानों पर काम कर रहा है जिसमें एक फाइटर जेट के साथ 5 मानव रहित जेट का बेड़ा होगा. सभी UCAVs के बीच Kratos XQ-58A Valkyrie का नाम सबसे आगे चल रहा है. इस प्रोग्राम के लिए कंट्रोल सिस्टम को बनाने की जिम्मेदारी Calspan Corporation के पास है. 2020 में खूब सुर्खियां बटोरने वाली DARPA AlphaDogfight में ये बात सामने आई थी कि इंसान के उड़ाये जा रहे विमानों से AI वाले विमान बेहतर साबित हो सकते हैं. अमेरिकन कंपनी General Dynamics का प्लेन X-62 VISTA एक ऐसा जहाज है जो खुद से उड़ान भर सकता है. दिसम्बर 2022 में इस जहाज ने कई सफल उड़ानें भरी थीं.

Kratos Demonstrates XQ-58A Electronic Warfare Capabilities for United  States
 एक 5वीं पीढ़ी के जेट के साथ अमेरिका का Kratos XQ-58A Valkyrie (PHOTO-Kratos Defense & Security Solutions)

वर्तमान में किसी भी देश की एयरफोर्स ने पूरी तरह से इस कॉन्सेप्ट को नहीं अपनाया है. भविष्य में क्या होगा, ये अभी से कहना मुश्किल है. पर जैसा लेखक और दार्शनिक युवाल नोआ हरारी कहते हैं कि भविष्य में लगभग हर क्षेत्र में ए आई का ही दबदबा होगा. और जब ऐसा होगा तो जाहिर है मिलिट्री भी इससे अछूती नहीं रहेगी. 

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