नेता का काफिला जा रहा था. अचानक उस पर हमला होता है. गोलियां चलाई जाती हैं, पर एक महिला बॉडी गार्ड खुद को गोलियों के सामने ढाल बना देती है. अपनी जान की कुर्बानी देने वाली ये महिला, लीबिया के कर्नल गद्दाफी की खास टुकड़ी में से थी. करीब 40 महिलाओं का एक दस्ता, जो साये की तरह गद्दाफी के साथ रहता था. जिसके कई नाम दिए जाते थे.
हमेशा महिला गार्ड्स से क्यों घिरा रहता था तानाशाह गद्दाफी? वजह चौंकाने वाली है
गद्दाफी के राज में ग्रीन बुक लाई जाती है. लीबिया का आधिकारिक संविधान. गद्दाफी डायरेक्ट डेमोक्रेसी का सिस्टम लागू करता है. साथ ही अपनी सुरक्षा का जिम्मा वो महिला गार्डस के हवाले करता है.
यूरोप में इन्हें अमेजन्स या अमेज़ोनियन गार्ड्स कहा जाता था. इनका एक नाम रिवोल्यूशनरी नन्स भी था. वहीं उत्तरी अफ्रीका में इन्हें, प्रशंसा के साथ ‘हारिस-अल-हस’; ‘द प्राइवेट गार्ड्स’ नाम दिया गया. कई बार तो ये गद्दाफी के शासन की तस्वीर की तरह पेश की जाती रही हैं. महिलाओं के काम के सांचों को तोड़ने वाली. इन्हें महिला सशक्तिकरण का पर्याय भी बताया गया.
साल 2009 में जब गद्दाफी और इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनी की मुलाकात हुई. तब राजनेताओं और दोनों देशों के मुद्दों की चर्चा तो हुई ही. साथ में सेना की कैमोफ्लाज़ वर्दी. ऊंचे बूट और काले चश्मों वाली - महिला बॉडीगार्ड्स ने भी प्रेस में खूब सुर्खियां बंटोरी. करीब बीस साल तक निरंकुश शासक के राज का पर्याय ये दस्ता रहा. इन पर तमाम खबरें, रिपोर्ट्स और डॉक्युमेंटरी बनीं. लेकिन फिर एक रोज़ देश में गृह युद्ध छिड़ता है. गद्दाफी की हत्या होती है. और महिला बॉडीगार्ड्स और गद्दाफी के शासन के कई स्याह राज़ दुनिया के सामने आते हैं.
‘मुअम्मर-अल-गद्दाफी’ की मौत के बाद, 17 अक्टूबर साल 2012 में ‘ह्यूमन राइट्स वाच’ ने एक लेख छापा. शीर्षक था; डेथ ऑफ अ डिक्टेटर.- ब्लडी वेंजेंस इन सिर्ते. अपनी जबान में कहें तो, एक तानाशाह की मौत - सिर्ते का खूनी बदला. साथ में गद्दाफी की तस्वीर थी. खून से लथपथ, जमीन पर. लड़ाकों ने सिर पर बंदूकें तान रखी थीं. कभी आलीशान महलों और चकाचौंध में रहने वाला शासक. महिला बॉडीगार्ड्स जिसकी सुरक्षा में हर दम चौकन्नी रहती थीं. जमीन पर मृत पड़ा था. पर 42 साल के शासन का अंत हुआ कैसे, जानते हैं शुरुआत से.
लीबिया कभी इटली की कॉलोनी था. साल 1929 में ट्रिपोलिटानिया, सायरेनेका और फेज़ान इलाकों को मिलाकर बना था. साल 1939 में ट्रिपोलिटानिया इटली का हिस्सा बना. फिर दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया. इटली की हार हुई. ब्रिटेन ने ट्रिपोलिटानिया और सायरेनेका पर अलग-अलग प्रशासन रखा. वहीं फेज़ान फ्रांस के अधिकार क्षेत्र में आया. फिर लीबिया का भविष्य तय करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की मदद ली गई. और साल 1950 में ब्रिटेन ने इदरिश-अल-सनुसी को यूनाइटेड किंगडम ऑफ लीबिया का राजा बनाया.
कुछ साल शासन चला. नया संविधान भी बनाया गया. हलांकि ये राजतंत्र था. राजतंत्र में सामज में महिलाओं के रोल्स को कुछ बढ़ाने के प्रयास भी किए गए. पर आगे यहां कुछ प्रशासनिक बदलाव किए गए. जिसकी एक वजह, साल 1959 में देश में तेल के बड़े भंडार मिलना माना जाता है. दरअसल तेल मिलने के बाद देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से बदलाव हुए. आम लोगों और प्रशासन के बीच तनाव बढ़ा. और राजतंत्र ने सोचा कि नए प्रशासनिक बदलाव करने से इसे काबू में किया जा सकता है. लेकिन इसका परिणाम ये हुआ कि केंद्र की सत्ता के पास ज्यादा पावर आ गई.
ऐसे में लीबिया जैसे बड़े देश में, राजा अपनी शक्ति को लेकर चिंतित था. पॉलिटिकल पार्टियों पर बैन लगा दिया गया. समाचार सेंसर किए जाने लगे. प्रदर्शनों पर रोक लगाई जाने लगी. और विपक्ष को दबाने के प्रयास हुए. और धीरे-धीरे माहौल ऐसा बना कि राजा को राज करने के लिए बीच के लोगों पर निर्भर रहना पड़ा. नदाइन स्चनेलजर, लीबिया इन द अरब स्प्रिंग में लिखते हैं,
फ्रीडम, सोशलिज्म और यूनिटी“ राजा ने अधिकार कुछ पावरफुल परिवारों के हाथ दे दिए. जिन्होंने आपस में शादी के रिश्तों के चलते, शक्ति का केंद्रीकरण कर लिया. और आर्थिक प्रभाव बनाया. ज्यादातर लिबियाई लोग ठीक कहते थे, कि कुछ ही परिवार देश पर अधिकार रखते थे, और इसके भविष्य का फैसला कर रहे थे.”
साल 1942 में लीबिया के रेगिस्तान के एक टेंट में एक बच्चे का जन्म हुआ. स्थानीय कबीले के किसान के घर जन्मे इस बच्चे का नाम रखा गया, मुअम्मर-अल-गद्दाफी. रेगिस्तान के एक टेंट में जन्म से परिवार की आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है. पर गद्दाफी बचपन में पढ़ाई में तेज था. साल 1963 में यूनिवर्सिटी ऑफ लीबिया से ग्रैजुएशन किया. धीरे-धीरे अरब राष्ट्रवाद का समर्थक भी बना. फिर साल 1965 में लिबियन मिलिटरी एकेडमी से ग्रैजुएट होने के बाद, धीरे-धीरे सेना के ऊंचे पद पर पहुंचा.
दूसरी तरफ राजशाही में तेल का पैसा जमा किया जा रहा था और आम लोग इस पैसे के खर्च पर सवाल उठा रहे थे. गद्दाफी और कई समर्थक राजा को गद्दी से हटाने का माहौल तैयार करते हैं. संघर्ष को लोगों के बीच की आर्थिक खाई को भरने का जरिया बताया जाता है. और भी कई वादे किए जाते हैं और इस कू का नारा दिया जाता है- आजादी, समाजवाद और एकता. फिर साल 1969 में तख्तापलट होता है.
ग्रीन बुकबकौल नदाइन, गद्दाफी के राज में ग्रीन बुक लाई जाती है. लीबिया का आधिकारिक संविधान. गद्दाफी डायरेक्ट डेमोक्रेसी का सिस्टम लागू करता है. हालांकि डायरेक्ट डेमोक्रेसी कभी जमीनी हकीकत नहीं बन पाई. आगे ये भी लिखा जाता है कि गद्दाफी संवैधानिक ढांचे से बाहर था. वो ना राष्ट्रपति था, ना ही प्रधानमंत्री. उसने लीबिया की नीतियों पर पूरा कब्जा रखा. बिना किसी औपचारिक ऑफिस में बैठे. जिसकी वजह से राजनीतिक निर्णय दुविधाजनक हो गए.
एक तरफ सत्ता पर गद्दाफी काबिज हो रहा था. दूसरी तरफ महिला गार्ड्स का सिलसिला भी शुरू हो रहा था. अमेरिकी लेखक जोसेफ टी स्टैनिक के मुताबिक, गद्दाफी ने इनकी नियुक्ति शायद इसलिए की थीं क्योंकि अरब बंदूकधारियों के लिए महिलाओं पर गोलियां चलाना असहज होता. दूसरी तरफ एक धड़ा ये भी कहता है कि यह बस दिखावे के लिए किया गया था. क्योंकि उसे युवा लड़कियों से घिरा रहना पसंद था.
इन्हें लेकर कई कहानियां चलती हैं. एक तबका ये भी मानता रहा है कि गद्दाफी खुद ही महिला गर्ड्स की भर्ती का काम देखता था. जो ना सिर्फ फिजिकली फिट हों, साथ में सुंदर भी हों. रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन्हें कुंवारे होने और वफादारी का प्रण भी दिलाया जाता था. वहीं नई भर्ती की गई गार्ड्स की शुरुआत भी आसान नहीं होती थी. ऐसा भी कहा जाता है कि इन्हें ग्राफिक वीडियोज़ यानी गद्दाफी के दुश्मनों को दी जाने वाली - सजा के खूनी वीडियो दिखाए जाते थे. ये सिलसिला भी चला.
पर गद्दाफी का 42 साल का राज, एक रोज़ खत्म होने को आया. फरवरी 2011 में सरकार के खिलाफ लोगों ने आंदोलन कर दिया. सिक्योरिटी फोर्सेज ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाईं. शुरुआत का प्रदर्शन धीरे-धीरे बंदूकधारी जंग में बदल गया. राज्य के टेलीविजन प्रोग्राम पर गद्दाफी का बयान भी आया. उसने गद्दी से हटने से मना कर दिया और प्रदर्शनकारियों को देशद्रोही बताया. उसने दावा किया कि विरोधी अल-कायदा के प्रभाव में हैं और आंदोलनकारी भ्रामक दवाओं के प्रभाव में. आंदोलन को दबाने के लिए कई प्रयास किए गए. नाटो संगठन भी बीच में पड़ा. मामला इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस तक पहुंचा. नागरिकों पर हमला करवाने, और मानवता के खिलाफ जुर्म के लिए, ICJ ने गद्दाफी के खिलाफ अरेस्ट वारेंट जारी किया गया. यहां देश में संघर्ष चल ही रहा था. और फिर 20 अक्टूबर को रेबेल्स ने सिर्ते पर कब्जा कर लिया. जो गद्दाफी का आखिरी गढ़ों में था. और उसकी हत्या कर दी गई. फिर पर्तें खुलती हैं. महिला गार्ड्स के बैरक्स की.
अमेजोनियन बैरक्सगद्दाफी के मरने के बाद तमाम मानवाधिकार संगठन और अखबारों ने इस पर चर्चा की. महिला गार्ड्स की टुकड़ी पर भी खबरें छपीं. 7 सितंबर 2011 को ‘द गार्जियन’ में छपे एक लेख में कहा गया,
“तानाशाह के तबाह किए गए कंपाउंड में आखिरकार, इस खास टुकड़ी के राज खुल रहे हैं. और गद्दाफी ने इन्हें भी क्रूर दबाव से निष्ठावान बनाया था.”
शहर के बीच, 77 वीं ब्रिगेड के विशालकाय बेस में महिला गार्ड्स का एक ग्रुप रहता था. जो कि संघर्ष के बाद तबाह था. सब बिखरा पड़ा था. यहीं गद्दाफी की एक वफादार महिला गार्ड द गार्जियन से बताती है,
“उन्होंने हमें सम्मान दिया. हां, मैंने उनके लिए लड़ाई की और मुझे इसका गर्व है. वह एक अच्छे इंसान थे. मैंने गर्व से उनकी सेवा की और प्रेम किया. यह मेरा कर्तव्य था. पर अब यह खत्म हो गया है और मैं घर जाना चाहती हूं.”
ये शब्द गार्ड्स की निष्ठा की तरफ इशारा करते हैं. पर वाशिंगटन पोस्ट में छपे एक आर्टिकल में तस्वीर इससे अलग थी. इसके मुताबिक कर्नल गद्दाफी की इलाइट टीम का हिस्सा रही पांच महिला गार्ड्स ने आरोप लगाए कि लीबिया के नेता ने उनका बलात्कार किया था. इसमें उसका बेटा भी शामिल था. ये आरोप भी लगाए गए कि जब उनका मन भर जाता था तो उन्हें डिस्चार्ज कर दिया जाता था.
एक महिला ने माल्टा टाइम्स को ये भी बताया कि उसे ब्लैकमेल करके भर्ती किया गया था. उससे कहा गया था कि उसका भाई लीबिया में ड्रग्स की स्मगलिंग करता है और अगर वो जॉइन नहीं करती है, तो उसे जेल जाना होगा. रिपोर्ट में आगे कहा जाता है कि ऐसी कहानियों में एक पैटर्न देखने मिलता है.
“पहले तानाशाह महिलाओं का रेप करता था. और फिर किसी वस्तु की तरह उन्हें - उसके बेटे और फिर उच्च अधिकारियों को पास भेजा जाता था.
बाद के सालों में और भी परतें खुलीं. कई आरोप लगे. सिलसिला चलता रहा, पर इन गुनाहों की सजा देते किसे.
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