2007 में इस नाम से रानी मुखर्जी की फिल्म भी आई थी.
एक शाम-रात की बात है. घर जा रहा था. दफ्तर से. जाम था. क्योंकि नोएडा है. यहां मेट्रो आ रही है. खैर, कार ठिठकी तो गाना बजा. साथ बैठी दोस्त ने सुनवाया. बल्कि वीडियो दिखाया यूट्यूब पर. हल्के मोबाइल से बनाया गया. एक बच्चा है. घर की बनियान में टहलता सा. फिर भूरे पुराने दरवाजे से सट जाता है. गाने लगता है. दरवाजे को ही तबला बनाकर बजाने लगता है. बच्चा गा रहा है...'लागा चुनरी में दाग, छिपाऊं कैसे.' और राम जाने कैसे हुनर के साथ दरवाजे पर तबला बजा रहा है. आप यहीं क्लिक कर इसे देख सुन लें. फिर बात आगे बढ़ाऊं. https://youtu.be/j9zY-D_SKQc बांध लेता है न. अनगढ़पन ने इसे और सुंदर बना दिया. खैर. इस बच्चे का नाम तन्मय चतुर्वेदी है. ये गूगल सर्च से पता चला. अब बच्चा भी नहीं है. 19 साल का भरा पूरा जवान. 2007 में मशहूर हो गया था. सारेगामा लिटिल चैंप से. आगरा का है. लखनऊ से एंट्री हुई थी. अब वहीं गाना सीख रहा है. पर हम तो गाने की बात कर रहे हैं. बच्चे ने गाया. तो बीच में कुछ पंक्तियां मिसिंग थीं. तो लगा. कि ये दाग तो कहीं भी लग सकता है. लड़के के पैंट में भी. मगर चिंता लड़की को क्यों करनी पड़ती है. और बाप से नजर मिलाने में शर्म. क्या होगा दाग. लड़की ने सेक्स कर लिया होगा क्या. अपने यहां उसी पर सबसे ज्यादा हायतौबा होती है. किसके साथ किया होगा. उसके साथ, जिससे वो प्यार करती होगी. अब अफसोस कर रही होगी. पर क्यों. आपको देव डी की कल्कि याद है. बॉयफ्रेंड को ब्लो जॉब दिया. इश्क में बावरी होकर. लौंडे ने MMS बना लिया. वायरल हो गया. लड़की के बाप ने स्यूसाइड कर लिया. पर एक बार भी बेटी का सिर छाती से टिकाकर ये नहीं कहा. कोई बात नहीं बच्चे. सबने सबक सीख लिए हैं. सब ठीक हो जाएगा. जमाना बदल रहा है. बहुत ज्यादा ही तेजी से. आप खुशफहमी में न रहें. कि हमारे घर के बच्चे ऐसे नहीं हैं. ये बच्चे भी तो इसी वक्त में हैं. सिखाना है तो ये सिखाएं. कि जबरदस्ती जिंदगी में किसी के साथ भी कभी मत करना. ड्रग्स मत करना. झूठा मजा होता है. सेक्स हमेशा सेफ करना. और रजामंदी से ही करना. शादी के बाद भी. और गलती कैसी भी हो. ये हिम्मत रखना कि घर पर बता सकते हैं. और आप हमेशा ये गुंजाइश रखना कि बताई जा सके. यकीन मानिए. आधी मुश्किलें आने से पहले ही मर जाएंगी. खैर. बात दाग पर हो रही थी. तो मोदी जी भी याद आए. मम्मियां, बेटों से भी पूछें. कहां जा रहे हो. क्या कर रहे हो. कब लौटोगे. क्या करके आए. सही कहा नरेंदर ताऊ ने. पापा से चार बरस बड़े हैं. तो गांवदारी तो यही कहती है. ताऊ की बात गौर और अमल के लायक है. और समझदारी. वो ये कहती है कि अधूरी बात लपकना लुच्चपना है. क्योंकि गाना किसी और दाग की बात कर रहा था. दुनियादारी में लिपट असल बात भूलने की गलती की तरफ इशारा था. घर पहुंचा. असल गाना सुना. साहिर लुधियानवी का लिखा. वही आदमी जो इसलिए भी अजीज है कि अमृता उससे प्यार करती थी. कितनी जरूरी बात कह गया. तिस पर रोशन का संगीत. रितिक के बाबा. अजीब है न. कमाल के रोशन को काबिलियत में एवरेज से कुछ ऊपर रितिक के हवाले से पेश करना. ये भी एक सच है. या कि झूठ. गाने पर लौटें. क्योंकि एक और आदमी तारुफ के इंतजार में है. स्वर जिसने दिया है. मन्ना डे. पॉपुलर में क्लासिक के दूत. राग भैरवी में गाया है उन्होंने ये गाना.
पहले साहिर की कलम, फिर मन्ना के स्वर
लागा,
चुनरी में दाग,
छिपाऊं कैसे हो गई मैली मोरी चुनरिया
कोरे बदन सी कोरी चुनरिया
जाके बाबुल से, नज़रें मिलाऊं कैसे,
घर जाऊं कैसे भूल गई सब बचन बिदा के
खो गई मैं ससुराल में आके
जाके बाबुल से, नज़रे मिलाऊं कैसे,
घर जाऊं कैसे कोरी चुनरिया आत्मा मोरी
मैल है माया जाल
वो दुनिया मोरे बाबुल का घर
ये दुनिया ससुराल लागा चुनरी में दाग
छिपाऊं कैसे
https://www.youtube.com/watch?v=TLNIw1CrwFE कमाल की पंक्तियां हैं न. साहिर को मुबारक. और शुक्रिया इसके असल जनक कबीर काका को. नरेंदर ताऊ और कबीर काका. वो क्या है न, ताऊ वो होते हैं, जिनसे हम सब डरते हैं. झुट्ठे का रौब दौब. और काका वो बड़ी उमर का आदमी होता है, जो हमारी बदमाशियों का राजदार बन सकता है. जिसके साथ हम सहज होते हैं. बचपन की खुशनुमा यादों का सैंटा.
हां तो कबीर कक्का ने लिखा ये
मेरी चुनरी में परि गयो दाग पिया.
पांच तत्व की बनी चुनरिया
सोरह सौ बैद लाग किया
यह चुनरी मेरे मैके ते आई
ससुरे में मनवा खोय दिया
मल मल धोए दाग न छूटे
ज्ञान का साबुन लाए पिया.
कहत कबीर दाग तब छुटि है
जब साहब अपनाय लिया
दाग अच्छे हैं वालों ने भी कबीर को सुना होगा क्या. जस्ट आस्किंग. दागी कहीं के. कहीं भी कुछ भी जोड़ देता है. क्यों. हजारी बाबा जो कह गए हैं. तेरी तो जात ही झूठी है रे. पत्रकार.