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Lok Sabha Election: राहुल गांधी को अखिलेश ने यूपी में 17 सीटें तो दे दीं, मगर यहां कैसी है कांग्रेस की हालत?

लोकसभा चुनाव में Indi ब्लॉक की एकता बनाए रखने के लिए AKhilesh Yadav ने 17 सीटें Rahul Gandhi की पार्टी को दे तो दिए. मगर Raebareli और Amethi को छोड़ दें तो सिर्फ कानपुर और फतेहपुर सीकरी ही ऐसी सीटें हैं, जहां 2019 के चुनावों में Congress दूसरे नंबर तक पहुंच सकी थी.

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सपा ने कांग्रेस को जो 17 सीटें दी हैं, वहां कितनी है पार्टी की ताकत

लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election) से पहले इंडिया गठबंधन (India Alliance) की बनती बिगड़ती कहानी के बीच आखिरकार सपा (SP) और कांग्रेस (Congress) के बीच सीटों का बंटवारा हो गया. ख़बर आई कि प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) के हस्तक्षेप के बाद समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और राहुल गांधी के बीच समझौता हो गया. यूपी की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 67 सीटें सपा और उसके सहयोगियों के खाते में आईं और 17 सीटें कांग्रेस की झोली में गिरीं. अब लाख टके का सवाल ये है कि इन 17 सीटों पर कांग्रेस क्या कमाल दिखाने की हालत में है? या फिर सपा के वोट बैंक का सहारा लेकर देश की सबसे पुरानी पार्टी चुनाव जीतने की निंजा टेक्नीक लगाने की जुगाड़ में है. इन 17 सीटों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की संसदीय सीट वाराणसी भी है. जो कि काशी विश्वनाथ - ज्ञानवापी (Kashi Vishwanath - Gyanvapi) मसले को लेकर चर्चा में बनी हुई है. वो वहीं पूर्वांचल की ऐसी कई सीटें भी हैं जहां यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) का दबदबा है. ऐसे में कांग्रेस कहां ठहरती है, ये बात अहम हो जाती है. लल्लनखास की इस कड़ी में हम एक-एक करके उत्तर प्रदेश की उन सभी 17 सीटों का लेखाजोखा जानेंगे, जहां 2024 लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Eledction 2024) में कांग्रेस ताल ठोंकती नजर आएगी.

रायबरेली लोकसभा सीट  (Raebareli Lok Sabha Seat)- कांग्रेस की परंपरागत सीट है. राहुल गांधी के दादा जी बोले तो फिरोज गांधी (Firoz Gandhi) ने पहली बार 1952 के आम चुनावों में इस सीट को कांग्रेस पार्टी की झोली में डाला था, 1957 में भी वही यहां से MP बने. 1967 में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने रायबरेली से पर्चा भरा और रिकॉर्ड जीत दर्ज की. 1977 के चुनावों में इमरजेंसी के बाद उठी गुस्से की लहर और ढेर सारी कॉन्ट्रोवर्सी के बीच इंदिरा को हार का मुंह देखना पड़ा और रायबरेली सीट पर राज नारायण ने जनता पार्टी का झंडा फहराया.1980 में कांग्रेस का दोबारा कब्जा हुआ, जो कि 1991 के चुनावों तक बना रहा. मगर 1996 और 1998 के चुनावों में बीजेपी के अशोक सिंह ने यहां भगवा फहरा दिया. 1999 में गांधी परिवार के नजदीकी कैप्टन सतीश शर्मा ने कांग्रेस की घर वापसी करवाई. 2004 में पहली बार सोनिया गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत से जीत दर्ज की. 2009, 2014 और 2019 के चुनावों में भी रायबरेली में सोनिया का डंका बजता रहा. 2019 में मोदी लहर के बावजूद सोनिया गांधी ने  526,434 मत हासिलकर बीजेपी के अजय अग्रवाल को 352,713 मतों के रिकॉर्ड अंतर से हराया. हालांकि पिछले तीन चुनावों में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को मिलने वाले वोट परसेंट में लगातार गिरावट आ रही है. 2004 के चुनावों में सोनिया की अगुवाई में कांग्रेस को रायबरेली में 80.89 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2009 इसमें 8.23 फीसदी की गिरावट आई वो वोट परसेंट घटकर 72.23 फीसदी रह गया. 2014 में सोनिया का वोट शेयर 8.43 प्रतिशत गिरा और ये घटकर 63.80 हो गया. 2019 में भी कांग्रेस वोट शेयर गिरने का सिलसिला बंद नहीं हुआ और ये 8 प्रतिशत गिरकर 55.80 पर सिमट गया.

अमेठी लोकसभा सीट (Amethi Lok Sabha Seat)- उत्तर प्रदेश की सबसे चर्चित लोकसभा सीटों में शुमार किये जाने वाले अमेठी को भी गांधी परिवार की परंपरागत सीट माना जाता है. 1967 में अस्तित्व में आने के बाद से लेकर अब तक सिर्फ तीन बार कांग्रेस यहां से हारी है, पहली बार जनता लहर में 1977 में, फिर 1998 में और ताजा-ताजा पिछली बार यानि 2019 में. पहली बार 1980 में संजय गांधी (Sanjay Gandhi) ने अमेठी का दामन थामा, विमान दुर्घटना में उनकी मौत के बाद राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) जब राजनीति में उतरे तो 1981 के उपचुनाव में उन्होंने भी अमेठी सीट को चुना और 1991 तक इस सीट पर उन्हीं का कब्जा रहा. राजीव गांधी की हत्या के बाद 1991 में हुए उपचुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा ने कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ा और जीता. 1999 में यहां से सोनिया गांधी चुनाव जीतीं और 2004, 2009 और 2014 में राहुल गांधी ने यहां पर जीत की हैट्रिक बनाई. मगर 2019 के चुनावों में स्मृति ईरानी (Smriti Irani) ने राहुल का स्टंप उखाड़ दिया. उस चुनाव में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) 55,120 वोटों के अंतर से चुनाव हारे थे. जबकि उससे पहले 2014 में हुए चुनावों में स्मृति ईरानी को राहुल के हाथों 107,903 वोटों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा था. 2014 में राहुल को 46.71 फीसदी वोट मिले थे, जो 2019 में घटकर 43.84 फीसदी रह गए. यानी कि 2.85 प्रतिशत का नुकसान. नतीजा, गांधी परिवार के सबसे मजबूत किले पर कमल खिल गया.

2019 के लोकसभा चुनावों में स्मृति ईरानी ने कांग्रेस का सबसे मजबूत किला ढहा दिया (फोटो- इंडिया टुडे)

कानपुर लोकसभा सीट  (Kanpur Lok Sabha Seat)-  कानपुर संसदीय सीट यूपी की उन चुनिंदा सीटों में शुमार है, जिस पर आजतक सपा और बसपा का खाता नहीं खुल पाया है. पिछले 23 सालों के दौरान हुए आठ चुनावों में यहां मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही रहा है. 5 बार भाजपा जीती और 3 बार कांग्रेस. आखिरी बार 2009 में श्रीप्रकाश जायसवाल ने यहां कांग्रेस को जीत दिलाई थी. 2019 में बीजेपी के सत्यदेव पचौरी ने कांग्रेस के श्रीप्रकाश जायसवाल को 155,934 वोटों के अंतर से हराया. बीजेपी को 55.63 फीसदी वोट मिले, जबकि कांग्रेस के खाते में 37.13 प्रतिशत वोट ही आए. हालांकि 2014 के मुकाबले कांग्रेस के वोट शेयर में 6.98 फीसदी का इज़ाफा हुआ था. 2014 में कानपुर सीट पर कांग्रेस को 30.15 प्रतिशत वोट मिले थे. उस चुनाव में भी कांग्रेस ने श्रीप्रकाश जायसवाल को ही मैदान में उतारा था, मगर बीजेपी के दिग्गज डॉ मुरली मनोहर जोशी ने उन्हें 222,946 मतों के भारी अंतर से पटखनी दी थी.

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फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट  (Fatehpur Sikri Lok Sabha Seat)- 2008 में गठित हुई फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट पर अब तक हुए तीन चुनावों में से दो बार बीजेपी को जीत मिली और एक BSP को. सपा का यहां कुछ खास जनाधार रहा नहीं है. अबकी बार सपा के बजाय कांग्रेस के खाते में ये सीट गई है तो इसकी वजह हैं राज बब्बर (Raj Babbar). 2009 और 2019 में कांग्रेस के टिकट पर राज बब्बर यहां नंबर दो पर रहे. हालांकि 2019 में नंबर दो पर रहने के बावजूद, उनके और  बीजेपी के चौधरी बाबूलाल की बीच 495065 वोटों का अंतर था. मतलब करीब करीब पांच लाख वोटों से हारे थे बब्बर साहब. हां, 2009 में जरूर राज बब्बर को बसपा प्रत्याशी ने दस हजार से भी कम वोट से हराया था. यानी कह सकते हैं कि मुकाबला कांटे का था.

बांसगांव लोकसभा सीट  (Bansgaon Lok Sabha Seat)- गोरखपुर-देवरिया इलाके की बांसगांव लोकसभा सीट पर बसपा को छोड़कर लगभग सभी पार्टियां जीत दर्ज कर चुकी हैं. 2009 से 2019 तक बीजेपी के कमलेश पासवान यहां जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं. तीनों ही बार दूसरे नंबर पर BSP रही. जहां तक कांग्रेस का सवाल है 2019 में उसे नोटा से भी कम वोट मिले और टॉप फाइव में जगह भी नसीब नहीं हुई. 2014 में कांग्रेस के संजय कुमार को महज 50 हजार 675 वोट मिले और वो चौथे नंबर पर रहे. जबकि 2009 में भी कांग्रेस चौथे नंबर पर थी. उसे 76,432 वोट मिले थे. फिर अखिलेश ने ये सीट कांग्रेस को क्यों दी? जवाब है खुद सपा की हालत, जो कि खुद बड़ी खराब है. पिछले 2009 और 2014 में सपा यहां तीसरे नंबर पर थी. 2019 में नोटा से भी पीछे.

सहारनपुर लोकसभा सीट  (Saharanpur Lok Sabha Seat)- 1952 से लेकर 2019 तक कांग्रेस ने 6 बार ये सीट जीती है. मगर वो इतिहास की बात है. आज की हकीकत ये है कि 1984 के बाद से कांग्रेस ने सहारनपुर में जीत का स्वाद नहीं चखा है. 2019 में कांग्रेस के इमरान मसूद 16.81 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर रहे. जीत मिली बीएसपी के फजलुर रहमान को. जबकि 2014 में यहां से बीजेपी के राघव लखनपाल को जीत हासिल हुई थी. कांग्रेस के इमरान मसूद का वोट शेयर 34.14 फीसदी था. मुस्लिम बहुल सहारनपुर में कांग्रेस इस बार सपा के साथ जीत की उम्मीद पाल सकती है.

इलाहाबाद लोकसभा सीट  (Allahabad Lok Sabha Seat)- इलाहाबाद जिले का नाम बदलकर भले ही प्रयागराज हो गया हो, मगर संसदीय सीट अब भी इलाहाबाद के नाम से ही दर्ज है. महानायक अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने कांग्रेस के टिकट पर 1984 के लोकसभा चुनावों में लोकदल प्रत्याशी और दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा को एक लाख बीस हजार से ज्यादा मतों से हराया था. वो दिन और आज का दिन मजाल है कि कांग्रेस यहां जीत के आसपास भी पहुंच जाए. हां, 1989 में कांग्रेस की कमला बहुगुणा जरूर नंबर दो पर रहीं, मगर जनता दल के जनेश्वर मिश्रा ने उन्हें करीब चालीस हजार वोटों से मात दी थी. प्रयागराज सीट को परंपरागत रूप से बीजेपी का गढ़ माना जाता है. सपा के कुंवर रेवती रमण सिंह ने यहां बीजेपी को हराकर समाजवादी परचम लहराया था. बाकी 1996 से लेकर 2019 तक बीजेपी ने चार बार जीत दर्ज की है. कहा जा सकता है कि सपा ने कांग्रेस को ये सीट शहर से नेहरू-गांधी परिवार के निजी कनेक्शन को देखते हुए दी है.

सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने 1984 में इलाहाबाद में शानदार जीत हासिल की थी (फोटो- इंडिया टुडे)

महाराजगंज लोकसभा सीट  (Maharajganj Lok Sabha Seat)- 2009 में कांग्रेस के हर्षवर्धन ने महाराजगंज सीट पर जीत दर्ज की थी. मगर 2014 और 2019 में यहां बीजेपी का कब्जा रहा. 2014 में कांग्रेस के हर्षवर्धन को 5.42 फीसदी वोट शेयर मिला और वो चौथे नंबर पर रहे. जबकि 2019 में कांग्रेस की सुप्रिया श्रीनेत 5.91 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे नंबर पर थीं. उनके और चुनाव जीतने वाले बीजेपी उम्मीदवार पंकज चौधरी के बीच 653,833 वोटों का अंतर था.

वाराणसी लोकसभा सीट  (Varanasi Lok Sabha Seat)- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय सीट वाराणसी में कांग्रेस के अजय राय पिछले दो चुनावों से नंबर तीन पर आ रहे हैं. 2014 में उन्हें 7.34 फीसदी वोट शेयर मिला था. नंबर दो पर थे आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल. जबकि 2019 में कांग्रेस के अजय राय को 14.34 फीसदी वोट मिला. नंबर दो पर थीं सपा की शालिनी राय. दोनों ही बार विजेता कौन था, ये तो आप जानते ही हैं. अब सवाल ये है कि सपा और कांग्रेस मिलकर पीएम मोदी को हराने की ताकत रखते हैं क्या ? अगर 2019 के चुनावों को आधार मानें तो दोनों पार्टियां मिलकर भी नरेंद्र मोदी को मिले कुल वोटों से 326,957 वोट पीछे थीं.

अमरोहा लोकसभा सीट  (Amroha Lok Sabha Seat)- 1952 से लेकर 2019 तक कांग्रेस यहां चार बार चुनाव जीत चुकी है. आखिरी बार 1984 में जीती थी. तब से ये सीट बीजेपी, सपा, रालोद और बसपा के पास आती-जाती रही है. रही बात कांग्रेस के प्रदर्शन की तो 2019 में उसे महज 1.07 फीसदी वोट मिले थे. और 2014 में, खैर जाने दीजिए, बताने लायक है नहीं नंबर...

झांसी लोकसभा सीट  (Jhansi Lok Sabha Seat)- 2009 में कांग्रेस के प्रदीप जैन आदित्य ने झांसी संसदीय सीट पर जीत दर्ज की थी. मगर 2014 में 6.37 फीसदी वोटों के साथ वो चौथे नंबर पर रहे. जबकि 2019 में कांग्रेस के शिव सरन कुशवाहा 6.24 फीसदी वोट मिले और वो तीसरे स्थान पर रहे.

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बुलंदशहर लोकसभा सीट  (Bulandshahr Lok Sabha Seat)- 1984 के बाद से कांग्रेस बुलंदशहर में एक भी लोकसभा चुनाव नहीं जीत पाई है. इस सीट को परंपरागत तौरपर बीजेपी का गढ़ माना जाता है. पिछले दो चुनावों से भाजपा के भोला सिंह यहां से सांसद चुने जा रहे हैं. रही बात कांग्रेस की तो 2019 में उसे 2.62 फीसदी वोट शेयर और तीसरा स्थान मिला था और 2014 में टॉप फाइव में भी जगह नसीब नहीं हुई थी. 2014 में तो नोटा भी कांग्रेस से ज्यादा वोट पा गई थी. बोले तो गजब बेइज्जती वाली बात थी...

गाजियाबाद लोकसभा सीट  (Ghaziabad Lok Sabha Seat)- 2008 में गाजियाबाद संसदीय सीट अस्तित्व में आई. उसके बाद से हुए तीनों लोकसभा चुनावों में ये सीट बीजेपी के खाते में गई है. 2009 में राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) तो 2014 और 2019 में वी.के.सिंह (Gen V K Singh) ने यहां जीत का परचम लहराया. रहा सवाल कांग्रेस का तो 2019 में 7.39 फीसदी वोटों के साथ उसे तीसरा स्थान मिला था. प्रत्याशी थीं डॉली शर्मा. जबकि 2014 में कांग्रेस के राज बब्बर 14.25 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रहे थे. हालांकि 2009 के मुकाबले पार्टी के 18.16 फीसदी वोट कम मिले थे. 2009 में भी कांग्रेस 32.41 फीसदी वोटों के साथ दूसरे नंबर पर थी.

कांग्रेस के राज बब्बर को गाजियाबाद में उम्मीद के मुताबिक वोट नहीं मिले थे (फोटो- आजतक)

मथुरा लोकसभा सीट  (Mathura Lok Sabha Seat)- श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर (Shri Krishna Janambhoomi Mandir) की वजह से चर्चा में रहने वाली मथुरा संसदीय सीट पर पिछले दो चुनावों से बीजेपी प्रत्याशी हेमा मालिनी (Hema Malini) जीत दर्ज कर रही हैं. कांग्रेस का नंबर 2019 में 2.55 फीसदी वोटों के साथ तीसरा था. जबकि 2014 में पार्टी ने यहां से चुनाव ही नहीं लड़ा था.

सीतापुर लोकसभा सीट  (Sitapur Lok Sabha Seat)- 1952 से लेकर 2019 तक कांग्रेस ने 8 बार इस सीट पर कब्जा किया है. आखिरी बार पार्टी ने 1989 में यहां जीत का स्वाद चखा था. पिछले दो चुनावों में यहां बीजेपी के राजेश वर्मा जीत दर्ज करते रहे हैं. जबकि 2019 में 9.02 फीसदी वोटों के साथ कांग्रेस तीसरे और 2014 में 2.83 फीसदी वोटों के साथ चौथे स्थान पर रही थी.

बाराबंकी लोकसभा सीट  (Barabanki Lok Sabha Seat)- 1952 से लेकर 2019 तक कांग्रेस ने यहां कुल चार बार जीत हासिल की है. आखिरी बार पीएल पुनिया ने 2009 में पार्टी को यहां से जीत दिलाई थी. मगर 2014 में बीजेपी की प्रियंका रावत ने उन्हें 211,878 वोटों को विशाल अंतर से हरा दिया. 2019 में भी ये सीट बीजेपी ने जीती. जबकि कांग्रेस के तनुज पुनिया 13.82 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.

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देवरिया लोकसभा सीट  (Deoria Lok Sabha Seat)- 1984 के बाद से कांग्रेस ने देवरिया में जीत का स्वाद नहीं चखा है. 2019 में 5.03 फीसदी वोटों से साथ उसे तीसरा स्थान मिला था. सीट बीजेपी के खाते में गई थी. जबकि 3.88 फीसदी वोटों के साथ 2014 में कांग्रेस को चौथा स्थान मिला था. बीजेपी के दिग्गज नेता कलराज मिश्र ने जीत का परचम लहराया था.

राजनीतिक पंडितों की मानें तो सपा ने कांग्रेस के खाते में जो 17 सीटें दी हैं, उनमें से भी ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस की डगर मुश्किल नहीं बल्कि बहुत मुश्किल नजर आ रही है. बूथ स्तर पर संगठन का घोर अभाव दिख रहा है. 2019 में तो इन सीटों के बहुत सारे मतदान स्थल ऐसे थे, जहां पार्टी अपने वोटरों के लिए पर्ची काटने वाले बूथ भी नहीं बना पाई थी. पिछले 5 सालों में हालात बहुत ज्यादा सुधरे हों, इसके आसार कुछ खास नहीं लग रहे. हां, राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा (Bharat Jodo Nyay Yatra) ने रातों रात चमत्कार कर दिया हो तो बात और है. 
 

बन गया कांग्रेस-सपा के बीच सीट शेयरिंग का फॉर्मूला