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अजीत डोभाल के बेटे ने बताया, पाकिस्तान में इतिहास की किताबों में क्या-क्या लिखा है

शौर्य डोभाल 1981-1987 तक पाकिस्तान में रहे थे.

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शौर्य डोभाल 7 साल पाकिस्तान में रहे थे. (फोटो: आजतक)

इस बार दी लल्लनटॉप के पॉलिटिकल इंटर्वूज़ की खास सीरीज़ जमघट में तशरीफ लाए थे NSA अजीत डोभाल के बेटे और इंडिया फाउंडेशन के डायरेक्टर शौर्य डोभाल. शौर्य उत्तराखंड BJP में गुड गवर्नेंस के राज्य संयोजक भी हैं. उन्होंने गढ़वाल लोकसभा सीट से अपने दावे, जेड सुरक्षा, द वायर पोर्टल और कारवां पत्रिका द्वारा इंडिया फाउंडेशन और डोभाल परिवार के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर अपना पक्ष रखा. 

पाकिस्तान में 7 साल रहना कैसा था?

जहां-जहां पिता अजीत डोभाल की तैनाती होती, शौर्य भी उनके साथ जाते. मिज़ोरम और सिक्किम के बाद शौर्य 1981-1987 तक पाकिस्तान में रहे. जमघट में उन्होंने अपने इस 7 साल के अनुभव के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा,

‘मेरे पिताजी दूतावास में थे तो मैं 7 साल इस्लामाबाद रहा. उस समय अफगान क्राइसेिस (सोवियत अफगान युद्ध) चल रहा था. और पंजाब में क्राइसिस शुरू होने वाला था. पाकिस्तान इन सबमें व्यस्त था. तो भारतीय राजनयिकों और भारतीय फैमिलीज़ के लिए कोई हाई सिक्योरीटी नहीं थी. मैंने पाकिस्तान में अलग-अलग स्कूलों में पढ़ाई की. पाकिस्तान में रहना भारत के किसी भी हिस्से में बड़े होने जैसा था. फर्क सिर्फ इतना है कि आप 50 अन्य बच्चों के बीच एकमात्र भारतीय हैं और वो सब आपके खिलाफ हैं. इसलिए आप दो चीजें सीखते हैं. पहला आप अपने देश से प्यार करना शुरू करते हैं और दूसरा कि आप अकेले लड़ना सीखे लेते हैं. और यही मेरे साथ हुआ. वहां रहना क्रिकेट मैच जैसा भी था. जैसे 49 लड़के एक तरफ और मैं एक तरफ. तो अपने आप राष्ट्रवाद पैदा हो जाता है. अकेले लड़ने की क्षमता भी खुद ही आ जाती है.’

पाकिस्तान में क्या पढ़ाते थे?

शौर्य ने बताया कि पाकिस्तान में स्कूल बुक्स में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर बताया जाता है. 

'पाकिस्तान में बच्चों को स्कूल बुक्स में बताया जाता है कि उनका इतिहास 1947 से शुरू हुआ है. उनको पहले की कोई चीज़ पढ़ाई नहीं जाती है. पढ़ाया भी जाता है तो कुछ इस तरह से पढ़ाया जाता है कि हिंदूओं से मुस्लिम कितने श्रेष्ठ हैं. तो उनमें ये गलत धारणा पैदा हो जाती है कि 1947 से पहले वो हिंदुस्तान के हुक्मरान थे. और 1947 के बाद उन्होंने एक नया देश (पाकिस्तान) बना लिया है. जिसके वो अब हुक्मरान हैं. उनका इतिहास मुहम्मद बिन क़ासिम के आने का बाद शुरू होता है. और वो लोग इसी को पाकिस्तान का इतिहास मानते हैं. उनको इंडस वैली के अंदर सिर्फ हड़प्पा मोहनजोदड़ो के बारे में पढ़ाया जाता हैं और उसी को फिर छठी और सातवीं शताब्दी के मुहम्मद बिन क़ासिम से जोड़ दिया जाता हैं. बीच में गुप्ता डायनेस्टी, मौर्य डायनेस्टी के बारे में कुछ नहीं पढ़ाया जाता है.'

शौर्य ने बताया कि दुर्भाग्य से अब उनकी पाकिस्तान के दोस्तों से बातचीत नहीं होती है. क्योंकि जब वो वहां से वापस आए, उस वक्त सोशल मीडिया नहीं था. और पिता के पेशे की वजह से भी उनकी वहां के दोस्तों से बातचीत नहीं हो पाई. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि शायद वो जीवन में किसी दिन उनकी पाकिस्तान के दोस्तों मुलाकात होगी.   

वीडियो: अजीत डोभाल के बेटे शौर्य ने पाकिस्तान में बिताए 7 सालों के क्या किस्से सुनाए?